यतीश कुमार की कविताएं



कवि यतीश कुमार ने इधर ध्यान खींचा है, कविता के शिल्प के प्रति सतर्क हैं. लगातार प्रयोग कर रहें हैं और अपने को मांज भी रहें हैं. कथ्य अपने जीवन के आस-पास से उठाते हैं. अपने समय से भी बा ख़बर हैं.  
उनकी कुछ नई कविताएँ प्रस्तुत हैं, देखें.


यतीश कुमार की कविताएं              




इंतज़ार
वह रो नहीं रही थी
उसके गालों पर
आँसुओं के अवशेष थे

इंतज़ार को
मुरझाने की बीमारी है
प्रतीक्षा में फड़फड़ाती चिन्दियाँ
रोशनदान से झाँकती रहती हैं

मद्धिम रोशनी में दीखता है
इंतज़ार कितना बोझिल है
जो आधे कटे चाँद को
अपनी ओर झुकाए रखता है

मुझे बायीं करवट सोना पसंद है
और उसे दायीं
हमारे बीच बहती है
एक विचलित नदी रात भर

नींद के हाशिए पर चहलकदमी करते-करते
सुबह कब हो गई पता ही नहीं चला
और जब जागा
तब स्वप्न का एक छिलका
हाथ में रह गया





इंतज़ार - २

खोखले अजगर की तरह
एक तहखाना
भीतर कुंडली मारे  बैठा  है

हर्फ़ों का पुलिंदा
वहीं नजरबंद है


मन बलाओं का घर बन बैठा है
गर एक को रफा करता हूँ
तो दूसरी चली आती है

खोई हुई रातों की तलाश में
दिन भर भटकता हूँ
जबकि सुबह का इंतज़ार
रात को और लंबी कर देता है

'नींद' भी तो लफ़्फ़ाज़ी है मेरे लिए
मेरे साथ ही करवट बदलती है
इसरार करता हूँ कि बस नींद आ जाये

तदबीर अगर इतनी सहल होती
तो ऐंठन से मुझे मुक्ति मिल जाती
और मैं अधजला मशाल
अंधी सुरंग होने से बच जाता


मसला

रात हमेशा से
दो तारीख़ों का मसला है
जो दिन के उजाले में कभी नहीं होते

अक्सर यह भी सोचता हूँ
कि सारे मसले
कमबख़्त रातों के साथ ही क्यों होते हैं !

अगर एक बातूनी लड़की
अचानक गुपचुप बैठ जाए
तो मसला दिन में भी पैदा हो जाता है

मसला दरअसल एक चुनाव है
तिल-तिल जलने
और एकबारगी जल जाने के बीच

बत्ती बुझ गई
मन अनबूझ रह गया

जबकि शरीर है
कि निरन्तर जलता जा रहा है
पूरी तरह से बुझ जाने की आकांक्षा को
ख़ारिज करता हुआ





विडंबना

विद्रोह का सफ़र तय करना है
और विरोध की  कलम लिए बैठा  हूँ

इन सब के बीच
भाषा का प्रवाह समंदर-सा है।

बहुत बोलता हुआ आदमी
चुप्पी के क्षणों में
खामोश रहकर बड़ा हो जाता है

बिल्कुल सीधे दीखते हैं राजपथ
उसपर चलने वालों की चाल टेढ़ी
वहाँ तक पहुँचने वाली पगडंडियाँ
सरपट और रपटीली


दबाव सृजन चाहता है
पर इस कठिन समय में
सबसे मुश्किल है
चुपचाप जिंदा रहना

मुर्दे सीधा सोते हैं
आदमी तो नींद में भी टेढ़ा ही रहता है
ग़फ़लत है कि चीजें
सीधी बेहतर हैं या टेढ़ी




विडंबना-२

गुस्से की उमेठन
पीठ पर उग आई
थोड़ा उकड़ूँ हो गया हूँ

अबाबील निगाहों में
पागल सी इच्छा
और परेशानियों में अटा मैं

अपने और अजनबी के बीच
पहाड़ों पर घुलता अँधेरा हूँ

जिज्ञासा और मनोकामना के बीच
टहलता कवि हूँ

कुछ कहानियों में शांति
और कुछ में शोर है
मेरी लेखनी अभी भी
इनके बीच डोल रही है।

अनिश्चय और भय के बीच की
सहजता से परेशान हूँ

नाराज़गी ने मेरे चेहरे पर
इतनी कहानियाँ लिखी है
कि मेरी अपनी कहानी
भीड़ में स्वयं को ढूँढ रही है

इन दृश्यों के बीच
चट्टानों की आड़ में
अँधेरा परछाई से मिल रहा है


मेरे ओसारे की धूप का क़ातिल
मेरी अपनी छाया है
जिसके साये में
निश्चय और अनिश्चय
दोनों ही दुबक रहे हैं

अब तय यह  करना है
किसका हाथ पहले पकड़ें ?





