पेंटिग : Rick Bainbridge |
हेमंत कवि हैं और समर्थ
रंगकर्मी भी.
वे उन कुछ लोगों में हैं
जो पूर्णकालिक कला होते हैं, यह जीवट और ज़ोखिम उन्हें लगातार लिख रहा है.
पहले भी आप उन्हें
समालोचन में पढ़ चुके हैं.
इन छह कविताओं में उनकी
कविता की ताकत फिर एक बार आपके सामने है.
संगत पर मंगलेश डबराल की
एक कविता है – ‘संगतकार’ जिसमें उन्होंने संगतकार को मुख्य गायक का ‘छोटा भाई’ कहा
है. हेमंत की इस कविता में ‘संगत करती स्त्री’
अदृश्य ही हो जाती है.
‘दशहरी आम’ की ऐयारी दिल
को निचोड़ लेती है. प्रेम पर भी कुछ अच्छी पंक्तियाँ कही गयी हैं.
हेमंत देवलेकर की कविताएँ
इस दुनिया में
आने - जाने के लिए
अगर एक ही रास्ता होता
संभव नहीं था प्रेम के बिना
सुंदरता का अर्थ समझना
प्रेम होना ही सबसे बड़ी सफलता है
कोई असफल कैसे हो सकता है प्रेम में...?
तानपूरे पर संगत करती स्त्री
पहले - पहल
उसी को देखा गया
साँझ में चमके
इकलौते शुक्र तारे की तरह
साँझ में चमके
इकलौते शुक्र तारे की तरह
उसी ने सबसे पहले
नि:शब्द और नीरव अन्तरिक्ष में
स्वर भरे और अपने कंपनों से
एक मृत - सी जड़ता तोड़ी
उसे तरल और उर्वर बनाया
ताकि बोया जा सके - जीवन
नि:शब्द और नीरव अन्तरिक्ष में
स्वर भरे और अपने कंपनों से
एक मृत - सी जड़ता तोड़ी
उसे तरल और उर्वर बनाया
ताकि बोया जा सके - जीवन
वह अपनी गोद में
एक पेड़ को उल्टा लिए बैठी है
इस तरह उसने एक आसमान बिछाया है
उस्ताद के लिए
एक पेड़ को उल्टा लिए बैठी है
इस तरह उसने एक आसमान बिछाया है
उस्ताद के लिए
वह हथकरघे पर
चार सूत का जादुई कालीन बुनती है
जिस पर बैठ "राग" उड़ान भरता है
चार सूत का जादुई कालीन बुनती है
जिस पर बैठ "राग" उड़ान भरता है
हर राग तानपूरे के तहखाने में
रहता है
वह उँगलियों से उसे जगाती है
नहलाती है, बाल संवारती और
काजल आँजती है, खिलाती है
वह उँगलियों से उसे जगाती है
नहलाती है, बाल संवारती और
काजल आँजती है, खिलाती है
उसने हमेशा नेपथ्य में रहना ही
किया मंजूर
अपनी रचना को मंच पर
फलता - फूलता देख
वह सिर्फ हौले-हौले मुसकुराती है
अपनी रचना को मंच पर
फलता - फूलता देख
वह सिर्फ हौले-हौले मुसकुराती है
उसे न कभी दुखी देखा ,
न कभी शिकायत करते
वह इतनी शांत और सहनशील
कि जैसे पृथ्वी का ही कोई बिम्ब है
न कभी शिकायत करते
वह इतनी शांत और सहनशील
कि जैसे पृथ्वी का ही कोई बिम्ब है
अपने अस्तित्व की फ़िक्र से
बेख़बर
उसने एक ज़ोखिम ही चुना है
कि उसे दर्शकों के देखते-देखते
अदृश्य हो जाना है.
उसने एक ज़ोखिम ही चुना है
कि उसे दर्शकों के देखते-देखते
अदृश्य हो जाना है.
परागण
तितली के होंठों में दबे हैं
दुनिया के सबसे सुंदर
प्रेम-पत्र
तितली एक उड़ता हुआ फूल है
हंसी किसी फूल की
उड़कर जाती है
एक उदास फूल के पास
उड़कर जाता है मन एक फूल का
एक फूल का स्वप्न
उतरता है किसी फूल के स्वप्न
में
दो फूलों के बीच का समय
कल्पना है एक नए संसार की
तितली की तरह
सिरजने की उदात्तता भी होना
चाहिए
एक संवदिया में.
दस्ताने
मैं गरम कपड़ों के बाज़ार मे था
मन हुआ
कि स्त्री के लिए
हाथ के ऊनी दस्ताने ले लूँ
कि स्त्री के लिए
हाथ के ऊनी दस्ताने ले लूँ
पर ध्यान आया
कि दस्ताने पहनने की फुर्सत
उसे है कहाँ
कि दस्ताने पहनने की फुर्सत
उसे है कहाँ
गृहस्थी के अथाह जल मे
डूबे उसके हाथ
हर वक़्त गीले रहते हैं
डूबे उसके हाथ
हर वक़्त गीले रहते हैं
तो क्या गरम दस्ताने
स्त्री के हाथों के लिए बने ही नहीं...?
