:: मलयालम ::
के. सच्चिदानन्दन :
कवि, अनुवादक एवं
आलोचक श्री के. सच्चिदानन्दन का जन्म 28 मई 1946 को हुआ. वे अंग्रेजी के
प्रोफेसर रहे है तथा एक लम्बे समय तक साहित्य अकादमी से जुड़े रहे हैं. 23
कविता-संग्रह, 16 अनूदित काव्य-संग्रह एवं नाटक व साहित्य से जुड़ी अन्य तमाम
कृतियाँ. उन्होंने अनेक प्रतिष्ठित विदेशी कवियों की रचनाओं से हमें मलयालम व
अंग्रेज़ी के माध्यम से परिचित कराया है. उनकी तमाम अनूदित कविताओं के संग्रह
विभिन्न भारतीय व विदेशी भाषाओं में छप चुके हैं. श्री सच्चिदानन्दन आधुनिक मलयालम
कविता के प्रणेता एवं एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं. यहाँ उनकी एक हालिया कविता का
अनुवाद प्रस्तुत है.
मिट्टी खाने वाला
जब खाने को कुछ
भी न बचा
तो काले बच्चे ने मिट्टी खा ली,
जब माँ छड़ी लेकर आई
तो उसने मुँह खोल दिया,
माँ ने उसमें तीनों लोक देखे;
पहले में
सोने से निर्मित युद्ध-विमान थे,
दूसरे में
अनेक देशों से लूटा गया
धन व चावल,
तीसरे में
भूख, मक्खी और मौत,
वह उससे मुँह बन्द करने के लिए चीखी
उसमें रखने के लिए
एक मुट्ठी चावल न होने के कारण,
बाद में उन्हें
कारागार की ठंडी फर्श पर देखा गया था
यातना दे-देकर
मार दिए गए
दो भूमिगत बागी.
अय्यप्पन :
27 अक्टूबर 1949
को जन्में कवि स्वर्गीय श्री ए. अय्य्प्पन वामपंथी विचारधारा के प्रबल समर्थक तथा ‘जनयुगम’ के संपादक रहे
हैं. वे मस्तमौला व फक्कड़ किस्म के इनसान थे और उनकी कविताएँ काफी लोकप्रिय रही
हैं. उनके एक दर्ज़न से अधिक प्रकाशित कविता-संग्रह हैं. उनकी मृत्यु बड़ी ही दुःखद
परिस्थितिओं में हुई, जब वे ‘आसान पुरुस्कार’ ग्रहण करने के
लिए तिरुवनन्तपुरम से चेन्नई जाने के लिए निकले किन्तु बाद में उनकी मृत देह एक
लावारिस लाश के रूप में तिरुवनन्तपुरम मेडिकल कॉलेज में पाई गई. यहाँ उनकी मृत्यु
से पहले लिखी गई अंतिम कविता का अनुवाद दिया जा रहा है.
अंतिम कविता
अंतिम कविता
वाण किसी भी क्षण
पीठ में धँस जाएँगे
प्राण बचाकर भाग रहा हूँ,
शिकारी की झोपड़ी के पीछे मशालें लेकर घूमेंगे
मेरे स्वाद को याद कर छह-सात लोग
लालसा से भरे,
किसी पेड़ की आड़ भी न मिली,
एक शिला का द्वार खुला
एक गर्जना स्वीकार की
मैं उसके मुंह का निवाला बन गया.
पवित्रन तीक्कुनि :
भूख की कविता
लिखने वाले 40 वर्षीय कवि पवित्रन तीक्कुनि का नाम आज केरल की नई पीढ़ी के सबसे लोक
लोकप्रिय कवियों में लिया जाता है. उनके लगभग एक दर्ज़न कविता-संग्रह प्रकाशित हो
चुके हैं और उन्हें अनेक सम्मान भी मिले हैं. लेकिन उन्हें गरीबी के दंश झेलते हुए
ही अपना गुज़ारा करना पड़ रहा है. वे पहले पारम्परिक रूप से मछलियाँ बेचने का काम
करते थे और आजकल ईंट-गारा ढोने का काम करके अपने परिवार को सँभालते हैं. यहाँ उनकी
केरल के आज के हिंसा से भरे राजनीतिक माहौल से जुड़ी एक ताजा कविता का अनुवाद
प्रस्तुत है.
