(From Drama
‘Teesri Kasam’ Directed by:- RAJESH NATH RAM)
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युवा राकेश दुबे हिंदी में कथाकार के रूप में रचनाशील हैं. यह कहानी उन्हें एक मजबूत पहचान देती है.
देशज पृष्ठभूमि में आकर लेती यह प्रेम कथा अपनी गवई सरलता से मुग्ध कर लेती है. इसमें भोलानाथ गहमरी द्वारा रचित गीत ‘कउने खोतवा में लुकइलू’ एक टेक की तरह हर जगह उपस्थित है. यह प्रेम-कथा ‘मरजाद’ से बाहर नहीं निकलती और लम्बे दारुण विरह से होते हुए नायक के त्यागपूर्ण आत्महत्या तक जाती है.
एक बेहतर रचना अपने विरसे को भी आलोकित करती है. यह कहानी पढ़ते हुए आपको यह गीत पढने/सुनने की इच्छा हो जाए तो यह स्वाभाविक ही है. लेखक ने इस कथा में निर्गुण की तरह गाये जाते इस गीत को एक प्रेम गीत में बदल दिया है. (यह गीत भी आपको उपलब्ध कराया जा रहा है.)
इस कहानी के लिए युवा आलोचक और संपादक राकेश बिहारी को आप जरुर शुक्रिया कहें- यह कहानी उन्होंने ‘रचना-समय’ के लिए राकेश दुबे से लिखवाई है. और अब यहाँ उनके चर्चित, प्रशंसित स्तम्भ ‘भूमंडलोत्तर कहानी विवेचना’ में उनकी विस्तृत विवेचना के साथ प्रस्तुत है.
पर राकेश बिहारी की यह विवेचना ‘निजी घटना के सामाजिक चेतना में बदलने की कथा’ पढने से पहले आप यह कहानी जरुर पढ़ें.
कहानी
कउने खोतवा में लुकइलू
राकेश दुबे
दो और भी आंखे थी जिनमें पानी छलछला रहा था लेकिन उन पर किसी की नजर नहीं पड़ी थी.
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वंशी काका आजकल दिन में तीन चार बार मोहन
के घर जाकर यह जरूर पूछते हैं कि वह शहर से कब आएगा. उनके इस बेचैनी का रहस्य मोहन
के घर वाले बखूबी जानते हैं. वे ही क्या पूरा गांव जानता है कि उनके इस तरह से बेचैन
होने का क्या मतलब है. मोहन के घर वाले मुस्कराते हैं ‘काका इस बार तो मोहन महीने भर बाद ही घर आएगा.’
उनके इस जवाब पर तड़प उठते हैं काका ‘लेकिन वह तो हर शनिवार को घर आता है.’
आता तो है लेकिन इस बार परीक्षा की वजह से
नहीं आएगा.
अरे कौन सी कलेक्टरी की परीक्षा है जो एक
दिन घर आने से खराब हो जाएगी. झल्लाते हैं वंशी काका. काका की झल्लाहट का मतलब साफ
है. मोहन शहर जाते समय जरूर उनको छूकर चला गया होगा.अब जब तक वे भी मोहन को छू नहीं
लेंगे ऐसे ही बेचैन रहेंगे.
वर्षों हो गये यदि कोई वंशी काका को छू ले
तो जब तक वे उसे दुबारा छू न लें चैन नहीं आता उन्हे. वे ऐसा क्यों करते हैं किसी को
इसका ठीक ठीक कारण नहीं पता है लेकिन अनुमान सबके पास है. किसी के लिए यह मानसिक बिमारी
है तो किसी के लिए भूत प्रेत का साया. कारण चाहे जो भी हो पर काका की इस आदत ने बच्चें
को मनोरंजन का एक नया साधन दे दिया है. वे काका को छूकर भाग जाते हैं काका उन्हे छूने
के लिए उनके पीछे जी जान से दौड़ लगा देते हैं. कई बार उन बच्चों को न छू पाने की कातरता
उनकी आंखो से आंसुओं के रूप में दिखने लगती है.बच्चे जल्दी ही सबकुछ भूल दूसरे काम
में लग जाते. उन्हे आश्चर्य तब होता जब दो चार दिन बाद आचानक काका उन्हे छूकर धीरे
से मुस्करा उठते ‘देखा. मैने तुम्हे छू लिया.तुम उस दिन मुझे
छूकर भाग गये थे.’ उस समय उनके चेहरे की खुशी देखने लायक होती.
धीरे धीरे पूरा गांव उनकी इस आदत से परिचित हो गया. अब तो नात रिश्तेदार भी जान गये
हैं. बच्चों के साथ साथ बड़े बूढ़े भी अब मजे लेकर उनकी इस आदत का जिक्र करते हैं.
उनकी इस आदत के अलाव बच्चे उन्हे एक और बात
के लिए तंग करते हैं. जब भी वे उन्हे एकांत में पाते हैं घेर कर खड़े हो जाते हैं ‘काका.गाना सुनाइए न.’
चुप ससुर नहीं तो. गाना सुनाइए.अपने बाप
से क्यों नहीं कहते गाना सुनाने को. काका डपट देते.
काका अगर गाना नहीं सुनाओगे तो हम तुम्हे
छूकर भाग जाएंगे. बच्चे अपना आखिरी और सबसे मजबूत दांव आजमाते.
