मेघ दूत : फेर्नान्दो पस्सोआ : रीनू तलवाड़














फेर्नान्दो पस्सोआ (Fernando Pessoa) २० वीं सदी के आरम्भ के पुर्तगाली कवि, लेखक, समीक्षक व अनुवादक थे और दुनिया के महानतम कवियों में उनकी गिनती होती है. अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने ७२ छद्म नामों या हेट्रोनिम् की आड़ से सृजन किया, जिन में से तीन प्रमुख थे. और हैरानी की बात तो यह है कि इन सभी छद्म नामों की अपनी अलग जीवनी, दर्शन, स्वभाव, रूप-रंग व लेखन शैली थी. पेस्सोआ  के जीवनकाल में उनकी एक ही किताब प्रकाशित हुई. मगर उनकी मृत्यु के बाद, एक पुराने ट्रंक से उनके द्वारा लिखे २५००० से भी अधिक पन्ने  मिले, जो उन्होंने अपने अलग-अलग नामों से लिखे थे. पुर्तगाल की नैशनल लाइब्रेरी में उनके सम्पादन का काम आज भी जारी है.

  
यहाँ उनके ३ प्रमुख छद्म नामों-- रिकाह्र्दो रेइस, अल्बेर्तो काइरो, आल्वरो द कम्पोस व उनके स्वयं के नाम से लिखी कविताएँ हैं.
                                                                                                                                                                                                 
फेर्नान्दो पस्सोआ
 रीनू तलवाड़
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मैं ट्रेन से उतरा

मैं ट्रेन से उतरा
और उस आदमी को अलविदा कहा 
जिससे मैं मिला था.
हम अठारह घंटे साथ रहे थे
और हमारे बीच हुई थी सुखद बातचीत,
यात्रा का साथ था,
और मुझे दुःख था ट्रेन से उतरने का,
खेद था छोड़ के चले आने का
इस संयोग से बने मित्र को,
जिसका नाम तक मैं नहीं जान पाया.
मैं अपनी आँखों को भीगता महसूस कर रहा था...
हर विदाई एक मृत्यु है.
हाँ, हर विदाई एक मृत्यु है.
उस ट्रेन में जिसे हम जीवन कहते हैं,
हम सब एक-दूसरे के जीवन की संयोगिक घटनाएँ हैं,
और हमें दुःख होता है जब उतरने का समय आता है.

वह सब जो मानवीय है मुझे प्रभावित करता है, क्यूंकि मैं एक मनुष्य हूँ.
वह सब जो मानवीय है मुझे प्रभावित करता है, इसलिए नहीं कि मुझे
मानवीय भावों या मानवीय मतों से लगाव है
परन्तु इसलिए कि स्वयं मानवता के साथ मेरा असीम संसर्ग है.

वह नौकरानी जिसका बिलकुल मन नहीं था जाने का,
याद करके रोती है
उस घर को जहाँ उस के साथ दुर्व्यवहार किया गया...

ये सब, मेरे मन में, है मृत्यु और दुनिया का दुःख.
ये सब जीता है, क्यूंकि वह मरता है, मेरे मन में .

और मेरा मन पूरे ब्रह्माण्ड से बस ज़रा-सा बड़ा है.
फेर्नान्दो पस्सोआ ( आल्वरो द कम्पोस )
(इस कविता का मूल पोर्त्युगीज़ से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.)





देव जीवन से अधिक कुछ नहीं देते

देव जीवन से अधिक कुछ नहीं देते,
तो जो हमें आह्लादित करता है,
अनंत परन्तु अपुष्पित
जो उठा देता है विस्मयकारी ऊंचाइयों तक,
चलो उसे चाहना छोड़ दें.
स्वीकार करना -- बस केवल यही हो हमारा ज्ञान,
और जब तक है हमारी धमनियों में रक्त का प्रवाह,
जब तक प्यार कुम्हला नहीं जाता,
चलो यूँ ही चलते रहें
कांच के टुकड़ों की तरह: रोशनी में पारदर्शी,
टपकती उदास बारिश से टप-टपाते,
धूप में गुनगुने होते,
और करते थोडा-थोडा प्रतिबिंबित.


फेर्नान्दो पस्सोआ (रिकाह्र्दो रेइस)
(यह कविता उनके संकलन 'ओड्ज़' से है. इस कविता का मूल पोर्त्युगीज़ से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.)





