पाब्लो नेरुदा : (१२ जुलाई,१९०४ - २३ सितम्बर,१९७३) चीले,
बीसवीं शताब्दी का महानतम कवि.
प्रेम की गहन और ऐन्द्रिक अनुभूत के साथ-साथ यथार्थ के विचार के भी कवि.
राजनीति और निर्वासन भी.
१९७१ में साहित्य का नोबेल पुरस्कार.
गोयथे ने अनुवाद पर कहा है – अनुवाद की अपूर्णता के विषय में कोई चाहे कुछ भी कहे, पर यह दुनिया के सभी कार्यों से अधिक महत्वपूर्ण और मूल्यवान कार्य है. पाब्लो की कविताओं के अनेक अनुवाद हिंदी में हुए हैं- केदारनाथ अग्रवाल ने १९५० में नेरुदा की एक कविता लकड़हारा को हिंदी में अनूदित किया था, तबसे यह प्रक्रिया अनवरत है. पाब्लो के हिंदी अनुवादों की हिंदी कविता के अपने विकास में भी भूमिका रही है. बकौल नामवर सिंह- इससे पश्चिमी आधुनिकतावादी कविता की मृग- मरीचिका से हिंदी कविता को मुक्त होने में मदद मिली है.
अपर्णा इधर अनुवाद में गतिशील है. खुद भी कविता लिखती हैं. संजीदा हैं.. संवेदना और संगति को समझती हैं.
प्रीत
ऐसी करता हूँ तुमसे प्रीत
जैसे गहरे चीड़ों के बीच सुलझाती है हवा खुद को
चाँद चमकता है रोशनाई की तरह आवारा पानी पर
दिन एक-से भागते हैं एक-दूजे का पीछा कर
बर्फ पसर जाती है नाचते चित्रों जैसे
पश्चिम से फिसल आते हैं समुद्री पंछी
कभी-कभी एक जहाज़. ऊँचे -ऊँचे तारे.
एक स्याही को पार करता जहाज़
आह ! अकेला .
अकसर मैं उठ जाता हूँ पौ फटते ही और मेरी आत्मा गीली होती है
दूर सागर ध्वनित-प्रतिध्वनित होता है
अपने बंदरगाह पर.
ऐसी करता हूँ तुमसे प्रीत
ऐसी करता हूँ प्रीत और क्षितिज छिपा लेता है तुम्हें शून्य में
इन सब सर्द चीज़ों में रहते करता हूँ तुमसे अब भी प्रेम
अकसर मेरे चुम्बन उन भारी पोतों पर लद जाते हैं
जो समुद्र को पार करने चल पड़े हैं, बिना आगमन की संभावना के
और मैं पुराने लंगर-सा विस्मृत पड़ा रहता हूँ
घाट हो जाते हैं उदास जब दोपहर बंध जाती है आकर
मेरा क्षुधातुर जीवन निरुद्देश्य क्लांत है
मैंने प्यार किया, जिसे कभी पाया नहीं. तुम बहुत दूर हो
मेरी जुगुप्सा लड़ती है मंथर संध्या से
और निशा आती है गाते हुए मेरे लिए
चाँद यंत्रवत अपना स्वप्न पलटता है
और तुम्हारी आँखों से सबसे बड़ा सितारा टकटकी लगाये देखता है मुझे
और क्योंकि मैं करता हूँ तुमसे प्रीत
हवाओं में चीड़ तुम्हारा नाम गुनगुनाते हैं
अपने पत्तों की तंत्री छेड़ते .
जैसे गहरे चीड़ों के बीच सुलझाती है हवा खुद को
चाँद चमकता है रोशनाई की तरह आवारा पानी पर
दिन एक-से भागते हैं एक-दूजे का पीछा कर
बर्फ पसर जाती है नाचते चित्रों जैसे
पश्चिम से फिसल आते हैं समुद्री पंछी
कभी-कभी एक जहाज़. ऊँचे -ऊँचे तारे.
एक स्याही को पार करता जहाज़
आह ! अकेला .
अकसर मैं उठ जाता हूँ पौ फटते ही और मेरी आत्मा गीली होती है
दूर सागर ध्वनित-प्रतिध्वनित होता है
अपने बंदरगाह पर.