इस दांव पर काका हमेशा ही हथियार डाल देते
हैं. वे तुरत पालथी मार कर बैठ जाते हैं जैसे पूजा की तैयारी कर रहे हों. बच्चे भी
उन्हे चारो ओर से घेरकर बैठ जाते हैं. सभी यह जानते हैं कि बाबा वही गीत सुनाएंगे फिर
भी सब दम साधे रहते हैं.अनगिनत बार वे यह गीत सुन चुके हैं लेकिन जब भी काका यह गीत
सुनाते हैं गाँव का उदंड से उदंड बच्चा भी भाव विभोर हो उठता है. बाबा की आवाज वातावरण
को बेध उठती है
‘कवने
खोतवा में लुकइलू अहि रे बालम चिरई.’ वर्षों से बाबा केवल
यही गीत गाते हैं.एक अजीब सी तड़प होती है उनकी आवाज में. कभी कभी तो रात के बारह बजे
जब पूरा गांव दिन भर की मेहनत के बाद गहरी नींद सो रहा होता है काका की तड़पती टेर न
जाने कितने कलेजों में कसक पैदा कर जाती.
लेकिन गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि वंशी
कभी और भी गाने गाते थे. वे उनकी उठानी के दिन थे. बहुत जल्दी ही उनकी आवाज का जादू
गांव जवार के सर चढ़कर बोलने लगा. वे देखते देखते ही गांव की कीर्तन मंडली की शान बन
गये.कसा हुआ सलोना शरीर कंठ में साक्षात् सुरसती का वास.वे जब भी कहीं बाहर गाने जाने
को तैयार होते मां सर और गले पर काजल का टीका जरूर लगातीं. वंशी कई बार झल्ला उठते
‘अब मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूँ जो किसी
की नजर लग जाएगी.’
मां मुस्कराती ‘तुम कितने भी बड़े हो जाओ लेकिन मेरे लिए तो बच्चे ही रहोगे. तुम्हे
क्या पता है एक से एक जादूगरनियां हैं एक नजर से ही ऐसा गला बांध देती हैं कि सांस
नहीं निकलती. वंशी चुप होकर हौले से मुस्कराने लगते. जब वे गांव के शिवाले पर ढोल और
मजीरे की थाप पर ‘तुहरे सरनियां में बानी सुन हे भोला अवढर
दानी’ का आलाप लेते तो बड़ी बूढ़ी औरतों के तमाम
पहरे के बावजूद अनगिनत खिड़कियां खुलने की जिद कर बैठतीं.
गांव वालों को अब होली का बेसब्री से इन्तजार
है.इस बार होली पर फाग्ाका मुकाबला पड़ोस के गांव बीरपुर में होना है.इन दोनों गांवो
का सम्बन्ध भारत पाक सम्बन्धो की याद दिलाता है. खेल हो संगीत हो या मेड़ डांड़ का मसला
हो हर जगह एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई भी मौका कोई नहीं छोड़ना चाहता है. होली के
दिन फाग के मुकाबले की परंपरा वर्षों पुरानी है जो एक साल इस गांव में तो दूसरे साल
बीरपुर में होता है.फाग के रूप में बकायदा जंग. साल भर गवइयों की टोली केवल इसी दिन
के लिए रियाज करती है. विजेता की औपचारिक घोषणा न होने के बावजूद यह पता चल ही जाता
है कि कौन बीस रहा.प्रतिद्वंदिता के बावजूद श्रेष्ठता पर वाह वाह करने का कलेजा गांव
की विशिष्टता है.
गांव के लोग मन ही मन यह स्वीकार करते हैं
कि बीरपुर वाली टोली अच्छा गाती है.लेकिन इस बार वंशी की गायकी देखकर उनके मन में उत्साह
है.वंशी जैसा गवैया उनकी टोली में नहीं है.वह अकेले पूरे गांव पर भारी पड़ेगा. माना
कि मुकाबला उनके गांव में है लेकिन अच्छी गायकी का वे भी सम्मान करते हैं. प्रधान जी
ने ऐलान कर दिया है ‘अगर बीरपुर में झण्डा गड़ गया तो पूरी टोली
को पंचायत की ओर से दावत.’
वंशी भी उत्साहित है. नहा धोकर सबेरे ही
काली माई के चौरे पर कपूर जला आया ‘माई
लाज रखना. मर्द की जान भले ही चली जाए लेकिन शान नहीं जानी चाहिए. पानीदार मरद का जीवन
शान के बिना मृतक के समान होता है. पगड़ी की लाज रखना माई.’
पेट्रोमैक्स की रोशनी में समूचा बीरपुर नहाया
हुआ है. बुजुर्ग चारपाई पर तो बच्चे और जवान नीचे ही बैठकर मुकाबले का मजा ले रहे हैं.
एक किनारे औरतों की मण्डली भी जमी हुयी है. मुकाबला अब तक बराबरी का ही चल रहा है.
वंशी के उठते ही माहौल में गरमी आ गयी. उसकी
गायकी की खबर बीरपुर में भी पहुँच चुकी है. वे जानते हैं कि यह मुकाबले का निर्णायक
दौर है. वंशी ने मन ही मन काली माई का सुमिरन किया फिर भीड़ का जायजा लेना शुरू कर दिया.
आचानक उसकी नजर औरतों की टोली में ठहर गयी. एक चेहरे ने मानो उसे बांध ही लिया. उसने
कोशिस किया वापस आने का लेकिन सफलता नहीं मिली. भीड़ का उत्साह चरम पर था.
वंशी को चुहलबाजी सूझी. नजरों से ही पूछ
लिया ‘का गुइयां.साथ दोगी.’
नजरें मुस्कराईं ‘गांव से दगा नहीं कर सकती.’
वंशी के होठ फड़के ‘लड़की का असली गांव तो ससुराल का होता है न.’
उधर भी होठ बुदबुदाए ‘इतनी जल्दी.पहले जीतो तब सोचेंगे.’
दिल धड़क उठा वंशी का ‘तो इसे स्वयंवर समझे.तुम हार जाओगी.’
धड़कन ही इठलाई ‘देखेंगे.’
वंशी ने खुद को संयत किया सुर का संभाला
और आलाप लिया
‘तुहरे
झुलनी के कोर कटारी जान हति डारी.
कि झुलनी तू नइहर पवलू कि पवलू ससुरारी.