मार दिए जाने से पहले
उन्मूलनों की आँधियाँ चलाने वाले
उन्मादों का ज्वार जगाने वाले
अमिट प्यास से भरे
हथियारों के देश से
तुम्हारे लिए लिखता हूँ
अज्ञात मित्र!
आनन्द में, खुशी में, शांति में
जी रहे तुमको,
निर्दोष लोगों व मनुष्य-प्रेमियों को
बेदर्दी से मार दिए जाने वाले देश में
मैं अच्छा हूँ,
यह लिखना मूर्खता है.
किसी भी क्षण मार दिया जा सकता हूँ
इस बात की संभावना है,
इस समय यही मेरा हाल है
कल भी एक आदमी काटकर सुला दिया गया
अच्छाइयों से भरा एक इन्सान
अभी भी उस चिता की लपटें बुझी नहीं हैं.
तुम्हारे देश में आने
उसे देखने की
इच्छा प्रबल है
इन लाशों को पार कर
इस जमा हुए खून में तैर कर
कैसे आऊँगा?
अब जिन्हें मिटाया जा रहा है
वे शत्रु नहीं हैं
साथ में घूमे-फिरे, लेटे-बैठे
विश्वस्त लोग हैं
यहाँ चाँदनी, फूल, गलियाँ
सब अंधकार में डूबी हुई हैं.
माँ, पत्नी, बच्चे
किसी के भी सामने मार दिया जा सकता हूँ
अनन्त रोदन,
अंतहीन विलाप-यात्राएं
‘आज मैं, कल तू’ की भाँति
गुजरती चली जा रही हैं.
अमिट प्यास से भरे
हथियारों के देश से
तुम्हारे लिए लिखता हूँ
अज्ञात मित्र!
आनन्द में, खुशी में, शांति में
जी रहे तुमको,
निर्दोष लोगों व मनुष्य-प्रेमियों को
बेदर्दी से मार दिए जाने वाले देश में
मैं अच्छा हूँ,
यह लिखना मूर्खता है.
किसी भी क्षण मार दिया जा सकता हूँ
इस बात की संभावना है,
इस समय यही मेरा हाल है
कल भी एक आदमी काटकर सुला दिया गया
अच्छाइयों से भरा एक इन्सान
अभी भी उस चिता की लपटें बुझी नहीं हैं.
तुम्हारे देश में आने
उसे देखने की
इच्छा प्रबल है
इन लाशों को पार कर
इस जमा हुए खून में तैर कर
कैसे आऊँगा?
अब जिन्हें मिटाया जा रहा है
वे शत्रु नहीं हैं
साथ में घूमे-फिरे, लेटे-बैठे
विश्वस्त लोग हैं
यहाँ चाँदनी, फूल, गलियाँ
सब अंधकार में डूबी हुई हैं.
माँ, पत्नी, बच्चे
किसी के भी सामने मार दिया जा सकता हूँ
अनन्त रोदन,
अंतहीन विलाप-यात्राएं
‘आज मैं, कल तू’ की भाँति
गुजरती चली जा रही हैं.
जोयॅ वाष़यिल :
डॉ. जोयॅ वाष़यिल एक
कुशल प्रशासक व संवेदनशील कवि हैं. उन्होंने हाल ही में दिल्ली आई. आई. टी. से डॉक्टरेट की
उपाधि हासिल की है. उनकी कविताएँ बाइबिल के आध्यात्मिक विचारों को लौकिक
परिस्थितियों के साथ जोड़कर यथार्थ से प्रेरित आधुनिक वैचारिकता का सृजन करती हैं.
