tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post782305405865011325..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : परिप्रेक्ष्य : बॉब डिलन : गीत चतुर्वेदी arun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-15593533253966800622016-10-18T16:25:40.360+05:302016-10-18T16:25:40.360+05:30गीत चतुर्वेदी ने ठीक लिखा कि हर पुरस्कार के निर्णा...गीत चतुर्वेदी ने ठीक लिखा कि हर पुरस्कार के निर्णायकों की अपनी राजनीति होती है । उन्हों ने गीत और कविता के बनावटी द्वैत की अच्छी पोल खोली है । गीतकार क्या कवि नहीं होते ? पर जो गीत नहीं लिख सकते वे गीत को कविता न मान कर अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं । डिलन के योगदान को चतुर्वेदी जी ने खूब उजागर किया । उन्हें बधाई । डिलन तक तो मेरी बधाई पहुँचेगी नहीं । Sp Sudheshhttps://www.blogger.com/profile/02398620807527835617noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-7255804046915378732016-10-17T05:26:23.577+05:302016-10-17T05:26:23.577+05:30बाब डिल्लन को नोबेल पुरुस्कार मिलने पर मेरेे मन ...बाब डिल्लन को नोबेल पुरुस्कार मिलने पर मेरेे मन में भी असंख्य प्रश्न आये थे कि संगीतकार को साहित्य का नोबेल? इस लेख को पढ़कर मन की कई जाले दूर हो गए। <br />गीत चतुर्वेदी के प्रति दीवानगी यूं ही नहीं होती उनकी कवितायें मेरा पीछा करती हैं मैं उन कविताओं के पीछे चल देती ह... उनके गद्य का इंतजार रहता है... जैसे रानीखेत एक्सप्रेस का........... Anuradha Singhnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-54390975658603382122016-10-17T05:08:24.615+05:302016-10-17T05:08:24.615+05:30गीत जी ने इस लेख के बहाने न सिर्फ बॉब डिलन के गीतो...गीत जी ने इस लेख के बहाने न सिर्फ बॉब डिलन के गीतों में कविताओं की की बल्कि नोबल पुरुष्कार के गलियारों की ओर की भी एक खिड़की खोली और भारतीय गीतों की समृद्ध परंपराओं की ओर भी ध्यान आकर्षित किया, शैलेंद्र और साहिर की बेजोड़ कवितायें भी जो हिंदी फिल्मों में दर्शकों में रस बढाती थी व फिल्मों के भीतर रही वे खूबसूरत कविता साहित्य के रूप में दर्ज नहीं हुई। इस लेख के बहाने गीत जी ने उन कविताओ और कवियों के पक्ष का वह फलक प्रस्तुत किया जिसमें वे कविताऐं पुस्तक में नहीं गीत में दर्ज हुए। मानवता के पक्ष में गाते हुए डिलन की कविताओं ने नोबल पुरस्कार के गलियारों में 20 साल से गूंजती रही आखिरकार उन्हें नोबल मिला, बेहतरीन लेखडॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-32132482465904778352016-10-16T23:41:46.704+05:302016-10-16T23:41:46.704+05:30गीत जी ने सधे हुए शब्दों में बेहतरीन लिखा है.
गीत जी ने सधे हुए शब्दों में बेहतरीन लिखा है.<br />preetyhttps://www.blogger.com/profile/14724300977691151953noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-61383930108650213382016-10-16T22:40:57.701+05:302016-10-16T22:40:57.701+05:30 परत दर परत खोलता ज्ञानवर्द्धक आलेख। परत दर परत खोलता ज्ञानवर्द्धक आलेख।Sushil Kumar Bhardwajnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-4448088432084985152016-10-16T22:38:39.326+05:302016-10-16T22:38:39.326+05:30बेहद अच्छा लेख, बधाई भाई गीतबेहद अच्छा लेख, बधाई भाई गीतAmrendra Kumar Sharmanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-69253480618901867912016-10-16T22:37:08.041+05:302016-10-16T22:37:08.041+05:30डिलन ने अपना रुख़ स्पष्ट कर दिया था- ‘मैं कवि नह...