tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post8304093113607780303..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सबद भेद : उत्तर-आधुनिकतावादी आक्षेप और नामवरसिंहarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-1904557971884333802012-05-09T14:06:49.099+05:302012-05-09T14:06:49.099+05:30'निरपेक्ष भाव से नामवर जी पर लिखा आलेख'. अ...'निरपेक्ष भाव से नामवर जी पर लिखा आलेख'. अपर्णा जी क्या सचमूच. यह लेख नामवर जी पर कम और सुधीश पचौरी पर अधिक है. इस लेख की मंशा यद्यपि ऐसी नहीं है फिर भी यह लेख सुधीश पचौरी के लिकतांत्रिक रवैये को दिखाता है. और सुधीश जी आये दिन जो साहित्य्कारो के लिये तंजिया लहजे में लिखते है, वह भी एक यथार्थ है साहित्य का. शुतुरमुर्गीपना छोड़िये तब दिखेगा.amiteshhttps://www.blogger.com/profile/05923164488045661896noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-52038115134281869472012-05-09T05:21:15.845+05:302012-05-09T05:21:15.845+05:30... लगता है, आजकल कुछ 'विद्वानों' ने सहमति...... लगता है, आजकल कुछ 'विद्वानों' ने सहमति-असहमति में मस्तिष्क-शक्ति जाया करने से बचने का रास्ता खोजने में सफलता अर्जित कर ली है... दिमाग को कष्ट देने के समानांतर यह शायद आलोचना की आरामदेह वैकल्पिक प्रणाली हो 'देखना'- 'चक्षु-प्रविधि' की इस नई विधा की खोज पर मुग्ध ही हुआ जा सकता है...Shyam Bihari Shyamalhttps://www.blogger.com/profile/02856728907082939600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36090492747165692872012-05-09T05:05:51.346+05:302012-05-09T05:05:51.346+05:30वाह, बंधुवर गणेश जी की प्रतिक्रिया की पहली पंक्ति...वाह, बंधुवर गणेश जी की प्रतिक्रिया की पहली पंक्ति सटीक है। यह समझना सचमुच कठिन है कि साहित्य के विभिन्न आयामों-अनुशासनों से अवगत (?) किसी व्यक्ति को भला कोई आलेख या विमर्श भला 'सुन्दर' या 'गंदा' कैसे दिख जाता है...Shyam Bihari Shyamalhttps://www.blogger.com/profile/02856728907082939600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-20411243799393457982012-05-08T20:36:01.388+05:302012-05-08T20:36:01.388+05:30मैं ऐसी बेवकूफी नहीं करना चाहूँगा कि पहले इस लेख क...मैं ऐसी बेवकूफी नहीं करना चाहूँगा कि पहले इस लेख को सुंदर कहूँ , बाद में गंदा...। हाँ , यह जरूर कहना चाहता हूँ कि इसमें ऐसा कुछ खास नहीं है, जिसे नामवर जी की अतिशय प्रशंसा कहा जाय। विरोधियों के विरोध में भी ऐसा कुछ खास नहीं है, जिसे विरोध कहा जाय। अतबत्ता इस पूरे प्रकरण में आलोचना के नाम पर नासमझी से दुखी जरूर हूँ और अपने रंग में कुछ कहने की इच्छा है। फुरसत मिलते ही कुछ कहूँगा। नंद जी को अपनी बात को बड़े शालीन ढंग से कहने के लिए बधाई जरूर देना चाहता हूँ।Ganesh Pandey https://www.blogger.com/profile/05090936293629861528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-20777408804032466952012-05-08T14:53:43.395+05:302012-05-08T14:53:43.395+05:30कल 09/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल प...<i><b> कल 09/05/2012 को आपकी यह पोस्ट <a href="http://nayi-purani-halchal.blogspot.in" rel="nofollow"> नयी पुरानी हलचल </a> पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .<br />धन्यवाद! </b></i>Yashwant R. B. Mathurhttps://www.blogger.com/profile/06997216769306922306noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-65250672250560176182012-05-08T14:11:27.371+05:302012-05-08T14:11:27.371+05:30यह लेख अनेक मुद्दे उठाता है...सांस्कृतिक परिवर्तन ...यह लेख अनेक मुद्दे उठाता है...सांस्कृतिक परिवर्तन के बारे में नामवर जी का कथन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, इस ओर ध्यान दिला कर नंद जी ने बहुत जरूरी काम किया है...नामवर जी ने बहुत कुछ कहा है...अगर उतना लिखा होता तो साहित्यमात्र- केवल हिन्दी नहीं उसका बहुत भला होता...यह ध्यान देने की बात है कि आज संभवतः विश्व में अकेले वही हैं जो हिन्दी साहित्य को अपभ्रंश ले लेकर आज लिखे जा रहे तक को जानते हैं, उस पर दृष्टि रखते हैं और सुविचारित ढंग से बात कर सकते हैं- अ लिविंग लेजेंड इनडीड...सुमन केशरीnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-55885132421679555882012-05-08T13:37:08.993+05:302012-05-08T13:37:08.993+05:30बेहतरीन और तटस्थबेहतरीन और तटस्थरामजी तिवारी https://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-83265955820808726192012-05-08T10:26:51.266+05:302012-05-08T10:26:51.266+05:30लेख बहुत ही सधा हुआ है, जैसा कि नन्द जी के सधे हुए...लेख बहुत ही सधा हुआ है, जैसा कि नन्द जी के सधे हुए, ऑब्जेक्टिव दृष्टिकोण से अपेक्षित रहता ही है, उससे कहीं अधिक. अंतिम पैराग्राफ बहुत अच्छा लगा, निसन्देह हिन्दी आलोचना के वर्तमान स्वरूप का श्रेय नामवर जी को जाता है. आलोचक - विचारक नामवर जी का कोई सानी नहीं. उन्होंने हिन्दी आलोचना को बहुत मजबूत आधार दिया है, अपने दाय से अधिक दिया है, अब उसके बाद अब अगर वे नया नहीं लिखते तो उनपर यह आक्षेप और अपेक्षा ही हास्यास्पद है.manishahttps://www.blogger.com/profile/10156847111815663270noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-41449516729089355682012-05-08T10:13:52.271+05:302012-05-08T10:13:52.271+05:30बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.. आलोचक के साथ नई व्याख्या...बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.. आलोचक के साथ नई व्याख्या प्रोपेगेंडिस्ट भी सही लगी , हालाँकि यह शब्द कुछ उचित नही लगा.. किंतु अगली पंक्ति में प्रोपेगेंडिस्ट राय को नियंत्रित करता है.. कह कर संतुलन बना लिया .. बधाई..aakroshhttps://www.blogger.com/profile/04373561052220234103noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-51562479265381021362012-05-08T09:29:24.898+05:302012-05-08T09:29:24.898+05:30तमाम दूसरे पक्षों की तरह इस पक्ष को भी आना ही चाहि...तमाम दूसरे पक्षों की तरह इस पक्ष को भी आना ही चाहिए था.batrohihttps://www.blogger.com/profile/07370930712240772275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-123744074859354202012-05-08T09:16:13.840+05:302012-05-08T09:16:13.840+05:30निरपेक्ष भाव से नामवर जी पर लिखा आलेख .
