निज घर : प्रतिभाशाली मित्र : प्रचण्ड प्रवीर




























(Joan Miro की  पेंटिग : Harlequin's Carnival)



प्रचण्ड प्रवीर तरह-तरह से साहित्य और विचार को समृद्ध कर रहे हैं. उनका उपन्यास 'अल्पाहारी गृहत्यागी: आई आई टी से पहले', कहानी संग्रह  ‘Bhootnath Meets Bhairavi, तथा  'जाना नहीं दिल से दूर के साथ ही अभिनव सिनेमा: रस सिद्धांत के आलोक में विश्व सिनेमा का परिचय', आदि प्रकाशित है.

इधर वह दैनंदिन अनुभवों को लेकर डायरी शैली में कुछ प्रयोग करते हुए श्रृंखला कल की बात लिख रहे हैं, जो रोचक तो है ही आज के  युवाओं के  मनोजगत की यात्रा भी है. एक हिस्सा आपके लिए. 




प्रतिभाशाली मित्र                                  
प्रचण्ड प्रवीर




ल की बात है. जैसे ही मैंने ऑफिस के बिल्डिंग के बाहर कदम रखा, हमारे पुराने जिगरी दोस्त मोहन प्यारेनज़र आ गये. करीब छः साल बाद उनसे अचानक मुलाकात हो रही थी. मोहन प्यारे ने चमचमाती सफ़ेद शर्ट और इस्तरी से दमकती नेवी-ब्लू पैंट पहन रखी थी. हम दोनों एक दूसरे को देख कर थोड़ा अचकचा गए. पहले तो प्रेम से गले मिलें, फिर मोहन प्यारे ने बताया कि इसी बिल्डिंग के पाँचवी फ्लोर पर एक कम्पनी में वो पिछले चार महीनों से काम कर रहे हैं. बस छुट्टी का समय ऐसा अजब है कि बड़ी मुश्किल से मिलना हो पाया.

तुमने बताया नहीं कि तुम यहाँ काम करते हो?”

मोहन प्यारे ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, “तुमने बताने का मौका कहाँ दिया? सोशल नेटवर्क पर सबको इत्तला कर दिये थे. तुमको हम स्पेशल तार दे सकते थे, लेकिन अब भारत सरकार तार सेवा बंद कर दिया है. रहा बात चिट्ठी लिखने का, हम बहुत दिन से सोच रहे थे कि एक अंतर्देशीय पत्र खरीद के तुमको चिट्ठी लिखें, पर मौका नहीं मिला.

किसका मौका भाई, लिखने का या अंतर्देशीय खरीदने का? ई-मेल कर सकते थे.उलाहने को अनदेखा कर के मोहन प्यारे कहने लगे, “छोड़ो भी, ये क्या दाढ़ी-वाढी बढ़ा रखी है शाहजहाँ की तरह.

मैंने ग़मगीन हो कर कहा, “तुम्हारी ही कंपनी में एक झुम्मा नाम की लड़की काम करती है. उसी के ना मिलने के ग़म में दाढ़ी बढ़ा रखी है.

कौन है झुम्मा? कुछ हुलिया बताओ.मोहन प्यारे ने पूछा. जानकारी पर गौर करने के बाद मोहन प्यारे फरमाये, “महानगर आ कर भी तुम नहीं बदले! ऊँची हील वाली मोटी लड़की, लिपस्टिक घिसने वाले, खुल्ले बालों वाली... समझ गये, उसी को तुम झुम्माबुलाते हो? हमारे यहाँ कोई उसको भाव नहीं देता, और तुम लोग उसको भाव देते हो इसलिए उसका दिमाग चढ़ा हुआ है.

ऐसी क्या ख़राबी है उसमें?” मुझे उत्सुकता हुई.

ख़राबी ही ख़राबी है. हिन्दी बोलने वालों से नाराज़ रहती है. एक दिन हम जा के उससे पूछे कि ऐ जी, तुम कैसी हो, और सुनाओ तुम्हारी कुतिया कैसी हैं. हम खाली इतना ही पूछे, वो बोली कि वो ठीक है और साथ में ये बोलती है आप मेरी डॉगी को कुतिया मत कहिये. हम बोले आपके तरह स्त्रीलिंग-पुल्लिंग मिला दें क्या? सही बात यही है कि हमसे स्त्रीलिंग-पुल्लिंग का गलती हो जाता है, पर जानबूझ के हम कोई गलती नहीं करना चाहते हैं. छोकरिया हमको बोलती है कि आप उसको बिचबोलिये, लेकिन कुतिया नहीं. हम पूछे, ‘बिचबोलना ठीक लगता है और कुतियाबोलने में ख़राबी बुझाता है? बोली कि कुतिया बोलना वैसासा लगता है. 

