मंगलाचार : नूतन डिमरी गैरोला












केदारनाथ की आपदा की पृष्ठभूमि में लिखी इन कविताओं में अभी भी वह अनुत्तरित प्रश्न मौजूद है कि इस विपदा के पीछे कितना मनुष्य है कितनी प्रकृति.   






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एक जंगल काफल का

वहाँ हवाएं खिलखिलाती थी 
बच्चों की हँसी के साथ
हरे हरे पत्तों के बीच
हाथ में डोल लिए
एक गाँव की एक पीढ़ी
काफल बीनते बच्चे,
लाल लाल रस से भरे काफल
झरझरा रहे थे
पेड़ से गिर कर जड़ के पास ..

यकायक पूरा जंगल ही गिर गया
जड़ें उखड गयी आसमान की
और पत्ते, जंगल, बच्चे
हाहाकार में हो गए दफ़न
सदा के लिए हो गए मौन..

गाँव से आने वाली हवाओं में
गूंज रहा अविरल विलाप

एक पीढ़ी की कहानी
जंगल से तब्दील हो चुकी है

पहाड़ के बीच उभरे बेहद नुकीले पथरीले
बंजर रेगिस्तान में.



और तलाश जारी है

टूट गया पहाड़ धरधरा कर
सैलाब बन गयी 
मंदाकनी, असिगंगा, अलकनंदा
चेहरे गुम गए

तस्वीरे हाथ में थाम
नाउम्मीदी का पहाड़
पार करते हैं लोग......
थक जाते है कदम
उम्मीदें हैं कि थकती नहीं.




उस काले दिन

उस दिन
खच्चर और उनके मालिक
शामिल न थे
जिनको होना था शामिल
यात्रियों की आवाजाही में .....

असहयोग से भरा उनका आन्दोलन था
हवाई यात्रा के खिलाफ .....
लोगों की बदहवास नजरें ढूंढ रही थी
खच्चर वालों को
घनघोर बरसात में

भीड़ से पट गया केदारधाम ......
हेलीकाप्टर की उड़ान के खिलाफ
बुलंद आवाजों में हो रही नारेबाजी को
अनसुना करती
प्रलय की सुनामी,
स्थान और स्थानीय लोगो के साथ
यात्रियों को, खच्चर और खच्चर वालों को,
लपेट ले गयी अपने साथ ........

जबकि आन्दोलन का मुख्यनेता
जो था हवाई उड़ान के खिलाफ
हेलिकोप्टर में हो कर सवार
जान बचाता हुआ हो गया 
उड़न छू.



नवेली

वह सजीधजी
नए वस्त्रों को पहनें
मुस्कुरा रही थी
हिमनद को निहारते हुए
पति के साथ
मंदिर के किनारे

चार दिन बाद
टी वी में देखा था लोगो ने
अभिशप्त पहाड़ के दलदल में
छितरी लाशों के बीच
एक लगभग अनावृत लाश

उसकी पतली कोमल उँगलियों को
औजारों से क़तर रहे थे
कुछ सक्रिय कातिलाना  हाथ

वह वही नवविवाहिता थी
जिसने पहनी थी
वेडिंग रिंग


कही और


शायद मैं अपना सब कुछ बचा जाना चाहती थी
तुमसे दूर कूच कर जाना चाहती थी
पेड़, पहाड़, झरने, गाँव
खेत, खलिहान, रहट, छाँव
सबसे दूर कहीं दूर

मेहराब वाली घनी आबादियों में
प्रकृति से छिटक आधुनिक वादियों में 
इसलिए मैंने सांकलों में
जड़ दिए थे ताले

तुम देते रहे थे दस्तक
कि कभी तो दस्तक की आवाज पहुँच सके मुझ तक .

मैंने  कान कर लिए थे बंद
नजरे फेर ली थी.

आकाश मे जब भी उमड़ते है बादल
बित्ता भर खुशी के पीछे हजारों आंसुओं का गम लिए
मैं व्याकुल हो जाती हूँ
कि अबके न कोई सैलाब मचले
अबके न किसी का दिल दहले.
मैं अपनी जड़ों तक पहुँच जाती हूँ
समझने लगती हूँ कि
इन जड़ों के बचे रहने का मतलब
कितना जरूरी है मेरे लिए,
जैसे बनाए रखना पहचान को
बनाए रखना अपने होने के भान को....
नहीं तो सूखा दरख़्त हो जाउंगी
हल्की सी आंधी में
धरधरा के गिर मिट जाउंगी
ढहते पहाड़ों की तरह.
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डॉ नूतन गैरोलाचिकित्सक (स्त्री रोग विशेषज्ञ), समाजसेवी और लेखिका हैं.   गायन और नृत्य से भी लगावपति के साथ मिल कर पहाड़ों में दूरस्थ क्षेत्रों में निशुल्क स्वास्थ शिविर लगाती रही व अब सामाजिक संस्था धाद के साथ जुड़ कर पहाड़ ( उत्तराखंड ) से जुड़े कई मुद्दों पर परोक्ष अपरोक्ष रूप से काम करती हैं. पत्र पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन.
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कुछ कविताएँ और भी पढ़ें.