कि झुलनी कोई यार गढ़ावत कि कइलू सोनरवा से
यारी जान हति डारी.’’
गांव के लोगों ने वंशी को कंधे पर उठा लिया.
काली माई की जय महावीर स्वामी की जय से वातावरण गूंज उठा. वंशी ने मैदान मार लिया.
बीरपुर के लोगों ने भी खुले मन से बधाई देना शुरू कर दिया. लेकिन भीड़ में घिरा वंशी
किसी और को ही तलाश रहा था.
जाते जाते चेहरे ने पलट कर देखा. वंशी मुस्कराया
‘वादा याद रखना गुइयां.तुम हार गयी.’
चेहराया मुस्कराया ‘तुम सचमुच जीत गये.’
पूरा गांव इस जीत से उत्साहित है.वर्षों
बाद पड़ोसी गांव के सामने सर उंचा करके चलने का मौका आया है.पंचायत की ओर से कीर्तन
मंडली को दावत दी गयी.वंशी के लिए तो प्रधान जी विशेष रूप से शहर जाकर जींस की पैंट
और टी शर्ट लाए.वंशी गांव का नया हीरो हो गया है लेकिन यह केवल वंशी को पता है कि वह
हार गया है.उसे ऐसा लग रहा है जैसे वह उस रात वापस ही नहीं आ पाया.रात को जब भी सोना
चाहता है दो उदास आंखे सामने खड़ी हो जाती हैं ‘हमने
तो तुम्हे अपना मान लिया है.कहीं तुम वादा भूल तो नहीं जाओगे.’
वंशी करवट बदलता है ‘तुम्हे भूल ही तो नहीं पा रहा हूँ गुइयां. पर तुम्हे ढूंढे भी कहां.
नाम तो तुमने बताया ही नहीं
अपना.’
‘बुद्धू
तुमने पूछा भी कब.’
पूछता कैसे. तुम इतनी भीड़ में जो थी.
वंशी बेचैन हो उठता.यह बेचैनी हर दिन बढ़
रही थी. मंडली वाले साफ महसूस कर रहे थे कि बीरपुर से आने के बाद वंशी बेमन हैं. अब
वे श्रृंगार में भी विरह का आलाप लेने लगे हैं. घर के किसी काम में मन नहीं लगता.लोग
सोच में हैं.क्या यह वही वंशी है जो मिलने पर घंटो इधर उधर की बातें करता.कई बार तो
लोग झुंझला उठते ‘अरे भाई तुमको को तो कोई काम धाम है नहीं
हमें बहुत काम करना है.’
वंशी मुस्कराकर कहता ‘कभी हम भी काम करेंगे.’ आज वही सामने से इस तरह
निकल जाता है जैसे देखा ही न हो. आजकल उसका अधिकांश समय बीरपुर के सिवान पर ही बीतता
है. अकेले सिवान पर बैठे बैठे वह बीरपुर की ओर न जाने क्या एकटक निहारता रहता है.कई
बार अकेले ही बड़बड़ाता है ‘यह तुमने क्या किया वंशी.कहां दिल लगा बैठे.न
नाम पूछा न पता.पता नहीं उसे तुम्हारी परवाह भी है या नहीं.कहां परवाह है. परवाह होती
तो इस तरह से आराम से घर में थोड़े ही बैठी होती.जरूर किसी न किसी माध्यम से खबर भेजती.लेकिन
खबर भेजती भी तो कैसे.जब वह मर्द होकर खबर नहीं भेज पाया तो वह बेचारी.वंशी आलाप लेते
हैं
‘मंदिर से मस्जिद ले ढूंढली
गिरिजा से गुरूद्वारा
काशी से मथुरा ले ढूंढलीं ढूंढलीं तीरथ सारा
पंडित से मुल्ला ले ढूंढली ढूंढलीं घरे कसाई
सगरी उमरिया छछनत जियरा कंहवा तुहके पांई
कवने बतिया पर कोंहइलू अहि रे बालम चिरई.’’
राप्ती की बाढ़ सचमुच इस साल कहर ढाने पर
आमादा है. हर तरफ पानी ही पानी. सारी फसल बर्बाद. गांव के लोग बिल्कुल खाली. जब फसल
ही नहीं तो काम क्या करेंगे. कल तो पानी गांव में भी प्रवेश कर गया. पांड़े चाचा बताते
हैं कि पिछले 25 सालों में यह पहला मौका है जब राप्ती का पानी गांव में पहुँचा है.
सभी बंधे पर शरण लिए हैं. बाढ़ ने समाजवाद ला दिया है. वंशी मन ही मन मुस्कराता है.
जय हो राप्ती मइया. तुम्हारी लीला अपरंपार है. एक झटके में दूबे चौबे यादव हरिजन सबको
बराबर कर दिया.थोड़े से जगह में पूरा गांव.किसी के छूने से किसी का धरम नहीं बिगड़ रहा
है.
वंशी के खुश होने का एक और भी कारण है जिसे
वह किसी से भी जाहिर नहीं करता.बाढ़ के कारण बीरपुर के लोग भी इसी बंधे पर आ गया है.
और वे जाते भी कहां. जीवन की चाह सभी मान सम्मान पर भारी पड़ती है और जीवन फिलहाल इसी
बंधे पर है.वंशी उत्साहित है. यही मौका है उसे ढूंढ़ने का.ढूँढ़ लो अपनी गुइयां को.
पूरे बंधे पर केवल प्लास्टिक के तंबू नजर
आ रहे हैं जैसे विशाल जलराशि में तमाम नौकाएं तैर रही हों. औरतें बच्चे बूढ़े सभी उसी
बरसाती में.दोनों गांवो के बीच की दीवारें भी तमाम चीजों के साथ इसी जल में विलीन हो
गयी हैं. वर्षों बाद यह देखने को मिला है जब दोनों गांवो के लोग एक साथ मिलकर राप्ती
मइया की प्रार्थना कर रहे हैं ‘हम वर्षों से तुम्हारी छांव में जीवन बसर करते रहे हैं. तुमने
हमेशा हमें माँ की तरह प्यार दिया है अब हमसे कौन सी ऐसी गलती हो गयी है जो तुम इस
तरह से नाराज हो गयी हो.’