स्त्री

जब वह सो रही होती है
तो लगता है
नन्हीं सी अबोध परी सो रही है

उसके सर पर हाथ फेरता हूँ
तो वह मेरी हथेली
अपनी नन्ही उँगलियों में लपेट लेती है

मुझे लगता है
ईश्वर ने मेरा हाथ थामा है

निशंक सोते देखता हूँ जब पत्नी को
तो पृथ्वी शांत नीम नींद में लगती है
पलकों में जबकि
घर की सारी बलाएँ क़ैद रहती हैं

इस समय
ईश्वर नींद से गुजर रहा होता है

जब माँ को सोते हुए देखता हूँ
तो लगता है
ईश्वर नींद में भी
सबके लिए उतना ही चिंतित है

जीवन में समस्त ऊर्जा स्रोत 
जिन-जिन स्त्रियों से मिला
उनकी जागती-सोती आँखों से ही
मैंने प्रार्थनाओं से भरा स्वर्ग देखा है



ईश्वर मिथक नहीं सच है
और आपके इर्द-गिर्द हाथ थामे
यक़ीन दिलाता है कि
ईश्वर कोई पुरुष नहीं होता





आज वसंत है

फूल

घास और नमक शाश्वत हैं
पर फूल सबसे प्रिय

प्रेम लबालब है
लोग उसे रोज़ तोड़ते हैं


फूल २

सवेरे शादी रात श्राद्ध में
मेरी तरह वे भी जाते हैं

मेरे लिए ऐसा करना
दो कमरों में जाने जैसा है


फूल ३

इबादत का बाज़ार गरम है
फूल अब प्रचार चिन्ह है

एक फूल पोस्टरों पर बेवजह खिलता है
फूल से मेरा प्रेम भग्न हो रहा है


फूल ४

फूलों के बीच
कुछ जंगली फुल
सहजता से मिल रहे हैं

अब इनके काँटे आस्तीन में
चाकू का काम कर रहे हैं


फूल ५

नज़र ऊपर और हाथ जिनके नीचे हैं
उन्हें और किसी चीज़ से नहीं
फूल की माला पहनाकर
विचारों से मारा जा सकता  है
_____________________________________
yatishkr93@gmail.com

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  1. अंतर्मन को छू लेने वाली कविताएं हैं।

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  2. बिल्कुल अलग तरह की कविताएं यतीश जी की पहचान है। विम्बों का सुंदर चुनाव सुंदर कविताओं के लिए बधाई ।

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  3. बहुत ही सुन्दर कविताएं।

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  4. यतीश कुमार मेरे प्रिय कवियों में हैं।उनकी कविताओं में आये बिंब इनको बाक़ी कवियों से अलग करते हैं।बहुत अच्छी कविताओं के लिए बधाई

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  5. रात हमेशा दो तारीखों का मसला है👌👌👌👌

    इस कठिन समय में सबसे मुश्किल है चुपचाप रहना👍👍👍

    स्वप्न का छिलका हाथ में रहता गया 👌

    बहुत गहरे भाव से सजी है सारी कविताएँ
    इंतजार बहुत पसंद आयी

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  6. सभी कविताएं बहुत ही सुंदर हैं। बिंबों का शानदार प्रयोग।मैंने कही सुना था कि ईश्वर हर स्थान पर नहीं पहुंच सकता तो वह माताओं के रूप में अपने को प्रकट करता है। स्त्री कविता की अंतिम लाइनों में " ईश्वर कोई पुरुष नहीं होता " यह चरितार्थ हो रहा है। अन्य सभी कविताओं को भी बार बार देखने का मन करता है।साधुवाद। साहित्य की यात्रा यूं ही जारी रहे।

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  7. अब तक पढ़ी आपकी कविताओं में सर्वश्रेष्ठ लग रही हैं, आपका सृजनात्मक विकास अनवरत रहे, शुभकामनाएं।

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  8. बेहतरीन कविताएँ , बहुत सुन्दर बिम्ब है ,, कथ्य व शिल्प की स्पष्टता यतीश जी की कविताओं में हर जगह दिखती है , बहुत बहुत बधाई

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  9. लता कुमारी1 मई 2020, 4:56:00 pm