ऐसी करता हूँ तुमसे प्रीत
ऐसी करता हूँ प्रीत और क्षितिज छिपा लेता है तुम्हें शून्य में
इन सब सर्द चीज़ों में रहते करता हूँ तुमसे अब भी प्रेम
अकसर मेरे चुम्बन उन भारी पोतों पर लद जाते हैं
जो समुद्र को पार करने चल पड़े हैं, बिना आगमन की संभावना के
और मैं पुराने लंगर-सा विस्मृत पड़ा रहता हूँ
घाट हो जाते हैं उदास जब दोपहर बंध जाती है आकर
मेरा क्षुधातुर जीवन निरुद्देश्य क्लांत है
मैंने प्यार किया, जिसे कभी पाया नहीं. तुम बहुत दूर हो
मेरी जुगुप्सा लड़ती है मंथर संध्या से
और निशा आती है गाते हुए मेरे लिए
चाँद यंत्रवत अपना स्वप्न पलटता है
और तुम्हारी आँखों से सबसे बड़ा सितारा टकटकी लगाये देखता है मुझे
और क्योंकि मैं करता हूँ तुमसे प्रीत
हवाओं में चीड़ तुम्हारा नाम गुनगुनाते हैं
अपने पत्तों की तंत्री छेड़ते .
वह उदास कविता
आज रात लिख पाऊंगा सबसे उदास कविता अपनी
इतनी कि जैसे ये रात है सितारों भरी
और तारे नीले सिहरते हैं सुदूर
हवाएं रात की डोलती हैं आकाश में गाते हुए
आज रात लिख पाऊंगा सबसे उदास कविता अपनी
क्योंकि मैंने उसे चाहा, थोड़ा उसने मुझे
इस रात की तरह थामे रहा उसे बाहों में
इस निस्सीम आकाश तले चुम्बन दिए उसे
क्योंकि उसने मुझे चाहा, थोड़ा मैंने उसे
उसकी बड़ी ठहरी आँखों से भला कौन न करेगा प्यार
आज रात लिख पाऊंगा सबसे उदास कविता अपनी
ये सोच कर कि अब वह मेरी नहीं. इस अहसास से कि मैंने उसे खो दिया
बेहद्द रातों को सुनकर, और-और पसरती रात उसके बिना .
छंद गिर जाएगा आत्मा में चारागाह पर गिरती ओस के मानिंद
क्या फर्क पड़ता है यदि मेरा प्रेम उसे संजो न सका
रात तारों भरी है और वह मेरे संग नहीं
बस ये सब है. दूर कोई गाता है बहुत दूर
उसे खोकर मेरी आत्मा व्याकुल है
निगाहें मेरी खोजती हैं उसे, जैसे खींच उसे लायेंगी करीब
दिल मेरा तलाशता है, पर वह मेरे साथ नहीं.
वही रात, वही पेड़, उजला करती थी जिन्हें
पर हम, समय से .. कहाँ रहे वैसे
ये तय है अब और नहीं करूँगा उससे प्यार, पर मैंने उससे कितना किया प्यार
मेरी आवाज़ आतुर ढूंढ़ती है हवाएं जो छू सकें उसकी आवाज़
होगी, होगी किसी और की जैसे वह मेरे चूमने के पहले थी
उसकी आवाज़, दूधिया देह और आँखें निस्सीम
ये तय है अब और नहीं करूँगा उससे प्यार, शायद करता रहूँ प्यार
प्रीत कितनी छोटी है और भूलने का अंतराल कितना लम्बा
ऐसी ही रात में मैं थामे था उसे अपनी बाहों में
उसे खोकर मेरी आत्मा विकल है
ये आखिरी दर्द हो जो उसने दिया
और ये अंतिम कविता जो मैं लिखूंगा
उसके लिए .