कितनी बड़ी है यह उदासी

कितनी बड़ी है यह उदासी और
यह कड़वाहट जो झोंक देती है
हमारी नन्ही ज़िंदगियों को
एक कोलाहल में !
ऐसा कितनी बार होता है
कि दुर्भाग्य
क्रूरता से हमें कुचल डालता है!
सुखी है वह जानवर, स्वयं से अनामित,
जो हरे-हरे खेतों में चरता है,
और ऐसे प्रवेश करता है मृत्यु में
जैसे कि वह उसका घर हो;
या वह विद्वान जो, अध्ययन में डूबा,
अपने निरर्थक सन्यासी जीवन को
उठा लेता है हमारे जीवन से बहुत ऊपर,
धुंए की तरह,
जो अपने विघटित होते हाथों को
उठा देता है एक ऐसे स्वर्ग की ओर
जिसका अस्तित्व ही नहीं है.
फेर्नान्दो पस्सोआ ( रिकाह्र्दो रेइस)(यह कविता उनके संकलन 'ओड्ज़' से है.इस कविता का मूल पोर्त्युगीज़ से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.)



पानी के बुलबुले

आग के एक बड़े अध-मिटे धब्बे-सा
डूबता सूरज
ठहरे बादलों में कुछ देर ठहर जाता है.
सांझ के मौन में दूर कहीं
सुनता हूँ सीटी कि धीमी आवाज़.
कोई रेलगाड़ी जा रही होगी.

इस पल में
एक अस्पष्ट-सा विरह मुझे घेर लेता है
साथ ही एक अज्ञात और शांत-सी चाह
जो आती है जाती है.

ऐसे ही, कभी, नदियों की सतह पर,
होते हैं पानी के बुलबुले
जो बनते हैं फिर फूट जाते हैं.
और उनका कोई अर्थ नहीं होता
सिवाय पानी के बुलबुले होना
जो बनते हैं फिर फूट जाते हैं.

फेर्नान्दो पस्सोआ (अल्बेर्तो काइरो)
(यह कविता उनके संकलन 'द कीपर ऑफ़ शीप ' से है. इस कविता का मूल पुर्तगाली से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.)



तुम जो रहस्यवादी हो...

तुम जो रहस्यवादी हो, हर चीज़ में ढूंढते हो मायने.
हर चीज़ के हैं तुम्हारे लिए अस्पष्ट अभिप्राय.
जो कुछ भी देखते हो तुम, उसमें है कुछ छिपा हुआ.
जो कुछ भी देखते हो तुम, देखते हो, कुछ और देखने के लिए.

मैं, जिसके पास हैं केवल देखने के लिए आँखें,
सब चीज़ों में देखता हूँ मायनों की अनुपस्थिति.
और यह देख कर, खुद से प्यार करता हूँ मैं,
क्योंकि
एक चीज़ होने का अर्थ है, कुछ भी न होना.
एक चीज़ होने का अर्थ है न होना वश में किसी व्याख्या के.

 फेर्नान्दो  पस्सोआ ( अल्बेर्तो काइरो )(यह कविता उनके संकलन 'द कीपर ऑफ़ शीप ' से है.इस कविता का मूल पुर्तगाली से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.)




चांदनी में दूर कहीं...

चांदनी में दूर कहीं
नदी पर एक किश्ती
चुपचाप तैरती हुई.
कौन-सा रहस्य खोलती है?

नहीं जानता मैं, मगर मेरे
भीतर के जीव को अचानक
अजीब-सा लगने लगता है,
और मैं सपने देखता हूँ
बिना उन सपनों को देखे
जो मैं देख रहा हूँ.

क्या है यह वेदना
जो घेर लेती है मुझे?
क्या है यह प्यार
जो मैं समझा नहीं पाता?
वह किश्ती है जो आगे बढ़ जाती है
इस रात मैं जो यहीं रह जाती है.

फेर्नान्दो पस्सोआ (यह कविता उनके संकलन 'सोंगबुक 'से है.इस कविता का मूल पोर्त्युगीज़ से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.)




बच्चा जो हँसता है सड़क पर 

बच्चा जो हँसता है सड़क पर
गीत जो अचानक ही सुनाई देता है,
बेहूदा चित्र, नग्न प्रतिमा,
असीम कृपा --

ये सब कहीं अधिक है
उस तर्क से
जो बुद्धि ने थोपा है चीज़ों पर,
और इस सब में है कुछ-कुछ प्यार,
चाहे यह प्यार बोल नहीं सकता.

फेर्नान्दो पस्सोआ(यह कविता उनके संकलन 'सोंगबुक 'से है. इस कविता का मूल पोर्त्युगीज़ से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.)