डिलन ने अपना रुख़ स्पष्ट कर दिया था- ‘मैं कवि नहीं हूं. जो कोई ख़ुद को कवि मानता है, दरअसल वह कभी कवि नहीं होता.’ - ये सबसे अच्छी बात लगी.. जबकि हमारे यहाँ अधिकतर लोग टैग लेकर चलते हैं..Brajesh MPnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-91572906112851703472016-10-16T22:36:35.291+05:302016-10-16T22:36:35.291+05:30सम्यक और सारगर्भित लेख ... !सम्यक और सारगर्भित लेख ... !Devendra Kumarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-16311272337158511422016-10-16T17:49:02.030+05:302016-10-16T17:49:02.030+05:30 धन्यवाद अरुणजी् अनजाने बॉब डिलन से जान-पहचान करान... धन्यवाद अरुणजी् अनजाने बॉब डिलन से जान-पहचान करानेे के लिए. मैं मूरख ही रहा अब तक जो इतने बड़े गीतकार से अपिरिचित रहा, यद्यपि गीतों और खासकर लोकगीतों का बहुत बड़ा फैन हूँ. भारतीय भाषाओं-बोलियों के लोकगीतों को मैं अक्सर सुनता रहताा हूँ चाहे वे बंगाल के बाउलगीत हों या महाराष्ट्र लावणी. भोजपुरी, मैथिलि, मागधी या बज्जिका की तो बात ही मत पूछिए. भोजपुरी की दुर्लभ शैलियों में गाये गीतों का अद्भुत संग्रह है मेरे पास - नायकवा, लोरकी, पांवरिया, जांतागीत वगैरह. मैं हमेशा महसूस करता हूँ कि गेयता भारतीय वांग्मय की आत्मा रही है. आखिर, हमने ही पहले गीत गाये जब दुनिया ठीक से बोलना भी नहीं जानती थी. फिर तो हमारे गाने और सुनने की ऐसी समृद्ध परम्परा चली कि अभी भी कश्मीर का पंडित हो या कन्याकुमारी का होता सभी एक ही स्वर एक ही लय में वैदिक मन्त्रों को गाते हैं अविकल ढंग से. हमारी इसी परंपरा की उपज हैं हमारे सिरमौर साहित्यकार जयदेव, कबीर,सूरदास, मीराबाई, लाल्देथ, विद्यापति और रविन्द्रनाथ ठाकुर.<br />साहित्य सीमाओं में बंधकर नहीं चलता. गीतों की इस परंपरा में अमेरिकी गायक बॉब डिलन को गले लगाते हैं और उनके गीतों कोसुनना शुरू करते हैं यद्यपि हमारे अपने गायक|लोकगायक कम आह्लादक नहीं हैं.Trilok Nath Pandeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-73610641350889986722016-10-16T13:53:18.137+05:302016-10-16T13:53:18.137+05:30बेहतरीन आलेख ! गीत चतुर्वेदी और समालोचन के सूत्रधा...बेहतरीन आलेख ! गीत चतुर्वेदी और समालोचन के सूत्रधार अरुण देव के प्रति Vinay Kumarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-73108571058530942822016-10-16T13:50:38.729+05:302016-10-16T13:50:38.729+05:30 मोनोग्राफ के इसी अध्याय ‘नया पड़ाव’ में हरीश जी क... मोनोग्राफ के इसी अध्याय ‘नया पड़ाव’ में हरीश जी के गीतों पर जो लिखा गया, उसके भी एक छोटे से अंश को यहां देना चाहूंगा। शायद गीत विधा पर गीत चुतुर्वेदी की बातों को उनसे कुछ बल मिले। यहां 1966 में प्रकाशित उनके गीतों के नये संकलन ‘एक उजली नजर की सुई’ का प्रसंग है। मोनोग्राफ में लिखा गया है -<br /><br />“एक उजली नजर की सुई में इस दौर में गृहीत अनूठे महानगरीय बिंबों के कई अमर गीत संकलित है। कोलकाता और मुंबई में बैठ कर लिखे गये ये गीत सघन और जटिल महानगरीय बोध के साथ नये, बेहतर और मानवीय समाज के निर्माण की बेचैनी के गीत है। ये सन् साठ के बाद के गीत है। गीत क्या, बेहद सघन बिंबों की कविताएं जिन्हें