tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post8300471813324344090..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : मति का धीर : मुद्राराक्षसarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-24239395408182756262022-02-25T22:36:26.769+05:302022-02-25T22:36:26.769+05:30बेहतरीन लेखनी एक नायाब हस्ती के जीवन पर बेहतरीन लेखनी एक नायाब हस्ती के जीवन पर Jyotsana singhhttps://www.blogger.com/profile/14983267137545374181noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-62191360450513076592016-06-17T10:13:34.730+05:302016-06-17T10:13:34.730+05:30अर्श ने मुद्रा जी को सही अर्थों में याद कि...अर्श ने मुद्रा जी को सही अर्थों में याद किया है .उनके पास कहने और लिखने का साहस था .वे पूंछ हिलानेवाले लेखक नही थे .भले ही वे जीवन काल में मूल्यवान न रहे हो लेकिन अब बाजार उन्हें बिकाऊ बना देगा..Swapnil Srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10836943729725245252noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-17188287774517399932016-06-17T06:33:10.120+05:302016-06-17T06:33:10.120+05:30आप ने दिखाया ,हॉबिट अब दिखाई देता रहेगा । आप ने दिखाया ,हॉबिट अब दिखाई देता रहेगा । अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-18088276997049490272016-06-17T00:43:39.190+05:302016-06-17T00:43:39.190+05:30मरने के बाद जितने और जिनके कमेंट आये हैं काश वे सब...मरने के बाद जितने और जिनके कमेंट आये हैं काश वे सब मरने से पहले होता...Ashish Anchinharhttps://www.blogger.com/profile/11963153563939587957noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-43244577124906179972016-06-16T13:48:15.477+05:302016-06-16T13:48:15.477+05:30बहुत ख़ूब अर्श ! ये तुम्हीं लिख सकते थे। ईमानदारी स...बहुत ख़ूब अर्श ! ये तुम्हीं लिख सकते थे। ईमानदारी से कहती हूँ मैंने मुद्राराक्षस जी नहीं पढ़ा है। लेकिन हॉबिट्स फ़िल्म ज़रूर देखी है। मुझे लगता था मुद्राराक्षस कोई भारी-भरकम व्यक्तित्व होगा लेकिन हॉबिट्स प्रतीक से तुमने उनकी मासूमियत प्रत्यक्ष कर दी। मेरी और से उन्हें श्रद्धांजलि !<br />Purnimahttps://www.blogger.com/profile/15153088976597746760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-42575136557909410152016-06-15T23:54:41.260+05:302016-06-15T23:54:41.260+05:30बहुत शानदार लिखा है संतोष।बहुत शानदार लिखा है संतोष।satyendrahttps://www.blogger.com/profile/12893714424891990810noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-3769647106777365612016-06-15T22:51:26.380+05:302016-06-15T22:51:26.380+05:30आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ...आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति <a href="http://bulletinofblog.blogspot.com/2016/06/Suraiya.html" rel="nofollow">सुरैया और ब्लॉग बुलेटिन</a> में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।HARSHVARDHAN https://www.blogger.com/profile/15717143838847827989noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-62253246879271828492016-06-15T22:13:11.254+05:302016-06-15T22:13:11.254+05:30बहुत ही शानदार लेख लिखा है आपने। ये सही बात है मेर...बहुत ही शानदार लेख लिखा है आपने। ये सही बात है मेरे बचपन में मैं भी उनके लेखों वगैरह को देखता था, तब सोचता था कैसा अजीब नाम रखा है, क्या सोचकर रखा होगा? फिर दूरदर्शन में भी देखा बहुत, पत्रों के जवाब देते हुए भी। हालाँकि सामने से कभी मिलने का अवसर तो नहीं मिला पर उनके प्रति एक जिज्ञासा अवश्य बनी रही, जो शायद ताउम्र बनी ही रहेगी क्योंकि वो अब किसी और लोक के वासी हो गए हैं। के पी सक्सेना के बाद वो शायद अपनी पीढ़ी के अंतिम सिपाही थे। वे जहाँ भी रहें उनकी आत्मा को शांति मिले। Arsh Santosh जी आपका आभार इस लेख के लिए।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/05673110756399419385noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-90055814414959375222016-06-15T13:41:17.150+05:302016-06-15T13:41:17.150+05:30मुद्रा की मुद्रा में बेबाकी से कहने का साहस एक आधु...