(A photo of
Fidel Castro in New York in 1959 taken by Roberto Salas)
फिदेल कास्त्रो (जन्म:
13 अगस्त 1926 - मृत्यु: 25 नवंबर 2016) :
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बीसवीं शताब्दी के
महान क्रांतिकारी नेताओं में अग्रगण्य फिदेल के लगातार घंटो तक जोशीले भाषण देने
की कला के कारण उनके मित्र उन्हें, ‘द जाइंट’ नाम से पुकारते थे.
फिदेल ने छोटे से
द्वीप क्यूबा को अपने समय के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य अमेरिका के सामने स्वाभिमान
और खुदमुख्तारी से खड़ा होना सिखाया.
फिदेल शायद अंतिम
राजनेता थे जिनकी अपने समय के महान साहित्यकारों से घनिष्ठता थी.
मार्केज़ तो उनके
निकटतम मित्र थे.
इसके अलावा हेमिंग्वे,
पाब्लो नेरुदा आदि भी उनके मित्रों में शामिल थे.
पाब्लो नेरुदा की
पुस्तक “कन्फैसो क्यू बे विविदोः
मैमोरियाज” के स्पानी से अंग्रेजी अनुवाद “मैमोयर्स” (अनुवादक- हार्दिए
सेंट मार्टिन) से हिंदी में यह अनुवाद
कर्ण सिंह चौहान ने किया है. जो ग्रन्थ शिल्पी से प्रकाशित “मेरा जीवनः मेरा
समय" में संकलित है.
फिदेल को याद करते
हुए. समालोचन की यह प्रस्तुति.
फिदेल कास्त्रो
पाब्लो
अचानक गले लगने की क्रिया को छोड़ वे सक्रिय हुए और मुड़कर
कमरे के कोने की तरफ चले गए. मैंने ध्यान नहीं दिया कि एक कैमरामैन चुपके से कमरे
में दाखिल हो गया था और हमारा फोटो लेने की तैयारी कर रहा था. तभी बड़ी फुर्ती से
फिदेल उस तक पहुंचे और उसे गले से पकड़कर लगभग अधर में उठा दिया. कैमरा फर्श पर
गिर गया. मैं फिदेल के पास गया और उनकी बांह को पकड़कर उस मरियल से फोटोग्राफर को
उनसे छुड़ाने की कोशिश की. लेकिन फिदेल ने उसे दरवाजे के बाहर फेंक दिया. फिर वह
मेरी तरफ मुड़े, फर्श से कैमरा
उठाया और उसे बिस्तर पर फेंक दिया.
अपनी जीत के बाद हवाना में प्रवेश के दो हफ्ते बाद फिदेल
कास्त्रो कराकस में थोड़ी देर के लिए आए. वह वहां वेनेजुएला की सरकार और जनता को
मदद के लिए धन्यवाद देने आए थे. इस मदद में उनकी सेनाओं को दिए हथियार भी थे जो
वर्तमान राष्ट्रपति द्वारा नहीं उनके पहले के राष्ट्रपति लर्जाबल द्वारा दिए गए थे.
लर्जाबल वेनेजुएला के वामपंथियों (साम्यवादियों समेत) के मित्र रहे और उन्होंने जब
जरूरत पड़ी तो क्यूबा के साथ अपनी एकजुटता दर्शाई.
वेनेजुएला की जनता ने क्यूबा क्रांति के युवा नेता कास्त्रो
को जैसा राजनीतिक स्वागत-सम्मान दिया वैसा कम ही देखने को मिलता है. फिदेल ने
कराकस के विशाल एल सिलेंसियो मैदान पर बिना रुके चार घंटे तक भाषण दिया. मैं भी उस
दो लाख की भीड़ में खड़ा होकर वह लंबा भाषण सुनने वालों में से एक था. मेरे लिए और
बाकी तमाम के लिए फिदेल का भाषण एक तरह का रहस्योद्घाटन था. उन्हें इतने लोगों के
सामने भाषण देते सुन मुझे लगा कि लातीन अमेरिका में एक नए युग की शुरूआत हुई है.
मुझे उनकी भाषा की ताजगी बहुत अच्छी लगी.
आम तौर पर मजदूर वर्ग के अच्छे से अच्छे नेता और राजनेता
उन्हीं घिसी-पिटी बातों को दोहराते रहते हैं. इन बातों का अर्थ भले ही महत्वपूर्ण
हो लेकिन उनके शब्द बार-बार के दुहराव से भोंथरे हो जाते हैं. फिदेल ने इस तरह की
जुमलेबाजी नहीं की. उनकी भाषा आगमनात्मक और प्राकृतिक थी. ऐसा लगता था कि बोलते और
पढ़ाते वक्त वह स्वयं भी उससे सीख रहे थे.
हेमिग्वे के साथ फिदेल |
वेनेजुएला के वर्तमान राष्ट्रपति बेटनकोर्ट वहां नहीं थे.