बनवारी यादव खांसते खांसते बोल उठते हैं
‘धरती पर जितना ही अधरम बढ़ेगा उसका यही परिणाम
होगा.परलय आखिर इसी को तो कहते हैं.’
सुदामा समर्थन करते हैं ‘ठीक कहते हो बनवारी भाई.जहां देखो वहीं झूठ फरेब और मक्कारी.आदमी
आदमी का गला काटने में लगा हुआ है.यह तो केवल चेतावनी भर है आगे आगे देखो होता क्या
है.’
तमाम परेशानियों के बावजूद नौजवान खुश हैं.कोई
काम नहीं सिर्फ दिन भर की तफरी.सबेरे से ही बोरियां बिछाकर ताश की अलग अलग टोलियां
जम जाती हैं.मजीद मास्टर का हृदय परिवर्तन उन्हे आश्चर्य चकित कर रहा है.नाव पर सवार
होकर कस्बे से गुटखा लाते हैं.आम दिनों में अपने बाप को भी उधार देने से मना करने वाले
मास्टर आजकल किसी को भी मना नहीं कर रहे हैं.जिसके पास नहीं भी पैसा है उसे भी.पूछने
पर मुस्करा देते हैं ‘अब इसमें क्या हिसाब रखना.जो बचेगा वह जोड़ेगा.कोई
लेकर थोड़े ही जा पाएगा.’मजे की बात यह कि आम दिनों में उधार न देने
पर मास्टर को गालियां देने वाले आजकल उधार लेने से बच रहे हैं ‘कौन जाने जिन्दा भी रहें या नहीं.फिर किसी का उधार खाकर क्या मरना.’
ताश और गुटखे की जुगलबन्दी. मजा यह की कोई
टोकने वाला भी नहीं.और दिन होता तो गालियों से कान पक जाते ‘ससुरे आवारा हो गये हैं. न कोई काम न धाम. जब देखो तब ताश.इन तशेड़ियों
ने गांव का माहौल खराब करके रख दिया है.’शिवपूजन मिसिर का यह रटा
रटाया जुमला है जिसे सुनने की आदत हर नौजवान को है.आजकल वही शिवपूजन मिसिर अक्सर कहते
सुने जाते हैं ‘लड़के भी बेचारे क्या करें. अब कोई काम धाम
भी तो नहीं रह गया है.अब ताश भी न खेलें तो कहां जाएं.
सूरज के मगन होने के अपने कारण हैं. वह रोज
राप्ती मइया का धन्यवाद देता है ‘हे मइया.पूरे महीने ऐसे ही कृपा रखना. कहां
रधिया से मिलने के लिए दिन रात जुगत भिड़ानी पड़ती थी कई कई दिन चक्कर लगाने के बाद भी
देखना नसीब नहीं हो पाता था और आज्कल राप्ती मइया की कृपा से बिल्कुल बगल में ही उसकी
बरसाती है. रधिया इतनी नजदीक है कि वह रात को उसकी धड़कन को भी साफ साफ महसूस कर सकता
है. गांव के तमाम प्रेमी प्रेमिकाओं की आजकल चांदी है.
शाम होते ही कीर्तन मंडली जम जाती है. समय
जो काटना है.दोनो गांवो के लोगो को एक साथ गाते हुए देखना सबको सुखद लगता है. देर रात
तक ढोल मजीरों की थाप पर जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी को ठेंगा दिखाते देखना किसी के लिए
भी आश्चर्यजनक हो सकता है पर यहां के लोगों के लिए यह स्वाभाविक सा ही है.वंशी की कमी
जरूर सबको खलती है. उसे पता नहीं आजकल क्या हो गया है मंडली में शामिल ही नहीं होता.
बहुत कहने सुनने के बाद यदि आता भी है तो बस चुपचाप बैठा रहता है. उसे तो आजकल समाजसेवा
का धुन सवार है. दिन भर समाजसेवी संस्थाओं की गाड़ियों की बाट जोहता रहता है.खाने के
पैकेट दवाइयां कपड़े इकट्ठा करता है फिर शाम को घर घर घूम कर बांटता है. बड़े बूढ़े उसकी
इस लगन से गदगद् हैं ‘वंशी बहुत समझदार और संवेदनशील लड़का है.जब
गांव पर इस तरह की विप़त्ति आयी हो तो भला गाना बजाना कैसे किया जा सकता है.गीत गवनई
तो उछाह का मामला है.उ न्हे इस बात का थोड़ा जरूर मलाल रहता है कि वंशी अपने गांव से
अधिक बीरपुर का खयाल रखता है.
तुम वंशी हो ना. ’छोटी बच्ची के इस सवाल
पर वंशी अचकचा गया.
हां लेकिन तुम्हे कैसे पता.’
क्योंकि मुझे सोना दीदी ने बताया था.’
अच्छा. लेकिन तुम्हारी सोना दीदी मुझे कैसे
जानती हैं.
क्योंकि तुम चोर हो.
क्या तुम्हारी सोना दीदी पुलिस हैं.
नहीं.
फिर वह मुझे कैसे जानती हैं.
क्योंकि तुमने उनका कुछ चुरा लिया है.
अच्छा.क्या चुराया है मैने तुम्हारी सोना दीदी
का.
यह तो मुझे नहीं पता लेकिन वह जरूर कोई कीमती
चीज ही होगी.
तुम्हे कैसे पता.
वह इतना उदास जो रहती है आजकल.
अच्छा.लेकिन तुम्हारी सोना दीदी रहती कहां हैं.
बच्ची ने एक बरसाती की ओर इशारा किया.
