tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post7767825462414568444..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : बहसतलब (९) : हिन्दी आलोचना की राजनीति : आनन्द पाण्डेयarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-59550157794215740512012-02-13T10:48:13.112+05:302012-02-13T10:48:13.112+05:30एक सुंदर आलेख। सधा, और ‘ऐसी की तैसी करने वाले’ सिन...एक सुंदर आलेख। सधा, और ‘ऐसी की तैसी करने वाले’ सिनिसिज्म से परे। शुक्रिया।Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-31313580388369346362012-02-11T22:29:01.601+05:302012-02-11T22:29:01.601+05:30समयानुसार एक आवश्यक लेख है...आनंद जी बधाई के पात्र...समयानुसार एक आवश्यक लेख है...आनंद जी बधाई के पात्र हैं!Tripurarihttps://www.blogger.com/profile/02391297054199873793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-78412459489106786912012-02-11T18:24:08.408+05:302012-02-11T18:24:08.408+05:30आलोचना में अबूझ बात कहना, बड़ी बात नहीं है। ऐसे कई ...आलोचना में अबूझ बात कहना, बड़ी बात नहीं है। ऐसे कई आलोचक हैं जो विदेशी हिंदी में लिखते हैं। बड़ी बात है किसी बात को साफ-साफ कहना। आनंद पाण्डेय को उनके इस आलेख की पठनीयता के लिए बधाई और शुभकामनाएँ।Ganesh Pandey https://www.blogger.com/profile/05090936293629861528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-57508922174757458792012-02-11T13:44:29.900+05:302012-02-11T13:44:29.900+05:30आलेख निश्चित रूप से बहुत सारे बंद दरवाजों को खोलता...आलेख निश्चित रूप से बहुत सारे बंद दरवाजों को खोलता है. आलोचना की आलोचना के इस ज़रूरी काम को समालोचन बखूबी अंजाम दे रहा है. बधाई. इच्छा कभी इस पर लिखने की है...Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-14314392596670443332012-02-11T12:43:59.215+05:302012-02-11T12:43:59.215+05:30आलोचना की विचारधारा की ये यात्रा सुखद रही . आलोचना...आलोचना की विचारधारा की ये यात्रा सुखद रही . आलोचना के इतिहास और नारीवाद , अस्मिता से जुड़े प्रश्नों पर विमर्श करता कसा हुआ आलेख .अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-11393629747013509992012-02-11T09:43:53.587+05:302012-02-11T09:43:53.587+05:30लेख अच्छा है। कई ऐसी जानकारियां भी हैं जिन्हें पाक...लेख अच्छा है। कई ऐसी जानकारियां भी हैं जिन्हें पाकर साहित्यकों को गर्व भी होना चाहिये। अस्मितावादी लेखकों को यह लेख अवश्य पढ़ना चाहिये।Aman Kumar Tyagihttps://www.blogger.com/profile/15925743485170360380noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-70299639502103910232012-02-11T09:28:39.741+05:302012-02-11T09:28:39.741+05:30अच्छा आलेख। हिंदी आलोचना की यात्रा को सरल अंदाज़ म...अच्छा आलेख। हिंदी आलोचना की यात्रा को सरल अंदाज़ में बताने के लिए साधुवाद। आलोचना के संस्कृत और यूरोपीय परम्पराओं के हिंदी में प्रभाव पर कुछ अगर इसमें जोड़ दिया जाता तो लेख और प्रभावी हो जाता और हमारे जैसे हिंदी-अध्ययन से बाहर के रसिकों की समझदारी बढ़ती।प्रकाश के रेhttp://bargad.orgnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-44074308162103477712012-02-11T08:14:03.801+05:302012-02-11T08:14:03.801+05:30बेहद सधा हुआ आलेख है, आलोचना के इतिहास पर समझ भरी ...बेहद सधा हुआ आलेख है, आलोचना के इतिहास पर समझ भरी टिप्पणी भी. किसी भी तरह के अतिरेक से मुक्त. विमर्शों के निहितार्थ भी प्रभावी रूप से उजागर हुए हैं. बधाई, आनंद को.मोहन श्रोत्रियhttps://www.blogger.com/profile/00203345198198263567noreply@blogger.com