न्याय पवित्र शब्द है, उससे भी मानवीय है न्याय पाने की इच्छा. न्याय पाने की
प्रक्रिया से ही कहते हैं ‘राजतन्त्र’ और फिर ‘धर्मतंत्र’ का विकास हुआ. यह भी एक
कडवी सच्चाई है कि आज न्याय की प्रक्रिया इतनी त्रासद है कि बिना धनबल के आप इसे ‘हासिल’
नहीं कर सकते. हम न्याय के सतत विलम्ब में रहने को अभिशप्त हैं.
अपनी हर दूसरी फ़िल्म में हम इस विद्रूपता को देखते हैं पर पता नहीं क्यों
हिंदी कहानियों में यह नदारत है. राकेश बिहारी आलोचक तो हैं ही पर वह कथाकार पहले
हैं. और जब वास्तविकता की जमीन से कहानियाँ उठती हैं तब वे बड़ी मारक होती हैं और
उनकी निहित सच्चाई विचलित कर देती है. कोयला खनन लिमिटेड से चौरासी लाख सतहत्तर हजार
दो सौ छप्पन रुपये का गबन होता है पर जब इसके खिलाफ लोग खड़े होते हैं तब क्या होता
है ? कहानी पढिये और बताइए कि कैसी लगी ?
कहानी
अगली तारीख
राकेश बिहारी
इस तहरीर के जरिये तुम्हें इत्तेला दी जाती है कि अगले दिसंबर (2013) महीने की 16 तारीख को दिन
के ग्यारह बजे नालिश मजकूर के बाबद तुम्हें कुछ मालूम हो उसके बाबद गवाही देने के
लिए इस अदालत के सामने हाजिर होओ और सिवाय
अदालत के इजाजत के वहां से चले न जाओ, और तुम्हें इस तहरीर के जरिये ताकीद की जाती है
कि अगर तुम बिना किसी योग्य कारण के वक्त और जगह मजकूर पर हाजिर होने में गफलत
करोगे या हाजिर होने से इंकार करोगे तो तुम्हें हाजिर होने पर मजबूर करने के लिए
वारंट जारी किया जाएगा.
क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1973 दफा 61 के तहत गवाही के लिए जारी समन जिस पर सील के
साथ नीली स्याही में अपर सत्र न्यायाधीश की दस्तखत बनी हुई थी, के मजमून ने
अनायास ही उन्हें सकते में ला दिया था. उनके गोरे चेहरे की रंगत पहले साँवली हुई
थी और फिर स्याह- जैसे किसी ने झक सफेद कागज पर अचानक से चेलपार्क स्याही की दावात उड़ेल दी हो. समन की
यह भाषा उनके लिए निहायत ही अनापेक्षित थी और वे खुद को अपमानित महसूस कर रहे थे.
अभी यह तय करना उनके लिए मुश्किल था कि वे एक सरकारी संस्थान में हुई वित्तीय
अनियमितताओं के केस में सरकारी गवाह हैं या फिर एक मुजरिम! उनके भीतर एक प्रश्न
अपना चेहरा उठा रहा था- क्या ‘माननीय न्यायालय’ सम्मानजनक भाषा में बात नहीं कर सकती? उन्होंने सोचा
इसे समन नहीं अपमान पत्र कहा जाना चाहिए.
समन को दुबारा पढ़ते हुये उन्हें ठीक तीन वर्ष सात महीने और सत्ताईस दिन पहले
की वह मनहूस शाम याद हो आई जब इस मामले में उसने एफ. आई. आर. लिखवाई थी. वे और
उनके सभी सहकर्मी तो इस केस की जांच सिर्फ विभागीय विजिलेन्स से ही करवाना चाहते
थे. लेकिन कंपनी के तत्कालीन सी एफ ओ
मिस्टर गर्ग को यह मंजूर नहीं था. उन्होंने कुलकर्णी को सबक सिखाकर एक उदाहरण रखने
का अटल निर्णय सुना दिया था और उन्हें न चाहते हुये भी जीवन में पहली बार पुलिस
स्टेशन के अहाते में अपने कदम रखने पड़े थे. उसके बाद इनवेस्टिगेशन, विवेचना, कथन, चालान, हस्ताक्षर मिलान
और न जाने किन-किन औपचारिकताओं के चक्कर में जैसे उनकी ज़िंदगी ही नर्क हो गई थी.
जिस दिन पुलिस ने फाइनल चालान पेश किया था उन्होंने कसम खाई थी कि अब जीवन में कुछ
भी हो जाये कभी किसी के खिलाफ वे एफ. आई. आर. दर्ज नहीं करवाएंगे. यह दुनिया का
सबसे बड़ा जुर्म है. मिस्टर गर्ग नौकरी छोडकर किसी अमरीकन मल्टीनेशनल के सी. ई. ओ.
बन चुके हैं और वे आज भी इस जिल्लत को झेलने के लिए अभिशप्त है.