    मैं लगभग तीन साल से यतीश सर की कविताएं पढ़ रही हूं। भावुक, सचेतन मन की आंखों में चलते हुए चलचित्र की भांति इनकी कविताओं चलती हैं। लगता है शब्द कागज पर खुद व्यवस्थित हो जाते हैं जैसे ही भाव मन में आते हैं। शोर से रहित, मन में चुपचाप उठने गिरने वाली लहरें अपने आस-पास की हर चीज को भिगोती चलती हैं। कविताओं का विषय निजी भी है और सार्वजनिक भी क्योंकि हर मनुष्य इन्हीं सब भावनाओं से रोज गुजरता है पर उन्हें पिरोने की क्षमता साहित्यकार में ही होती है।
    उम्मीद है कि सर की साहित्यिक यात्रा इसी तरह आगे बढ़ती रहेगी और पाठकों/श्रोताओं का साथ मिलता रहेगा

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  10. बेनामी1 मई 2020, 11:15:00 pm

    बहुत ही बेहतरीन कविताएं

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  11. यतीश अच्छी कविताएं लिख रहे हैं। नितांत निजी अनुभव की कविताएं तब सार्वजनिन हो जाती हैं जब हम अपने-अपने जीवन में झांकते हैं। हम हमेशा सबको सम्बोधित करने वाली कविताएं नहीं लिख सकते हैं। हकीकत तो यह है कि सबकी बात कहने के बहाने हम खुद की ही बात कर रहे होते हैं। यतीश की कविताओं में रात बार-बार आती है जो सुबह की द्योतक है। हिंदी को ऐसी ईमानदार कविताओं की भी दरकार है। बहुत-बहुत बधाई यतीश कुमार।

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  12. नये कवियों में यतीश कुमार ने अपना निजी मुहावरा विकसित किया है या उस राह पर हैं । वे जीवन से भरपूर कवि हैं । उनका दिग्दर्शन या अवलोकन सूक्ष्म है । वे साहित्य के गम्भीर अध्येता हैं और कविता और साहित्य को लेकर गम्भीर हैं । इन सुन्दर कविताओं के लिए यतीश और समालोचन का आभार !

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  13. बेहतरीन कविताएँ।हम दोनों के बीच बहती है विचलित नदी रात भर...नींद भी लफ्फाजी करती है और साथ ही करवट लेती है....रात दो तारीखों का मसला है..कविताएँ जैसे जैसे पढ़ता है उन्हीं में खोता चला गया।आपकी कविताओं के बिंब इतने जीवंत होते हैं कि पूरा चित्र सामने आ जाता है।अच्छी कविताएँ पढ़ने को मिलीं। समालोचन को,प्रिय अरुण देव जी के साथ आपको भी धन्यवाद अच्छी कविताएँ समालोचन में शामिल करके साझा करने के लिए

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  14. शुक्रिया Arun dev भाई को
    जिन्होंने बहुत पुश किया मुझे और बेहतर करने के लिए।
    हमारी तीन चार बार चर्चा हुई और हर बार मुझे लगा अभी कितनी कमियाँ रह गई कविताओं में......वे धीरज पूर्वक मुझे बर्दाश्त करते रहे ।
    विशेष आभार अरुण भाई

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  15. Arun Dev जी, हमेशा लोगों को बेहतर करने को उत्साहित करते हैं। Yatish Kumar जी आप सही कह रहे हैं।आपकी तरह बहुत संकोची भी हैं।

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  16. बहुत अच्छी कविताएँ। आप लगातार बढ़िया कर रहे हैं कवि। आपको अनेकानेक शुभकामनाएँ! समालोचन बढ़िया करते/कर रहे रचनाकारों को अवसर देकर धन्यवाद का पात्र है। बहुत आभार अरुण देव जी! ��

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  17. बहुत ही अच्छी कविताएँ।..साधुवाद कवि यतीश को और अरुण जी को हमें इन कविताओं से रु-ब-रु कराने के लिए।