स्त्री के हाथों के लिए बने ही नहीं...?
"ये सवाल हमसे क्यों पूछते
हो..."
तमाम गर्म कपड़े
ये कहते , मुझ पर ही गर्म हो रहे थे.
तमाम गर्म कपड़े
ये कहते , मुझ पर ही गर्म हो रहे थे.
प्रायश्चित
इस दुनिया में
आने - जाने के लिए
अगर एक ही रास्ता होता
और नज़र चुराकर
बच निकलने के हज़ार रास्ते
हम निकाल नहीं पाते
बच निकलने के हज़ार रास्ते
हम निकाल नहीं पाते
तो वही एकमात्र रास्ता
हमारा प्रायश्चित होता
और ज़िंदगी में लौटने का
नैतिक साहस भी.
हमारा प्रायश्चित होता
और ज़िंदगी में लौटने का
नैतिक साहस भी.
प्रेम की अनिवार्यता
बहुत असंभव-से आविष्कार किए
प्रेम ने
और अंततः हमें मनुष्य बनाया
लेकिन अस्वीकार की गहरी पीड़ा
उस प्रेम के हर उपकार का
ध्वंस करने पर तुली
और अंततः हमें मनुष्य बनाया
लेकिन अस्वीकार की गहरी पीड़ा
उस प्रेम के हर उपकार का
ध्वंस करने पर तुली
दिया जिसने, सब कुछ न्योछावर कर देने का
भोलापन
तर्क न करने की सहजता
और रोने की मानवीय उपलब्धि
तर्क न करने की सहजता
और रोने की मानवीय उपलब्धि
प्रेम ने हमारी ऊबड़-खाबड़, जाहिल-सी
भाषा को कविता की कला सिखाई
और ज़िंदगी के घोर कोलाहल में
एकांत की दुआ मांगना
भाषा को कविता की कला सिखाई
और ज़िंदगी के घोर कोलाहल में
एकांत की दुआ मांगना
संभव नहीं था प्रेम के बिना
सुंदरता का अर्थ समझना
प्रेम होना ही सबसे बड़ी सफलता है
कोई असफल कैसे हो सकता है प्रेम में...?
दशहरी आम
लगभग धड़ी भर आम आए थे
उस दिन घर में
मालकिन ने कहा था उससे
कि जल्दी-जल्दी हाथ चला
रस ही निकालती रहेगी
तो पूड़ियाँ कब तलेगी
भजिए भी निकालने हैं अभी
और सलाद काटकर सजाना है तश्तरी
मालकिन ने कहा था उससे
कि जल्दी-जल्दी हाथ चला
रस ही निकालती रहेगी
तो पूड़ियाँ कब तलेगी
भजिए भी निकालने हैं अभी
और सलाद काटकर सजाना है तश्तरी
वह दशहरी आमों का रस निकालती
रही :
अस्सी रुपए किलो तो होंगे इस वक़्त
अस्सी रुपए किलो तो होंगे इस वक़्त
" माँ - माँ !! हमें भी खिलाओ न
रस
देखें तो कैसे होते हैं दशहरी आम
जब नए-नए आते हैं मौसम में
हम भी खाएँगे आम
हमें भी दो ... रस "
देखें तो कैसे होते हैं दशहरी आम
जब नए-नए आते हैं मौसम में
हम भी खाएँगे आम
हमें भी दो ... रस "
उसे लगा रस की पतीली के
इर्द-गिर्द
बच्चे हड़कंप मचा रहे हैं
फिर उसने कनखियो से घूरा
दायें-बाएँ
और उन्हें चुप होने का किया इशारा
बच्चे हड़कंप मचा रहे हैं
फिर उसने कनखियो से घूरा
दायें-बाएँ
और उन्हें चुप होने का किया इशारा
फिर कोई जान न पाया उसके हाथों
की ऐय्यारी को
मालकिन भी नहीं
मालकिन भी नहीं
उसके हाथ आमों पर
अब उतने सख्त नहीं थे
वह छिलकों और गुठलियों में
बचाती जा रही थी थोड़ा-थोड़ा रस
अब उतने सख्त नहीं थे
वह छिलकों और गुठलियों में
बचाती जा रही थी थोड़ा-थोड़ा रस
एक थैली में समेट लिए उसने
सारे छिलके और गुठलियाँ
- " जाते-जाते गाय को खिला दूँगी "
मालकिन से कहते हुए
वह सीढ़ियाँ उतर गई .
सारे छिलके और गुठलियाँ
- " जाते-जाते गाय को खिला दूँगी "
मालकिन से कहते हुए
वह सीढ़ियाँ उतर गई .
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हेमंत
देवलेकर
11 जुलाई 1972
रंगकर्म करते हुए नाटकों का
लेखन भी.
