२० वीं सदी के महत्वपूर्ण अमेरिकन कवि रॉबर्ट ली फ्रॉस्ट (Robert Lee Frost : March 26, 1874 – January 29, 1963) अपनी कविताओं के यथार्थवादी रुझान के लिए चर्चित रहे हैं. उनकी कुछ कविताओं का अनुवाद युवा कवि और अध्येता संतोष अर्श ने किया है.
“ज़दीद अमरीकी कवियों में रॉबर्ट ली फ्रॉस्ट अपील करता है.
वह देशज, रोमानी प्रकृति में बिंबित
मनुष्य की उदासी से भरी अपनी कविताओं के लिए विश्वप्रसिद्ध हुआ. उदासी के साथ उसके
यहाँ पिछली सदी का प्रारम्भिक दर्शन और आशा की छवियाँ हैं. एक निश्चय भी है. उसकी
छोटी-छोटी कविताओं में बर्फ़ सी उजली ठंडक और पीले जंगलों की रहस्यमय छटा है. यहाँ फ्रॉस्ट
की कुछ ऐसी ही कविताओं का अनुवाद करने की कोशिश है. संभव है इनमें से कुछ का
अनुवाद पहले भी हो चुका हो,
किन्तु यह बात इनसे गुज़रने के लिए नहीं रोकेगी. भाषा की संस्कृति को पकड़ने के लिए
उसे सहज ही रखा है.
कविताओं की रचनात्मकता न नष्ट हो इसलिए अनुवाद करने में अपने भीतर के कवि से बचा हूँ. ‘एहतियात’, ‘जीवन का पाट’ और ‘सब कुछ वहाँ नहीं’ स्वतंत्र कविताएँ न होकर कविता ‘Ten Mills’ का एक हिस्सा हैं, जो दिलचस्प था. बाक़ी स्वतंत्र कविताएँ Fire and Ice, Dust of snow, Nothing gold can stay, Devotion, Lodge, A minor bird, The Rose family, और Hannibal हैं. Hannibal अमेरिका के मिसीसिपी नदी के किनारे के एक क़स्बे का नाम है, इसलिए उसके स्थान पर ‘एक क़स्बा’ रख दिया है. सहजता के लिए. मूल कविता को बचाने में यदि भाषा और भाव लड़खड़ाए तो उन्हें लड़खड़ाने दिया है. कविता का अनुवाद जटिल है, क्योंकि इस प्रक्रिया में वह पुनर्रचना बन जाती है. इनमें कुछ कविताएँ ऐसी भी थीं जो वर्स में हैं, जिन्हें हिन्दी में साधने से अर्थ संक्रमित हो जाता.”
कविताओं की रचनात्मकता न नष्ट हो इसलिए अनुवाद करने में अपने भीतर के कवि से बचा हूँ. ‘एहतियात’, ‘जीवन का पाट’ और ‘सब कुछ वहाँ नहीं’ स्वतंत्र कविताएँ न होकर कविता ‘Ten Mills’ का एक हिस्सा हैं, जो दिलचस्प था. बाक़ी स्वतंत्र कविताएँ Fire and Ice, Dust of snow, Nothing gold can stay, Devotion, Lodge, A minor bird, The Rose family, और Hannibal हैं. Hannibal अमेरिका के मिसीसिपी नदी के किनारे के एक क़स्बे का नाम है, इसलिए उसके स्थान पर ‘एक क़स्बा’ रख दिया है. सहजता के लिए. मूल कविता को बचाने में यदि भाषा और भाव लड़खड़ाए तो उन्हें लड़खड़ाने दिया है. कविता का अनुवाद जटिल है, क्योंकि इस प्रक्रिया में वह पुनर्रचना बन जाती है. इनमें कुछ कविताएँ ऐसी भी थीं जो वर्स में हैं, जिन्हें हिन्दी में साधने से अर्थ संक्रमित हो जाता.”
__संतोष
अर्श
रॉबर्ट फ्रॉस्ट की कविताएँ
बर्फ़ और आग
कहते हैं कुछ लोग दुनिया आग में ख़त्म होगी,
कुछ लोग कहते हैं बर्फ़ में.
उसके कारण, जो
मैंने वासना में चखा है
मैं उनके साथ खड़ा हूँ, जो
आग के पक्ष में हैं.
लेकिन यदि यह सर्वनाश दोबारा होगा,
तो सोचता हूँ कि,
घृणा को मैं पर्याप्त जानता हूँ
यह कहने के लिए कि,
नाश हेतु
बर्फ़ भी बहुत उपयुक्त है.
और यह काफ़ी होगी.
हिम-धूलि
जिस तरह एक कौव्वा
हिलते हुए झुकता है मुझ पर
बर्फ़ की धूल
एक सदाबहार पेड़ से.
जंगल के एक बदलाव ने
मेरा हृदय दे दिया है
और बचा लिया है कुछ भाग
एक दिन का, जो
मैंने गंवा दिया था.
सोने सा कुछ भी नहीं ठहरता
प्रकृति की प्रथम हरीतिमा सोना है,
बाँध कर रोकने के लिए,
उसकी प्रगाढ़तम पुकार.
उसकी पल्लवियाँ एक फूल हैं
लेकिन कुछ घड़ियों भर.
फिर पत्ती दर पत्ती उतर जाएगी.
इसलिए बच्चा दु:ख में डूब गया
इसलिए भोर दिन के तल में डूब जाती है.
