यायावर, जीवट से भरे प्रसिद्ध
फोटोग्राफर कमल जोशी की आत्महत्या की ख़बर पर यकीन नहीं हो रहा है.
उनसे कई मुलाकातें हैं. पहाड़ के
जीवन को केंद्र में रखकर लिए गए उनके छाया चित्रों का संसार अद्भुत है. चमकीले चटख रंगों के उनके छाया
चित्रों में निराशा का स्पर्श तक नहीं है. है तो विद्रूपता से संघर्ष की उर्जा है.
वह श्वास के रोग से पीड़ित जरुर थे
पर इसे लिए दिए ही वह दुर्गम पहाड़ों की यात्राओं पर अक्सर होते थे.
वह अकेले रहते थे पर अक्सर मैंने
उन्हें लोगों के बीच पाया था. आस -पास के आयोजनों में उनका होना लगभग तय रहता
था.
आख़िर कार ऐसा क्यों हो जाता है कि हमारे बीच का कोई एकदम असहाय पड़
जाता है. ऐसे कौन से क्षण होते हैं कि खुद का होना ही भार बन जाता है.
सामाजिकता के ताने बाने में कहीं
गांठ पड़ गयी है. जो निर्दोष है, मासूम है, वह आज अकेला पड़ गया है.
कमल जोशी आपके चित्र आपको जिंदा
रखेंगे. भले ही हमने आप को मार दिया.
आपकी याद में आपके सब चाहने वाले.
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ये पड़ाव...! कितने अपने से हैं ये अजनबी पड़ाव... .
चालीस साल से ज्यादा मेरा बिस्तर जमीन पर ही रहा. याने मैं "धरा-शायी" रहा. नैनीताल हो या दिल्ली या कोटद्वार, मैं अपना बिस्तर फर्श पर ही बिछाता रहा क्यों की इससे मुझे बहुत सुविधा रहती है. जगह के लिए बैड की सीमा से बंधना नहीं पड़ता. किताबें, दवाइयां, लैपटॉप, गमछा, पानी सब आसपास जमीन पर "एक हाथ की दूरी पर". हाथ बढाया और उठा लिया. कहीं से भी लौट कर आता और अपने जमीनी बिस्तर पर बड़ा आनंद रहता क्यों की अन्य जगहों पर पलंग में सोना होता (ट्रेकिंग के अलावा) !
पर इस चिकनगुनिया का ऐसा मरा की उसने मुझे मजबूर कर दिया. सुबह जमीन में बिछे बिस्तर से उठने में घुटनों में इतनी तकलीफ होने लगी है की डॉक्टर के सलाह पर बिस्तर जमीन से उठा कर बैड-बोक्स लाना पड़ गया है...! याने बैड -रूम में सच मुच का बैड आ गया. याने साहबी शुरू!
चिकनगुनिया रे ! तूने घुटने-कंधे का दर्द तो दिया...., पर साब भी बना दिया ...!
और हाँ, मेहमान जो आयेंगे वो अब भी जमीन पर लगे बिस्तर पर ही सोयेंगे अगर उनकी हालत मुझसे खराब हुई तो..
Morning Fog - Winter announces itself at Kotdwara/ Uttarakhand..
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२९ जून २०१७
The Street View.
२६ मई २०१७
मेहनत से जीना जाना है,,
पत्थर को बिस्तर माना है.....
आदरणीय राजेंद्र धस्माना जी अनन्त यात्रा पर...! विनम्र
श्रद्धांजलि ...
17 मई २०१७
ये पड़ाव...! कितने अपने से हैं ये अजनबी पड़ाव... .
१२ मई.
चले भी आओ की कुछ दूर साथ चलें
कारवां सजाया है तेरे ख़्वाबों के सहारे.....
चुनाव के जो देखे हाल, ताई बोली खुले आम
साइड लगाओ नेताओं को, बीड़ी सुलगाओ और करो काम
चल पड़ी वो लोकतंत्र की तलाश में.
कहीं और कभी तो मिलेगा
वो अपने सही रंग रूप में...
एक मायना लिए ...हर एक के लिए...!
एक मायना लिए ...हर एक के लिए...!
छोटी छोटी
इच्छाए,
छोटी सी
दुनिया..और चेहरा भर ख़ुशी.......
faith in the god that resides in nature......!
ऐसा घर हो न्यारा
साला मैं तो
साब बन गिया.....!
