अहर्निशसागर की कुछ नई कविताएँ
सिरोही (राजस्थान) के युवा अहर्निशसागर अपनी कविताओं के प्रकाशन को लेकर एक कवियोचितसंकोच रखते हैं. ‘समालोचन’ में जब वह प्रथमत: दिखे तब सह्रदय साहित्य समाज नें उन्हें खूब सराहा और एक संभावनाशील रचनाकार का खुले मन से स्वागत किया. उनकी कविताओं को ‘कथादेश’ ने आभार के साथ प्रकाशित किया है. अहर्निश के पास संवेदना और शिल्प का सधा हुआ काव्य-युग्म है, शिल्प की कसावट से अभिव्यक्ति का सौन्दर्य और मर्म खिलता और खुलता है. उनके यहाँ सूक्तिपरकता दिखती है. प्रेम और राजनीतिक वंचना उनके दो प्रिय विषय हैं. ‘ईसाइयत जीसस से नहीं /सलीब से पैदा हुई थी’ या ‘हमें यहा से मत हटाओ/यह सड़क बनने से पहले/ हम फुटपाथ पर नही थे’ जैसी पंक्तियाँ कौतुक नहीं हैं – अपने गहरे निहितार्थ से हतप्रभ कर देती हैं. उनकी नई कविताएँ ख़ास आपके लिए.
1
प्रेम जीवन की
देह हैं
और देह प्रेम
हैं जीवन का
ये कहना -
की मैं तुमसे
प्रेम करता हूँ
या नहीं करता
दोनों अब एक-सा
अर्थ रखते हैं
दक्षिणी गोलार्ध
पर जाकर
समाप्त हो जाती
है दक्षिण दिशा
अब मैं जिस ओर
जाऊं
निसंदेह वह "उत्तर"
होगा.
2
भविष्य लौटता
हैं मेरी तरफ
रण भूमि से
लंगड़ाते हुए उस घोड़े की तरह
जिसकी पीठ पर
सेनापति की लाश हैं
वर्तमान के
कौनसे वार नें घोड़े को घायल किया ?
अतीत की कौनसी
गलती से सेनापति मारा गया ?
मैं नहीं जानता
कायर राजा की
तरह
बार-बार शराब
गटकता हूँ
और झरोखे से
झांकता हूँ
सोचता हूँ
भविष्य चाहे एक
हो लेकिन
मेरे पास घायल
होने के लिये असंख्य घोड़े हो
मारे जाने के
लिए असंख्य सेनापति.
3
धैर्य
तो सवाल धैर्य
कितना ?
सुखी घास में
शिकार कि ताक में दबे हुए
तेंदुए जितना
धैर्य
अर्थात छलांग के
साहस जितना धैर्य
मृत्यु कि सरहद
पर देर-सबेर एक फूल खिलेगा
उसके खिलने के
इन्तजार जितना धैर्य
और खिलते ही
छलांग जितना अधैर्य .
समर्पण
वृक्ष कि तरह
अरण्य को अंगीकार कर लेना
हरीतिमा के
केंद्र से पत्ते कि तरह किनारों को
पीला होते देखना
और पतझड़ के
प्रथम प्रहर में ही झड़ जाना
चाहे जीवन भरा
हो
सुख से लबालब
प्यासा गला मिले
तो सहसा उलीच देना.
आज्ञा
जीवन कभी रंगरूट
कि तरह
एड़िया पटक कर
सलामी नहीं देता
जीवन अराजक होता
हैं
सिर्फ़ कारतूस के
समानांतर चलती
मृत्यु अनुशासित
हो सकती हैं
आज्ञा देने से पहले
मुझ पर गोली दाग
दो.
4
चित्रकार स्याह
करता जा रहा हैं अपने रंगों को
लगता हैं
दुनियां तेज़ रौशनी से भर चुकी हैं
विदा की यात्रा
अब शुरू होती हैं
विदा !
जैसे बच्चे सेंध
लगाते हैं संतरों के बगीचे में
मैंने सेंध लगाई
वर्जित शब्दों के लिए
सभ्यता के
पवित्र मंदिर में
संतरे के पेड़ों
की जड़ें पृथ्वी के गर्भ तक जाती थी
और पृथ्वी की
जड़ें जाती हैं सूरज के गर्भ तक
और अगर सूरज
दीखता रहा संतरे जैसा
तो मैं निश्चिंत
हूँ, बच्चे उसे सेंध लगा के बचा लेंगे
चींटियों के
हवाले करता हूँ
पृथ्वी को, मेरे बच्चों को, समूचे जीवन को
चींटियाँ काफी
वजन उठा लेती हैं
अपने वजन से भी
ज्यादा
तो मैं निश्चिंत
हूँ,
प्रलय से ठीक
पहले
चींटियाँ
सुरक्षित खींच ले जायेगी पृथ्वी को
बेहद कमजोर पर
भरोसा करके
कहता हूँ
"विदा"
5
समंदर तट पर
रहने वाली लड़की !