हरीश भादानी गाकर और भी गाढ़ा बना देते थे। सुव्यवस्थित ध्वनियों के साथ आधुनिक, जटिल भाव, विभाव, अनुभाव की रस-निष्पत्ति। सोने पर सुहागा। संगीत, लय और धुनों, रागों पर अधिष्ठित सार्थक शब्दों की मूर्च्र्छना और भावों की गहनता। फिर चित्त के विस्तार का एक अलग ही प्रभाव क्यों न दिखाई दे! <br /><br />“हरीश भादानी अपने इन गीतों की व्यंजना के साथ जहां भी होते, उनके ऐश्वर्य का अपना ही वलय होता। वे साहित्य-रसिकों, साहित्यकारों या यहां तक कि कोरे कवि सम्मेलनों के भी कवि नहीं थे। वे जहां होते, पूरा परिवार, घरों की औरतें और बच्चे भी उनके साथ होते, उनके साथ स्वर मिला कर गाते होते। राजस्थान सहित देश के अनेक क्षेत्रों में ऐसे असंख्य परिवार हैं, जिनकी बेटियां-बहुएं आज भी हरीश भादानी के गीतों को गुनगुना कर स्वयं को परितृप्त करती हैं। इसमें शक नहीं, नाद उनके इस व्यक्तित्व का एक मूल आधार था। कहते हैं, भाषा भाषा मर्मज्ञों को रिझाती है, लेकिन गीत, जिसे महर्षि भरत ने नाट्य की शय्या कहा है, शिशुओं को भी खींच लेते हैं। यही तो है जो कवि को पैगंबर बना देता है। तुलसी-सूर-कबीर के इतने प्रसारित अनुभवों के बाद भी आधुनिक हिंदी साहित्य जगत गीतों की इस अनोखी शक्ति से आज जैसे लगभग अपरिचित सा दिखाई देता है। औसत प्रतिभाओं के समय के औसत साहित्यगुरुओं की मार और हिंदी कविता पर अधकचरेपन का अभावनीय वर्चस्व! बांग्ला में आज भी इसीलिये ‘रवीन्द्र-उत्तर’ कुछ भी क्यों न बना हो, बार-बार घूम-फिर कर शब्दों के नाद के लिये भी उसे रवीन्द्रनाथ के शरणागत होते देखा जा सकता है। <br /><br />“हरीश भादानी ने संगीत की विधिवत शिक्षा नहीं ली थी। लेकिन जानकार उनमें अनायास ही अनेक रागों के आधार को बताते हैं। राग - जिन्हें भरत इत्यादि मुनियों ने तीनों लोकों में विद्यमान प्राणियों के हृदय के रंजन का हेतु माना है। आरोहो-अवरोहों की विलंबित रागों पर अधिष्ठित इन गीतों के सघन और विस्तृत बिंब गीत और कविता के बीच श्रेष्ठता की बहस को बेमानी कर देने के लिये काफी है। शायद इन्हें ही सुन कर अज्ञेय जी ने बीकानेर में सुरों में बंधी कविता को सुनने के अपने अभिनव अनुभव का जिक्र किया होगा!”Arun Maheswarinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-11731532702564058802016-10-16T13:50:01.194+05:302016-10-16T13:50:01.194+05:30गीत चतुर्वेदी को बॉब डिलन पर इस बहुत अच्छे लेख के ...गीत चतुर्वेदी को बॉब डिलन पर इस बहुत अच्छे लेख के लिये बधाई। हम रवीन्द्रनाथ के प्रदेश से आते हैं। रवीन्द्रनाथ को उनके गीतों ने उनके जीवन में ही लगभग किसी पैगंबर के स्थान पर पहुंचा दिया था। <br /><br />इस बारे में अन्नदाशंकर राय ने अपनी किताब ‘रवीन्द्रनाथ’ में अपना एक संस्मरण संकलित किया है जब वे पूर्व बंगाल के उस राजशाही जिले के कलेक्टर बन कर गये थे, जिसमें रवीन्द्रनाथ की जमींदारी पड़ती थी और एक बार वहीं पर उन्हें रवीन्द्रनाथ से मिलने का मौका मिला था। मैंने हरीश भादानी पर साहित्य अकादमी के लिये मोनोग्राफ में भी इसका जिक्र किया है। यहां मैं उस पूरे प्रसंग को रखने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं। <br /><br />समय बहुत कम था। किसी तरह दौड़ते-भागते वे रवीन्द्रनाथ से मिले थे। रवीन्द्रनाथ के हाउसबोट पर जब वे उनके बगल में बैठें, तब रवीन्द्रनाथ ने उनसे कहा, ‘‘इन लोगों को देख रहे हो ? पूरे रास्ते मेरे साथ पैदल चले आरहे हैं। पतिसर में मेरे आने की बात नहीं थी। ये लोग ही अंतिम बार के लिये देखना चाहते थे। अर्से से देखा नहीं है।...