उनकी नज़र सामने की दीवार पर गई जहां एक दबंग छिपकली किसी कीड़े को दबोच रही थी.
उनके भीतर कुछ लिसलिसा-सा चिलका. उन्होंने मन ही मन मिस्टर गर्ग को एक भद्दी सी
गाली दी और अपादमस्तक एक अनाम भय से भर गए. उन्होंने सोचा इसे समन नहीं धमकी पत्र
कहा जाना चाहिए. वे समन को डस्टबिन में डाल देना चाहते थे लेकिन बहुत ही एहतियात
से उन्होंने उसे अपनी पर्सनल फाईल में लगाकर अपनी टेबल की सबसे निचली दराज में रख
दिया जिसकी चाभी उनके पी ए के पास भी नहीं होती थी.
इस प्रकार आरोपी के. के. कुलकर्णी ने छल कपट और कूट रचना करके कोयला खनन
लिमिटेड की विभिन्न मदों की रकम चौरासी लाख सतहत्तर हजार दो सौ छप्पन रुपये का गबन
किया. जिन व्यक्तियों के बैंक खातों में गबन की रकम गई है उन खातों की विधिवत जांच
होनी है तथा जिन अधिकारियों के द्वारा जांच कर गबन की रकम का खुलासा किया गया है
उनके भी कथन लेने हैं. मामले में जब्त किए
गए दस्तावेजों को हस्ताक्षर मिलान के लिए फोरेंसिक लैब भी भेजा जाना है. यह भी
संभव है कि इस रकम के गबन, छल कपट और कूट रचना में और भी कर्मचारियों /
अधिकारियों की संलिप्तता हो, इन बातों का खुलासा करने के लिए आगे विवेचना
करने की आवश्यकता है. चूंकि मामले का मुख्य आरोपी गिरफ्तार हो चुका है और न्यायिक
अभिरक्षा में जेल में है ऐसे में कानूनी प्रावधानों के तहत आरोपी के विरुद्ध 90 दिवस के अंदर
प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जा रहा है जिसमें आरोपी
के विरुद्ध जुर्म प्रमाणित पाया गया. आगे
विवेचना जारी है.
विवेचना अधिकारी सह अनुसंधानकर्ता सहायक उप निरीक्षक राम पदार्थ शर्मा ने
अन्तरिम चालान के आखिरी हिस्से को ज़ोर से पढ कर सुनाने के बाद कहा था - “ यह मत समझिए कि
चालान हो गया तो आप सब मुक्त हो गए. एस पी साहब तो सारे अधिकारियों को आरोपी बनाना
चाहते थे लेकिन मैंने उन्हें समझा-बुझा कर शांत किया हुआ है. आप एक शरीफ इंसान हैं
इसलिए मैं आपकी इज्जत करता हूँ. वरना बस दो लाइन लिखने की देर है आप भी इस केस में
फंस जाएँगे. हम आपके लिए इतना बड़ा काम कर रहे हैं और आप मेरे दिल्ली जाने के लिए
एक एयर टिकट की व्यवस्था भी नहीं कर सकते?”
“अरे आप तो खामखा
नाराज़ हो रहे हैं शर्मा जी. हमे मालूम है यदि आप न होते तो पता नहीं इतने बड़े केस
का इनवेस्टिगेशन कितना मुश्किल होता लेकिन यह हमारे हाथ में नहीं है न! मुझे भी जी
एम से अप्रूवल के लिए बात करनी होगी.“
राम पदार्थ शर्मा ने उन्हें बीच में ही टोका था – “अरे यह तो मैं
आपको करने के लिए कह रहा हूँ. कोई आपकी कंपनी से नहीं मांग रहा. कानूनन तो मैं
आपकी कंपनी के खर्चे पर जा भी नहीं सकता. जांच के लिए दिल्ली तो मुझे सरकार भेज
रही है न!”
“तब तो यह और
मुश्किल है, शर्मा जी!”
“आपके जैसे
अधिकारी के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं, इतने सारे ठेकेदार हैं किसी को कहने भर की देरी
है...”
“यदि हम यही सब
कर रहे होते तो इस केस को लेकर आपतक नहीं आते शर्मा जी ...”
“फिर ठीक है, आप रहिए संत
बने... अब अनुसंधान में कुछ प्रतिकूल निकला तो फिर मुझे नहीं कहिएगा.”
चालान और अन्य दस्तावेजों की कॉपी एक लाल कपड़े में बांधकर राम पदार्थ शर्मा
चलने को उद्यत ही हुये थे कि मिस्टर तनेजा ने घंटी बजाकर चपरासी को बुलाया. चपरासी
समझदार था, उसने बिना कहे ही राम पदार्थ शर्मा के हाथ से लाल कपड़े में बंधा वह गट्ठर ले
लिया. मिस्टर तनेजा ने डिप्टी मैनेजर समरेन्द्र को आँखों से इशारा किया था – “जाओ, बाहर तक छोड आओ.”