चुप रहने तक
अब हम करेंगे गिनती बारह तक
और निःशब्द खड़े रहेंगे
एक बार धरती के फलक पर
नहीं बोलेंगे कोई भाषा
एक घड़ी के लिए हो जायेंगे मौन
बिना हिलाए अपनी बाहें
बड़ी मोहक होंगी वे घड़ियाँ
न उतावली, न कलों का शोर
और एक आकस्मिक अनभिज्ञता में
होंगे सब साथ
सर्द सागर में मछुआरे
नहीं आहत करेंगे व्हेलों को
और नमक इकट्ठा करते लोग
देखेंगे हाथों की चोट
वे जो तत्पर हैं युद्धों के लिएँ
लडाइयां ज़हरीली गैसों की, लडाइयां उगलती आग की
और एक विजय जिसमें शेष नहीं रहता जीवन
वे भी पहन कर आयेंगे कपड़े उजले
और टहलेंगे साथियों के साथ
चिंतारहित छाँव में
ये मत समझ बैठना कि मेरा चाहना कोई पूरी निष्क्रियता है
मैं तो जीवन की कहता हूँ
जीवन जिसमें मौत की सौदागरी नहीं
अगर हम एकनिष्ठ न हुए
अपने दौड़ते जीवन को लेकर
अगर एक बार भी नहीं थमे बिना कुछ किये
तो सम्भावना है कि एक बहुत बड़ी निस्तब्धता
भंग कर देगी हमारी उदासियाँ
और हम दे रहे होंगे मौत की चेतावनियाँ
परस्पर बिना एक-दूजे को समझे
शायद ये धरा हमें समझाए
कि जब सब मृतप्राय होगा
तब जीवन सिद्ध कर रहा होगा अपना होना
अब मैं गिनती करूँगा बारह तक
खड़े रहना तुम चुप तब तक
जब तक मेरा जाना न हो .
तुम्हारे लिए मैं पसंद करूँगा ख़ामोशी
तब जबकि तुम अनुपस्थित हो
और सुन सकती हो मुझे कहीं दूर से
जबकि मेरी आवाज़ स्पर्श नहीं कर सकती तुम्हारा
प्रतीत होता है जैसे तुम्हारी आँखें कहीं उड़ गयी थीं
और एक चुम्बन ने मोहर जड़ दी थी तुम्हारे ओठों पर
जैसे मेरी आत्मा के साथ ये सब भरा है
और इनमें से उभरना होता है तुम्हारा
तुम मेरी आत्मा सरीखी हो
एक तितली स्वप्न की
और तुम हो उस शब्द जैसी : गहन उदासी
तुम्हारे लिए मैं पसंद करूँगा ख़ामोशी
लगता है बहुत दूर हो तुम
ये आवाज़ करती है ऐसे जैसे तुम रो रही हो
एक तितली कपोत सम कूं उठी हो
और तुम दूर से सुन रही होती हो मुझे
जबकि मेरी आवाज़ पहुँच नहीं सकती तुम तक
मुझे आ जाने दो अपनी चुप्पी में चुप रहने के लिए
और बतियाने दो मुझे तुम्हारे मौन से
ये चमकीला है कंदील जैसा
साधारण है एक छल्ले जैसा
तुम एक रात की तरह हो
जो होती है अपने सन्नाटे और नक्षत्रों के साथ
तुम्हारी ख़ामोशी उस सितारे की तरह है
जो सुदूर है पर साफ़
तुम्हारे लिए मैं पसंद करूँगा ख़ामोशी
तब जबकि तुम नहीं हो
बहुत दूर और भरपूर गम से
और मर चुकी हो
फिर भी एक शब्द, एक मुसकान पर्याप्त है
और मैं खुश हूँ ;
खुश जो सच नहीं .
कई सारी बातें
जवाब देंहटाएंकैसे रहती हैं समान
पार करते हुए
सात समंदरों को भी
क्यूँ एक जैसा ही
सोचते हैं
यहाँ के
और वहाँ के लोग
बस यही प्रश्न अनुत्तरित रहा हैं
मेरे मन में
पढ़ कर
इस अनुवाद को
इस अनुवाद को पढ़ने का अवसर प्रदान करने के लिए अनुपमा जी बहुत बहुत आभार
संवेदनशील कवितायें और उसी लय को जीता हुआ अनुवाद...बधाई स्वीकारें,अपर्णा जी....नवीन जी को अनुपमा याद आ रही हैं..::))
जवाब देंहटाएंअरे बाप रे, सॉरी, बड़ी मिसटेक| गलती के लिए क्षमा अपर्णा जी| और इस भूल की तरफ ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया शमशाद भाई|
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कवितायेँ और उतना ही सुन्दर अनुवाद. अपर्णा जी को शुक्रिया. Tonight I can write.... मेरी सबसे प्रिय कविताओं में से है और इसे मैं बार-बार पढ़ना चाहता हूँ. आपको बहुत-बहुत धन्यवाद अरुण जी.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लगे अनुवाद. 'चुप रहने तक' कविता मुझे बहुत पसंद आई.