<br />‘‘वे क्या कह रहे हैं, सुनोगे? कहते हैं पैगंबर को आंखों से नहीं देखा है। आपको देख रहे हैं।’’<br />अन्नदाशंकर लिखते हैं : ‘‘पैगंबर को क्या मैंने देखा है? लेकिन इस आयु में गुरुदेव अपने पके हुए केशों के साथ किसी पैगंबर की तरह ही दिखते थे। पार्थिव जगत के बंधन कमजोर होगये थे। वे हमारे बीच होने पर भी हममें से एक नहीं थे।...राजशाही लौटने पर मेरे बूढ़े मुसलमान चौकीदार ने पकड़ा। ‘‘हुजूर बहादुर कहां गये थे।’’<br />‘‘मैंने बता दिया। नहीं जानता था कि वह रवीन्द्रनाथ को जानेगा।...शफी चौकीदार ने शिकायत करते हुए कहा, ‘‘अरे, ठाकुरबाबू आये थें। हमको क्यों नहीं लेगये हुजूर? कितने दिन होगये उनको देखे। देख आता।’’<br />‘‘तुमने उनको देखा है?...कब?’’<br />‘’ वोऽ, जब राजशाही आये थे। पालित साहब यहां के जज साहब थे। जज साहब की कोठी में रहे। आहा, ठाकुर बाबू क्या सुंदर मनुष्य थे! कितना सुंदर गाते थे। मुझे अभी भी याद है।’’ वह अतीत में खो गया। <br />‘‘मैंने हिसाब लगा कर देखा, वह चौवालीस साल पहले की बात कह रहा था। कवि की उम्र तब बत्तीस साल की थी।... बाद में शांतिनिकेतन में गुरुदेव को बताया । उन्होंने करुण भाव से कहा, ‘‘तब गाने का गला था।’’<br />Arun Maheswarinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-21726708931693540722016-10-16T11:13:51.838+05:302016-10-16T11:13:51.838+05:30बाब डिलन का परिचय कराता बेहतरीन लेखबाब डिलन का परिचय कराता बेहतरीन लेखSANJAY TRIPATHIhttps://www.blogger.com/profile/11409479457211913450noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-37052634086419481742016-10-16T09:42:22.765+05:302016-10-16T09:42:22.765+05:30 आधुनिक कविता में विचार की उपस्थिति या कह लीजिए कह... आधुनिक कविता में विचार की उपस्थिति या कह लीजिए कहीं कहीं विचार के आतंक से गेयता को रखना/महसूस करना लगभग असम्भव दिखता है। लेकिन एक लय उस विचार में बराबर बनी रहती है।<br />जहाँ यह लय भंग होती है वहीं कविता टूटी-बिखरी दिखती है, तभी संप्रेषण बाध्यता पाठक और रचनाकार के बीच आती है। आधुनिक युग के बड़े कवियों में लय की यह निरंतरता देखी जा सकती है। <br />कवि जब अपनी आंतरिक लय को पहचान कर, नए सवालों को परम्परा बोध के साथ जोड़ता है तो नए स्वर की कविता रचता है। <br />बॉब डिलन बहुत पहले इस परम्परा बोध और आंतरिक लय को खोज लेते हैं.... लगभग साठ के अपने लेखन के आरम्भिक दशक में ही।अमेरिकी लोकगीतों के इतिहास में नए तेवर के साथ हस्तक्षेप करते हैं। अपनी कविताओं को वे ताल, आंतरिक लय और इन्स्ट्रमेंटेशन से बेजोड़ बनाते हैं।Aparajita Sharmanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-71321890495382405672016-10-15T19:42:01.134+05:302016-10-15T19:42:01.134+05:30गीत चतुर्वेदी की यह पोस्ट सिर्फ बॉब डिलन के ही बार...गीत चतुर्वेदी की यह पोस्ट सिर्फ बॉब डिलन के ही बारे में नहीं है, अपितु इस बहाने ये गीतकार के गीत और कवि की कविता पर भी विमर्श करती चलती है , जो इस लेख को दिलचस्प बना देती है..Kavita Malaiyanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-26495907525456540642016-10-15T17:53:39.278+05:302016-10-15T17:53:39.278+05:30एक जानकारी से भरा उपयोगी आलेख !एक जानकारी से भरा उपयोगी आलेख !Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14601889359483635067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-10487200144445142912016-10-15T16:13:59.009+05:302016-10-15T16:13:59.009+05:30 बॉब डिलन पर कुछ अच्छा पढ़ने को ढूंढ रही थी, गीत जी... बॉब डिलन पर कुछ अच्छा पढ़ने को ढूंढ रही थी, गीत जी के लेख में काफी जानकारियां मिलीं।Varsha Singhnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-2893474409057739442016-10-15T16:13:01.709+05:302016-10-15T16:13:01.709+05:30 बहुत अच्छा सारगर्भित और जानकारी से भरपूर आलेख। कव... बहुत अच्छा सारगर्भित और जानकारी से भरपूर आलेख। कविता की बद्धमूल समझ और सीमाओं को उजागर करता, साथ ही कविता के परिसर को चौड़ा भी करता है आलेख।मुझे ज़्यादा अच्छा इसलिए भी लगा कि हिंदी में गीतों, ग़ज़लों को कविता की मुख्य धारा से बाहर रखने-समझने के विरूद्ध मैं लगातार लिखता-लड़ता रहा हूँ। ‘लहक’ के ताज़ा अंक में गीतों पर मेरा आलेख इसी का एक प्रमाण है। गीत को बधाई , आपको भी , एक अच्छी पहल को सार्वजानिक करने के लिए।Devendra Aryanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-50309763509250033252016-10-15T13:34:33.933+05:302016-10-15T13:34:33.933+05:30गीत ने अपने सुतार्किक चिंतन के साथ बॉब डिलन के लीक...गीत ने अपने सुतार्किक चिंतन के साथ बॉब डिलन के लीकतोड़ू रवैये को रेखांकित किया है. बने-बनाए ढाँचे को तोड़ना कला का ही कर्म और उद्देश्य भी है लेकिन दुर्भाग्यवश, समूचे विश्व समाज में तोड़फोड़ की घटनाएँ धर्म और ईश्वर के नाम पर दर्ज होती रहती हैं. यह कितना पीड़ादायक दृश्य है कि कलाप्रेमियों में या तो एक मुर्दा शान्ति पाई जाती है या फिर कीचड़ क्रीड़ा.<br />Baabusha Kohlinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-28335526959836510822016-10-15T10:32:21.575+05:302016-10-15T10:32:21.575+05:30गीत चतुर्वेदी ने बाॅब डिलन के महत्व को बेहतरीन ढंग...गीत चतुर्वेदी ने बाॅब डिलन के महत्व को बेहतरीन ढंग से रेखांकित किया है।Rajesh Semwalhttps://www.blogger.com/profile/08954427797948744497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-63952472046956891042016-10-15T10:00:26.553+05:302016-10-15T10:00:26.553+05:30बहुत सुलझे हुए ढंग से लिखा लेख,जो हमें न सिर्फ बॉब...बहुत सुलझे हुए ढंग से लिखा लेख,जो हमें न सिर्फ बॉब डिलन को समझने में मदद करता है बल्कि फिक्शन और नॉन फिक्शन के बीच मौजूद निर्णायक संबंध सूत्रों को जानने की सहूलियत भी देता है.गीत के इस लेख की रौशनी में हम साहिर और शैलेन्द्र की उस अव्यक्त पीड़ा को समझ सकते हैं जो उनके कवि न माने जाने की है.हालाँकि जिसे उन्होंने कभी नहीं व्यक्त किया था.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04306923739541298556noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-22633714592230226402016-10-15T09:40:57.180+05:302016-10-15T09:40:57.180+05:30बॉब डिलन सरीखे मानवता के गीतों के रचियता पर गीत जी...बॉब डिलन सरीखे मानवता के गीतों के रचियता पर गीत जी का आलेख महत्त्वपूर्ण है, किंतु डिलन के गीतों में जब स्त्रियां आती हैं तो ये भास्वर स्वर खण्डित जान पड़ता है। मुझे इस तनहा शायर से थोड़ी शिकायत है। अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.com