बाहर रामपदार्थ शर्मा की सफ़ेद वैगन आर खड़ी थी. वैसे गाड़ी का मोडेल तो पाँच साल
पुराना था लेकिन उसकी चमचमाहट देख कर लगता था जैसे अभी-अभी शो रूम से सड़क पर आई हो.
पिछले चार महीने से समरेन्द्र राम पदार्थ शर्मा के साथ इस केस में काम कर रहा है.
यदि वह न होता तो राम पदार्थ शर्मा जैसे पुलिस कर्मचारी के वश का नहीं था यह
हाइटेक केस. ई आर पी सिस्टम की तकनीकी बारीकियाँ, कुलकर्णी द्वारा की गई उल्टी-सीधी अकाउंटिंग
इंट्रीज़, कंप्यूटर में रखे जाने वाले रिकार्ड्स... समरेन्द्र के सहयोग ने राम पदार्थ
शर्मा का जीवन आसान कर दिया था. समरेन्द्र का होना राम पदार्थ शर्मा और कोयला खनन
कंपनी दोनों के लिए फायदेमंद था. राम पदार्थ शर्मा के काम जहां बैठे-बिठाये हो रहे
थे वहीं समरेन्द्र के रहने और सबकुछ कंपनी के कंप्यूटर पर ही होने से मिस्टर तनेजा
को भी पुलिस की हर एक गतिविधि की जानकारी मिलती रहती थी. किस गवाह ने क्या कहा, पुलिस ने चालान
में क्या लिखा, किसे अभियुक्त बनाया किसे गवाह... जैसे तथ्यों की जानकारी के लिए उन्हें
अतिरिक्त श्रम नहीं करना होता था. जाहिर है इस दौरान समरेन्द्र और राम पदार्थ
शर्मा में एक अनौपचारिक संबंध-सा बन गया था. यह अनौपचारिकता उन दोनों की जरूरत भी थी और मजबूरी भी.
समरेन्द्र ने उसी अनौपचारिकता की छूट ली थी – “ शर्मा जी! कभी इस गाड़ी को बाहर भी निकालते हैं
या...”
“समर बाबू! हमे
सरकार इतनी तनख्वाह ही कहाँ देती है कि... और फिर यह पानी से तो चलती नहीं. तनेजा
साहब को कहिएगा कि पेट्रौल का खर्च तो दिलवा ही दें. अब हम कोई अपने काम के लिए तो
यहां आते नहीं हैं. नहीं तो हमारा क्या है... सभी अधिकारियों को पूछताछ के लिए कल
से थाने ही बुला लिया करेंगे.”
“आपकी बात पहुंचा
दूँगा शर्मा जी. आप निश्चिंत रहें.” समरेन्द्र ने बात को हल्के में टालना चाहा था.
“आप चाह लें तो
सबकुछ हो सकता है सर! वो तो आपका व्यवहार है कि हम इन्हें कुछ नहीं कह रहे. वरना
इन सब सालों की मां चो.... देता मैं. किसी से एक-एक लाख रुपये से कम नहीं लेता नाम
हटाने के... लेकिन आपने ही हमारी कलम रोक रखी है.”
“आपकी कलम की
ताकत कौन नहीं जानता सर! सब आपकी इज्जत करते हैं. लेकिन आप भी तो जानते ही हैं कि
कोई दोषी नहीं. और जो दोषी है वह तो पहले से ही आपकी सेवा में हाजिर है. जो कुछ
लेना है लीजिये न उससे...” समरेन्द्र ने बेमन से मुस्कुराते हुये राम पदार्थ शर्मा को विदा किया था.
अन्तरिम चालान के आखिरी हिस्से ने अपना असर दिखाया. समरेन्द्र को कुलकर्णी केस
में पुलिस के साथ को-आर्डिनेट करने के लिए ऑफिस दौरे पर दिल्ली भेजा जाना तय हुआ.
राम पदार्थ शर्मा की हवाई यात्रा आदि पर होनेवाले खर्चे को गेस्ट इंटरटेनमेंट और
गिफ्ट मद में निर्धारित बजट से एडजस्ट किये जाने की मौखिक सहमति यूनिट हेड ने दे
दी थी.
समरेन्द्र ने बोर्डिंग पास कलेक्ट करते हुये विशेष आग्रह कर के राम पदार्थ
शर्मा के लिए खिड़की वाली सीट ले ली थी. धूप के महीन बुरादे खिड़की की काँच से छन कर
सीधे राम पदार्थ शर्मा के चेहरे पर गिर रहे थे. नीले जल के सरोवर का-सा आभास देते
आकाश में सफ़ेद बतखों के झुंड की तरह तैरते बादलों की चमक राम पदार्थ शर्मा की
आँखों में परावर्तित हो रही थी. रोमांच और कौतूहल की नन्ही-नन्ही तितलियाँ उसके
होठों और पलकों पर रह-रह कर ठहरते हुये उसकी पहली हवाई यात्रा की चुगली कर रही थीं.
