tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post9171617654615169368..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : भूमंडलोत्तर कहानी (१३) : जस्ट डांस (कैलाश वानखेड़े) : राकेश बिहारीarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-52121299686872124452017-09-02T12:44:42.975+05:302017-09-02T12:44:42.975+05:30राकेश जी की आलोचना का ख़ास अंदाज़ है। कई तरह से रचना...राकेश जी की आलोचना का ख़ास अंदाज़ है। कई तरह से रचना तक पहुंचते हैं। छोटी छोटी खिड़कियां रचना के परिसर में खुलती हैं। रचना की मैपिंग करते हुए कई signifiers रेखांकित करती चलती है कि यहां रचना का लोहा बिखरा पड़ा है, यहां ब्लाइंड लेन्स हैं। भूमंडलोत्तर आलोचना कहूंगी इसे जो कहानी के जोग्राफिये को परिभाषित करते हुए उसके ethine को खोलती चलती है।<br />अपर्णा Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/11935297976326574268noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-64897132578025026672017-09-02T09:15:12.693+05:302017-09-02T09:15:12.693+05:30कहानी सरसरी तौर पर हंस में पढ़ रखी थी लेकिन राकेश ज...कहानी सरसरी तौर पर हंस में पढ़ रखी थी लेकिन राकेश जी की विवेचना इतनी बारीक होती है कि उसे दोबारा ज़रा ध्यान से पढ़ा मैंने एक पाठक की नज़र से मुझे प्रथम दृष्टया एक दलित का विरोध लगी कहानी ,और अच्छा प्रभाव छोडा लेकिन राकेश जी बारीक नज़र की दाद देनी होगी दोस्त के नाम परिवर्तन को ठीक पकड़ा उनकी एक और कहानी जिसका ज़िक्र किया है वो भी हँस में ही पढी थी मैंने लेकिन वो मुझे सायास लिखी सी लगी उसकी कमियां इस कहानी में किसी हद तक ठीक होती लगीं मुझे ।साथ ही शुरुआत और अंत के बीच सामंजस्य को छोड़ देना भी नज़र में आया जिसे रेखांकित किया राकेश जी नेऔर इसलिए इनके बारीक विश्लेषण को सराहती हूँ मैं क्योकि अंत तक पहुँचते हुए वो बात लगभग एक ठेठ पाठक के रूप में मेरे दिमाग से निकल चुकी थी ।दरअसल ये बातें बहुत कुछ सिखा भी जाती हैं कि लिखते हुए सजग रहना भी कितना ज़रूरी है कभी मुझे लगा कि कहानियों को सरोकार विशिष्ट बना देते हैं ।<br />अवचेतन की मानसिकता को भी कहानी में अच्छी तरह लाये हैं कैलाश जी और इसे लिखा भी खूब ।<br /> साथ ही अंत में किस तरह अपनी ही श्रेष्ठता बोध में लेखक उलझ जाता है इसे भी एक वाक्य से पकड़ा कि" क्या वो मुझे गुलाब की तरह समझता है ?"और कहानी अपनी मुख्यधारा से भटक जाती है ।और यहाँ वो वर्ग विमर्श की बात कहती लगती है ,दलित विमर्श से भटक जाती है ,याने अपने अवचेतन को भी उतना ही नियंत्रित करना ज़रूरी <br />यानि पक्षधरता यहाँ चूक जाती है और तटस्थता भी....बेहतरीन कहानी की बेहतरीन विवेचना ।Baya gharhttps://www.blogger.com/profile/15537853370625109086noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-84035408969039918552017-08-31T20:35:26.400+05:302017-08-31T20:35:26.400+05:30कहानी एक साधारण कहानी लगी। वे इस कहानी को पूरी तरह...कहानी एक साधारण कहानी लगी। वे इस कहानी को पूरी तरह गहराई में जाकर विकसित कर सामने नहीं ला पाए और ऊपरी ब्यौरों में ही सिमटकर कहीं रह गए। भाषा शिल्प में कुछ अनूठा नहीं लगा। लेकिन राकेश बिहारी ने परत दर परत कहानी को खोलते हुए बेहतरीन समीक्षा की है। उनकी सतर्क विवेचना दृष्टि प्रशंसनीय लगी।ALOK VERMAhttps://www.blogger.com/profile/03875940487687069159noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-53928683997295105802017-08-29T20:40:01.400+05:302017-08-29T20:40:01.400+05:30बढ़िया कहानी की बारीक परतें खोली है राकेश जी ने। ...बढ़िया कहानी की बारीक परतें खोली है राकेश जी ने। दोनो को बधाई ।