वंशी मुस्कराया ‘और क्या बताया तुम्हारी सोना दीदी ने मेरे बारे में.
यही कि शायद आजकल तुम भी कुछ उदास रहते हो.
यह कैसे पता चला तुम्हारी दीदी को.
आजकल तुम गाना जो नहीं गाते हो.
वंशी का मन कर रहा था कि वह उस बच्ची से
खूब बातें करे लेकिन बच्ची तो भाग गयी.वंशी मुस्कराया ‘अब तो गाना ही पड़ेगा गुइयां.’
उस रात वंशी का अलाप चरम पर था
‘जब रात रही बाकी कुछहूँ
छिप जाई अंजोरिया आ जइह.
वोही जगहा पर मिलब हम बनि ठनि के गुजरिया
आ जइह.
कहीं वादा कइल तू भुलइह ना आवे के बेर लजइह
ना
बड़ा दिन भइल देखला तुहके देखब भरि नजरिया
आ जइह
कोई कितना भी गा ले लेकिन वंशी की बात ही
और है. वह कलेजे से जो गाता है.
चारो तरफ राप्ती का पानी. आकाश में अलसाता
हुआ चन्द्रमा और हर ओर निस्तब्धता.केवल दो जोड़ी आंखे थी जिनमें जीवन की सबसे गहरी चमक
थी. आज अगर नींद आ गयी तो पूरे जीवन सोना मुश्किल हो जाएगा.
ऐसे क्या देख रहे हो.
देख रहा हूँ कि इतनी सुन्दर होकर भी तुम
इतना निर्दयी कैसे हो सकती हो.
अच्छा. अब हमीं निर्दयी भी हो गये. तुम्हे
तो हमारी इतने दिनों तक याद भी नहीं आयी.
हम तुम्हे भूले ही कहां थे जो याद करते.
बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे.
तुम्हारी कसम गुंइया.
हम नहीं मानते.इतना ही प्रेम था तो आ न जाते.
मैं तो रोज सिवान पर तुम्हारी राह देखता
था.
ससुराल के सिवान में ऐसे ही थोड़ी आया जाता
है.
अब तो आओगी न.
देखेंगे.
क्या तुम्हे हमारी जरा भी परवाह नहीं है.
तुम्हे हमारी है.
बातें समाप्त होने का नाम नहीं ले रही थीं
और रात थी की दौड़ी ही चली जा रही थी.
तुम हमे भूल तो नहीं जाओगे.
खुद को भूल जाऊंगा पर तुम्हे नहीं.
अगर मैं नहीं मिली तो.
इसी राप्ती मइया की धारा में छलांग लगा दूँगा.
सोना ने तड़पकर अपना हाथ वंशी के मुंह पर
रख दिया ‘खबरदार जो ऐसी बातें दुबारा की तो.कसम है
हमारी.राधा जी को कहां मिले किसन जी.तो क्या उन्होने जान दे दिया.परेम का अर्थ केवल
मिलना ही थोड़े ही होता है.हम मिले या न मिले लेकिन जान कोई नहीं देगा.
वंसी अपलक निहार रहा थासोना को.
ऐसे क्या देख रहे हो.
देख रहा हूँ कि तुम कितनी समझदार हो.
धत्.अच्छा मैं अब चलती हूँ.
कल आओगी.
देखूँगी.
मैं यहीं इन्तजार करूंगा.
सोना नहीं आयी. सारी रात इन्तजार करता रहा
वंसी.अगले कई रातों तक भी.कहीं नाराज तो नहीं हो गयी.
सोना दीदी तो अपने मामा के घर चली गयीं.’छोटी बच्ची की इस खबर से वंशी सन्न रह गया.
कब.
कई दिन हो गये.
क्यों.
उसके मामा के गांव में बाढ़ जो नहीं आती.अब
वह बाढ़ खतम होने पर ही आाएगी.
वंशी उसी जगह उदास बैठा है ‘जाना ही था तो आयी क्यूं थी गुंइया.’ भीग आयी आंखो की कोर को पोछते हुए वंशी मुस्करा उठा ‘तुम्हारा छूना ही आज से मेरी पूंजी है. मैं इसे जीवन भर संभाल कर
रखूंगा.’
महीनों लग गये राप्ती का पानी कम होने में.सोना
की शादी उसके मामा ने अपने घर से ही कर दिया यह खबर वंशी को भीतर तक उदास कर गयी.अब
वह न किसी से बोलता है न हंसता है. गाना तो कबका भूल गया है. बस गुमसुम सा बैठा रहता
है. कई बार तो अकेले सिवान में बैठा बैठा खुद से ही बातें करने लगता है.जरूर किसी चूड़ैल
का साया पड़ गया है. चूड़ैलें अक्सर नौजवानों को ही अपना शिकार बनाती हैं. रामसमुझ मिसिर
के पास इस तरह की कहानियों का भण्डार है ‘जान लो बच्चा.आसमान में
सुकवा निकल आया था.हम पड़ोस वाले गांव से नाच देखकर अकेले ही चले आ रहे थे. अकेले थे
सो मस्ती में गा भी रहे थे.गांव के पूरब वाले पीपल के पास पहुंचे तो क्या देखते हैं
कि सफेद कपड़ों में खूब सुन्दर लड़की बैठी हुयी है. हमारे तो हाथ पांव फूल गये.मन ही
मन हनुमान जी का सुमिरन करने लगे.उसने हमसे कहा ‘डरो मत.हमे तुम्हारा गाना
सुनना है.’
हमें तो काटो तो खुन नहीं. मरता क्या न करता.
सो गाना शुरू किया. गाते गाते कब आंख लग गयी पता भी नहीं चला.आंख खुली तो दिन चढ़ आया
था. लड़की गायब थी. घर आते ही बुखार ने ऐसा पकड़ा कि पूछो मत. महीनो दवाई खाई. कोई फायदा
नहीं. फिर पीर बाबा से दुआ कराया तब जाकर जान छूटी.’