जवाब देंहटाएंवाह अपर्णा दी बहुत सुन्दर कवितायेँ और अनुवाद ....शब्दों को जीवंत करने और पिरोने की आप की कला का समर्पण आपकी कविताओं में साफ तोर पर दिखाई देता है कहीऔर अभी इस अनुवाद में भी ...अब पहली कविता से शरू करूँ तो प्रीत ...खुद के जिए पलों को अतीत के साथ जीवंत करने के सामान लगा है कही ...दूसरी वह उदास कविता....
जवाब देंहटाएंये तय है अब और नहीं करूँगा उससे प्यार, शायद करता रहूँ प्यार
प्रीत कितनी छोटी है और भूलने का अंतराल कितना लम्बा..........बहुत ही मार्मिक स्पर्शों के साथ शब्दों का उद्गम हुआ है कही ... सुन्दर कविता
तीसरी चुप रहने तक....
परस्पर बिना एक-दूजे को समझे
शायद ये धरा हमें समझाए
कि जब सब मृतप्राय होगा
तब जीवन सिद्ध कर रहा होगा अपना होना.इंसानी जीवन और बिना जीवन के किस तरह इन्सान जिया करता है कही ...उसको जबर्दस्त शब्दों में जिया है कही ..और जीवन की व्यथा और आस्था का जबरदस्त मिलन कही कही शब्दों में !
चोथी --तुम्हारे लिए मैं पसंद करूँगा ख़ामोशी ----
""तुम एक रात की तरह हो
जो होती है अपने सन्नाटे और नक्षत्रों के साथ
तुम्हारी ख़ामोशी उस सितारे की तरह है
जो सुदूर है पर साफ़
तुम्हारे लिए मैं पसंद करूँगा ख़ामोशी
तब जबकि तुम नहीं हो """".......वाहह्ह्हह्ह्ह्ह ...जीवन के अंगतरंग..और दो आत्माओं का परस्पर प्रेम का भी कही खुबसूरत चित्रण हुआ है
अद्भुत अनुवाद अपर्णा दी ....बहुत ही सुन्दर ...आप को सादर धन्यवाद की इस तरह के आतीत के पन्नो को आप पलट कर जीवंत करदेती है कही ...एक साधारण इन्सान भी शब्दों से जीवंत हो उठता है कही ..जाँह तक मेरे जेसे एक पाठक का सवाल है ....पुनः बधाई और धन्यवाद दी !!
पाब्लो नेरूदा की प्रेम कविताओं को पढ़ना अपने आप में एक विरल अनुभव है, उन्हीं में से चुनी हुई कविताओं के ऐसे तरल और भावप्रवण अनुवाद इन कविताओं के असर को अविस्मरणीय बना देते है। अरसे बाद नेरूदा की कविता के स्पंदन को अपनी भाषिक संवेदना में इस तरह महसूस कराने के लिए अपर्णा का किन शब्दों शुक्रिया अदा किया जाए, Its simply incredible and wonderful....!
जवाब देंहटाएंइस बार अनुवाद बहुत बेहतर हैं…अपर्णा जी की जीवट को सलाम!
जवाब देंहटाएंप्रीत
जवाब देंहटाएंऐसी करता हूँ तुमसे प्रीत
जैसे गहरे चीड़ों के बीच सुलझाती है हवा खुद को.............
........इस से आगे क्या कहूं.....
सलीक़े से आग़ लगाना....अपर्णा जी आप से बेहतर कौन जान सकता है...