उसे कराकास की जनता का सामना करना बिल्कुल पसंद नहीं था क्योंकि लोग उसे पसंद नहीं
करते थे. जब फिदेल ने अपने भाषण में उसके नाम का उल्लेख किया तो लोगों की सीटियां
और आवाजें आने लगीं, जिन्हें फिदेल ने
हाथ के इशारे से शांत किया. मुझे लगा उसी दिन से बेटनकोर्ट और क्यूबा के इस
क्रांतिकारी के बीच वैमनस्य पैदा हो गया. उस समय तक न तो फिदेल मार्क्सवादी थे न
कम्युनिस्ट और न ही उनके भाषण का उनके सिद्धांतों से कुछ लेना-देना था. मेरी निजी
राय है कि उस भाषण में फिदेल की तेजस्विता और बुद्धिमत्ता, जनता के मन में जोश पैदा करने की क्षमता, कराकास के लोगों द्वारा उस भाषण को हृदयंगम कर
लेने की तीव्र इच्छा ने बेटनकोर्ट को परेशान किया होगा. बेटनकोर्ट लफ्फाजी,
कमेटियों और गुप्त सभाओं की पुरानी परिपाटी
वाला राजनेता था. उसके बाद से बेटनकोर्ट ने हर उस चीज को बेरहमी से कुचलना शुरू
किया जिसका संबंध क्यूबा की क्रांति से हो.
सभा के अगले दिन मैं देहात में रविवार की पिकनिक पर था कि
कुछ मोटरसाइकल सवारों ने हमें क्यूबा के दूतावास का निमंत्रण-पत्र दिया. वे सारा
दिन मुझे ढूंढ रहे थे कि मैं कहां मिल सकता हूं. यह समारोह उसी शाम को था. मटील्डे
और मैं वहां से सीधे दूतावास गए . बुलाए गए अतिथियों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि
वे हाल और बगीचे में नहीं समा रहे थे. दूतावास के बाहर भी लोगों की भारी भीड़ थी
और दूतावास को जाने वाली सड़कों से भवन तक जाना मुश्किल था .
हम किसी तरह लोगों से भरे कमरों को पार करते हुए वहां
पहुंचे जहां कुछ लोग हाथों में जाम उठाए हुए थे. फिदेल की सबसे करीबी और उनकी सचिव
सीलिया घर के एक खाली हिस्से में हमारा इंतजार कर रही थी. मटील्डे उसके साथ रही और
मुझे दूसरे कमरे में ले जाया गया. वह शायद नौकर का या माली का या ड्राइवर का कमरा
था. उसमें एक बिस्तर लगा था जिसे जल्दी में खाली किया गया था और उसके कपड़े
तितर-बितर थे. तकिया फर्श पर था और कोने में एक मेज थी. बस. मैंने सोचा कि वहां से
मुझे किसी एकांत कमरे में ले जाया जायगा जहां मैं क्रांति के सेनापति से मिलूंगा.
लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अचानक कमरे का दरवाजा खुला और फिदेल कास्त्रो के भव्य
व्यक्तित्व से कमरा भर गया.
वह मुझसे बहुत ऊंचे थे. वह मेरी तरफ तेज कदम बढ़ाते हुए आए.
“हैलो पाब्लो” कहकर उन्होंने मुझे बाहों में भर लिया.
उनकी पतली लगभग बच्चों जैसी आवाज सुनकर मैं तो दंग रह गया.
उनके व्यक्तित्व में कुछ था जो इस आवाज के अनुकूल था. फिदेल बहुत बड़े आदमी होने
का अहसास नहीं कराते. उन्हें देख ऐसा लगता है जैसे कोई बच्चा टांगों के अचानक बढ़
जाने पर लंबा हो गया जबकि उसका चेहरा और कोमल दाढ़ी अभी बच्चे की ही है.
(मार्केज़ के साथ फिदेल) |
हमने उस घटना पर कोई बात नहीं की केवल लेटिन अमेरिका के लिए
एक प्रैस एजेंसी की संभावना पर बात की. मुझे याद पड़ता है कि प्रेन्सा लातीना
एजेंसी उसी बातचीत का नतीजा थी. उसके बाद हम वापस समारोह में चले गए, दोनों अपने-अपने दरवाजों से होकर.
जब एक घंटे बाद मटील्डे के साथ मैं दूतावास के समारोह से
वापस जा रहा था तो उस फोटोग्राफर का भयभीत चेहरा और गुरिल्ला नेता की फुर्ती जिसने
अपनी पीठ के पीछे से घुसने वाले को महसूस कर लिया, याद आए.