नए शहर के कैफे में पहली चंद घड़ियाँ 

आह, वो पहली चंद घड़ियाँ नए शहरों के कैफे में!
एक शांत दीप्त मौन से पूर्ण,
स्टेशन या बंदरगाह पर सुबह-सुबह की आमद!
जहाँ अभी-अभी पहुंचे हों
उस शहर के सबसे पहले दिखे पैदल लोग,
और जब हम यात्रा करते हैं,
वह समय के बीतने की अनोखी आवाज़...

बसें या ट्रामें या गाड़ियाँ...
अनूठे देशों में सड़कों की अनूठी छटा...
शान्ति, जो वे देती प्रतीत होती हैं हमारे दुःख को,
ख़ुशी-भरी हलचल, जो हमारी उदासी के लिए है उनके पास,
हमारे मुरझाये-हुए मन के लिए नीरसता की अनुपस्थिति!
बड़े, विश्वसनीय ढंग से समकोणीय चौक,
इमारतों की कतारों वाली सड़कें जो दूर जाकर मिल जाती हैं,
एक-दूसरे को काटती सड़कें जहाँ अपनी रूचि का कुछ-न-कुछ
मिल जाता है अकस्मात ही,
और इस सब में, जैसे कुछ उमड़ता है बिना कभी बह निकलने के,
गति, गति,
द्रुत रंग की मानुषिक चीज़ जो आगे बढ़ जाती है और रह जाती है...

बंदरगाह अपने रुके हुए जहाज़ लिए,
अत्यधिक रूप से रुके हुए जहाज़,
और छोटी नावें पास में, प्रतीक्षा करती हुई...

फेर्नान्दो पस्सोआ ( आल्वरो द कम्पोस ) (इस कविता का मूल पोर्त्युगीज़ से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.)



सभी कविताओं का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
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विश्व साहित्य से हिंदी में अनुवाद के क्षेत्र में रीनू तलवाड़ का नाम सम्मान से लिया जाता
 है. वह फ्रेंच पढ़ाती हैं और नियमित रूप से अखबारों में साहित्य, रंगमंच व सिनेमा  पर लिखती हैं.
ई पता : reenu.talwarshukla@gmail.com

रीनू ने अब तक निज़ार क़ब्बानी, तोमास त्रांसत्रोमर, फेर्नान्दो पेस्सोआ, अदुनिस, यान काप्लिन्स्की ,कैरल एन डफ्फी, डब्ल्यू एस मर्विन, रोबर्ट ब्लाए, याक प्रेवेर डान पेटरसन, रायनर मरीया रिल्के ,चेस्वाफ़ मीवोश, ज्यानिस रीत्ज़ोज़, पाब्लो नेरुदा, ओक्तावियो पास, नाओमी शिहाब नाए, मार्क स्ट्रैन्ड, वीस्वावा शिम्बोर्स्का, वेरा पाव्लोवा , अंतोनियो मचादो , इस्माइल कदारे, ओसिप मैंडलस्टैम, पॉल एलुआर, मेरी ओलिवर, यौं फोलें, आदम ज़गायेव्स्की, डेरेक वालकॉट, दून्या मिखाइल, पाउल चेलान, महमूद दरविश, रोबेर देज़्नोस , स्रेच्को कोसोवेल , अली अब्दोलरेज़ेई, आना आख्मतोवा, आरथ्यूर रिम्बो, उम्बेर्तो साबा, एनकी क्रोक, ओलाव एच हाउजी , कार्लोस ओबरेगोन, ज़ोर्जे लुईस बोर्जेस , जेफ्फ्री मकडेनिअल, जॉन बर्नसाइड, जोर्ज सिएरतेश, नाज़िम हिकमत, नीकानोर पार्रा, फिलिप लेवीन, मारियो सेज़ारीनी, मारीना स्व्ताएवा, मिशेल दगी, यूल सुपरवीएल, रयून क्रिस्तियानसन, विक्टर ह्यूगो, विसार ज्हीटी ,सोहराब सेपेहरी  आदि का अनुवाद किया है.

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  1. इन कविताओं के कवि से असहमत हुआ जा सकता है लेकिन अनुवाद की श्रेष्ठता से नहीं ! रीनू जी को बधाई !

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  2. नए बिम्बों वाली,मन के अंधेरे कोनों को दर्शाने वाली,आंतरिक और बाह्य जगत में चल रही हलचलों की आसपास की कवितायेँ .

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  3. रीनू एविड रीडर के साथ एक कवि का ह्रदय रखती हैं .. ये अनुवाद उनकी इसी प्रतिभा का साक्षी है . बहुत सुन्दर अनुवाद हैं रीनू . वे बहुत बढ़िया रिव्यू भी लिख रही हैं . उनको पढना सुखद अनुभव .