यहाँ बाइबिल में प्रतिपादित जीवन की उत्पत्ति के प्रसंग से जोड़कर लिखी गई उनकी एक
कविता का अनुवाद प्रस्तुत है.
होने दो!
इस
निश्चल समय के अँधरे में
दूर तक
पसरे पड़े
शून्यता
भरते महामौन की
म्लानता
तेजी से फैल जाने पर,
वन्ध्यता
से घिरे इस अँधेरे में
चेतना-जन्य
पीड़ा के जागने पर,
आज ये शब्द
आग प्रज्ज्वलित कर रहे हैं, ईश्वर!
“रोशनी होने दो!”
बिजलियों
से भरे आकाश में
जुगनुओं
के छा जाने पर,
नक्षत्रों
के चूल्हों में से
भयानक
आग धधककर फैल जाने पर,
जीवक
के प्रसव की असह्य वेदना में डूबे
इस
भूमि के हृदय में
समय
उठकर खड़ा हो गया है,
कैवल्यामृत
पाने का साधन बन गए हैं
पवित्र
उपदेश.
शब्दों
से प्रज्ज्वलित आग की लपटों में ही
आकर
पैदा होता है नवजीवन.
भूमि,
जल व वायु के साथ मिलकर
आकाश
द्वारा रची गई इस वेदी पर
आकर
टकराने वाली महाशक्तियों से
एक-एक
करके भिड़ती हुई,
मस्तिष्क
में विचारों को संस्लेषित करती
मनुष्य-मनीषा
की प्रसिद्धि बढ़ी,
समय के
प्रवाह में भूमि पर
देवता
बन गया नवजीवन.
कर्म-पथ
के वर्णाभ रथ पर
रश्मि-सारथी
बना है आवेशपूर्ण नवजीवन.
एवरेस्ट
के पवित्र माथे पर
विजय
की स्वर्ण पताका फहराने वाले,
आकाश की
झील में
जल-क्रीड़ाओं
में रमे रहने वाले,
घोर
अगाधता में भी
अक्षय
आदिमनाद खोजने वाले,
विद्युज्ज्वालाओं
में भी पृथ्वी को
सूर्य-प्रभा
से सुसज्जित करने वाले,
मनुष्य
के कदम
क्यों
भटक जाते हैं कहीं-कहीं
इतने
उज्ज्वल होने के बावजूद?
ताल-स्वर
की उष्मलता से भरे संगीत में
क्यों
टूट जाती है लय?
कमलिनी-दल
से मनोहर चित्र-पटल पर
क्यों उभर
आती है बेतरतीब सी रेखाएँ?
क्या
रक्त-नदियों में समाए उन्माद का
कोलाहल
सुना नहीं?
गिरते
ही फूट पड़ने वाला एक बाल-रोदन
भंग कर
देता है वीणा-निनाद भी .
लोभ व
करुणा-क्रन्दन ही
मिलता
बस जीवन-पथ में.
जीवन
के तन्तु-सेतुओं पर लटककर
रो रहे
हैं हज़ारों सर्वहाराजन.
लहलहाती
घास की पत्तियों के संग
नक्षत्र
कर रहे हैं मन्दहास.
गहन
अँधेरे की विशालता में
फँसी
हुई हैं आज भी चेतनाएँ.
कहाँ
है रोशनी,
हृदय
में हर तरफ सौर-प्रभा फैलाने वाली?
वनान्तर
के तरु-समूहों में
नख-शिख
उज्ज्वल आभा बिखेरने वाली?
कहाँ
है रोशनी,
अँधरे
में हर तरफ चाँद की शीतलता प्रवाहित करने वाली?
सुष्मित
चाँदनी बन, मधुर उपदेश बन,
हृदय
की कांति रूपी प्रेम की कोमलता भर उठेगी
जीवन
में आर्द्रतापूरित रोमांच जगाने के लिए.
रोशनी
होने दो,
फिर से
रोशनी होने दो!