बहुत सारे ...निरपेक्ष भाव से नामवर जी पर लिखा आलेख .<br />बहुत सारे विमर्श और आलोचनाएँ इतना तो तय कर ही देती हैं कि नामवर जी हिंदी साहित्य में एक institution की तरह हैं . मिशन , विज़न और ओब्जेक्टिव्ज़ किसी व्यक्तित्व में ढूंढना..चाहे विरोध में हो या पक्ष में : व्यक्ति को संस्था की तरह देखना ही है .<br />नन्द सर को बधाई !अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-76013014384951535972012-05-08T08:54:19.122+05:302012-05-08T08:54:19.122+05:30नंद जी ने बहुत वस्तुपरक ढंग से लिखा है और नामवर ज...नंद जी ने बहुत वस्तुपरक ढंग से लिखा है और नामवर जी पर लगाए जा रहे आक्षेपों का अच्छा विवेचन करने के साथ उन आक्षेपों के पीछे छिपे मंतव्यों को भी उजागर किया है। मुझे उनसे यही अपेक्षा थी। बधाई। इस किस्म की बहसें चलती रहें तो कुछ बेहतर होने की संभावना हमेशा बनी रहती है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13562041392056023275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-14925800382292545032012-05-08T08:35:46.022+05:302012-05-08T08:35:46.022+05:30Nand jee ke es shandar lekh ke jaraeey ek baar phi...Nand jee ke es shandar lekh ke jaraeey ek baar phir hamare samay kee sabse charchit sahitiyik hasti ko theek se samjha ja saka. Nand jee aur Arun jee ka sukaiyaVipin Choudharyhttps://www.blogger.com/profile/05090451479975418329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-20208206820840348272012-05-08T06:52:27.817+05:302012-05-08T06:52:27.817+05:30नंद जी ने पूरी तटस्थता और वस्तुपरकता के साथ हिन्...नंद जी ने पूरी तटस्थता और वस्तुपरकता के साथ हिन्दी साहित्य में ज़ारी नामवर-चर्चाओं पर उल्लेखनीय दृष्टिपात किया है। जहां तक सुधीश पचौरी की बात है, उनके आरम्भिक तेवरों ने बेशक कभी एक बड़े लेखक-पाठक वर्ग को सोचने-विचारने के लिए उकसाया था किन्तु इन दिनों हिन्दी साहित्य और साहित्यकारों को लक्ष्य कर अखबारों में उनके लगातार छप रहे हास्यास्पद 'मजाक' ( या 'मशखरेबाजी') स्तब्धकारी ढंग से चिन्तित करने वाले हैं। यह महसूस होता है कि ज़रा-सा विचलन कैसे शब्दकार को कहां से कहां गिरा सकता है। यह सब देखते हुए तो यही राय बनने लगी है कि पचौरी को वस्तुत: दया की आवश्यकता है, उन्हें अब किसी भी गम्भीर विमर्श के दायरे से बख्श ही देना चाहिए। वैसे, यह हक़ीकत है कि अपने यहां ज़्यादातर नामवर-विरोध ऐसी ही इकाइयों की तरफ से सामने आया या आता रहा है जिसका ताल्लुक कहीं न कहीं वाम अतीत या वर्तमान से जुड़ता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसे विरोधों के पीछे तथ्य-तर्क से अधिक आहत-अक्षम स्पर्द्धा, प्रतिघाती-पतनशील कुंठा और अगम्भीर-अतिरेक प्रतिरोध जैसे भाव सक्रिय दिखते रहे हैं। बहरहाल, सार्थक और जरूरी हस्तक्षेप दर्ज कराने के लिए नंद जी को बधाई और 'समालोचन' का आभार..Shyam Bihari Shyamalhttps://www.blogger.com/profile/02856728907082939600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-64472402457700489522012-05-08T06:40:40.484+05:302012-05-08T06:40:40.484+05:30सुंदर लिखा है,सुंदर लिखा है,जगदीश्वर चतुर्वेदीhttps://www.blogger.com/profile/06417945584062444110noreply@blogger.com