tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post7664449670411507181..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : मति का धीर : शमशेर बहादुर सिंहarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-11813743442279043302011-02-15T11:17:23.023+05:302011-02-15T11:17:23.023+05:30भाषा जी, किताब में ये संस्मरण पढ़ा और टिप्पणी यहां...भाषा जी, किताब में ये संस्मरण पढ़ा और टिप्पणी यहां कर रहा हैं...आपको कब से जानता हूं, कितना पढ़ा आपको...पत्र-पत्रिकाओं में... लेख, कहानी और कविताएं भी. रूबरू सुना भी, अच्छा, बहुत अच्छा...लेकिन सच ऐसा खूबसूरत और कोई दूसरा नहीं। इतना सहज-सरल (जिसे साधना सबसे कठिन है) इतना दिलचस्प..रोचक...शमशेर की अच्छाइयों के साथ जीवन की सच्चाइयां..उफ! आपने जिस ढंग से पिरोयी वो बेजोड़ है। कई बार ठहाके लगाए...कई बार माथे पर बल पड़े...बिल्कुल जैसे कभी इस्मत और कुर्तलेन बांध लेती थीं अपने साथ... पढ़ता था सारे काम छोड़कर, समय चुराकर, बिल्कुल वैसे ही आपको पढ़ा। पूरे दो बार... एक बार टीवी की शोर, बच्चों की छीना-झपटी, दफ़्तर की भागम-भाग में से बार-बार वक़्त चुराकर और दूसरी बार पूरा एक सांस में...और अभी जी नहीं भरा। फिर पढ़ने की इच्छा है। बस सलाम ही कर सकता हूं, आपको...आपके लेखन को...Mukul Saralhttps://www.blogger.com/profile/06866776993745165762noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-11317290246124469722011-02-10T18:22:05.079+05:302011-02-10T18:22:05.079+05:30बहुत सुंदर। बेमिसाल लेखन। पढ़कर लगा कि कुछ पढ़ा।बहुत सुंदर। बेमिसाल लेखन। पढ़कर लगा कि कुछ पढ़ा।सुशील कृष्ण गोरेhttps://www.blogger.com/profile/04554365008275575977noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-83374983498777865152011-02-09T17:08:28.519+05:302011-02-09T17:08:28.519+05:30बहुत सुंदर, भाषा। बहुत खुश्किस्मत हो कि बचपन में ऐ...बहुत सुंदर, भाषा। बहुत खुश्किस्मत हो कि बचपन में ऐसी गोद मिली। शानदार।Unknownhttps://www.blogger.com/profile/08206094688335767528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-76691211760695942142011-02-08T14:27:25.202+05:302011-02-08T14:27:25.202+05:30संस्मरण से भी ज़ियादह यह एक दस्तावेज़ है, शमशेर जी...संस्मरण से भी ज़ियादह यह एक दस्तावेज़ है, शमशेर जी और उनके साथियों और उनके युग की. तुम्हारा लहजा आत्मीय है और भाषा नाम वाली तुम भाषा पर खासा अधिकार रखती हो. चूंकि मैंने भी शमशेर जी तो लगभग एसी उमर से जाना जिससे तुमने इसलिए मैं समझ सका कि तुमने उस सारे समय को जो दयानन्द कालोनी और उसके बाद भी उनके साथ गुज़रा कैसे संजो कर रखा होगा. मेरी बधाई लो.नीलाभ अश्कnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-80006593626272108122011-02-08T10:40:53.746+05:302011-02-08T10:40:53.746+05:30saral bhasha, sunder lekh.
nanaji se milne ka man ...saral bhasha, sunder lekh.<br />nanaji se milne ka man ker gaya.tushar krishna singhnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-46077651180245753832011-02-08T10:33:00.529+05:302011-02-08T10:33:00.529+05:30सुंदर और वाकई अलहदा।सुंदर और वाकई अलहदा।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14822859926166183696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-14711181737084593582011-02-07T20:26:21.148+05:302011-02-07T20:26:21.148+05:30इन पंक्तियों को लिखते समय में भी नेपथ्य में कहीं य...इन पंक्तियों को लिखते समय में भी नेपथ्य में कहीं ये बातें जेहन में कौंध रही हैं... गोकि बस... तभी नानाजी की आवाज हौले से कान में बज गई...<br /><br />...वाह जी वाह!<br />हमको बुद्धू ही निरा समझा है!<br />हम समझते ही नहीं जैसे कि आपको बीमारी है....<br /><br />बस फिर क्या चांद चमकने लगा. मुंह को गोल-गोल कर इस कविता को दुलार से सुनाते नानाजी नजर आने लगे. ये कविता और मैं. मेरी उम्र की हर बच्ची, जो सोचती उन्होंने ये कविता बस उसके लिए लिखी है. बार-बार जिद करके ये कविता सुनना औऱ सुनते ही चले जाना. यूं ही चल निकली चांद से गप्पें करती हमारी सवारी---खूब हैं गोकि!.<br /><br />kitna sahaj likha hai bhasha aapne .. ye kissagoi kitni smritiyon ko lapete hai ... jheei yaadon se buni ... sansmaran sabhi tak pahunchane ke liye Arun ji badhai..<br />Bhasha ji se milne ki utkantha duguni ho gayi .. iske poorv unka aalekh padha tha jisne bahut prabhavit kiya tha...Congratulations!अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-8714521468893435562011-02-07T16:30:37.160+05:302011-02-07T16:30:37.160+05:30Bahut hi sundar sansmaran....
yah shamsher ko
nay...Bahut hi sundar sansmaran....<br />yah shamsher ko <br />naye sire se janna hai.Mrityunjay Prabhakarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-25602624669951462952011-02-07T09:32:03.028+05:302011-02-07T09:32:03.028+05:30बहुत अच्छा और आत्मीय गद्य, सचमुच अलहदा और दिलचस्प....बहुत अच्छा और आत्मीय गद्य, सचमुच अलहदा और दिलचस्प. आपको बहुत-बहुत धन्यवाद इस पोस्ट के लिए.मनोज पटेलhttps://www.blogger.com/profile/18240856473748797655noreply@blogger.com