वंशी न तो पीर बाबा की दुआओं से ठीक हुए
नहीं सोखा ओझा की झाड़ फूँक से.अम्मा का रोते रोते बुरा हाल था.एक वंशी ही सहारा था
उसे भ ीन जाने किसकी नजर लग गयी.वंशी ने अपनी एक अलग दुनिया बना ली थी जिसमें वह खोते
ही चले जा रहे थे.
जिस रात अम्मा को काले नाग ने डसा वंशी बंजारों
की टोली में बैठे हुए थे.जबसे बंजारे गांव में आए हैं वंशी को उनके साथ बैठना अच्छा
लगता है.अम्मा उन्हे बराबर मना करती ‘ये लोग तमाम जादू टोना
जानते हैं. अभी गधे ने कम ही खेत खाया है.अगर फिर से कुछ हो गया तो कहीं के न बचोगे.’ लेकिन वंशी को बंजारे अच्छे लगते हैं. उनका खुलापन उन्हे आकर्षित
करता है.कोई परदा नहीं नहीं कोई भेद भाव.काश कि वे भी बंजारा होते तो आज सोना उनके
साथ होती.
गांव में कोहराम मच गया.वंशी घर की ओर भागे. अम्मा
का शरीर नीला पड़ गया था और मुँह से झाग निकलने लगा था. एक बंजारा जानता था सांप का विष
उतारना.वह घंटो कोशिस करता रहा.सब बेअसर. कौड़ी फेंकनी पड़ेगी. यह अन्तिम उपाय है.यह कौड़ी
उस सांप को खीच कर लाएगी.वही विष खींचेगा.लोग दम साधे देख रहे थे.यह सबके लिए नया अनुभव
था.भला मंत्र और कौड़ी के प्रभाव से सांप आएगा.लेकिन सांप आया.उसके फन पर दोनो कौड़ी
चिपकी हुयी थी. लोग हैरान रह गये.काला भुजंग नाग.सांप अम्मा के पैरो के पास घूमने लगा. बंजारा
कभी मंत्र पढ़ता कभी सांप का मनुहार करता.वंशी लगातार रोए जा रहे थे ‘अम्मा .तुम भी मुझे छोड़कर चली जाओगी.’
सांप ने एक बार उस स्थान पर मुंह लगाया जहां
डंसा था लेकिन अगले ही पल मुड़ा और वापस चला गया.बंजारे ने आंखे खोल दी ‘देर हो गयी.तुम्हारी अम्मा जा चुकी है वंशी.
वंशी के चित्कार से पूरा गांव हिल उठा.सबकी
आंखे नम थी.भगवान ऐसी विपत्ति किसी को न दे.
अम्मा के क्रिया कर्म के बाद एक शाम वंशी
सांप झाड़ने वाले बंजारे के सामने बैठे थे ‘मैं सांप का विष उतारने
वाला मंत्र सीखना चाहता हूँ.’
बंजारा मुस्कराया ‘क्यों.इसमें खतरा बहुत है.’
वैसे भी मुझे जीवन से बहुत प्रेम नहीं रह
गया है गुरूजी लेकिन मैं चाहता हूँ कि किसी और की अम्मा अब सांप के जहर का शिकार न
हो.मुझे जीने का एक मकसद भी मिल जाएगा.’वंशी उसके पैरों की तरफ
झुकते चले गये ‘अब आपको गुरू मान लिया है.जब तक हां नहीं
कहेंगे हटूंगा नहीं.
वंशी का जीवन के प्रति उपेक्षा का भाव उनके
मंत्र सीखने में लाभदायक सिद्ध हुआ.खतरनाक से खतरनाक सांप को भी सामने देखकर उनके मन
में जरा भी सिहरन नहीं पैदा होती.गुरू उनके इस निडरता पर मंत्रमुग्ध हो जाते ‘सांप का जहर उतारने में निडरता बहुत जरूरी है.तुम मुझसे भी बड़े
ओझा बनोगे.’
वंशी एक फीकी हंसी हंस देते ‘डरता तो वह है जो जीना चाहता है.’
गूरू जी की मृत्यु के बाद वंशी जब गांव लौटे
तो सांप का विष उतारने में महारत हासिल कर चुके थे.उनके इस हुनर ने गांव वालों को एक
दिलासा दिया.वंशी काका के रहते कोई सांप के डसने से नहीं मर सकता.वंशी ने अब तक उनके
भरोसे को बनाए रखा है.अब तो दूसरे गांवो से भी लोग आने लगे हैं.काका इसी एक काम को
अब भी पूरे लगन से करते हैं.रात विरात दिन दुपहरिया जब भी कोई सांप का काता मरीज आता
है वे चाहे जिस स्थिति में हों तत्काल उसके इलाज में लग जाते हैं. बाकी कोई काम करने
क ीन तो उन्होने कोशिस क ीन ही जरूरत पड़ी.
इधर वे किसी के छूने को लेकर ज्यादे ही संवेदनशील
हो गये हैं.बेचैन हो जाते हैं अगर कोई उन्हे छू ले और वे उसे न छू पाएं तो.कई बार तो
आंखो से आंसू तक बहने लगते हैं.
गांव वाले उनकी इस दशा से दुखी हैं क्योंकि
उनका होना गांव जवार के लिए बहुत जरूरी है. कुछ पढ़े लिखे लोगों का मानना है कि वे किसी
मानसिक अवसाद के चलते ऐसा कर रहे हैं. आजकल इसकी दवा बाजार में उपलब्ध है.वे ठीक हो
सकते हैं.
प्रस्ताव को सुनते ही काका आगबबूला हो गये
‘सालों.पागल तुम तुम्हारा बाप तुम्हारा सारा
खानदान.मैं बिल्कुल ठीक हूं और किसी डॉक्टर के पास नहीं जाऊंगा.’