हमेशा ही दबंगई, क्रूरता और मक्कारी के स्याह-स्लेटी रंगों से पुते रहने वाले उसके चेहरे पर उस
दिन समरेन्द्र ने पहली बार बच्चों की-सी मासूमियत देखी थी. हवा में तैरते राम
पदार्थ शर्मा का मन अचानक से धुनी हुई रुई की तरह हल्का हो आया था और उसने सहज ही
समरेन्द्र की हथेलियाँ थाम ली थी – “समर बाबू! आपने मेरा गदहिया जनम छुड़ा दिया. माँ
कसम! इस केस में आप पर कोई आंच नहीं आने दूंगा.“ समरेन्द्र चाह कर भी भरोसे और आश्वस्ति की उस
ऊष्मा को महसूस करने में असमर्थ था. निर्दोष होने के बावजूद इसी राम पदार्थ शर्मा
के अबतक के व्यवहार से उत्पन्न भय का बर्फ जैसे स्थायी रूप से उसकी नसों में जम
चुका था. राम पदार्थ शर्मा की सख्त हथेलियों के स्पर्श ने एफ. आई. आर. लिखवाने के
पाँच महीने के बाद मिस्टर तनेजा के नाम आई उसकी चिट्ठी की याद को फिर से हरा कर
दिया था...
आपके द्वारा अभी तक जो भी जानकारी दी गई है वह घुमाफिरा कर दी गई है व स्पष्ट
नहीं है तथा चाहे गए मूल दस्तावेज़ जानबूझकर
नहीं दिये गए हैं. यदि इस पत्र को
पाने के तीन दिनों के भीतर चाहे गए प्रश्नों के सही उत्तर नहीं दिये गए जिनकी मामले में आरोप सिद्ध करने के लिए बतौर साक्ष्य
जरूरत है तो यह मान लिया जावेगा की आप पुलिस/न्यायालय हेतु चाहे गए मूल दस्तावेज़
जानबूझकर नहीं देना चाहते और आरोपियों को बचाने के लिए आप पूरी चतुराई से साक्ष्य
को छुपा रहे हैं और इस मामले में व्यक्तिगत रूप से इन सभी कृत्यों के लिए आपको
दोषी मानकर आपके विरुद्ध तत्काल कानूनी कार्यवाही की जावेगी. इस पत्र को उत्तर देने के लिए अंतिम अवसर माना
जावे.
पत्र के निचले हिस्से में दाईं ओर लगी थाना प्रभारी की सील के बीच वास्ते थाना
प्रभारी के साथ अंकित राम पदार्थ शर्मा का छोटा-सा दस्तखत मिस्टर तनेजा के चेहरे
की बत्ती गुल कर गया था. आँखों के नीचे की कत्थई सुनहरी धारियाँ जो पिछले एनुअल
क्लोजिंग तक उनकी भुवनमोहिनी मुस्कान के साथ मिलकर किसी से कुछ भी करा ले जाने की
ताकत रखती थीं, स्याह धब्बों में तब्दील हो गई थीं. दोस्तों की महफिल में आम बोलचाल में
प्रयुक्त होनेवाली सरलतम गालियों पर भी असहज हो जाने वाले मिस्टर तनेजा ने
मुट्ठीभर धुआं उगलते हुये राम पदार्थ शर्मा के नाम बहन की गाली निकाली थी.
समरेन्द्र हमेशा की तरह सिगरेट के धुएं को बड़ी मुश्किल से बर्दाश्त कर पा रहा था.
अमूमन छोटी-छोटी कश के साथ देर तक गप्पें करने वाले मिस्टर तनेजा ने लंबी-लंबी
कशें खीच कर कुछ ही मिनटों में सिगरेट खत्म कर दी थी और फिर देर तक दोनों मिलकर
थाना प्रभारी के पत्र का जवाब तैयार करने के लिए जाने कितने तरह के वाक्य टाइप और
डीलीट करते रहे थे.
रीजनल ऑफिस से लेकर कारपोरेट ऑफिस तक अपनी चुस्त नोटिंग और लाजवाब भाषा के लिए
प्रख्यात मिस्टर तनेजा एक अदने से पुलिस कर्मचारी को ई. आर. पी. और फाइनान्स की
बारीकियाँ समझानेवाली भाषा लिखने में खुद को असमर्थ पा रहे थे. उन्हें आशंका थी कि
सिस्टम की तकनीकी बारीकियों के बारे में बताई गई बातों को फिर वह कहीं घुमा फिरा
कर दिया गया जवाब न मान बैठे. लॉग इन और पासवर्ड के व्याकरण से अनजान राम पदार्थ
शर्मा इन अनियमितताओं को भी न सिर्फ एक पारंपरिक केस की तरह कुलकर्णी और अन्य
अधिकारियों के हस्ताक्षर के सहारे सुलझा लेना चाहता था बल्कि सह-अभियुक्तों की एक
लंबी फेहरिस्त का भय दिखाकर अकूत कमाई का सपना भी देख रहा था. मिस्टर तनेजा ने उसके पत्र को दुबारे-तिबारे
पढ़ा. पत्र की भाषा और दलीलों को देख कर उनका यह विश्वास पक्का हो गया था कि इस
पत्र पर दस्तखत भले राम पदार्थ शर्मा का हो इसका मजमून सिर्फ और सिर्फ कुलकर्णी के
दिमाग से निकला है. उन्हें याद आया पिछले ही हफ्ते वह कुलकर्णी का हस्ताक्षर लेने
जेल गया था.
