‘इस
तरह खत्म होती है दुनिया
धमाके
से नहीं रिरियाहट से.’
नोबेल
पुरस्कार प्राप्त- कवि,
आलोचक, नाटककार और संपादक टी एस एलियट (1888–1965) ने विश्व साहित्य
को गहरे प्रभावित किया है, हिंदी में अज्ञेय उनसे प्रभावित
थे, विष्णु खरे ने उनकी कालजयी कृति The Waste Land (1922)
और कुछ कविताओं का अनुवाद ‘मरु-प्रदेश और अन्य कविताओं’ के नाम से किया. आदि.
मुश्किल दिनों में जो कवि याद आते हैं वे ही कालजयी
हैं. इस कोरोना महामारी में कवि-अनुवादक अनूप सेठी को एलियट की कविता ‘The Hollow Men’ (१९२५) पढ़ते हुए उसके अनुवाद की जरूरत महसूस हुई
और फिर दो और कविताओं ‘A Dedication to My Wife’ जो उनसे तीस
साल छोटी दूसरी पत्नी वेलरी फ्लेचर के लिए है और ‘To the Indians who died
in South Africa’ जो भारत की पहली ग्रेजुएट महिला कोरनीलिया सोराबजी
के अनुरोध पर लिखी थी, के भी अनुवाद उन्होंने किये.
एलियट का अनुवाद चुनौतीपूर्ण होता है, उसे हिंदी की कविता की शैली में
अनूदित करना साधारण कार्य नहीं है.
प्रस्तुत है.
टी. एस. एलियट
तीन कविताएँ
अंग्रेजी से
अनुवाद : अनूप सेठी
अनुवादक की टिप्पणी
टी एस एलियट की कविताओं की किताब पलटते हुए मेरी नज़र उनकी लंबी कविता ‘हॉलो मेन’ पर पड़ी. शीर्षक ने ही पकड़ लिया. ‘खोखले लोग’ बिंब की प्रतिध्वनि सघन थी. बिंब की छवियां घेरने लगीं. पिछले साल से कोरोना ने जिस तरह हमें बंधक बना रखा है, वह कम तकलीफदेह नहीं है. ऊपर से हमें चालित करने वाले तमाम खिलाड़ी हमें जिस तरह हतप्रभ और हतकर्म बना रहे हैं; क्या सत्ता पक्ष क्या विपक्ष; क्या प्रगतिकामी-प्रगतिगामी क्या प्रतिगामी; क्या न्यायपालिका क्या कार्यपालिका; क्या बाजार क्या विज्ञापन और उसका सहोदर मीडिया; हमारे गोचर-अगोचर तमाम हरकारों ने हमें मानो पंगु, विवेकशून्य और कर्महीन बना दिया है. पूरी तरह से न भी बनाया हो, तो भी उस तरफ धकेलने की प्रक्रिया जारी है. मानसिक रूप से तो निचोड़ ही लिया है. ऐसा लगता है हम ढांचा मात्र हैं, हमारी संवेदना, भावना, विवेक, बोध, कर्मठता, पुरुषार्थ, अंर्तदृष्टि, दूरदृष्टि को ग्रस लिया गया है.
परफेक्ट खोखले लोग.
यह कविता 1925 में लिखी गई थी. करीब सौ साल बाद भी यह हमारे समय को कुछ उसी तरह
उघाड़ रही है जैसे उस समय विश्वयुद्ध के बाद की हताशा-निराशा-बीहड़पन को उघाड़ा था.
आज हम अलग तरह के युद्ध काल में हैं.
शीर्षक पढ़ते ही इन
झनझनाते ख्यालों ने मुझे कविता की तरफ धकेल दिया. एलियट को पढ़ना-समझना आसान नहीं.