कल
स्पष्ट होने जा रहे कर्म-पथ में
दूर तक
प्रकाश फैले!
कल की
उषा में
अनश्वरता-बोध
की ज्योति
हृदय
में जगमगा उठे!
देश
जाग उठे,
संस्कृति
की बहु-वर्ण पताका फहराने के लिए!
मनुष्य
के हृदय में सदा-सर्वदा ही
एक
नूतन आलोक प्रसारित करने के लिए!
_______________________________________________
उमेश कुमार चौहान कवि हैं. ज्ञानपीठ से अभी उनका संग्रह जनतंत्र में अभिमन्यु प्रकाशित हुआ है.उन्होंने मलयाली भाषा से हिंदी में अनुवाद कार्य भी किया है.
डी-1/90, सत्य मार्ग,
उमेश कुमार चौहान कवि हैं. ज्ञानपीठ से अभी उनका संग्रह जनतंत्र में अभिमन्यु प्रकाशित हुआ है.उन्होंने मलयाली भाषा से हिंदी में अनुवाद कार्य भी किया है.
डी-1/90, सत्य मार्ग,
चाणक्यपुरी, नई दिल्ली-110021
मोबा – 08826262223
बहुत सहज अनुवाद.. मलयाली कविताओं से रूबरू होना सुखद. उमेश जी को हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद उमेश जी , आप जो कर रहें है उसके लिए हम सभी मलयालम बोलने,पढ़ने - लिखने वाले आप का आभारी हैं
जवाब देंहटाएंतेज़ी से सिकुड़ते विश्व में भाषा, धर्म और भूमि के विभाजन का अर्थ केवल ज्ञान और आदर का आदान-प्रदान हो, और कोई विकल्प नहीं बचता दीखता. कविता धर्म है और अनुवादक धर्म-प्रचारक जो मात्र भाषा का अनुवाद नहीं करता. विशिष्ट है ये प्रयास, कई मायनों में. बंधाई.
जवाब देंहटाएंAdbhut kavitayen!
जवाब देंहटाएंकल 01/10/2012 को आपकी यह खूबसूरत पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
ये चारों कवितायें इतनी जिंदा हैं कि और कहीं ध्यान ही नहीं जा रहा.. पढ़कर इतने उत्साह में हूँ कि कह पड़ना चाहता हूँ कि इन चारों मलयाली कवियों की तमाम ऐसी कवितायें श्री चौहान द्वारा हिंदी में अनुवाद किये जाने की मांग कर रही हैं.. मूल कविताओं सा प्रस्तुत उत्कृष्ट अनुवाद..
जवाब देंहटाएंइन महत्वपूर्ण कवियों से मुलाक़ात कराने के लिए चौहान साहब और समालोचन का आभार. अनुवाद बेहद सहज और जीवंत है..कविताओं के अनुरूप
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति .......
जवाब देंहटाएंबेहतरीन....
जवाब देंहटाएंमलयालम की कवितायें और साहित्य दोनों ही अकसर समाज और इस खोखले तंत्र पर प्रहार करते हैं...
अनुवाद हेतु आभार.
सादर
अनु
बेहद सुंदर अनुवाद अब चूँकि मलयालम का ज्ञान नहीं है इस लिये हमने मूल कविता का ही आनंद लिया कवि और कविताओं का चयन बहुत अच्छा है ... अपने समय के बेहतरीन कवियों को पढ़वाने के लिये समालोचन का आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा । मलयालम की कवियों और उनकी कविताओं को ही नहीं पूरे केरल के लिए यह बहुत खुशभरी बात है कि यहाँ के साहित्य और साहित्यकार को अन्य भाषा साहित्य जगत में इतना आदर मिल रहा है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसुना है आपने ज्ञानपीठ पुरस्कार (२०१९)विजेता कवि की कविताओं का भी अनुवाद किया है। कृपा करके उसे भी प्रकाशित करें।
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
आप अपनी प्रतिक्रिया devarun72@gmail.com पर सीधे भी भेज सकते हैं.