समंदर कितना
अकेला होता हैं अपने भीतर
उतना ही अकेला, जितना बसंत उदास
होता हैं
बसंत के मौसम
में
समंदर तट पर
बैठी हो तुम
तट की रेत राख
हो चुकी हैं
घुटनों तक राख
में डूबे
हवस के
दैत्याकार हाथी तुम्हारी तरफ बढ़ते हैं
महावत की उम्र
कितनी छोटी होती हैं हाथी से
अनंत में डूबा
तुम्हरा महावत
राख के भीतर से
हँसता हैं
इस शोक पूर्ण
हंसी के साथ
तुम अपनी
प्रतीक्षा का फंदा क्षितिज के गले में फंसा दो
समंदर तट पर
रहने वाली लड़की !
समंदर के
अकेलेपन में तुमने अपना विछोह घोला
और समंदर ने
तुझे
नमक की तरह
ख़ूबसूरत बना दिया
सौंदर्य के इस
शीर्ष पर
अब मैं सिर्फ
"लड़की" संबोधित करता हूँ तुझे
वही अनाम लड़की
जिसकी कहानी
तमाम कहानिओं की
शुरुआत से पहले समाप्त हो चुकी थी
दोस्तोयेव्स्की
जिसका जिक्र
अपने उपन्यासों
के अंत तक नहीं कर पाया
एक अनाम लड़की के
नाम ख़त लिखकर
कथाओं के पात्र
आत्महत्या करते हैं
एक दुखांत अंत
के बाद शुरू होती हैं तुम्हारी जिन्दगी
कितना मुश्किल
हैं
सिर्फ एक
"लड़की" होना
नमक की तरह
ख़ूबसूरत होना
6
अँधा होने की
पहली शर्त थी
हमारे पास आँखे
होती
ईसाइयत जीसस से
नहीं
सलीब से पैदा
हुई थी
जीवन के गाये
तमाम गीत साबित करते हैं
मनुष्य सिर्फ
मृत्यु से प्रेम करता हैं
सभ्यताओं के
विकास के सही आंकड़े
युद्धों के बाद
विध्वंस में मिलेंगे
एक खुबसूरत
दुनिया बनाने के लिए
जरूरी थे
खुबसूरत जोड़े
और वे प्रेम
करते रहें एक दुसरे की खूबसूरती से
उसके लिए होनी
चाहिए एक खुबसूरत दुनिया
जो की हमारे पास
नहीं थी
ईश्वर वो
चिड़ीमार हैं
जो अक्सर जाल
फेंककर भूल जाता हैं
और कलाकार वो
पक्षी
जो करतब दिखाते
फंसेगा उसमें
7
क्रांति के
अगुवे
चीख कर कहते हैं
हमारी
"क्रांति" सम्पूर्ण "शांति" के लिए होगी
हुजूम के पीछे
खडी "मौत"
अपना नाम
"शांति" लिखवाकर
जुलूस में शामिल
हो जाती हैं
8
मैं हर अपराह्न
तालाब के तट पर
बैठ
आटे की गोलियां
खिलाता हूँ
मछलियों को
फेंकी गयी हर
गोली पर
सैकड़ों मछलियां
झपट्टा मारती
हैं एक साथ
और ये नियमित
कर्म है हमारा
एक अपराह्न
मैं नहीं आ
पाउँगा तट पर
कोई शिकारी
काँटा फेंकेगा
अपराह्न के उसी
वक्त
सैकड़ों मछलियां
एक साथ
झपट पड़ेगी उस पर.
9
देखो
यही से मेरे
पिता की
अर्थी उठी थी
इसी आँगन में
मेरी बेटियों ने
अपने बदन पर
उबटन मला था
इस कोलतार के
नीचे
महज ज़मीन नही
मेरे बच्चों के
खेलने के मैदान हैं
मेरे पुरखों की
देह गंध हैं
इस मिट्टी में
हमें यहा से मत
हटाओ
यह सड़क बनने से
पहले
हम फुटपाथ पर
नही थे.
______________
अहर्निशसागर
२००९ में मोहन
लाल सुखाडिया यूनिवर्सिटी से BA
एक ताजगी और अलक्षित यथार्थ से भरी ये कविताऍं प्रथमद्रष्ट्या ही जेहन में जगह बना लेती हैं। इस नए कवि का हार्दिक स्वागत।
जवाब देंहटाएंअहर्निश काव्य संसार अनिच्छाओं से उपजा है. उनके भीतर का मर्म सप्राण है. वे शब्दों के रंगजेज़ हैं, इसलिए काव्यात्मक हो जाना उनका सहजपन है. बधाई.