प्रधान जी और गांव के तमाम बुजुर्गों के
बहुत समझाने पर काका किसी तरह तैयार हुए.शहर के एक नामी चिकित्सक को दिखाया गया.उसकी
दवा से कुछ आराम जैसा लगता है.
तीन महीने बाद डॉक्टर ने मुस्कराते हुए काका
के पीठ पर हाथ रखा ‘अब आप बिल्कुल ठीक हैं.अब आपको किसी दवा
की जरूरत नहीं है.’डॉक्टर अपने केबिन में चला गया.
जीप जैसे ही स्टार्ट हुयी काका चिल्लाए ‘जरा रूकना.डॉक्टर बाबू से एक बात पूछना तो भूल ही गया.’
काका दौड़कर डॉक्टर के पास पहुँचे और उसकी
पीठ पर हाथ रखकर मुस्कराए ‘तुमने ठीक कहा बेटा. अब मैं बिल्कुल ठीक हो
गया हूँ.’और झटके से बाहर निकल गये.
डॉक्टर मुस्कराने लगा.
आज शाम से ही काका बेमन हैं. खाने में भी
मन नहीं लग रहा है. घंटो से करवट बदल रहे हैं लेकिन नींद आंखो में दूर दूर तक नहीं
है.आज पता नहीं क्यों तमाम पुरानी बातें याद आने लगी हैं. अम्मा राप्ती की बाढ़ एक छोटी
सी बच्ची और सोना भी.
प्रधान जी की आवाज पर चौंके काका.इतनी रात
को.कहीं किसी को सांप ने तो नहीं डस लिया.
‘काका. डुमरी के ठाकुर
साहब की पत्नी को नाग ने डंस लिया है. वे लोग बाहर खड़े हैं.’प्रधान जी की आवाज पर काका झटके से बाहर आ गये. ठाकुर साहब इलाके
के बड़े जमींदार है. गाड़ी घोड़ा नौकर चाकर सबकुछ है. काका ने मरीज को गाड़ी से बाहर निकालकर
चौकी पर लिटाने को कहा. ठाकुर साहब बेचैन थ ‘मेरी बीबी को बचा लो वंशी
अब तुम्हारा ही आसरा है.’
‘आप चिन्ता मत कीजिए ठाकुर
साहब. गुरू की रहमत और उपर वाले का आशीर्वाद रहा तो मालकिन बच जाएंगी.’ काका नब्ज देखने के लिए झुके.
नब्ज छूते ही उनके शरीर में एक अजीब सी झनझनाहट
होने लगी. काका आंखे बंद किए देर तक मौन रहे. फिर न जाने क्यों मुस्करा उठे. यह पहली
बार है जब वे किसी मरीज को सामने देखकर मुस्करा रहे हैं वरना मरीज के परिजनों से अधिक
सांप काटे मरीज को देखकर वे दुखी होते रहे हैं. कई बार तो रोते भी देखे गये हैं. शायद
हर मरीज उन्हे माँ की याद दिलाता हो या फिर कुछ और. लेकिन मुस्कराते तो किसी ने उन्हे
नहीं देखा.फिर आज क्या हो गया है काका को. गुरू जब किसी को सांप का जहर उतारने वाला
मंत्र देता है तो यही वादा कराता है कि किसी भी स्थिति में रहोगे अगर सुन लिया कि किसी
को सांप ने काटा है तो जरूर जाना होगा.
काका ने जल्दी से एक लड़के को अपने घर के
भीतर से पीतल की थाली लाने को कहा.गांव के लोग जानते हैं कि अगर किसी को सांप ने काटा
या छुआ है तो थाली उसके पीठ पर चिपक जाएगी.
थाली ठकुराइन के पीठ पर चिपक गयी. मतलब सांप
ने छुआ नहीं बल्कि काट लिया है.काका हाथ में मिट्टी लेकर मंत्र पढ़ते हैं और थाली पर
मिट्टी से मारते हैं.जैसे ही मिट्टी थाली पर पड़ती है ठकुराइन का शरीर लहराने लगता है.गांव
के लोग काका को देखते देखते पूरी प्रक्रिया को समझ चुके हैं. यह ‘लहर’ है.जितनी अधिक लहर हो मतलब सांप उतना ही
जहरीला.लेकिन आज सबकुछ सामान्य नहीं लग रहा है.जितनी ‘लहर’ ठकुराइन के शरीर मे उठ रही है उससे अधिक
काका लहरा रहे हैं. लेकिन काका आज तक कभी हारे नहीं हैं. जहर जैसे उनका आदेश मानता हो.देर
भले लग जाए लेकिन उसे शरीर से उतरना ही होगा.
इधर पढ़े लिखे लोगों की जमात बढ़ने से कुछ
नयी व्याख्याएं भी सामने आयी हैं. कुछ लोग कहते हैं कि पीतल में ऐसा गुण होता है कि
वह जहर को खींच लेता है. कुछ ऐसे भी लोग हैं जो यह मानते है कि वास्तव में आदमी साँप
के जहर से नहीं बल्कि डर से मर जाता है इसलिए जब काका मंत्र पढ़ते हैं तो उनका भय समाप्त
हो जाता है और वे बच जाते हैं.