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/08227873881621065731noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-33545290803472992092017-08-29T09:53:47.464+05:302017-08-29T09:53:47.464+05:30badhia, kahani padhni baaki hai abhi badhia, kahani padhni baaki hai abhi Vipin Choudharyhttps://www.blogger.com/profile/05090451479975418329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-85896211997735925162017-08-29T08:58:57.870+05:302017-08-29T08:58:57.870+05:30आलोचना में एक शब्द आया है जटिल भाषा विन्यास, निश्च...आलोचना में एक शब्द आया है जटिल भाषा विन्यास, निश्चित तौर पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन यह कैलाश जी का व्यक्तित्व ही है<br />Sachin Bairaginoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-21387231773455631642017-08-29T08:51:08.330+05:302017-08-29T08:51:08.330+05:30 कैलाश भाई को बधाई ! राकेश भाई की समीक्षा गहन और ब... कैलाश भाई को बधाई ! राकेश भाई की समीक्षा गहन और बहसतलब है.हिमांशु रविदासnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-84339244278170785802017-08-28T18:59:25.151+05:302017-08-28T18:59:25.151+05:30अच्छी टिप्पणीअच्छी टिप्पणीसत्यनारायण पटेल, कहानीकार, उपन्यासकार, इन्दौरhttps://www.blogger.com/profile/11051949687014113807noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-3341215307899968862017-08-28T17:39:07.139+05:302017-08-28T17:39:07.139+05:30कहानी पढ़ी नहीं। इस आलोचना के आलोक में शायद अब कहान...कहानी पढ़ी नहीं। इस आलोचना के आलोक में शायद अब कहानी को बेहतर समझ सकूं। लेखक, आलोचक तथा समालोचन को बधाई एवं शुभकामनाएं!Joyshree Roynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-22816757968565628862017-08-28T17:37:27.031+05:302017-08-28T17:37:27.031+05:30आलोचना बहुत ही अच्छी लिखी राकेश सर ने उनको बहुत बह...आलोचना बहुत ही अच्छी लिखी राकेश सर ने उनको बहुत बहुत बधाई !Soniya Bahukhandinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-8454328837475565722017-08-28T17:36:20.425+05:302017-08-28T17:36:20.425+05:30
कैलाश वानखेड़े जी को हंस कथा सम्मान की बधाई। रा... <br />कैलाश वानखेड़े जी को हंस कथा सम्मान की बधाई। राकेश जी ने बहुत जरूरी प्रश्न उठाए हैं, कहानी की आलोचना में। मैं उनके बात कहने के अंदाज की प्रशंसक हूं। यही बात किसी और ने लिखी होती, तो संभवत: कड़वी लगती। समालोचन का आभार इसे साझा करने के लिए।योगिता यादवnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-74065525144770101092017-08-28T12:03:38.911+05:302017-08-28T12:03:38.911+05:30हंस कथा पुरस्कार के लिये कैलाश जी की कहानी जस्ट डा...हंस कथा पुरस्कार के लिये कैलाश जी की कहानी जस्ट डांस पर कथा आलोचक राकेश बिहारी जी का लेख कहानी की बहुत सी परतें खोलता है। कैलाश जी की कई कहानियों से भिन्न इस कहानी का जटिल कथ्य हमारे समय के उलझे तंतुओं को सामने रखकर एक यथार्थ बुनता है और राकेश जी उस यथार्थ का अपना पाठ इस लेख के जरिये रखते हैं। एक छोटी टिप्पणी इस कहानी के प्रकाशन पर राकेश जी की फेसबुक वॉल पर पढ़ी थी आज यह विस्तार भी।।बधाई आपको। अस्मिताओं के मुद्दे पर स्त्री अस्मिता का प्रश्न, भाषा की बारीकियां और इसके अंत पर कही आपकी बातें न सिर्फ इस कहानी पर बल्कि कथा का रक नज़रिया पेश करती है। आपकी सचेत नज़र बतौर पाठक सावधान करती है। कैलाश जी को आज के लिये बधाई।प्रज्ञाhttps://www.blogger.com/profile/03031155939204863000noreply@blogger.com