मिस्टर तनेजा के भीतर कुलकर्णी की वाचाल आँखें कौंध गई थीं. उनके कानों में
माँ-बहनों की अनगिनत गालियों की प्रतिध्वानियों से युक्त राम पदार्थ शर्मा की ऊंची
आवाज़ें गूंजने लगी थीं. वे कुलकर्णी और रामपदार्थ शर्मा के चेहरों को बहुत तेजी से
एक दूसरे में बदलते महसूस कर रहे थे. उनके लिए कुलकर्णी और रामपदार्थ शर्मा में
अंतर करना मुश्किल हो गया था.
ट्यूब लाइट की दूधिया रोशनी में मिस्टर तनेजा बुरी तरह भय से भीगे हुये थे
और दफ्तर के बाहर बिखरी अंधेरे की कतरनें
तेजी से बड़ी होती जा रही थीं.
पुलिस का धमकी भरा पत्र मिलने के बाद लगातार भय से लिपटे होने के बावजूद
मिस्टर तनेजा पूरी जिम्मेवारी के साथ जांच को आखिरी मंजिल तक पहुँचते देखना चाहते
थे. उन्होंने राम पदार्थ शर्मा के 5 पन्नों वाले पत्र में मांगी गई सभी जानकारियों
का बिन्दुवार जवाब तैयार करवाया. दिन-रात एक कर रिकार्ड रूम से जरूरी दस्तावेज और
उपलब्ध पेमेंट वाउचर की प्रतियाँ निकलवाईं और उस पत्र के प्राप्त होने के ठीक
तीसरे दिन शाम को चार बजे पूरे तीन सौ बहत्तर पन्नों का जवाब लेकर समरेन्द्र के
साथ खुद थाने गए.
उस दिन राम पदार्थ शर्मा की आवाज़ बदली हुई थी. उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं
रहा जब उसने कहा – “अरे तनेजा साहब, यहाँ आने का
कष्ट आपने क्यों किया, एक फोन कर दिये होते मैं खुद ही आ जाता. खैर, जब आ ही गए हैं
तो बैठिए, हम आपकी तरह लीची का जूस तो नहीं पीला सकते, पर हमारी सरकारी
चाय पीजिए. साला बकरी के मूत की तरह पनछुछुर बनाता है. आइये आपको अपने कार्यालय की
दुर्गति भी दिखाएँ.... यहाँ कागज-कार्बन तक उपलब्ध नहीं है लेकिन अनुसंधान सारे
समय पर होने चाहिए. एक बार हमारी तकलीफ को करीब से देख लीजिये फिर आप कभी नहीं
कहेंगे कि हम पुलिस वाले भ्रष्टाचार क्यों करते हैं.“
बकरी के मूत वाली बात ने मिस्टर तनेजा का जायका बिगाड़ दिया था. वे जल्दी से
जल्दी अपना जवाब जमा करा कर लौट जाना चाहते थे. पर न चाहते हुये भी किसी तरह
उन्होंने राम पदार्थ शर्मा की चाय हलक से नीचे उतारी और जबरन मुस्कुराने की कोशिश
करते हुये कहा - “सर आपने बहुत अच्छी चाय पिलाई. आपके कठिन सवालों का जवाब तैयार करने में तो
पिछले तीन दिन हमें चाय पीने की सुध तक नहीं रही. बस एक बार आप इसे रीसिव कर लें
फिर हम चैन की सांस लें.“
राम पदार्थ शर्मा के चेहरे पर एक अर्थगर्भी मुस्कुराहट फैल गई... “अरे सर इतनी
जल्दी आप चैन की सांस लेना चाहते हैं! यह न्यायिक जांच प्रक्रिया है कोई गुड्डे
गुड़िया का खेल नहीं. अभी तो जाने कितना कुछ बचा पड़ा है. और आप मेरे प्रश्नों को इतना कठिन कह रहे हैं तो फिर
जब कोर्ट में आपको कुलकर्णी सहित सारे सह अभियुक्तों के वकील चारों तरफ से नोचेंगे
तब क्या कहिएगा... लेकिन डरने की कोई बात नही हैं. हम आपका बयान इतनी अच्छी तरह से
लिखवाएँगे कि आपको कोई दिक्कत नहीं होगी...” राम पदार्थ शर्मा मिस्टर तनेजा को एक भी वाक्य बोलने की गुंजाइश दिये बिना लगातार बोले
जा रहा था... “और इन दस्तावेजों को भी लेते जाइए, कल हम खुद आ के ले लेंगे.