इससे आगे हम क्या पूछे लेडीज़ लोग का बात. साला, कुछ अच्छा लगेगा कुछ ख़राब. इसलिये हम बोलना ही छोड़ दिए हैं कि जाओ ऐसे ही खुश रहो. बिना मोहन के किसी राधा का कल्याण हुआ है क्या? कल्याण नहीं होगा तो ऐसे ही भटकेगी. एक न एक दिन मेरी शरण में आना ही पड़ेगा. वैसे तुमको एक सुझाव देते हैं. गाड़ी लिए हो? नहीं लिए हो? एक गाड़ी खरीदो. उसकी कार नीचे खड़ी होती है बेसमेंट में. पाँच दिन उसकी गाड़ी के ठीक पीछे-पीछे अपनी गाड़ी ले कर जाओ. एक दिन खुद पूछ लेगी कि क्या बात है? क्यों पीछा कर रहे हो? तुम बोलना मैडम, पर्यावरण के नाम पर सन्देश देना था. ईंधन बचायें, साथ साथ गाड़ी चलायें. या आप हमारी गाड़ी में आ जाइये, या फिर हम आपकी गाड़ी में बैठ जायें.

बिलकुल नहीं बदले तुम. अभी भी पूरा स्टाइल वैसा ही है. सुने कि बीच में तुम फिल्म बनाने वाले थे.

बहुत काम करने वाले थे. एक आदमी मिला, बड़ा भारी ज्योतिष था. बोला कि आपका चलने का अंदाज़, बॉडी लैंग्वेज एकदम दूसरे टाइप का है. दूसरा टाइप समझते हो न? मतलब बहुत प्रभावशाली. इसलिये पहले सोचे कि शेयर मार्किट में पैसा लगायें, वहीं पे ट्रेडिंग का काम करेंगे. कुछ दिन किये देखें कि ले लोटा, साला सारा पैसे डूब रहा है. फिर हम सोचे कि बॉडी लैंग्वेज का दूसरा जगह इस्तेमाल करते हैं. इसलिए फिल्म बनाने का सोचे.

भोजपुरी फिल्म?”

तुम सत्तूखोर ... भोजपुरी काहे बनायेंगे? हिन्दी फिल्म बनाने का सोचे. बजट फ़िल्म. पटना में बहुत बिल्डर लोग है. जब हम उन लोग से बात किये तो उन लोग को भी लगा कि ब्लैक मनीको ह्वाईटबनाने के लिये ये किया जा सकता है. वो लोग हमसे बोला कि वो लोग भी हमारे बॉडी लैंग्वेज से एकदम प्रभावित है. उनलोग का एक गुज़ारिश था कि पटना में शूटिंग किया जाये, थोड़ा उन लोग के घर-परिवार के आदमी को भी रोल मिल जाये. हमको लगा कि एकदम जेन्युइन बात बोला है. पैसा जब लगायेगा तो अपना घर परिवार वाला को फिल्म में एक-आधा सीन में तो डाल ही देगा. हमको कोई बुराई नहीं लगा इसमें.

फिर क्या हुआ?”

अरे ये भी इतना आसान नहीं था. बजट फिल्म के लिये पैसा बहुत चाहिये, सो बहुत सा फिनान्सर से बात किये थे. एक हमसे पूछा कि मोहन जी, आप में क्या प्रतिभा है? हम बोले प्रतिभा... साला प्रतिभा तो ऐसा कूट-कूट के भरा है कि सुनोगे तो तुम लोग का होशे उड़ जायेगा. हम बोले कि, देखो हम झूठ नहीं बोल रहे हैं, बहुत सारा गवाह भी है इस बात का, हम उन लोग को बोले कि एक दिन हम ऐसे ही बैठे बैठे बोले थे कि कल जापान में भूकंप आयेगा. फिर ऐसा भूकंप आया वहाँ कि न्यूक्लियर रिएक्टर बंद करना पड़ा. अब ऐसा-ऐसा प्रतिभा भगवान् के तरफ से आता है. वो लोग बोला इसमें प्रतिभा का क्या बात है, ये तो एक तरह प्रेडिक्शन है. हम बोले ये भी प्रतिभा है. एक दिन हम ऐसे ही बोले थे कि गाँधी मैदान में बम फूटेगा, और उसी दिन फूट गया. ऐसे कोई सुन के हमको पागल समझेगा, लेकिन प्रतिभा तो यही है. बाकी सब क्या है- 

अभ्यास है, साधना है. फ़रक बूझो तुम!
फिनान्सर माना फिर? पैसा दिया?”

