tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post884701706426937782..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : रुस्तम की कुछ और कविताएँarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-65501269222289196942018-05-24T11:25:27.547+05:302018-05-24T11:25:27.547+05:30इन कविताओं में मौन कितना मुखर है, मौन जिसमें '...इन कविताओं में मौन कितना मुखर है, मौन जिसमें 'होना' छिपा है. वर्तमान की विडंबना - आप वैसे नहीं हो सकते जैसे होना चाहते हैं. <br />'चाहें तो<br />वे सड़क पर भी<br />मुझे नग्न कर सकती हैं,<br />झाँक सकती हैं<br />मेरी आत्मा में.' - यही विडंबना है वर्तमान की, कहीं कोई एकांत सुलभ नहीं, <br /><br />'तुम रह गए पीछे' बेहद अच्छी कविता, कई बार पीछे रह जाना बेहतर है, एकांत के सुख की कीमत होती है. <br />इसे अपना ही दुर्भाग्य मानूँगी कि इतनी अच्छी कविताएँ पढ़ने से मैं वंचित थी. ये बार बार पढ़ने वाली और साथ रह जाने वाली कविताएँ हैं. तस्वीरों का चयन बेहद प्रासंगिक और उम्दा है. Ranjana Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02940876584122378044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-74646798404467576352018-04-02T09:53:14.430+05:302018-04-02T09:53:14.430+05:30अभी टिप्पणियां चल रही हैं तो मुझे एक कविता 'मे... अभी टिप्पणियां चल रही हैं तो मुझे एक कविता 'मेरे सामने' की ओर ध्यान आकर्षित करना है। सभी कविताओं में यह कविता सबसे अधिक पेंटर की कविता है। एक ओर चीज़ों का ढेर है जो स्थिर, अचंचल और immutable जैसा है। दूसरी ओर खोपरे में पानी है जो कुछ खोपरे की बनावट और कुछ अन्य स्वाभाविक कारणों से हिल रहा है, हिल रहा है। साहित्य के एकेडेमिक अध्येताओं के लिए यहां बिंब हैं, प्रतीक हैं, मानवीकरण है। मुझे इन सबमें नहीं जाना। मुझे इन चीज़ों का वाचक पर जो प्रभाव दिख रहा है सिर्फ़ उसकी चर्चा करनी है। वाचक पहले दृश्य को "शांत" बताता है। दूसरा दृश्य, जो अधिक निकट है वह यों दिख रहा है - "हिल रहा है, हिल रहा है"। Repetition से anxiety व्यक्त होती है।Tewari Shiv Kishorenoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-45811877413571872672018-04-01T23:05:33.207+05:302018-04-01T23:05:33.207+05:30बेहतरीन कविताएँ....।
बेहतरीन कविताएँ....।<br />ज्योति भड़ानाhttps://www.blogger.com/profile/00395336573969035256noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-59357232944509012392018-03-29T22:37:18.750+05:302018-03-29T22:37:18.750+05:30सारगरभीत कविताऐ.सारगरभीत कविताऐ.Umar Chand Jaiswalhttps://www.blogger.com/profile/05268170944013667015noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-61438472439121634992018-03-29T19:32:22.808+05:302018-03-29T19:32:22.808+05:30 बहुत ही बेहतरीन कविताएँ
बहुत ही बेहतरीन कविताएँ<br />Mamta Pandeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-29615164615882490132018-03-29T14:17:02.573+05:302018-03-29T14:17:02.573+05:30रुस्तम बेहद सभ्यता और अपने अलग विशिष्ट अनुशासन में... रुस्तम बेहद सभ्यता और अपने अलग विशिष्ट अनुशासन में रहने वाले व्यक्ति हैं। कमोबेश यह उनकी कविताओं में भी स्पष्ट अनुभव किया जा सकता है। उनके साथ मैंने 3 वर्ष दिल्ली में काम भी किया है। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की अंग्रेजी पत्रिका Hindi के के वे सम्पादक थे और मैं "पुस्तक-वार्ता" का सम्पादक। वे प्रायः चुपचाप रहकर गम्भीरता से काम करने वाले व्यक्ति हैं। अपने जीवन में औऱ अपने काम में वे किसी पर निर्भर रहना पसंद नहीं करते। उनसे मर्यादित रहकर ही बातचीत सम्भव हो सकती है। वे अंतर्मुखी हैं और अपने बोले गए व लिखे गए शब्दों से ही वे एक अलग और विरला रिश्ता बना पाते हैं। उनकी कविताओं में इस रिश्ते की आत्मीयता को स्पर्श किया जा सकता है। व्यापक पाठकों के साथ रुस्तम की इन कविताओं से आत्मीयता कायम करने के लिए निमन्त्रण देने वास्ते अरुण देव का शुक्रिया..Rakesh Shreemalnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-962650513058077842018-03-29T11:20:57.334+05:302018-03-29T11:20:57.334+05:30Bahut gahan kavitayen...vismay aur jiwan ke sach s...Bahut gahan kavitayen...vismay aur jiwan ke sach se gahre judi huien. aabharsamalochan.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/18213390566996423791noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-27866180181204876472018-03-29T10:03:10.213+05:302018-03-29T10:03:10.213+05:30आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (...आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-03-2017) को <a href="javascript:void(0);" rel="nofollow"> "सन्नाटा पसरा गुलशन में" (चर्चा अंक-2925) </a> पर भी होगी।<br />--<br />चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।<br />जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।<br />--<br />हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।<br />सादर...!<br />डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-87546191421035555052018-03-29T09:41:58.283+05:302018-03-29T09:41:58.283+05:30 आओ,
यहाँ बैठो,
यहीं बैठे रहो.
चाहो तो कुछ भी नहीं... आओ,<br />यहाँ बैठो,<br />यहीं बैठे रहो.<br />चाहो तो कुछ भी नहीं कहो.<br /><br />2.<br />न कहूँ<br />कुछ भी,<br />इसीलिए आया हूँ<br />यहाँ <br />इस जगह <br />जहाँ <br />कुछ भी नहीं कहना है.<br /><br />.<br />.<br />.<br />रचना पर कुछ कहा नहीं मौन रह लिया जाए वही यदि संभव हो तो रचना के प्रति कृतज्ञता है....<br /><br />समालोचन आज अपने उज्ज्वल निखरे रूप में उदय हुआ है...यह रंग जीवनभर उसे उर्वर रखेगा।<br /><br />रुस्तम जी जैसे कवि हमारे समाज मे(समष्टि में) रचनाशील हैं, इतना आश्वासन ही समस्त कोलाहल से मुक्त कर देता है।Anirudh Umatnoreply@blogger.com