कुछ कागजी कारवाई भी करनी है, वह भी हो जाएगी.“
राम पदार्थ शर्मा के कहे अनुसार अगले दिन ठीक ग्यारह बजे सुबह कोयला खनन
लिमिटेड की ए. सी. बोलेरो जीप उसे लेने उसके क्वार्टर तक पहुँच गई थी. ठीक बारह
बजे राम पदार्थ शर्मा लाल कपड़े में बंधे उसी गट्ठर के साथ मिस्टर तनेजा के दफ्तर
में अपनी चिरपरिचित ऊंची आवाज़ और माँ-बहन की गालियों से विभूषित भाषा में अपनी
कामयाबियों के अनगिनत किस्से सुनाता हुआ मौजूद था. मिस्टर तनेजा और उनके अधीनस्थ
दूसरे अधिकारी उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुये उसकी झूठी प्रशंसा में ही-ही खी-खी
किए जा रहे थे. समरेन्द्र राम पदार्थ शर्मा के कहे अनुसार ‘प्रॉपर्टी सीजर
मेमो - फार्म नंबर चार’ में आवश्यक सूचनाएँ टाइप कर रहा था-
भारतीय दंड विधान की धाराएँ 409, 420, 467, 468, 471 के तहत कोयला खनन लिमिटेड
स्थित उप महाप्रबन्धक वित्त - घनश्याम
तनेजा के कार्यालय से निम्नांकित संपत्ति / दस्तावेज़ विधिवत साक्षियों के समक्ष
जप्त की गई तथा इस मेमो की एक प्रति उस व्यक्ति को दी गई जिससे संपत्ति / दस्तावेज़
जब्त की गई है. ये सभी दस्तावेज़ पैक एवं सील किए गए तथा उस पर निम्नलिखित
साक्षियों के हस्ताक्षर लिए गए.
‘अनुसंधानकर्ता
पुलिस अधिकारी के हस्ताक्षर’ की जगह पर राम पदार्थ शर्मा ने फिर से अपना वही
छोटा-सा हस्ताक्षर बनाया था जिसे देख मिस्टर तनेजा भय से भीग जाते हैं. ‘जिससे संपत्ति
जप्त हुई’ के सामने मिस्टर तनेजा ने अपना हस्ताक्षर बनाने के पहले बहुत बारीक अक्षर में
अपने इष्ट देव का नाम लिखा था. हस्ताक्षर के आधार पर सह-अभियुक्त तय करने की
पुलिसिया तकनीक के बाद वे जब भी दस्तखत करते हैं अपने इष्ट देव को याद कर उन्हें
भी अपने दस्तखत में शामिल करना कभी नहीं भूलते हैं. दो साक्षियों में एक तो खुद
समरेन्द्र ही था दूसरा साक्षी बनने के लिए मिस्टर तनेजा ने वरिष्ठ प्रबन्धक मिस्टर
मिश्रा को फोन करके बुलाया था. पुलिस द्वारा मांगे जाने पर बिना किसी हील हुज्जत
के सहयोगी रूख अख़्तियार करते हुए खुद से जमा किए गए दस्तावेजों को पुलिस द्वारा
जप्त किया गया बताना मिस्टर तनेजा, मिस्टर मिश्रा और समरेन्द्र को समान रूप से खल
रहा था. मिस्टर तनेजा राम पदार्थ शर्मा से कहना चाहते थे कि इसे जप्त किया कहने की
बजाय प्राप्त किया कहा जाना चाहिए. लेकिन उनकी हिम्मत नहीं हुई. कुल चार दस्तखतों
से सुसज्जित उस कागज के शीर्ष पर अंकित ‘संपत्ति जप्ती-पत्रक / प्रॉपर्टी सीजर मेमो’ लगातार उनकी
नसों में किसी शूल की तरह उतर रहा था.