काका मिट्टी पर फूँक मारते मारते खुद बेदम
होने लगे हैं.लहर बढ़ती ही जा रही है लेकिन ठकुराइन की हालत में सुधार नहीं आ रहा है.क्या
आज वह हो जाएगा जो वर्षों से नहीं हुआ.काका की बादशाहत खतम हो जाएगी.आचानक ठकुराइन्ा
का शरीर बहुत जोर से लहराया.यह अब तक की सबसे तेज लहर थी.इतनी तेज कि ठकुराइन को पकड़ने
वाले लोग उन्हे संभाल नहीं सके और उनके सिर से साड़ी पूरी तरह सरक गयी. चांदनी रात जैसे
जवान हो गयी हो.इस उमर में और सांप के विष के बावजूद ऐसा लावण्य.काका ने ध्यान से मरीज
के चेहरे की ओर देखा.आंखे सिकुड़ गयीं.लोग दम साधे हुए थे. काका दौड़ कर घर के भीतर चले
गये. लोग सन्न रह गये. आज तक काका किसी मरीज को छोड़कर नहीं गये. ठाकुर साहब दहाड़ मारने
लगे.गांव के लोग कुछ समझ पाते इसके पहले काका को देखकर जान में जान आई. लेकिन यह क्या.काका
बरषों पुरानी मुड़ी तुड़ी जिंस और टी शर्ट पहने हैं. नौजवान हंसी रोकने की लगातार कोशिस
कर रहे हैं. काका ने ठाकुर साहब के कंधे पर हौले से हाथ रखा ‘चिन्ता मत कीजिए ठाकुर साहब. यमराज को भी आज हारना ही पड़ेगा.’
काका ने जेब से एक ब्लेड निकाला और कांपते
हाथों से उस जगह हल्का चीरा लगाया जहां सांप ने डंसा था. फिर मुंह लगाकर खुन चूसने लगे.खुन
का घूँट मुँह में भरकर थूकते फिर खींचते. लोग चिन्तित हो उठे हैं. यह तरीका तो बहुत खतरनाक
है. इसमें काका की जान भी जा सकती है. काका आज तक केवल मंत्र से ही जहर उतारते रहे हैं.यह
तो जान की बाजी लगाने जैसा है. कुछ लोग उन्हे रोकना भी चाह रहे हैं.लेकिन वे जानते हैं
कि काका जिद के कितने पक्के हैं. वे नहीं रूकेंगे.
ठकुराइन का शरीर अब सहज होने लगा है. वे अब
सामान्य हैं.उन्होने आंखे खोलने की कोशिस शुरू कर दी है. ठाकुर साहब की जान में जान
आने लगी है. आचानक काका ने आलाप लिया
छंद छंद लय ताल से पुछलीं पुछलीं सुर के
मन से.
धरती अउर आकास से पूछलीं पूछलीं नील गगन
से.
हिया हिया में पइठ के पूछली पूछली मस्त पवन
से कउने सुगना पर लुभइलू अहि रे बालम चिरई . इधर ठकुराइन ने आंखे खोलीं उधर काका की
गरदन लुढ़क गयी.लोग कुछ समझ नहीं पा रहे थे. वंशी काका बुलाने पर भी नहीं बोल रहे.शरीर
बेजान हो उठा है.यह क्या हो गया उन्हे. इतने वर्षों से सांप का विष उतार रहे हैं कभी
कोई परेशानी नहीं हुयी फिर आज क्या हो गया.
ठाकुर साहब ने वंशी की नब्ज टटोलनी शुरू
की.जीवन का कोई लक्षण नहीं.उन्हे कहना पड़ा ‘वंशी अब इस संसार से जा
चुके हैं.’
सभी सन्न हो गये.सबकी आंखो में आंसू थे.
दो और भी आंखे थी जिनमें पानी छलछला रहा था लेकिन उन पर किसी की नजर नहीं पड़ी थी.
राकेश दुबे
mob. 8958344456
mob. 8958344456
भोलानाथ गहमरी
कवने खोतवा में लुकइलू आहि रे बालम चिरई.
आहि रे बालम चिरई, आहि रे बालम चिरई.
बन-बन ढुँढली दर-दर ढुँढली ढुँढली नदी के
तीरे
सांझ के ढुँढली रात के ढुँढली ढुँढली होत
फजीरे
जन में ढुँढली मन में ढुँढली ढुँढली बीच
बजारे
हिया-हिया में पइसि के ढुँढली ढुँढली विरह
के मारे
कवने अँतरे में समइलू आहि रे बालम चिरई
कवने खोतवा में लुकइलू आहि रे बालम चिरई.
गीत के हम हर कड़ी से पुछलीं पुछलीं राग
मिलन से
छंद-छंद लय ताल से पुछलीं पुछलीं सुर के
मन से
किरन-किरन से जाके पुछलीं पुछलीं नल गगन
से
धरती और पाताल से पुछलीं पुछलीं मस्त पवन
से
कवने सुगना पर लोभइलू आहि रे बालम चिरई
कवने खोतवा में लुकइलू आहि रे बालम चिरई.
मंदिर से मस्जिद तक देखलीं, गिरिजा से गुरुद्वारा
गीता और कुरान में देखलीं, देखलीं तीरथ सारा
पंडित से मुल्ल तक देखलीं, देखली घरे कसाई
सगरी उमिरिया छछलत जियरा, कैसे तोहके पाईं
कवने बतिया पर कोहँइलू, आहि रे बालम चिरई
कवने खोतवा में लुकइलू आहि रे बालम चिरई.
बहुत बढ़िया लगी यह कहानी।
जवाब देंहटाएं‘तुहरे झुलनी के कोर कटारी जान हति डारी.
जवाब देंहटाएंकि झुलनी तू नइहर पवलू कि पवलू ससुरारी.
कि झुलनी कोई यार गढ़ावत कि कइलू सोनरवा से यारी जान हति डारी.’’
हृदय को छूते चौताल से शुरू प्रेम से मण्डित कहानी।
बेहतरीन कहानी। प्रेम की सच्चाई को पुनरस्थापित करती कहानी। आजकल ऐसी कहानी, जो सचमुच में कहानी का आनंद और विषाद देने में सक्षम हों, कम ही दिखती हैं। लेखक को बधाई। समालोचन को भी बहुत बहुत बधाई, इसे पढ़वाने के लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद इतनी अच्छी कहानी पढ़ने को मिली,ऐसा लगा रेणु जी को पढ़ रही हूँ । धन्यवाद समालोचन को ।
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