    गालों पर
    आसुओं का अवशेष थे

    इंतज़ार कितना बोझिल है
    जो आधे कटे चाँद को
    अपनी ओर झुकाए रखता है

    बत्ती बुझ गई
    मन अनबूझ रह गया

    पर इस कठिन समय में
    सबसे मुश्किल है
    चुपचाप जिंदा रहना

    मुर्दे सीधा सोते हैं
    आदमी तो नींद में भी टेढ़ा ही रहता है

    अनिश्चय और भय के बीच की
    सहजता से परेशान हूँ

    ईश्वर कोई पुरुष नहीं होता... जैसी भावपूर्ण अभिव्यक्तियों ने बहुत रिझाया। 'हमारे बीच बहती है एक विचलित नदी रात भर' ने मुझे बंगाल के सुप्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार सुनील गंगोपाध्याय के उस गीतनुमा काव्य की स्मृति से घेर लिया जिसमें वह कहते हैं -'आमा के टान मारे रातीर जागा नोदी, आमा के टाने गुढ़ो अंधोकार...' यतीश की इन कविताओं के कल्पना सूत्र और बिम्बों ने कई स्थानों पर मुझे सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की याद भी दिला दी...विशेष कर वहां जहाँ वो कहते हैं -'
    गुस्से की उमेठन
    पीठ पर उग आई
    थोड़ा उकड़ूँ हो गया हूँ'... सर्वेश्वर एक कविता में ठीक ऐसे ही कहते हैं - '...अपनी छाती को पहाड़ बनाते बनाते, मैं आदमी से नाव बनता जा रहा हूँ...'

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  18. मन -मस्तिष्क में बहुत असर डालती है आपकी कविताएँ...बार -बार पढ़ रही हूँ आपकी कविताएँ।मसला ,विडम्बना और स्त्री कविताओं में प्रयुक्त बिंबों ने विषेश रूप से आकर्षित किया है।
    गहरे भाव से भरी कविताएँ लिखने वाले इस कवि को और साझा करने के लिए समालोचन को बहुत बहुत बधाई,साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  19. हेमन्त देवलेकर2 मई 2020, 6:51:00 pm

    यतीश कुमार जी की कविताओं का समालोचन पर स्वागत है । कुछ टिप्पणियां करने का प्रयास है : --
    'इंतज़ार' को एकदम नए बिम्बों में प्रस्तुत किया है । एक जाना-पहचाना भाव नया और ताज़ा हो गया है। कविता की भाषा चुस्त है ।
    'मसला' "रात हमेशा से दो तारीख़ों का मसला है" ...'मसला' कविता की ये पंक्तियां बहुत सुंदर हैं । आपने एक अनुभूत मगर अनभिव्यक्त सच को उकेर दिया । एक विचार प्रक्रिया को गति दी ।
    'विडंबना' एक विचारोत्तेजक कविता है । सधी हुई, मुखर कविता ।
    'स्त्री' कविता में दुहराव लगा । अनावश्यक विस्तार भी । स्त्री को पत्नी व माँ में बांटने की ज़रूरत भी नही लगी । अंतिम पैरा बहुत अच्छा है ।
    वसंत के फूल अलग ढंग से खिले हैं इन कविताओं में । फूल 4 में ऐसा लगा कि संवेदना पर कोई विचार हावी हो रहा है और जंगली फूल के साथ न्याय नही हो पाया ।

    इन कविताओं को पढकर स्पष्ट अनुभव होता है कि कवि की अनुभव और विचार प्रक्रिया तथा लेखन प्रक्रिया में अच्छा विकास हुआ है । भाषा में सधापन है, मितव्ययिता है , ताज़गी है । बिम्बों का संसार नई काव्यानुभूति करा रहा है । यतीश जी बहुत बधाई । निरंतर सृजनरत रहिये यही शुभकामनाएं ।

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  20. कुछ तो बहुत शानदार कविताएंं हैं जैसे - आज वसंत है शीर्षक की कविताएं। इंतजार, मसला, व‍िडंंबना कव‍िताओं में कुछ ब‍िम्‍ब एकदम ताजे हैं। कहन का ढंग अच्‍छा है। बहुत शुभकामनाएं।

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  21. प्रभात मिलिंद3 मई 2020, 8:31:00 am

    बतौर पाठक यतीश जी की कविताओं की रचनात्मक यात्रा और उसके क्रमिक विकास को बहुत क़रीब से देखने का अवसर मिला है. वे धुरंधर पढ़ाक हैं और अपने चिंतन में उतने ही गहन और धीर. उनके कवि का उत्स इन्हीं दो बिंदुओं के बीच कहीं तलाशा जा सकता है. मैन्युफैक्चर्ड लेखन के इस दौर में कविता-कर्म उनके यहाँ सांस की आवाजाही जैसा सहज है. वे अनोखे पाठक हैं, शायद इसीलिए ईमानदार कवि हैं. डिक्शन और मेटाफ़र्स की दृष्टि से ये कविताएँ कई मायनों में प्रयोगधर्मी होते हुए विनम्र और नैसर्गिक हैं. यूँ तो सभी कविताएँ अच्छी हैं लेकिन 'स्त्री' और 'फूल' सीरीज की कविताएँ विशेष रूप से आसक्त करती हैं.बहुत शुभकामनाएँ उनको और समालोचन में प्रकाशित होने की बधाई भी.