...विमान के दिल्ली
पहुँचने की उद्घोषणा के साथ ही समरेन्द्र की तंद्रा टूटी. दिल्ली हवाई अड्डे पर
उतरते हुये जब विमान परिचारिका ने मुस्कुराकर हाथ जोड़ते हुये राम पदार्थ शर्मा को
धन्यवाद कहा उसकी आँखें छलछला आई थी. लगेज का इंतज़ार करते हुये राम पदार्थ शर्मा
ने यह बात उसे खुद बताई थी. बिलकुल बच्चों की तरह किलकते हुये उसने कहा था – “पुष्पक विमान की
कहानी कोई झूठ थोड़े ही है. वह तो इस एरोप्लेन से भी खूबसूरत होता होगा, फूलों से बना… खुशबू से
महमहाता... और उसमें तो एयर होस्टेस की जगह स्वर्ग की अप्सराएँ होती होंगी न
सवारियों के स्वागत के लिए...“ दिन-रात आग उगलने वाली जुबान से संपूर्णत: सात्विक भाषा में पुष्पक विमान और
अप्सराओं की बातें सुनकर समरेन्द्र हतप्रभ था. उसे दो-चार घंटे झेलना भी कितना
मुश्किल होता है, इसलिए चार दिन लंबे साथ के नाम से ही वह डरा हुआ था. उसने मन ही मन प्रार्थना
की, हे हनुमान जी! अगले चार दिन राम पदार्थ शर्मा की जुबान यूं ही मीठी रहे, देशी घी के सवा
किलो लड्डू चढ़ाऊंगा...
दिल्ली से लौटने के बाद लंबे समय तक राम पदार्थ शर्मा का फोन नहीं आया. शायद
वह अब भी गगन-विहार के जादू की गिरफ्त में था. राम पदार्थ शर्मा के न आने से जहां
कोयला खनन लिमिटेड में ऊपर से शांति का माहौल था वहीं भीतर ही भीतर सब फाइनल
चार्जशीट नहीं पेश होने के कारण तनाव में थे. पता नहीं राम पदार्थ शर्मा किसे
सहअभियुक्त बना दे की आशंका ने सब का जीना मुहाल कर रखा था. इसी बीच एक दिन राम
पदार्थ शर्मा ने समरेन्द्र को फोन किया – “एस. पी. साहब ने कुलकर्णी केस की फाइल मंगाई थी.
वे चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दिया जाये. कल मैं
छुट्टी पर हूँ. परसों गाड़ी भेज दीजिएगा. और हाँ, उन्होंने सभी
अधिकारियों को सह-अभियुक्त बनाने को कहा है. आप मेरे छोटे भाई हैं आपको तो मैं
किसी तरह बचा लूँगा लेकिन किसी और के लिए आप मुझे कुछ मत कहिएगा. मेरी कलम एस. पी.
साहब के आदेश के अनुकूल ही चलेगी. तनेजा साहब को कहिए वे एस. पी. साहेब से बात कर
लें. वे ही कुछ कर सकते हैं.“
राम पदार्थ शर्मा ने भले ही समरेन्द्र को आश्वस्त किया हो लेकिन वह एक बार फिर
से नए सिरे से बेचैन हो गया था. उसने सारी बातें मिस्टर तनेजा को बताई. मिस्टर
तनेजा सब कुछ छोड़ कर सीधे जी एम से मिलने चले गए थे.
दूसरे दिन मिस्टर तनेजा ने जो बताया वह समरेन्द्र के लिए किसी आश्चर्य से कम
नहीं था. सी. एस. आर. (नैगम सामाजिक दायित्व) के तहत कंपनी को एक पुलिस बैरक बनाना
था. एस. पी. चाहता था कि उसका ठेका उसके परिचित ठेकेदार को दिया जाये. दबाव तो
बहुत दिनों से था लेकिन उस ठेकेदार के एल टू होने के कारण वह फाइल लंबे समय से
लंबित पड़ी थी. एस. पी. ने कुलकर्णी केस में अन्य अधिकारियों को सह-अभियुक्त बनाने
की बात उसी के लिए दबाव बनाने को कही थी. पुलिस बैरक निर्माण का ठेका उसके मन
मुताबिक दिया जाय अन्यथा वह फाइनेंस डिपार्टमेन्ट के सभी अधिकारियों को नेगलिजेंस
ऑफ ड्यूटी के आधार पर सह-अभियुक्त बना देगा. उसने इसके लिए आज भर का समय दिया था. शुरुआती
ना-नुकुर के बाद अधिकारी संघ के दबाव में जी. एम. ने टेंडर कमिटी की आपात बैठक
बुलाई. इंडेंटिंग डिपार्टमेंट ने एल वन पार्टी को टेकनिकली अनफ़िट करार दिया और वह
ठेका अब एस. पी. के चहेते ठेकेदार को अवार्ड हो चुका है. टेंडर कमिटी के फाइनेंस
मेम्बर के छुट्टी पर होने के कारण उस फ़ाइल पर मिस्टर तनेजा ने ही साइन किया था.
समरेन्द्र ने पूछना चाहा कि क्या उन्होने अपने दस्तखत के साथ उस फाइल पर भी अपने
इष्ट देव का नाम लिखा था, लेकिन मिस्टर तनेजा की आँखों में तैरते भय और
मिथ्या संतोष की लकीरों को देख उसकी हिम्मत नहीं हुई. उसने गौर किया अजीब-सी सूनी
आँखों से मिस्टर तनेजा कभी अपनी टेबल पर पड़े पुलिस बैरक वाली फाइल को देख रहे थे
तो कभी अपने चैंबर के कोने में रखे उस आलमीरे की ओर जिसमें कुलकर्णी केस की फाइलें
रखे हुई थीं. तभी मिस्टर तनेजा का पी. ए. अंदर आया – “सर! अभी विजिलेन्स
अवेयरनेस वीक का इनेगुरल सेशन है. आपने याद दिलाने को कहा था.“ मिस्टर तनेजा की नज़रें सामने की दीवार पर टंगी
अपने गुरु और इष्टदेव की तस्वीरों की तरफ गई थीं और वे समरेन्द्र के साथ चुपचाप
कॉन्फ्रेंस हॉल की तरफ चल पड़े थे.