बोला कि धीरे-धीरे कर के लगायेगा. पहले हमको स्क्रिप्ट लिखने कहा है. अभी एक साल से हम स्क्रिप्ट लिख रहे हैं. इसके ख़तम होने के बाद शूटिंग चालू करेंगे. आराम से बनेगा फिल्म.
फिल्म का हीरो-हेरोइन कौन है? क्या नाम रखे हो फिल्म का?”

नायक-निर्देशक तो हम स्वयं हैं. हीरोइन अभी सोचे नहीं हैं. सोचे हैं कि नीतू चन्द्रा से बात करेंगे. मोहल्ला-टोला के नाम पर मान जायेगी. बचपन की फ्रेंडहै हमारी.

तब तक मैं इस योजना से बहुत प्रभावित हो चुका था. मोहन प्यारे ने धीमी आवाज़ में आगे राज खोला, “विशुद्ध हिन्दी फ़िल्म बनेगी. फ़िल्म का नाम है दिल का चोट्टा.
क्या? दिल का चोट्टा?

मेरी हँसी से चिढ कर मोहन प्यारे भुनभुना गये, “सत्तूखोर... साहित्य पढ़ते हो. चोट्टा का मतलब मालूम भी है जो हँस रहे हो? जाओ पहले शब्दकोष देखो. चोट्टा का मतलब होता है चोर. साधारण हिन्दी में मतलब हुआ दिल का चोर. अब दिल का चोट्टानाम देने से शॉक वैल्यूआयेगा. सेंसर बोर्ड वाला गाली देगा, फिर अंत में थक-हार कर पास कर देगा. हम इसका गाना भी लिख लिए हैं.

अच्छा .. धुन भी बना लिये होगे?”

हाँ. हम सोच रहे हैं इसको लद्दाख में फिल्मायें. हम काला जींस, काला चश्मा, हैट लगा के और बैकग्राउंड में लद्दाख में जो झील है ... और पीछे पहाड़ ... वहीं पे नीतू चन्द्रा को लहंगा चोली में, और बहुत लम्बा नारंगी दुपट्टा गले के चारो तरफ पहनवा के डांस करेंगे पीछे से तेज हवा चल रहा होगा .... तू .... तू ...तू दिल का चोट्टा है ... हाँ.. .हाँ ... मैं दिल का चोट्टा हूँ ... तू ...तू... दिल का चोट्टा है ... हाँ ...हाँ.. मैं दिल का चोट्टा हूँ ... जब हाँ कहना होगा, उस समय अपना मुंडी और कमर दोनों को एक साथ सिम्पल हार्मोनिक मोशन में हिलाना है. ऐसे ... देखो ... साथ में हाथ को आगे ले जा कर उँगली दर्शक की तरफ दिखाना है, मतलब हम ही नहीं, दर्शक भी दिल का चोट्टा ही है.

मोहन प्यारे ने फिर गाते हुये अपनी मुण्डी सिम्पल हार्मोनिक मोशन में घुमाई – ‘हाँ... हाँ ... मैं दिल का चोट्टा हूँ.

उसकी रचनात्मकता पर मुग्ध हो कर मैंने तालियाँ बजा कर उसे बधाई दी, “फिर यहाँ क्या कर रहे हो? स्क्रिप्ट पूरी करो और शूटिंग करो.

आम लोगों के बीच में रहने से बहुत कुछ सीखने को मिलता है. उनके बीच क्या चल रहा है, इसको जानने के लिए इस तरह की छोटी-मोटी नौकरी करनी पड़ती है.

झुम्मा से बात करा दो न!मैंने चिरौरी की.

बात तो करा देंगे, पर तुम उसको बोलोगे क्या?” मोहन प्यारे के इस सवाल पर मैं खामोश हो गया. मोहन प्यारे ने फिर रास्ता भी सुझाया, “अब तुम भी बन जाओ 'दिल का चोट्टा'. मिल के मीर की ग़ज़ल सुना देना.” 

वहीं दूर से झुम्मा हम दोनों को देख कर तेज-तेज क़दमों से बिल्डिंग की चक्कर लगाती निकल रही थी।

​चोट्टे दिल के हैं बुताँ मशहूर
बस यही ए'तिबार रखते हैं

फिर भी करते हैं 'मीर' साहब इश्क़
हैं जवाँ इख़्तियार रखते हैं


ये थी कल की बात!
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