tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post9184474964521263160..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : रंग - राग : प्रभाकर बर्वे : अखिलेश arun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-76886129492775999052017-04-15T21:56:59.155+05:302017-04-15T21:56:59.155+05:30यह लेखनी नहीं पेंटिंग है, जो रंगों के बजाय शब्दों ...यह लेखनी नहीं पेंटिंग है, जो रंगों के बजाय शब्दों में उतर आयी है । कवितायें कहती यह पेंटिंग बहुत अच्छी लगी । धन्यवाद । Manoj kumarhttps://www.blogger.com/profile/08861463292726850622noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-20292735853174570742017-04-13T18:46:23.753+05:302017-04-13T18:46:23.753+05:30 अखिलेश जी का प्रभाकर बर्वे के बारे में ये लेख एक ... अखिलेश जी का प्रभाकर बर्वे के बारे में ये लेख एक अमुर्रत चित्र देखने जैसा ही है । बर्वे जी की पेंटिंग कई बार भारत भवन में देखा हूँ। कभी किताबों और इंटर्नेट पर भी देखा हर बार नया अमुर्रत अनुभव होता है .<br /> वही देखना आज पढ़ना भी लग रहा है। अमुर्रत लेखन ,वाह अखिलेश जी । धन्यवाद।<br />सत्यधीर सिंह। एक स्वतंत्र चित्रकार।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/11468636522395204453noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-87316869715768373812017-04-13T17:30:22.479+05:302017-04-13T17:30:22.479+05:30वाह लाजवाब लेख.वाह लाजवाब लेख.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09418565828078416754noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-60485892408417293272017-04-12T22:20:18.075+05:302017-04-12T22:20:18.075+05:30यदि कोई व्यक्ति पहले से प्रभाकर बर्वे को जानता है ...यदि कोई व्यक्ति पहले से प्रभाकर बर्वे को जानता है उनके चित्र देखे है या किसी को उनके चित्र बेहद आकर्षित करते है तो अखिलेश जी का यह लेख उस व्यक्ति को चित्र देखने की कई सम्भावनाएं खोजता मिलेगा । जब कभी भी वह चित्र देखेगा तो उसका देखना अखिलेश के नजरिये से नहीं बल्कि खुद के नजरिये को विस्तृत ओर ज्यादा विस्तृत करेगा या फिर जब कभी वह बर्वे जी के चित्रों के बारे सोचेगा तो उसे अपनी ही सोच में कई बिम्ब नजर आएंगे और उसे लगेगा की ‛इस बारे में तो शायद चित्रकार और लेखक दोनों ने ही ने नहीं सोचा होगा' वह खुद ही अपने मन में एक नया लोक खेल ही खेल में रच लेगा, उस संसार में उसके अपने किरदार होंगे । यह बात मैंने खुद अनुभव की तब जब अखिलेश द्वारा रचित 'अचम्भे का रोना' में ‛ क्या वह धूसर में प्रकट होती है ? ' पढ़ा । जो की इसीतरह से एक युवा चित्रकार अवधेश यादव के चित्रों पर लिखा गया था मैं अवधेश को बहुत पहले से जानता हूँ वे मेरे घनिष्ट मित्र है और बल्कि मैं यह भी जानता हूँ की वह “she” कौन है जो उनके चित्र शीर्षक ‛ Does she appear in grey ?? ’ में प्रकट होती है। मैं पहले पहल उनके चित्र देख कर केवल इतना ही समझता था की अवधेश अपने किसी या उसी प्रेम को ही चित्रों में ढूंढ रहे है इसीलिए उन्होंने अपने चित्रों का ये शीर्षक रखा है लेकिन बाद में जब अखिलेश का लिखा पढ़ा जो की अवधेश के इन्हीं चित्रों पर था तो मैं अपनी ही प्रेम की परिभाषा को ठीक से समझ पाया अवधेश के चित्रों में उस प्रेम को देख लेने की मेरी कई सारी सम्भावनाये अपने आप ही खुलने लगी और अब मेरे पास अवधेश के चित्र देखने का अपना स्वयं का नजरिया है, स्वयं का लोक है जो किसी फ़िल्म या स्वप्न की भाँति कहीँ भी ऐसे स्थान में जहाँ अवधेश के चित्रों जैसा आभास हो या फिर मात्र वैसा प्रेम हो, वहाँ कभी भी निर्मित हो जाता हैdinesh pariharnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-16147510239473776132017-04-12T21:32:00.553+05:302017-04-12T21:32:00.553+05:30आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-04-2017 को चर्चा मंच ...आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-04-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2618 (http://charchamanch.blogspot.com/2017/04/2618.html) में दिया जाएगा <br />धन्यवाद दिलबागसिंह विर्कhttps://www.blogger.com/profile/11756513024249884803noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-54873461791655898362017-04-11T10:38:31.097+05:302017-04-11T10:38:31.097+05:30वास्तव में अनुपम लेख है।पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
वास्तव में अनुपम लेख है।पढ़कर बहुत अच्छा लगा।<br />Saloni sharmahttps://www.blogger.com/profile/01298425880007698617noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-48145551671159740782017-04-11T10:07:50.044+05:302017-04-11T10:07:50.044+05:30जैसी पेंटिंग्स हैं, तैसे ही यह लेख. यानि पेंटिंग क...जैसी पेंटिंग्स हैं, तैसे ही यह लेख. यानि पेंटिंग की भाषा को कविता की भाषा में अनुवाद करने की बेचैनी से ही शायद यह सम्भव हुआ होगा। यह पीछा करना, ईमानदारी से और विनम्रतापूर्वक अनुभव का पीछा करना कैसी कैसी नामुमकिन लेकिन सत्य की अनुभूतियाँ प्रकट कर देता है।मोनिकाnoreply@blogger.com