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  4. meri likhi ek kavita yahan paste kar rahi hoon.. :))))

    मैं उसे कभी ट्रेन तक छोड़ने नही जाती
    ट्रेन की आवाज़ मेरी धडकन में बस जाती है
    उसके बाद जब तक वह लौट नही आता
    मेरा दिल ट्रेन की गति सा चलता है और धडकता है छुक छुक
    मैं बिना उसके साथ गए एक सफर में शामिल हो जाती हूँ
    रात सोते समय भी मेरे बिस्तर पर धूप उतर आती है
    और भागते हुए पेड़ मेरे जीवन की स्थिरता को तोड़ते रहते हैं
    सड़कों के किनारे खाली खेतों में वीरान पड़े मंदिरों की तरह मैं अकेली हो जाती हूँ
    जब भी वह शहर से दूर जाता है
    मैं उसे स्टेशन के बाहर से छोड़ कर चली आती हूँ
    और कई कई दिन तक मुझे लगता है
    बस वह सब्जी लेने गया है
    या हजामत करवाने
    बस आता ही होगा
    भ्रम पालने में वैसे भी हम मनुष्यों का कोई सानी नही

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  5. कविता के मूल अर्थ को सुरक्षित रखते हुए बहुत ही सुन्दर सहज अनुवाद ....

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  6. सुमन केशरी20 अप्रैल 2012, 10:37:00 am

    वह सब जो मानवीय है, मुझे प्रभावित करता है क्योंकि मैं एक मनुष्य हूँ... मानवीयता पर आस्था रखने वाले कवि को नमन...अनुवाद के लिए इन कविताओं का चयन, रीनू की संवेदनशीलता और उनकी पक्षधरता दर्शाती हैं...ऱीनू को शुक्रिया और बधाई और अरूण को भी धन्यवाद ...बहुत अच्छा काम, जो मनुश्यता को उदागर करे...हमें अपने आत्ममोह से मुक्त करे...

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  7. जी..अरुण जी, हम में से बहुतेरे हाशिये के लोग इस तथ्य को जानते हैं. मेरे पास पेसोवा के चार कविता संग्रह हैं.....(हां, एक तथ्य यह भी है कि वह किताब, जिसने मेरा जीवन तहस-नहस किया- 'पीली छतरी वाली लड़की', उसके अनुवाद (जेसन ग्रूनबाम द्वारा, 2005 में) को जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अत्यंत प्रतिष्ठित PEN अवार्ड मिला, क्या आप लोग यह जानते हैं कि पेसोवा की चुनी हुई कविताओं के, पुर्तगाली भाषा से अंग्रेज़ी मं अदभुत अनुवाद करने वाले रिचर्ड ज़ेनिथ को भी वही PEN अवार्ड मिला था ? इस अनुवाद के बारे में ज्यूरी ने कहा था कि पेसोवा की कविताओं का यह अनुवाद बीसवीं सदी की कविता और मनुष्य की आत्मा की आवाज़ है.)

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  8. एक अत्यंत विनम्र तथ्य ये भी - 'Girl With the Golden Parasol' को PEN award देने वाली निर्णायक समिति (Jury) के अध्यक्ष हिंदी के कोई आचार्य या अफ़सर या जुगाडू जीव नहीं, वही सलमान रुश्दी थे, जिन्हें पिछले दिनों जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल में आनी से रोक दिया गया था. यहां तक कि उनकी वीडियो कान्फ़्रेंसिंग तक प्रतिबंधित कर दी गयी थी और उनकी रचनाओं के आंशिक पाठ करने वाले अमितावा कुमार, जो स्वयं प्रतिष्ठित कथाकार और मार्क्सवादी आलोचक हैं, को जयपुर से भागना पड़ा था...इसके अलावा उस निर्णायक समिति में एस्थर एलेन भी थीं, जो मिलान कुंडेरा के विलक्षण अनुवाद के लिए दुनिया भर में प्रतिष्ठित हैं.....(हा...हा....अब मैं साठ के पार हूं, इसलिए आगे और भी बह्त से तथ्य लगातार, समय-समय पर दोस्तों के सामने रखता रहूंगा... कबीर का वह पद, जो कुमार गंधर्व जी ने गाया है....'निर्भय निर्गुण गुन रे गाऊंगा..')