मैं तो उलझ ही गया. न जाने क्या सोच कर हिंदी में उल्था करने लगा. पहले अंश को
मक्षिका स्थाने मक्षिका रख कर पूरा कर दिया,
अर्थ की परवाह किए बिना. तो भी बिंबों ने बांधे रखा. वह अंश सुमनिका और बेटी
अरुंधती को सुनाया. अरुंधती अंग्रेजी साहित्य के पठन-पाठन से जुड़ी है. उसने कविता
के जाले जरा साफ किए, कविता के संदर्भों को खोला. मेरी हिम्मत बढ़ गई.
कविता में कई संदर्भ हैं. उन्हें देने पर कविता शोधपरक निबंध के भार से दब जाती. इटैलिक्स में दी गई पंक्तियां पुरानी किताबों, बाइबल और नर्सरी राइम से हैं. मैं कविता के अनुवाद में इसलिए उलझ गया क्योंकि इसके बिंब और भय का माहौल आज के माहौल के बहुत करीब है. जबकि यह कविता पहले विश्व युद्ध के बाद की है, सन् 1925 में लिखी हुई. लगभग सौ साल बाद महामारी ने वक्त का चक्का इस तरह घुमा दिया है.
एक
खोखले लोग
एक बागी को याद करते हुए
1
हम ऐसे लोग जो खोखले हैं
हम ऐसे लोग जिनकी खाल भर दी गई
है
झुके हुए एक साथ
खोपड़े में भरा है भूसा, आह!
हमारी खुश्क आवाज़ें, जब
हम फुसफुसाते हैं एक साथ
होती हैं चुप्पा और अर्थहीन
जैसे सूखी घास में हवा
या टूटे कांच पर चूहे के पंजे
हमारे सूखे तहखाने में
आकार रूप के बिना, छाया रंग के बिना
शक्तिहीन बल, भंगिमा हरकत के बिना
जो पार कर गए हैं
आंखें गड़ा कर, मौत की दूसरी सल्तनत
हमें याद करना, अगर करना ही हो,
मत मान लेना बागी रूहें, पर सिर्फ
जैसे खोखले लोग
ऐसे लोग जिनकी खाल भर दी गई है.
2
आंखें मैं मिलाने की जुर्रत
नहीं करता सपने तक में
मौत की ख्वाबी सल्तनत में
वे प्रकट नहीं होतीं:
वहां, आंखें हैं
धूप, टूटे खंभे पर
वहां, झूलता रूख
और आवाज़ें हैं
हवा के गाने में
डूबते तारे से
ज्यादा दूर और ज्यादा शांत
मैं और करीब न रहूं
मौत की ख्वाबी सल्तनत में
मैं बना लूं
जानबूझ कर ऐसे भेस
चूहे का कोट, कव्वे की खाल, बिजूके का डंडा
खेत में
ऐसे हिलूं जैसे हवा हिलती है
पर और करीब नहीं-
वो आखिरी मुलाकात नहीं
अस्त होती सल्तनत में.
3
यह है मरी हुई ज़मीन
यह है नागफनी की ज़मीन
यहां पत्थर के बुत्त
उभरते हैं, उन्हें मिलती हैं
मरे हुए मानुस की याचना
डूबते तारे की टिमटिमाहट तले
क्या यह ऐसा है
मौत की दूसरी सल्तनत में
जागना अकेले
उस घड़ी जब हम
कांप रहे हों करुणा से
ओंठ जो चूम लें
इबादत करें, टूटे पत्थर को.