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन
'हमारी उम्र का कपास धीरे-धीरे
लोहे में बदल रहा है’(कविता संग्रह) उद्भावना से (2012) प्रकाशित.
17, सौभाग्य, राजेन्द्र
नगर, शास्त्री नगर के पास,
नीलगंगा, उज्जैन पिनकोड- 456010 (म.प्र.)
मोबाईल - 090398-05326
नीलगंगा, उज्जैन पिनकोड- 456010 (म.प्र.)
मोबाईल - 090398-05326
उसे न कभी दुखी देखा ,
जवाब देंहटाएंन कभी शिकायत करते
वह इतनी शांत और सहनशील
कि जैसे पृथ्वी का ही कोई बिम्ब है
इन कविताओं में भी जैसे पृथ्वी उतर आई है।
कविताओं में किसी तरह का मुल्लमा नहीं चढ़ा है. यें कल्पनाओं के उजास और सहज जीवन की परिणिती है. उदात्त और प्रेम के सहचर्य से बंधी. गूँथन इहलोक की बारीक छवियों का.
जवाब देंहटाएंबधाई.....
खूबसूरत कविताएँ. छोटे छोटे खूबसूरत बिम्ब मुग्ध कर देते हैं. हर कविता सुन्दर है लेकिन तानपूरे के साथ संगत करती स्त्री को इतनी तरह से देखा जा सकता है यह बात कविता को असाधारण बना रही है.
जवाब देंहटाएंहेमन्त की कविताएँ शानदार हैं। पिछले दिनों स्पंदन समारोह के दौरान भोपाल में इनकी कविताएँ सुनने का अवसर मिला। इनकी कविताएँ हिंदी कविता को लेकर हमें नए सिरे से आश्वस्त करती हैं। सूचना-समय में संवेदनाओं को सहेजने का सार्थक जतन करती इन कविताओं के प्रकाशन के लिए आपका और समालोचन का आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविताएँ। हेमंत की कविताओं में वास्तविक बिम्बों के कल्पनाशील सम्बन्ध खोज निकालने का सुखद उपक्रम मिलता है। आपको और हेमंत को बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंहेमन्त दादा अच्छे कवि, रंगकर्मी से कहि अधिक मन से सच्चे इंसान , जो आज के समय में अपने आप में दुर्लभ है, बच्चो के अन्तर्मन की आपकी लिखी एक कविता बहुत ही प्यारी थी।
जवाब देंहटाएंहेमंत बहुत संवेदनशील कवि और बेहद दिलकश ज़मीनी व्यक्ति है. खालिस अपनेपन से लबरेज़. यही अपनापन उनकी कविताओं में ऐसा सर्जनात्मक रूप लेकर आता है कि इस प्रायोजित दौर में भी कविता पर बेपनाह भरोसा करने का मन करता है.
जवाब देंहटाएंहेमन्त सिर से पांव तक कवि हैं और उनकी कविताओं में सबसे ज़्यादा कविता ही झलकती है. बहुत प्यार से वह कविता को संजोते हैं पोसते हैं,गुनते हैं. उनके कवितामय व्यक्तित्व को सलाम!
जवाब देंहटाएंवर्षा
हेमंत की कविता पढ़ते पढ़ते हम रुक जाना चाहते है,कुछ ख़याल,स्मृति सामने आ जाती है.बधाई.
जवाब देंहटाएंVaah !! in kaviaton ke liye kavi mitra aur samalochan ka Aabhaar..
जवाब देंहटाएंसभी बेहतरीन कवितायेँ हैं।इसमें भी 'दस्ताने' और 'प्रायश्चित' और भी ह्रदयस्पर्शी लगी।
जवाब देंहटाएंऐसी उत्तम कविताओं के लिये कविवर हेमन्त और समालोचन को बहुत बधाई।
बढ़िया कवितायेँ
जवाब देंहटाएंवाह. "दशहरी आम" बहुत पसंद आई मुझे. हालांकि सभी कविताएँ अच्छी हैं. बहुत बहुत बधाई हेमंत को.
जवाब देंहटाएंप्यारी कवितायें।
जवाब देंहटाएं'दशहरी आम' के अंत में पहुँचकर तो दिल एकबारगी धक कर गया...
बहुत मार्मिक कविता है।
हेमंत जी को शुभकामनायें।
-राहुल राजेश,
कोलकाता ।
कवि जिस फ्रेम से फोकस करता है उसी से वह कितने ही बिम्बों को संवेदनाओं के रंग में घोल कर आसमान पृथ्वी तक रंग लेता है। तानपुरे पर संगत देती स्त्री हो या तितली या दस्ताने हो या प्रायश्चित हो कविताओं में भावनाओं का अद्भुत सैलाब है और दशहरी आम ने तो किनारे ही तोड़ डाले। वात्सल्य और लाचारी पर इससे अच्छी कविता और हो भी क्या सकती है। बहुत अच्छा लगा इन कविताओ को पढ़ना
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