वह फिदेल कास्त्रो से मेरी पहली मुलाकात थी. उसने फोटोग्राफ
लेने देने का इतना विरोध क्यों किया ! क्या इसमें कोई राजनैतिक रहस्य छिपा था! आज तक मैं यह नहीं समझ पाया हूं कि हमारा यह
साक्षात्कार इतना गुप्त क्यों रखा गया.
लातीन अमेरिका को “आशा” शब्द बहुत प्रिय है. हमें
स्वयं को “आशा” का महाद्वीप कहलाना पसंद है. संसद, राष्ट्रपति और अन्य प्रतिनिधि स्वयं को “आशा के प्रत्याशी” कहलाना पसंद करते हैं. यह आशा स्वर्ग का वायदा है, एक ऐसा वायदा जो कभी पूरा नहीं होगा. वह अगले
चुनावों तक, अगले साल तक,
अगली सरदी तक टलता जाता है.
(इंदिरा गाँधी के साथ) |
जब कयूबा की क्रांति हुई तो लाखों लातीन अमेरिकी नींद से
जगे. उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. एक ऐसा महाद्वीप जिसने उम्मीद करना
ही छोड़ दिया था, वह इस पर कैसे
विश्वास करता. लेकिन यहां फिदेल कास्त्रो था जिसे कोई जानता भी नहीं था जिसने आशा
को बालों से पकड़ लिया, पैरों पर खड़ा
किया और कस कर पकड़ कर अपनी मेज पर बिठा लिया यानी लातीन अमेरिका के लोगों के घर
में बिठा दिया.
तब से हम इस आशा को संभाव्य वास्तविकता मान उसे पाने के
रास्ते पर चल पड़े हैं. लेकिन अभी भी हम डरे हुए हैं. एक पड़ोसी देश, जो बहुत ही शक्तिशाली और साम्राज्यवादी है
क्यूबा को और आशा को खत्म करने पर तुला है. लातीन अमेरिका की जनता रोज अखबार पढ़ती
है, रोज रात रेडियो से कान
लगाए रहती है. और वे संतोष की सांस लेते हैं. क्यूबा अस्तित्वमान है. एक और दिन,
एक और साल. और पांच साल. हमारी उम्मीद का सिर
अभी कटा नहीं है. उसका सिर नहीं काटा जा सकता है .
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karansinghchauhan01@gmail.com
karansinghchauhan01@gmail.com
मनोयोग से पढ़ा। कास्त्रो को मैंने अबतक ध्यान से नहीं देखा था, अब उनके किये और पढ़े के बारे में खोजकर पढ़ूंगा और अपनी धारणा बनाऊंगा। हिंदी साहित्य के धुरन्धर और कास्त्रो - कुछ इस विषय पर भी पड़ताल करने और पाने की कोशिश होगी।
जवाब देंहटाएंमुझे कास्त्रो के साहित्य चिंता और चिंतन पर भी कुछ ठोस जानने की इच्छा जगी है। साहित्य में वे क्या पसंद करते थे और क्या नापसंद, मुझे यह भी जानना है। धार्मिक वाह्याचारों एवं नस्लभेद आदि अवैज्ञानिक एवम मानवतारोधी चलनों को क्यूबाई समाज से मिटाने के लिए वे क्या कुछ कर पाए, यह भी पता करना है।
फिदेल का भारतीय समाज और राजनीति पर क्या नजरिया था, यह भी जानने की उत्सुकता है। खास, इंदिरा से उनकी भेंट होती है तो इंदिरा एवं तत्कालीन भारतीय राजनीति के प्रति उनकी क्या टेक थी, यह जानना मेरी दिलचस्पी में शामिल है।
अगर मेरी ऊपर वर्णित तमाम जिज्ञासाओं को शमन करने वाले मैटर कहीं हिंदी अथवा अंग्रेजी ने उपलब्ध हैं तो मित्रगण कृपया, गाइड करें।
पश्चिमी गोलार्द्ध पर चमकने वाले प्रथम और अंतिम
जवाब देंहटाएंओ, सूर्य रक्तिम
तुझे सलाम!
प्रिय मुसाफिर जी,
जवाब देंहटाएंअभी अन्य काम में व्यस्त होने के कारण बहुत अधिक जानकारी तो नहीं दे पाऊंगा, लेकिन कुछ लिंक यहाँ दे रहा हूँ जिनपर जाकर आप काफी सामग्री पा सकते हैं । पहले इस सामग्री को देख लीजिए ।
https://www.marxists.org/history/cuba/archive/castro/
https://www.goodreads.com/author/list/66099.Fidel_Castro
https://www.questia.com/library/history/caribbean-and-west-indian-history/cuban-history/fidel-castro
कर्णसिंह जी का अनुवाद बहुत उकृष्ट है। कास्त्रो के नेरुदा जैसे समकालीन महान साहित्यकारों से प्रगाढ़ मित्रता के संबंध उनके राजनैतिक व्यक्तित्व के बौद्धिक पक्ष को प्रकाशित करते हैं।
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