जवाब देंहटाएंशानदार कवितायेँ ...बधाई अहर्निश और शुक्रिया समालोचन
जवाब देंहटाएंयह फुटपाथ वाली कविता शानदार है .. कितना कुछ इतने कम शब्दों में कह गई है .. अहर्निश को माकूल नरिशिंग भी मिल रहा है सक्रिय साहित्यिक लोगों से यह काबिले तारीफ़ है वरना शायक नाम के एक नवोदित की हत्या यहीं मेरे आसपास ही घेर कर की गई थी .
जवाब देंहटाएंजबरदस्त कविताएँ ! हालाँकि कुछ इससे भी अच्छी कविताएँ पढ़ी हैं मैंने इनकी ! पहली और आखिरी कविता बेहद सशक्त हैं !
जवाब देंहटाएंअहर्निश मेरे प्रिय कवियों में से एक हैं..उनकी कवितायें गहरे अर्थ लिए होती हैं...
जवाब देंहटाएंSunita
बेहद कमज़ोर पर भरोसा करके … कहता हूँ विदा .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कवितायें ...
किस - किस कविता के लिए क्या लिखूं, सभी शानदार कवितायेँ, अहर्निश को शुभकामनाएं, अरुण जी का आभार सुन्दर कवितायेँ पढवाने के लिए !
जवाब देंहटाएंअनुपमा तिवाड़ी
Gehri bhavnaye aur.....aur shashakt shilp.....subhkamnaye.
जवाब देंहटाएंबोधपूर्ण गहन अर्थवत्ता से परिपूर्ण ऐसी सामर्थ्यवान कवितायें जिनके शब्द पंक्तिबद्ध हो कर आपके चारों ओर अनगिनत फेरे लगा सकते है ... अहर्निश को बधाई ...
जवाब देंहटाएंएक सांस में पढी ये कविताएँ...कुछ तो स्तब्ध करती हैं..अंतिम तीन पंक्तियाँ अत्यंत मर्मस्पर्शी हैं...कई बार पढ़े जाने की जिद है इनमें. बधाई अहर्निश जी को और साधुवाद अरुण जी को.
जवाब देंहटाएंअहर्निश की कविताएं आपको हमेशा आमंत्रित करती हैं.....और ये कवितायें शोर से थोडा दूर होकर ही लिखी जा सकती हैं....लाज़वाब कविताओं के लिए अहर्निश और समालोचन को बधाई.....
जवाब देंहटाएंबेहद गहन और अर्थपूर्ण कवितायें सोचने को विवश करती हैं । बधाई अहर्निश
जवाब देंहटाएंशुक्रिया समालोचना और आप सबका !
जवाब देंहटाएं_ Aharnishsagar
अहर्निश आपकी कविताएं सघन और सुगठित हैं। ईसाइयत जीसस से नहीं सलीब से पैदा हुई थी। इस मिथक में एक साथ मरियम, क्रुसिफिक्शन और रिसरेक्शन के वो अबोले दुःख हैं जिनसे मानव सभ्यताएं आँख नहीं मिला पातीं ,जैसे इन पीड़ाओं और यातनाओं की कब्रगाह में हमारे होने की न जाने कितनी स्मृतियां जमा हैं।
जवाब देंहटाएंहमारे बच्चे इसी तरह कविता को बचा लेंगे जैसे अहर्निश की पृथ्वी को चींटियाँ संभाले हुए हैं।
शुभकामनाएं।
F N Souza का चित्र भी एक कविता ही है।
जवाब देंहटाएंAharnish ke paas samvedna Orr shilp ka saghaa hua kavya-yugam hea....Sahi kaha Aapne
जवाब देंहटाएंAharnish ......Shubhkamnayie Orr dhero Ahashirwad..!
............................Tumhari Dee
isase shaandar subah aur kyaa ho saktee thi | shandar anubhav raha, in kavitaaon se gujarana ...|
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंअभी नहीं, कल आराम से पढूंगी. अहर्निश की कविताओं की ख़ासियत ये है कि ये मुझे एकांत में भेजने में मदद करती हैं..एक गहरे मौन में..
जवाब देंहटाएंये बहुत प्यारा कवि मिला है हिंदी भाषा को. इसे ख़ूब पढ़ा जाना चाहिए.
simply amazing.. your poetry speaks so eloquently!! God bless you and your pen ..
जवाब देंहटाएंसड़क बनने से पहले .... no words , touched !
जवाब देंहटाएंसब पढें।लाजवाब कविदृष्टि है 👌👌🙏🙏
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचनाएं
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