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  22. एक से बढ़कर एक बहुत ही सुंदर कविताएँ|

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  23. यतीश भाई की कविताएं बड़ी गझिन होती हैं ,न सिर्फ शिल्प और भाषा के स्तर पर बल्कि संवेदना के धरातल पर भी । यह अकारण नहीं है कि कई बार उनकी कविताओं की एकाधिक पंक्तियां भी अपने आप में एक पूर्ण कवित्व का आभास दिलाती हैं मसलन उन की कविता "विडंबना" को लीजिए, जीवन और जगत् की विडंबनात्मक स्थितियों की पड़ताल करता हुआ कवि, 'विद्रोह' से लेकर' विरोध' तक और राजपथ की सीधी राह से लेकर उस पर चलने वालों की टेढ़ी चाल तक का सूक्ष्म पर्यवेक्षण करता है . जीवन की विडंबना देखिए कि "मुर्दे (तो ) सीधा सोते हैं, (किंतु जीवित) आदमी तो नींद में भी टेढ़ा ही रहता है " जीवन की इन विडंबनात्मक परिस्थितियों की पड़ताल कवि यूँ ही नहीं करता, वह इन से गुजरा हुआ है ,इन्हें भोगा है ,जिया है, इनसे बावस्ता है और इसलिए उसे कोई गफ़लत नहीं है कि बेहतर क्या है ? सीधा या टेढ़ा? जिंदगी की रपटीली राहों पर चलता हुआ वह खुद को ही ढूंढ रहा होता है । राजपथ के सीधे रास्ते पर चलने की आपाधापी में कितने टेढ़े - मेढ़े रास्तों से गुजरा है कि नाराजगी ने उसके चेहरे पर इतनी कहानियां लिखी है कि उसकी 'अपनी कहानी' भीड़ में खुद को ढूंढ रही होती है। यतीश भाई की कविताएं एक बार में पूरी तरह नहीं खुलती है। उनकी कविताओं की एक-एक पंक्ति भी अपने आप में एक कविता की मानिंद होती हैं और उनके मर्म तक पहुंचने के लिए उसमें धँसना होता है, डिकोड करना होता है। वे संस्कृत काव्य के श्लोकों या सूक्तियों की भांति जीवन और जगत के अनसुलझे रहस्यों और सत्य को छिपाए रखती हैं।जरा क्लोज रीडिंग की जरूरत होती है और वह अनुभूत सत्य तुरंत प्रकट हो जाता है। कहना न होगा कि यतीश भाई की कविताओं को पढ़ना खुद को थोड़ा और करीब से जानना होता है, आपकी अपने ही बारे में समझ थोड़ी और बढ़ जाती है

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  24. यतीश जी की यहाँ समालोचन पर प्रस्तुत कविताएँ एक सक्षम कवि की कविताएँ हैं.चाहे 'इन्तजार'कविता हो या फिर 'मसला' यतीश स्पष्ट तरीके से अपनी बात रखते हैं.'स्त्री' शीर्षक कविता में आई निम्न पंक्तियों से उनके भीतर की संवेदना और रिश्तों के प्रति उनके जुड़ाव को समझा जा सकता है. ईश्वर मिथक नहीं सच है/और आपके इर्द-गिर्द हाथ थामे/यकीन दिलाता है कि/ईश्वर कोई पुरुष नहीं होता.उनकी 'फूल' श्रृंखला की कविताएँ भी पाठकों में भरोसा जगाने में सफल होती हैं.हाँ इस श्रृंखला की अंतिम कविता 'फूल ५' की तीसरी पंक्ति में मेरे समझ से फूल की जगह फूलों होता तो बेहतर.

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  25. समालोचन पर संकलित यतीश जी की ये कविताएं आश्वस्त कराती है कि आगे और बेहतरीन कविताओं का सृजन वे करेंगे। विडंबना और फूल सीरीज की कविताएं खासा पसन्द आयी। बधाई।

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  26. यतीश कुमार की अपनी एक अलग और विशिष्ट शैली है । उनके अनुभव गहन हैं और प्रेक्षण सूक्ष्म । उनकी कविताओं में जैसे एक भरपूरा जीवनराग गूंजता रहता है, अपनी तमाम विलक्षणताओं के साथ।

    समालोचन के सम्पादक अरुण देव स्वयं बहुत अच्छे कवि और काव्य-पारखी हैं । समालोचन जैसी श्रेष्ठ ईपत्रिका में यतीश कुमार की इन कविताओं को देखना सुखद अनुभव है।

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