लोग मेरी
उम्र में चेयर-मैन बनते हैं मैं "धराशायी" से बैड-मैन बन गया हूँ! ( No, not the type of
bad man Gulsan Grover plays, I said Bed-man!)
चालीस साल से ज्यादा मेरा बिस्तर जमीन पर ही रहा. याने मैं "धरा-शायी" रहा. नैनीताल हो या दिल्ली या कोटद्वार, मैं अपना बिस्तर फर्श पर ही बिछाता रहा क्यों की इससे मुझे बहुत सुविधा रहती है. जगह के लिए बैड की सीमा से बंधना नहीं पड़ता. किताबें, दवाइयां, लैपटॉप, गमछा, पानी सब आसपास जमीन पर "एक हाथ की दूरी पर". हाथ बढाया और उठा लिया. कहीं से भी लौट कर आता और अपने जमीनी बिस्तर पर बड़ा आनंद रहता क्यों की अन्य जगहों पर पलंग में सोना होता (ट्रेकिंग के अलावा) !
पर इस चिकनगुनिया का ऐसा मरा की उसने मुझे मजबूर कर दिया. सुबह जमीन में बिछे बिस्तर से उठने में घुटनों में इतनी तकलीफ होने लगी है की डॉक्टर के सलाह पर बिस्तर जमीन से उठा कर बैड-बोक्स लाना पड़ गया है...! याने बैड -रूम में सच मुच का बैड आ गया. याने साहबी शुरू!
चिकनगुनिया रे ! तूने घुटने-कंधे का दर्द तो दिया...., पर साब भी बना दिया ...!
और हाँ, मेहमान जो आयेंगे वो अब भी जमीन पर लगे बिस्तर पर ही सोयेंगे अगर उनकी हालत मुझसे खराब हुई तो..
Kamal Joshi
December 14,
2016
अभी रास्ता
लंबा भी है तो .......चलना ज़रूर है...
Morning Fog - Winter announces itself at Kotdwara/ Uttarakhand..
तेरे दामन में एक दुनिया बसा ली मैंने...
जिंदगी! हर सांस की कीमत पा ली मैंने..
(Ramgarh / prithawi niwaas)
जाऊं कहाँ बता ए दिल........!
27 फरवरी २०१७
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'. जाना
जवाब देंहटाएंहिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है.'
कमल दा तुम ऐसे चले जाओगे। सोचा न था..
कमल जोशी का जाना... श्रद्धांजलि तो क्या, अब तक की प्रतिक्रियाओं में यह सबसे अच्छी भावांजलि है.
जवाब देंहटाएंयकीन नहीं होता...जीवन के रंगों का इतना अद्भुत चित्रण...इन चित्रों में जीवन की गुनगुनी साँसों को अनुभव किया जा सकता है.विनम्र श्रद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंआसूं आ रहे है ... इस फक्कड आदमी को कुछ नहीं लिख सकती खुद को आवारागर्द कहते थे, आवारगी में चले गए :'(
जवाब देंहटाएंकमल जोशी -
जवाब देंहटाएंअरुण भाई जब आप क से कविता में आए थे तब ही उनसे मिलना हुआ था. शायद सबसे ज़्यादा बातें उन्हीं से हुईं और उनसे कहना पड़ा कि "और क़िस्से न सुनाएँ अपनी biking के, जलन हो रही है"
ऐसा व्यक्ति ख़ुदकशी करता है.. किस प्रकार की जद्दोजहद से जूझ रहे थे यह भी स्पष्ट नहीं है..
ख़ैर, जहाँ भी गए हों
उनकी बाइक की टंकी भरी रहे..
रास्ता पहाड़ों वाला हो
और सुन्दर घासवालियाँ मुस्कुरा कर उनकी ओर हाथ हिला रही हों..
विनम्र श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंजाऊं कहाँ बता ए दिल........! वहां चल दिए जहां इस तरह के प्रश्न परेशान ही न करें...चित्रों को
जवाब देंहटाएंजीवन देने वालें को मेरा सादर अंतिम प्रणाम...
विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-07-2017) को "गोल-गोल है दुनिया सारी" (चर्चा अंक-2656) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
मेरी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नमस्ते, आपकी लिखी यह रचना गुरूवार 6 जुलाई 2017 को "पाँच लिंकों का आनंद " (http://halchalwith5links.blogspot.in ) के 720 वें अंक में लिंक की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए आपकी प्रतीक्षा रहेगी,आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद।
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