4
आंखें यहां नहीं हैं
यहां कोई आंखें नहीं हैं
मरते तारों की इस घाटी में
हमारी खो चुकी सल्तनतों के टूटे
जबड़े
की इस खोखली घाटी में
मिलने के इस आखिरी ठिकाने में
हम टटोलते हैं मिलजुल कर
बोलने से बचते हैं
जुटे हुए इस उफनती नदी के तट पर
नज़रविहीने, जब तक
दृष्टि फिर न मिल जाए
जैसे मौत की अस्त होती
सल्तनत
का सनातन सितारा
बहुपंखुड़ी गुलाब
इकलौती उम्मीद
रीते हुए लोगों की
5
घूमो घूमो चारों ओर नागफनी के
नागफनी के नागफनी के
घूमो घूमो चारों ओर नागफनी के
पांच बजे सुबह सवेरे
विचार
और यथार्थ के बीच
हरकत और
कृत्य के बीच
गिरती है छाया
परमात्मा
तेरी ही है यह सल्तनत
संकल्पना और
सृजना के बीच
भाव और
प्रतिक्रिया के बीच
गिरती है छाया
ज़िंदगी
बहुत लंबी है
काम और
रति के बीच
शक्ति और
होने के बीच
सार और
अवरोहण के बीच
गिरती है छाया
परमात्मा
तेरी ही है यह सल्तनत
तेरी है
ज़िंदगी
तेरी है
इस तरह खत्म होती है दुनिया
इस तरह खत्म होती है दुनिया
इस तरह खत्म होती है दुनिया
धमाके से नहीं रिरियाहट से.
दो
अपनी पत्नी को समर्पित
जिसकी वजह से है उछाह भरी खुशी
जो मेरी चेतना में डाल देती है
जान, हमारी जागबेला में
और चैन भरी लय, रात की हमारी आरामबेला में,
सांस लेना एक सुर में
प्रेमी, एक दूसरे की महक से महकती हैं जिनकी देहें
जिनको आते हैं एक से ख्याल, बोलना वहां ज़रूरी नहीं
और बोलते हैं एक से बोल, मानी वहां ज़रूरी नहीं
चुभती सर्द हवा, ठिठुराएगी नहीं
सिर पर चिड़चिड़ा सूरज, कुम्हलाएगा नहीं
गुलाबों की बगिया के गुलाब जो
हमारे हैं, सिर्फ हमारे
पर यह समर्पण पढ़ेंगे दूसरे:
हैं ये अंतरंग बोल तुम्हारे लिए
सरेआम.
तीन
दक्षिण
अफ्रीका में मारे गए भारतीयों के लिए
(यह कविता भारत पर क्वीन मेरी की किताब
(हराप एंड कं. लि. 1943) के लिए सुश्री सोराबजी के अनुरोध पर लिखी गई थी. एलियट ने यह कविता बोनामी डोबरी को समर्पित की
है. )
आदमी का ठिकाना होता है उसका अपना गांव
उसका अपना चूल्हा और उसकी घरवाली की रसोई;
अपने दरवाज़े के सामने बैठना दिन ढले
अपने और पड़ोसी के पोते को
एक साथ धूल में खेलते निहारना.
चोटों के निशान हैं पर बच गया है, हैं उसे बहुत
सी यादें
बात चलती है तो याद आती है
(गर्मी या सर्दी, जैसा हो मौसम)
परदेसियों की, जो परदेसों में लड़े,
एक दूसरे से परदेसी.
आदमी का ठिकाना उसका नसीब नहीं है
हरेक मुल्क घर है किसी इंसान का
और किसी दूसरे के लिए बेगाना. जहां इंसान मर जाता है बहादुरी से
नसीब का मारा, वो मिट्टी उसकी है
उसका गांव रखे याद.
यह तुम्हारी ज़मीन नहीं थी, न हमारी: पर
एक गांव था मिडलैंड में,
और एक पंजाब में, हो सकता है एक ही हो कब्रस्तान.
जो घर लौटें वे तुम्हारी वही कहानी सुनाएं:
कर्म किया साझे मकसद से, कर्म
पूर्ण हुआ, फिर भी न तुम न हम
जानते हैं, मौत आने के पल तक,
क्या है फल कर्म का.