सोने सा कुछ भी नहीं ठहरता.
आस्था
सागर तट होने से बढ़कर
हृदय किसी लगन के बारे में नहीं सोच सकता-
एक अवस्थिति का कटाव लिए हुए
अनंत दोहरावों को गिनते हुए.
पड़ाव
बारिश ने हवा से कहा
‘तुम धक्का दो और मैं बरसूंगी.’
बगीचे के बिस्तर को उन्होंने इस तरह धुना
कि फूल सचमुच घुटनों पर आ गए
और निश्चल पड़े रहे
यद्यपि मरे नहीं.
मैं जानता हूँ फूलों ने क्या अनुभव किया.
एक अवयस्क चिड़िया
मैंने चाहा कि चिड़िया कहीं दूर उड़ जाएगी
और पूरे दिन मेरे घर के आस-पास नहीं गाएगी:
मैंने दरवाज़े से, उस
पर अपने हाथों से ज़ोर की ताली बजायी
जब ऐसा लगने लगा कि,
मैं इसे और अधिक सहन नहीं कर सकता.
अंशतः कमी अवश्य मुझमें रही होगी
चिड़िया पर इसके लिए आरोप नहीं लगाया जा सकता.
और वास्तव में कुछ गलत ज़रूर है
किसी तरह का गीत ख़मोश करने की चाह में.
गुलाब परिवार
गुलाब एक गुलाब है
और हमेशा एक गुलाब था.
लेकिन यह बात अब जाती है
अब सेब भी एक गुलाब है
और नाशपाती भी, और
इसलिए
आलूबुखारा भी,
मैं समझता हूँ.
केवल प्रिय जानता है
आगामी क्या एक गुलाब साबित करेगा-
लेकिन हमेशा एक गुलाब था.
एक क़स्बा
यहाँ तक कि,
वहाँ एक वज़ह भी खो गई
एक वज़ह जो बहुत पहले,
कभी गुम गई थी
या फिर व्यर्थ में चुक गए समय की तरह दिखी
जवानी के तीक्ष्ण आँसुओं के लिए और गीत ?
एहतियात
मैंने जवानी में उग्र होने का साहस कभी नहीं किया
इस भय से कि वृद्ध होने पर यह मुझे कठमुल्ला बना देगा.
जीवन का पाट
बूढ़ा कुत्ता बिना उठे मेरे पीछे भौंक रहा है
मैं याद कर सकता हूँ कि वह कभी एक पिल्ला था.
सबकुछ वहाँ नहीं
संसार की उदासी के बारे में
मैं ईश्वर से बात करने के लिए मुड़ा
लेकिन बुरे को बदतर बनाने के लिए
मैंने पाया,
ईश्वर वहाँ नहीं था.
ईश्वर मुझसे बात करने को मुड़ा
(कोई जन हँसो मत)
ईश्वर ने देखा,
मैं वहाँ नहीं था
कम से कम आधे से अधिक नहीं.
_____________________________________
संतोष अर्श
(1987, बाराबंकी, उत्तर- प्रदेश)
ग़ज़लों के तीन संग्रह ‘फ़ासले से आगे’,
‘क्या पता’ और ‘अभी है आग सीने में’ प्रकाशित.
अवध के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक लेखन
में भी रुचि
‘लोकसंघर्ष’ त्रैमासिक में लगातार राजनीतिक, सामाजिक न्याय
के मसलों पर लेखन.
2013 के लखनऊ
लिट्रेचर कार्निवाल में बतौर युवा लेखक आमंत्रित.
फ़िलवक़्त गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय
के हिन्दी भाषा एवं साहित्य केंद्र में शोधार्थी
poetarshbbk@gmail.com
poetarshbbk@gmail.com
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-09-2017) को "सिर्फ खरीदार मिले" (चर्चा अंक 2715) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
महत्वपूर्ण कवि के अच्छे अनुवाद । रॉबर्ट नेहरू के प्रिय कवि थे । उनकी कविता उनके कार्यालय में लगी हुई थी । woods are lovely , dark and deep . but I have promise to keep .miles go before I sleep
जवाब देंहटाएंशायद यही पंक्ति थी ।
बहुत सुन्दर अनुवाद | 'द वूड्स आर लवली' कविता का पहले का किया मेरा एक अनुवाद
जवाब देंहटाएंजंगल के किनारे
किसके जंगल हैं ये शायद मैं जानता हूँ
हालांकि गाँव में ही है उसका घर
पर वह नहीं लखेगा मैं रुका हूँ यहाँ
देखने बर्फ से भरता उसका जंगल |
अजीब लगता होगा मेरे नन्हें से घोड़े को
यहाँ रुकना, आसपास किसान का कोई घर नहीं,
जंगल और बर्फ, जमी झील के बीच,
साल की इस सबसे काली संध्या में |
अपनी लगाम की घंटियों को हिलाता है तनिक,
जानने को की कहीं कोई भूल तो नहीं,
बस एक ही और स्वर सहज हवा का
और तिरते बर्फीले रेशों का |
कितने प्यारे हैं ये जंगल, घने और अँधेरे,
पर मुझको तो पूरे करने हैं वादे,
और मीलों जाना है सोने से पहले,
और मीलों जाना है सोने से पहले ...
एक टिप्पणी भेजें
आप अपनी प्रतिक्रिया devarun72@gmail.com पर सीधे भी भेज सकते हैं.