16 दिसंबर 2013. फाइनल
चार्जशीट के बाद आज कुलकर्णी केस की पहली तारीख है. मिस्टर तनेजा, मिस्टर मिश्रा
और समरेन्द्र सहित कारपोरेट कार्यालय के वे सभी अधिकारी गवाही देने के लिए एकत्र
हुये हैं जिनका कथन लेने राम पदार्थ शर्मा दिल्ली गया था. मिस्टर तनेजा ने वकील को
अपना पक्ष स्पष्ट करते हुये कहा है – “हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कुलकर्णी
छूट जाता है या उसे उसके किए की सजा मिलती है. हमें बस इस बात की चिंता है कि
हमारा कोई निर्दोष सहकर्मी इस केस में न फंसे.“
वकील ने कोर्ट में सबकी हाजिरी लगवा दी है – “ आज का सारा दिन तो मिस्टर
तनेजा की गवाही में ही निकल जाएगा. आप लोगों के लिए फिर अगली तारीख लेनी होगी.”
कारपोरेट से आए मिस्टर शर्मा कहते हैं – “अगली तारीख कब की मिलेगी?”
“कम से कम छ
महीने बाद की”
“पर मैं तो दो
महीने बाद रिटायर होनेवाला हूँ...”
“उससे कोई फर्क
नहीं पड़ता. माननीय न्यायालय साक्षियों को कोई रिटायरमेंट नहीं देती... फिलहाल
तनेजा साहब, आप चलिये, आपकी गवाही तो हो जाये..“
पल भर को मिस्टर तनेजा की पलकें किसी अनाम प्रार्थना में मुँदी थीं और वे अपर
सत्र न्यायाधीश मानवेन्द्र सिंह ‘मानव’ के इजलास की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे थे.
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(यह कहानी हंस के जनवरी २०१६ अंक में प्रकशित हुई है)
संप्रति: एनटीपीसी लि. में कार्यरत
एन एच 3 / सी 76/एनटीपीसी विंध्याचल, विंध्यनगर
सिंगरौली 486885 (म. प्र.)
9425823033/ biharirakesh@rediffmail.com
कहानी पढ़ गया. बढियां ही कहूँगा. कोर्ट कचहरी के लफड़े बुरे होते हैं. जो इसमें फंसा है वो ही इसे समझ सकता है. कितना तनाव और समय और पैसा लगता है. पीढियां गुजर जाती हैं पर फैसला नहीं आता. इस कहानी में राकेश जी ने उस तनाव को ठीक से संभाला है और वह पाठकों तक सम्प्रेषित भी हो जाता है . यही मजबूती है इस कहानी की. राकेश जी का शुक्रिया और समालोचन जिंदाबाद.
जवाब देंहटाएंएक बहुत अच्छी और नए फ्लेवर की कहानी। जितना दिल, उतना दिमाग़- सही अनुपात में! बधाई!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-12-2015 को चर्चा मंच पर अलविदा - 2015 { चर्चा - 2207 } में दिया जाएगा । नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
Justice delayed is justice denied. अच्छी कहानी। विषय और शिल्प दोनों में नयापन पाठक को रुचता है। हो सकता है, ढर्रे पर चलने वालों को कथा रस की कमी लगे।
जवाब देंहटाएंकहानी बहुत अच्छी लगी,...आप रहे न रहे पर आप न्यायालय के चक्कर में भूले से भी फंस जाते है तो ज़िन्दगी निकल जाती है और तारीख पर तारीख मिलती रहती है..और न्याय मिलता भी है ???? पर तारीख जरुर मिलता है..राकेश जी बहुत बधाई, पर एक चीज़ जो मुझे लगा कहानी में होनी चाहिए थी वह यह की पात्र आपके जिस रूप में आ रहे है उसे शिष्टता वश लेखक को दबाना नहीं चाहिए बल्कि उसका भी प्रयोग होना चाहिए बस इतना ही कहना चाहूंगी.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना और उम्दा प्रस्तुति....आपको सपरिवार नववर्ष की शुभकामनाएं...HAPPY NEW YEAR 2016...
जवाब देंहटाएंPLAEASE VISIT MY BLOG AND SUBSCRIBE MY YOUTUBE CHANNEL FOR MY NEW SONGS.
बढ़िया कहानी. विषय की उम्दा पस्तुति. बधाई !
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