__
anupsethi@gmail.com /9820696684
एलियट को हिन्दी में पढ़कर एक अलग अनुभूति हुई।हिन्दी में अभी भी एलियट के कम ही अनुवाद हैं।अनूप सेठी के अनुवाद अच्छे और लगभग समतुल्य हैं।चयन भी समीचीन है।आप दोनों को बधाई ।बाद की दो कविताएँ हिन्दी में कम ज्ञात हैं।अनूप को शुक्रिया ।शायद हॉलो मेन में शीर्षक के साथ की पंक्ति Mistah Kurtz—he dead.रह गयी है।अनूप जी सही कहते हैं कि पाद-टिप्पणी जगह घेरेगी,लेकिन उससे हमें समझने में फ़ायदा होता।वह पूरी किताब अनुवाद कर दें तो उपकार हो।दिलचस्प ये है कि हिन्दी में पढ़ने पर एलियट ज़्यादा क़रीब और आत्मीय लगे—।आभार
जवाब देंहटाएंएलियट की दोनों कविताएँ तो अद्भुत है हीं , इन कविताओं का हिन्दी में रूपांतरण तो कविता की आत्मा को और सघन कर देती है.
जवाब देंहटाएंडरावनी, ख़तरनाक परछाईयों से भरे समय में इन कविताओं का मर्म गहराई से छाया है.
ये अनुवाद अथक मेहनत के साथ किये गये हैं , अनूप जी कवि के साथ चलते उन्हें बताते- समझाते साझा करते चले हैं.
अनुवाद में उस समय की कविता, उस समय को इस समय में प्रतिष्ठित करती है,
अशोक जी ( वाजपेयी ) के कविता-संग्रह से ये बात पूरी होती है ‘ समय के पास समय ‘.
याद आता है अनूप जी ने तक़रीबन 28-29 वर्षों पहले तिब्बत की कविताएँ ‘तनाव’ के लिये अनूदित की थी.
आज समालोचन के मार्फ़त ये अनुवाद पढ़ते स्मृति में सर्द हवा बहने लगी.
समालोचन के अरुण जी को धन्यवाद, वे कब क्या नायाब ले आयें ये तो वे जानें शायद कुछ -कुछ हम भी.
अनूप जी की टिप्पणी और कविताएँ बहुत अच्छी लगी उन्हें स्मरण.
वंशी माहेश्वरी.
आज के समय में जरूरी कविता और अच्छा अनुवाद
जवाब देंहटाएंशानदार अनुवाद. इसमें कविता का आनंद बरकरार है.
जवाब देंहटाएंअद्भुत
जवाब देंहटाएंअनुवाद बहुत अच्छे हैं. उनकी अपनी लय और सत्ता भी है और मूल का उल्लंघन भी नहीं. पहले बस सुहृद विष्णु खरे ने एलियट के अनुवादों की पूरी पुस्तक छापी थी १९६० के दशक में, लेकिन तब एलियट का रुतबा बहुत था, उन्होंने उन अनुवादों की स्वयं कुछ अकड़ से भरी भूमिका लिखी थी, तो कुछ सहम कर किये गए अनुवाद थे वे, जैसा कि विष्णु जी ने बाद में सहज ही माना भी. यहाँ तक बोले कि कुछ जगह समझ में भी नहीं आया पर अनुवाद तो करना ही था . (उनका हास्य-व्यंग्य सदा साथ रहता था.) तब आज की इन्टरनेट की सुविधाएँ कहाँ थीं.
जवाब देंहटाएंअरुण कमल जी के दोनों सुझाव बहुत अच्छे हैं, कि फिर एक पूरा संग्रह आये, और जो भी प्रसंग सहज ही समझ में आने वाले न हों उनको पाद-टिप्पणी में समझाना अच्छा रहेगा, नहीं तो पाठक भटकता रहेगा. एलियट हैं भी दुरूह कवि.