ये सब अध्भुत है.....शुक्रिया आपका
अगर हम एकनिष्ठ न हुए
जवाब देंहटाएंअपने दौड़ते जीवन को लेकर
अगर एक बार भी नहीं थमे बिना कुछ किये
तो सम्भावना है कि एक बहुत बड़ी निस्तब्धता
भंग कर देगी हमारी उदासियाँ
और हम दे रहे होंगे मौत की चेतावनियाँ
परस्पर बिना एक-दूजे को समझे
शायद ये धरा हमें समझाए
कि जब सब मृतप्राय होगा
तब जीवन सिद्ध कर रहा होगा अपना होना
अब मैं गिनती करूँगा बारह तक
खड़े रहना तुम चुप तब तक
जब तक मेरा जाना न हो .
अपर्णा जी ,शुक्रिया
अनुवाद बहुत बेहतर हैं
अपर्णा दीदी को मेरा सलाम... और शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंअपर्णा जी ने पाब्लो नेरुदा की कविताओं का अनुवाद लय और ताल को ध्यान में रहते हुवे बेहतरीन तरीके से किया है.. और कविता की आत्मा से भी सम्पूर्ण न्याय हुवा है ... उनकी संवेदनाएं और भावनाएं पूरी कविता में फैली हुवी है..
..*बेहतरीन अनुवाद *..
मैं यह सुन्दर पोस्ट जिसमें पाब्लो नेरुदा की कविता का अनुवाद है, कल चर्चामंच पर रखूंगी|.. आपका आभार ..सादर
जवाब देंहटाएंवाकई बेहतरीन काम हुआ है। बहुत ही अच्छा लगा। अभी कई बार पढ़ना है। अपर्णा जी बहुत ही प्रतिभा है आपमें। इससे हिन्दी के रचना संसार में अभी बहुत कुछ आने का इंतज़ार है। दुआ करता हूँ। शुक्रिया-सलाम भेजता हूँ। अरुण जी को क्या कहूँ... हर बार तो कहता हूँ... सौर मंडल का सूरज।
जवाब देंहटाएंअपर्णा जी, आपके अनुवाद आपकी संवेदनशीलता के अनुयायी होकर कविता के भावों से सानिध्य स्थापित कर लेते हैं.....ऐसा लगा पाब्लो नेरुदा हिंदी में भी लिखते थे...बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंहम जैसे हिंदी भाषियों के लिए आपके अनुवाद अमूल्य हैं, इनकी सार्थकता पर कोई संदेह नहीं .आभार!
बहुत सुंदर कविताएं... और उतना ही सुंदर अनुवाद... लगा ही नहीं कि हम अनुवाद पढ़ रहे हैं... बहुत बहुत धन्यवाद अपर्णा जी को... और अरुण जी को भी, जिन्होने इन कविताओं को यहां पोस्ट किया है...
जवाब देंहटाएंआप सभी का स्नेह बना रहे .. आप सभी का और अरुण जी का आभार , जिन्होंने हमारे कार्य को अपनी पत्रिका योग्य समझा ...
जवाब देंहटाएंपाब्लो नेरुदा की कविताये अपने आप सब कुछ कह देने मे सक्षम हैं……………आभार्।
जवाब देंहटाएंअब ये अनुवाद धरोहर जैसे हैं , इन्हे यहाँ देखना सुखद है। ऐसे सुन्दर अनुवाद विषय की अन्तरंगता के सूचक हैं, और यही अनुवाद मेन सहज लय डालता है। शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंhardik badhai !!!
जवाब देंहटाएंbahut sundar kavita lagi aur uska anuvad bhi atisundar tha...aapka sahirdaya dhanyabad....
जवाब देंहटाएंBeautiful translations Aparna! Keep writing.
जवाब देंहटाएंपाब्लो की यह कविताएं अपने आस पास एक मौन बुनती है जिसमे छिपा होता है एक स्वर्गिक संगीत जो सीधे आत्मा तक पहुंचता है ... अद्भुत हैं ये कवितायें और अपर्णा दीदी का अनुवाद भी , इसे पढ़वाने के लिए अरुण सर का बहुत धन्यवाद .... संग्रहणीय कविताएं
जवाब देंहटाएंbahut snder anvaad
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