रंग – पर्व पर आशुतोष
दुबे की इन कविताओं में ऋतु के करवट लेने की आहट है, हर रंग का अपना निहितार्थ
होता है और वह भी कही ख़ुशी से खिल पड़ता हैं तो कहीं आशंकाओं में सफेद पड़ जाता है. हिंदी में पर्व को लेकर कविताएँ कम है. आशुतोष
ने जिस तरह से इस रंग – पर्व को देखा है वह उनके जैसे सक्षम कवि से ही संभव है.
खैर मैंने कुछ चित्रों की मदद से होली को चटख करने की कोशिश की है. रंगों में अपने
मन के मैल को धो लेने का आमन्त्रण देती इस होली में आप सबका स्वागत है. बहुत
शुभकामनाएं
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आशुतोष
दुबे की कविताएँ
रंगों
की आहट
जब रंगों की आहट सुनाई दे,
खोलना होता है दरवाज़ा
जगह देनी पड़ती है
उन्हें खिलने के लिए अपने भीतर
वरना वे गुज़र जाते हैं चुपचाप
बिना कोई दस्तक दिए
और फिर हम उन्हें ढूँढते रहते हैं
कस्तूरी-रंग
जिस गन्ध में यह फूल खिला है
वह एक रंग की है
अपने कस्तूरी-रंग में डूबा हुआ
यह फूल उगता है मन की डाल पर
आप उसे दूर से पहचान लेते हैं
जो भीतर से महक रहा है इस रंग की गन्ध से
रंगों का समवाय
रंगों का कोई एकांत नहीं
उनका एक समवाय है
वे अपनी सामूहिकता में खुश हैं
उन्हें अकेला न करें
अकेलेपन में वे दम तोड़ देते हैं
और आप अकेले रह जाते है
एक रंगहीन संसार में
रंगों के संगीत पर
सिर हिलाते हुए
आपने उन्हें सहसा
मौन होते हुए देखा है?
वे कभी-कभी सहम कर चुप भी हो जाते हैं
और सफेद पड़ जाते हैं
डर से
या स्याह हो जाते हैं
आप जब उनका उत्सव
मना रहे होते हैं
वे सुबक रहे होते हैं धीरे-धीरे
काँप रहे होते हैं
आशंकाओं मे
वे अपने विसर्जन को जान रहे होते हैं
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आशुतोष दुबे
1963
कविता संग्रह : चोर दरवाज़े से, असम्भव सारांश, यक़ीन की आयतें
कविताओं के अनुवाद कुछ भारतीय भाषाओं के अलावा
अंग्रेजी और जर्मन में भी.
अ.भा. माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, केदार सम्मान, रज़ा पुरस्कार और वागीश्वरी पुरस्कार.
अनुवाद और आलोचना में भी रुचि.
अंग्रेजी का अध्यापन.
सम्पर्क: 6, जानकीनगर एक्सटेन्शन,इन्दौर - 452001 ( म.प्र.)
vaah....sunder....is se priya kya hoga....aabhar. teen shabd rang........samvaya...abhigyaan....visarjan...
जवाब देंहटाएंपरिचय का आभार, रंगों में दर्शन।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविताएँ...शुभ होली.
जवाब देंहटाएंRang ko kavi ne mahsoos kiya hai.. Ashutosh ki kvitayen hamesha samvedana ko parishkrit karti hai. . Holi mubaraq
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