एक छोटी सी बात और, और उस पर अनूप जी और अरुण देव जी दोनों को बधाई. सन १९८८ में देश में अनेक स्थानों पर एलियट की जन्म-शताब्दी मनाने के लिए गोष्ठियां हुईं, दिल्ली में, मैसूर में, सागर में इत्यादि. दिल्ली की गोष्ठी में विष्णु जी ने अपने अनुवादों का पाठ भी किया था, और दो और हिंदी-उर्दू अनुवादकों ने भी. , ..अस्तु, पाया गया कि पूरे भारत में उनके नाम का प्रचलित उच्चारण "ईलियट" है जबकि होना चाहिए "एलिअट". तो यहाँ यह सुधार लगभग हो ही गया है. हमारे लिए एलियट कहना शायद अधिक स्वाभाविक है और एलिअट कहना कुछ अटपटा, तो एलियट ही चलना चाहिए. इसी प्रकार हिंदी में Yeats को "ईट्स" कहते रहे हैं जैसे कि शब्द हो "eats" -- बच्चन ने भी यही लिखा है जबकि उन्होंने तो उन पर पीच डी की थी केम्ब्रिज से और उनके पुस्तक भर अनुवाद भी किये थे -- जबकि सही है "येट्स". पर उसकी चर्चा फिर कभी!
टी. एस. एलियट के बहुत सुंदर अनुवाद हैं । उन्हें अनुवाद के लिए उठाना आसान नहीं। विष्णु खरे के अनुवादों की किंचित असफलताएं सहज ही ध्यान में आती है। अनूप सेठी की खूबी यह है वे कविताओं के मूल टेक्सचर के निकटतम रहते हुए उसका एक नया रूपांतरण कर सके हैं।अनूप जी वेस्टलैंड, एश वेडनेसडे, एरियल पोयम्स और फोर क्वारटेट्स का भी एक संचयन हिंदी में ले आएं तो आनन्द आ जायेगा। तनाव सीरीज़ में तिब्बती कविताओं के उन्होंने बहुत अच्छे अनुवाद किये थे। हाल में रज़ा फाउंडेशन ने तनाव सीरीज के बहुत सारे अनुवादों को 3 खंड में प्रकाशित किया है। उसमें उन तिब्बती कविताओं के अनुवादों को न पाकर बड़ा आश्चर्य हुआ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविताएं और अनुवाद।अनुवादक और समालोचन का आभार��
जवाब देंहटाएंइलियट का लिखा हुआ सब कुछ ही बेहतरीन है। उनकी तीन कविताओं के ये अनुवाद पढ़कर कुछ और भी कविताओं को भी पढ़ने की इच्छा जाग गई।कल शाम से उनकी कुछ और अंग्रेज़ी कविताएं पढ़ीं।आशा है कि इलियट इसी तरह आगे भी आते रहेंगे अनुवाद में...
जवाब देंहटाएंइन अनुवादों पर गुणीजनों की सहृदय टिप्पणियों से निश्चित ही मेरी हिम्मत बढ़ी है। मेरा मार्गदर्शन भी हुआ है।
जवाब देंहटाएंइस बहाने से बंशी माहेश्वरी जी से भी संपर्क हो गया। हिंदी काव्य जगत में तनाव की महत्वपूर्ण उपस्थिति रही है।
आप सब का आभार।
केवल पहली कविता पर लिख रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंअनुवादक कवि हैं। उन्हें शब्दकोश पर निर्भर नहीं रहना था। यदि whimper के लिए उपयुक्त शब्द हिन्दी में नहीं मिला तो कल्पना का उपयोग करना था - जैसे, ' विस्फोट की नहीं, कूं कूं की आवाज के साथ'।या ऐसा कुछ। 'रिरियाना' शब्द मूल से सौ कोस दूर है। पहली कविता के दो एपिग्राम महत्वपूर्ण हैं।उन्हें रखना चाहिए था।
फिर भी मानना पड़ेगा की यह अनुवाद असम्भव को सम्भव बनाने का बहुत कुछ सफल और श्लाघ्य प्रयास है। इससे कविता सबको समझ में नहीं आयेगी पर बिना नोट्स के अंग्रेजी में ही कौन सी समझ में आ जाती है!
निष्कर्ष: सराहनीय अनुवाद।
आपके सुझाव महत्वपूर्ण हैं। जैसे ही अवसर मिलेगा, अनुवाद को बेहतर करने की कोशिश करूंगा। आभार।
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