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  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 18 जून 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. मुझे नूतन आपके लिए पूरी प्रसन्नता है। आपका सन्देश मिला। कविताएँ तो मैं इसके पहले ही पढ़ चुकी थी। समलोचन मेरे हाथ में आने वाली दिनचर्या का हिस्सा रहा। आपको बहुत बहुत बधाई।
    मित्र की चिंताएं और समाज के प्रति जागरूकता, साहित्य के प्रति प्रतिबद्धता से मैं आश्वस्त हूँ। कविताएँ तो अच्छी हैं। जीवन में ऐसी त्रासदियां लोगों को न देखनी पड़ें । आपको पुनः बधाई।

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  3. अच्छी कविताएँ..इस तरह की त्रासदियों में सब कुछ न कुछ खोते हैं...पर कम हैं जो सीखते हैं...नाउम्मीदी पहाड़ न बने और पहाड़ न बने सैलाब...यह सीखने का समय है. यही इन कविताओं का 'टेक होम' है. बधाई डॉ नूतन गैरोला को सार्थक सर्जन के लिए और शुक्रिया अरुण जी का.

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  4. ये कहाँ छुपा रखी थी आज तक । एक ही पढ़ी थी तब मतलब।
    दर्द सिमटाया है रिचाओं में शयेर्ड।

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  5. केदारनाथ त्रासदी की पृष्‍ठभूमि पर सघन आवेग के साथ रची गई इन कविताओं का असर देर तक मनश्‍चेतना पर बना रहता है, डॉ नूतन ने इस त्रासदी पर पहले भी ऐसी कविताएं रची हैं, इस त्रासदी को एक वर्ष पूरा हो जाने के बाद भी उन हालात पर सघन रूप से कहने लिखने की स्थितियां यथावत बनी हुई हैं। डॉ नूतन गैरोला को इन बेहतरीन कविताअों के लिए बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।

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  6. आपकी रचनाओं ने एक बार फिर से उस जख्म को ताजा कर दिया वैसे तो वो कभी भर ही नहीं सकता,आपकी रचनाओं के शब्दों ने उस दर्द को पीया है बहुत -बहुत बधाई आपको नूतन जी,इन भावपूर्ण अभिव्यक्तियों पर |

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  7. मनोभावनाओं की बाढ़ बहा ले जाती है.. आपकी संवेदना ही शब्द गढ़ती है. वही आत्मीय हैं..
    इनमें से कई कविताओं को महसूस कर चुका हूँ. कुछ के साथ अभी-अभी संवाद बना है..
    इन कविताओं की पृष्ठभूमि के सापेक्ष शुभकामनाएँ भी क्या कहूँ.. !

    शुभ-शुभ

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  8. सुन्दर कवितायेँ !

    अनुपमा तिवाड़ी

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  9. भयावह त्रासदी की भयावहता को उकेरती कविताओं के लिये दिल से बधाई स्वीकारिये नूतन जी

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  10. 5 well polished and beautiful poems by Dr. Nutan Ji draw the pictures of that ugly calamity took place in Uttaranchal. Nutan ji is a poet with heart full of emotions and love for humanity. The poems are the proof ...
    Lovely and touching poems telling the story and the consequences of that devastating incident.
    Keep going Nutan Ji…

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  11. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन बच्चे और हम - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  12. हादसे के कारण विनाश का मंजर देखा .... हकीकत और उठते प्रश्न को आपने अपने भावो को सुन्दरता से ढाला है. विनाश और केदार हादसे से जुड़े भाव मन को झंझोड़ते है प्रश्नों के उत्तर मालूम है लेकिन उनको अमल पर लाना ही चुनौती है [ प्रतिबिम्ब]

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  13. चिकत्सीय कार्य से जुडी होने के बावजूद आपकी कविता रचनाये भावों से परिपूर्ण है बधाई.

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  14. संवेदनाओं की बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  15. सभी आदरणीय गुणीजनों को मेरा सहृदय धन्यवाद और आदरणीय अरुण जी का हार्दिक आभार ... समालोचन पत्रिका को शुभकामनाएं

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  16. खेल ये कुदरत का नहीं, इंसानी करतूत
    मोहना तेरे विकास का ये है असली रूप
    पीटे ढोल विकास का, खोदे रोज पहाड़
    कुदरत भी कितना सहे, तेरा ये खिलवाड़़...त्रासदी तेरे दर पर यह सच सभी जानते हैं कि अगर कथित विकास के चलते पहाड़ को खोखला नहीं किया होता तो यह त्रासदी इतनी भयानक नहीं होती।नूतन जी आप यथार्थ को अपनी कविताओं में शामिल करते हैं और मानवीय सरोकारों से जुड़ी बात कहते हैं..आप ने अपनी कविताओ में हमेशा जीवन के आस-पास ही लिखा। भाषा शैली, यर्थार्थ की अनुभूति और विचारों की तीव्रता जैसे तत्व आप की कविताओं को पढ़ने पर महसूस होते हैं .कविताओं में अपनी भावनाओं, संवेदनाओं और विचारों को खूबसूरती से उकेरा है। आप को इन कविताओ के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनये और साथ में समालोचन पत्रिका को भी शुभकामनये

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  17. बधाई, इन मार्मिक कविताओं के लिए,
    कवि और संपादक दोनों को

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  18. बेहद मर्मस्पर्शी कविताएँ...पहाड़ी जीवन को गहरी आत्मीयता और अंतर्दृष्टि के साथ छूती सरोकारों वाली कविताएँ...आपके शोक में हाथ बाँधे हम भी खड़े हैं नूतन जी

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