मुद्रा की मुद्रा में बेबाकी से कहने का साहस एक आधुनिक मुद्रा में ही हो सकता है।निस्संदेह बेहतर प्रस्तुति।<br /><br />【चंचल】™https://www.blogger.com/profile/01547852737197008158noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-34451068760931006742016-06-15T12:59:44.950+05:302016-06-15T12:59:44.950+05:30हाँ, tautological है। पर ये गिद्ध यत्किंचित बिनायन...हाँ, tautological है। पर ये गिद्ध यत्किंचित बिनायन होंगे!<br />योडो आपने सही।अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-18306737914791840732016-06-15T12:46:23.086+05:302016-06-15T12:46:23.086+05:30गिद्धों को उनकी परिभाषा में ही ''scavengin...गिद्धों को उनकी परिभाषा में ही ''scavenging birds of prey'' कहा जाता है.उन्हें दुबारा ''स्कैवेंजर'' कहना tautological है.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/18139708644770350589noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-68711742811136286902016-06-15T12:16:36.105+05:302016-06-15T12:16:36.105+05:30हिंदी के गिद्ध क्या केवल गिद्ध ही हैं या वे स्कैवे...हिंदी के गिद्ध क्या केवल गिद्ध ही हैं या वे स्कैवेंजेर भी हैं।<br />अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-44768555339085701772016-06-15T12:06:54.441+05:302016-06-15T12:06:54.441+05:30विनम्र श्रद्धांजलि! विनम्र श्रद्धांजलि! अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-30796281250700587202016-06-15T09:58:07.570+05:302016-06-15T09:58:07.570+05:301968 में दिल्ली पहुँचने के बाद रीगल के मूल कॉफ़ी हा...1968 में दिल्ली पहुँचने के बाद रीगल के मूल कॉफ़ी हाउस और उसके वारिस मोहन सिंह प्लेस में अक्सर मुद्राराक्षस से मुलाक़ात होती थी जो शायद स्थायी मित्रता में बदल गई.एक कैटिलिटिक एजेंट रमेश बख्शी भी थे.वह भी मुद्रा की तरह मूर्तिभंजक,निर्भीक और बोहेमियन थे लेकिन मुद्रा प्रतिबद्ध और एक्टिविस्ट बोहेमियन थे और विचित्र था कि उन्होंने अपने बेटे का नाम हिटलर के सेनापति रोमेल पर रखा था.मुद्रा को शायद लगता था कि उनका कुछ अंश मुझमें भी है इसलिए उन्होंने मुझे ऐसा स्नेह दिया जिसे मैं अब भी समझ नहीं पाया हूँ.जब मैं लखनऊ नवभारत टाइम्स में तैनात हुआ तो मुद्रा से संपर्क और बढ़ा लेकिन टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह से मुद्रा की हमेशा खटकी रही - उन्हें उसके प्रकाशनों और साहू-जैन परिवार की कोई चिंता नहीं थी हिंदी के कथित बड़े-से-बड़े साहित्यकार का वह सार्वजनिक माँजना बिगाड़ कर रख देते थे,लेकिन अकारण नहीं.उनके क़हक़हों में जो जंग-लगी धार थी उसने शायद ही किसी को बख्शा हो.उनके बारे में निजी विवाद भी बहुत चले - चलेंगे,लेकिन वह उनकी जीवन-शैली को बिगाड़ न सके.उन्होंने उनकी कभी परवाह नहीं की.मुझे बीच-बीच में अचानक उनके चकित कर देनेवाले पोस्ट-कार्ड आ जाते थे और फ़ोन पर तो बात होती ही थी.उनकी कई साहित्यिक योजनाएं होती थीं लेकिन शेर के साथ जंगल में रहने की योजना में हिंदी का कौन-सा जानवर शामिल हो सकता था.उन्होंने कई कारणों से अनेक दिक्क़तों का सामना किया.यह एक शर्मनाक तथ्य है कि उनके मूल्यांकन की शुरूआत तक नहीं हुई.अब हिंदी के गिद्ध उनकी सम्पूर्ण रचनावली का मंसूबा बना रहे होंगे.वह हिंदी के चंद great survivors में से थे.<br />वह हिंदी के हॉबिट थे,बल्कि योडा थे.वह लिलिपुट नहीं थे.संतोष अर्श ने उन पर यह इतना अच्छा लिखा है कि काश इसे मैंने लिखा होता.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/18139708644770350589noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-33367027754589722922016-06-15T09:19:25.835+05:302016-06-15T09:19:25.835+05:30मुद्रा भाई पर तथ्यपूर्ण और मर्म भरा यह लेख आपका (ऎ...मुद्रा भाई पर तथ्यपूर्ण और मर्म भरा यह लेख आपका (ऎसे मौक़ों के मह्ज़ शोक और उच्छ्वास वाले से सर्वथा मुक्त) व्यापक समाज में आग्रह से पढ़ा जाएगा भाई संतोष अर्श जी। स्नेह सम्पर्क और आत्मीय होने के साथ मुद्रा जी एक ज़माने में हमारे अगुआ भी थे-'आकाशवाणी स्टाफ आर्टिस्ट एसोसशिएसन'में (नेता उन्हें नहीं कहूँगा )। सस्नेह<br /> Gangesh Gunjanhttps://www.blogger.com/profile/15090688675574434748noreply@blogger.com