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  9. पेसोआ के संदूक़ से जो चीज़ें निकली हैं, उनसे 72 की यह संख्‍या पार हो चुकी है. उसके 81 छद्म नामों की जानकारी है. बाद के बरसों में उसने अपने छद्म नामों के काल्‍पनिक परिवार बनाए थे. जैसे नूनो रेइस नाम से लिखी उसकी कविताएं मिलती हैं. नूनो रेइस को उसने रिकार्दो रेइस का बेटा बताया था. चूंकि उन काग़ज़ात पर अभी भी काम चल रहा है, इसलिए विद्वानों का मानना है कि 81 की संख्‍या बढ़ भी सकती है. मुझे आश्‍चर्य होता है कि इन 81 में या इनके अलावा पेसोआ ने क्‍या कभी किसी महिला के नाम से कविताएं लिखीं ? वे कैसी कविताएं होंगी? आत्‍म के भीतर ही परकायाप्रवेश का यह सिद्धयोगी तब किस तरह से जीवन को देखता होगा?

    छद्मता या छलावरण उनकी कविताओं में भी प्रधान है. उनकी कई कविताएं जो पहली नज़र में प्रेमिका के लिए लिखी गई लगती हैं, दरअसल वे शहर लिस्‍बन के लिए लिखी गई हैं. शहर के प्रति ऐसा प्रेम कवियों के जीवनद्रव्‍य का परिचायक है.

    पेसोआ का गद्य भी अत्‍यंत सुंदर और विचारोत्‍तेजक है. एक बार यूं ही झोंक में आकर उन्‍होंने लिस्‍बन पर एक निबंध लिखा, जो एक पर्यटक की दृष्टि से बुना गया था. उसमें उन्‍होंने लिस्‍बन के दर्शनीय स्‍थलों के इतिहास और वर्तमान का काव्‍यात्‍मक वर्णन किया है. उस निबंध पर एक फिल्‍म बनी, जो लिस्‍बन का एक विज़ुअल स्‍टेटमेंट है. एक और पुर्तगाली फिल्‍म मेरे देखने में आई है, जिसका प्‍लॉट पेसोआ की विभिन्‍न कविताओं को मिलाकर बनाया गया है. लिस्‍बन की नाइटलाइफ़ और उस समय वहां तहलका मचा रहे स्ट्रिपटीज़ या पोल डांस ने उनकी कविताओं पर गहरा असर डाला था. इस फिल्‍म में जब कविताओं के उन दृश्‍यों और पंक्तियों को एक साथ रखकर फिल्‍माया गया, तो उन्‍होंने एक महाआख्‍यान का रूप ले लिया. उसे देखते हुए मुझे कई बार यह आभास हुआ कि एक संवेदनशील कवि अपनी कविताओं की महा-देह से एक महाख्‍यान की रचना करता है-- एक फ्रेंगमेंटेड एपिक.

    रीनू के अनुवाद पढ़े. वे सूंदर हैं. उनसे पहले कबाड़ख़ाना वाले अशोक पांडे ने जो अनुवाद 'संवाद प्रकाशन' के लिए किए थे, वे भी बहुत प्रभावी हैं. मैंने हमेशा मित्रों से यह कहा है कि हिंदी में पेसोआ के बारे में और बात होनी चाहिए. उनकी 'द डायरी ऑफ़ डिस्‍क्‍वाइट' (उसे भी कर डालो, रीनू!) का हिंदी में दुबारा अनुवाद होना चाहिए और हर कवि को उसे एक वर्कबुक की तरह पढ़ना चाहिए.

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  10. बेहतरीन है ये कविताएं और उससे बेहतरीन है यह पूरा किस्सा ...

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  11. सिर्फ अनुवाद नहीं...कविताओं को पुनर्जन्म मिला हो जैसे...

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  12. वाह... अद्भुत रचनाकार, हमारे लिए तो यह जानकारी भी अनोखी। ध्‍यातव्‍य है कि फेर्नान्‍दो पस्‍सोआ का 'देखना' और 'कहना' दोनों में समान रूप से गहनता है। उनके बिम्‍ब आश्‍चर्यजनक रूप से सहज हैं जबकि व्‍यंजना अपने कथ्‍य की तरह ही बहुआयामी :
    बच्चा जो हँसता है सड़क पर
    गीत जो अचानक ही सुना देता है,
    बेहूदा चित्र, नग्न प्रतिमा,
    असीम कृपा --

    ये सब कहीं अधिक है
    उस तर्क से
    जो बुद्धि ने थोपा है चीज़ों पर,
    और इस सब में है कुछ-कुछ प्यार,
    चाहे यह प्यार बोल नहीं सकता.// शानदार प्रस्‍तुति के लिए 'आलोचन' का हार्दिक आभार..

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  13. bahut achchhi kavitayon se milwane ka sukriya.leena ki kavita bhi bahut achchhi lagi.

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