tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post7358207743426839095..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : आवाज़ की जगह : १: प्रभात रंजन और सीतामढ़ी arun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-34029581164482106692013-09-18T02:36:23.850+05:302013-09-18T02:36:23.850+05:30शब्दों की बाजीगरी इसे ही कहते हैं . कालिदास से जुड़...शब्दों की बाजीगरी इसे ही कहते हैं . कालिदास से जुड़ी किंवदंती याद आ गयी .पांच उंगलियाँ मतलब पांच तत्व .समझाने वालो ने खूब समझाया .कथन की यह बहुवचनता प्रभात रंजन की कमजोरी है .वह कुछ भी कहने की जिम्मेदारी से भागना चाहता है .दुर्भाग्य से वास्तविक जिंदगी में भी उसने वीरेन्द्र यादव के प्रसंग में यही किया .कथन का बहुकोण होना तभी सार्थक है जब कई लोगो की दृष्टि को शामिल करने के उद्देश्य से ऐसा किया गया हो अन्यथा एक ही बात तो तरह तरह से कहना ऊब पैदा करती है .प्रभात रंजन तो एक ही कहानी को तरह तरह से कहता है . वह आज का अज्ञेय है .उसके पास एक ही कहानी है .अलग अलग ढंग से कहने के कारण उसमे रोचकता तो आ सकती है मगर वह एक ही संरचना की अलग अलग रूप है .यह ठेठ हैगीलियन प्रोजेक्ट है .एक ही आत्मा का अलग अलग प्रकटन .बल्कि उससे भी घटिया .यहाँ द्वंदात्मकता का उत्स भी गायब है .शिल्प के नाम पर वही घिसा पिटा एमिली जोला छाप ,मंटोंनुमा प्रकृतवाद है .इस लचर कथा भंगिमा के सहारे कहानी लिखने पर ऐसी पस्तिज़ सामने आती हैं .हो सकता है आप मेरी यह आलोचना न छापें .मगर न छापने के लिए भी एक बार पढना पड़ेगा .इसलिए मिहनत कर लिया .ई-छाप दिया तो और मिहनत करूँगा अपनी बातो का खुलासा करने का .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-44358145812596984012013-03-22T21:36:44.528+05:302013-03-22T21:36:44.528+05:30प्रस्तुत आलेख पढने के बाद प्रभात रंजन जी की कहानिय...प्रस्तुत आलेख पढने के बाद प्रभात रंजन जी की कहानियों के कुछ द्रश्य बनते हैं कल्पना में| कुछ विशेषताएं ज़ाहिर होती हैं जो निस्संदेह मौजूदा कहानी चलन से काफी अलग और अनोखी हैं जैसे नरेटर ,जैसे सीतामढी,जैसे कहानी में कोई करुना न होना लिहाजा उसका कुछ हिस्सा या निष्कर्ष का दारोमदार स्वयं पाठक पर ही छोड़ देना ,इनमे समकालीन यथार्थ है,मीडिया ,प्रेम,राजनीति ,हर गौण कथा/किरदार का वस्तुतः एक मुख्य कथा/किरदार होना इत्यादि ..|लब्बोलुबाव ये कि गिरिराज जी का संक्षिप्त और सारगर्भित आलेख प्रभात जी की कहानियां पढने की उत्सुकता जगाता है|श्रंखला निश्चित रूप से रुचिकर होगी लेकिन यदि आलेख के साथ कथाकार की एक कहानी भी दे सकें तो संभवतः और भी रोचक होगा |धन्यवाद समालोचन वंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-58876181629780015832013-01-24T13:27:02.071+05:302013-01-24T13:27:02.071+05:30यह एक अच्छी शुरूवात है/प्रभात की कहनियो का अलग संस...यह एक अच्छी शुरूवात है/प्रभात की कहनियो का अलग संसार है/जो उन्हे उनके समकालीनो से अलग<br />करती है/उसमे बिहार का जीवन हैऔर अक्स है इससे यह सावित होता है कि कथाकार अपने उदगम<br />को नही भूल पाया है/अगर यह दिल्ली जैसे मारक शहर मे बचा हुआ है तो यह बहुत है<br />स्वप्निल श्रीवास्तवSwapnil Srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10836943729725245252noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-11730574519845464492013-01-21T13:04:28.467+05:302013-01-21T13:04:28.467+05:30badhiya aur sarthak alekh, Prabhat ji ki kahaniyon...badhiya aur sarthak alekh, Prabhat ji ki kahaniyon ki bahut saari visheshtaon ko aapne rekhankit kiya hai, is shrinkhala ko lagataar chalayen Giriraj jiaddictionofcinemahttps://www.blogger.com/profile/09104872627690609310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-22216883211622095992013-01-09T19:35:31.009+05:302013-01-09T19:35:31.009+05:30सब मित्रों का बेहद शुक्रिया. अगली किश्त लिखने का म...सब मित्रों का बेहद शुक्रिया. अगली किश्त लिखने का मन बन गया है, टिप्पणियाँ देखकर. :-)girirajkhttp://www.pratilipi.innoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36940423737987804812013-01-08T21:52:30.143+05:302013-01-08T21:52:30.143+05:30बढ़िया। ये ही पात्र हमारे लोकतन्त्र की नई दुनिया क...बढ़िया। ये ही पात्र हमारे लोकतन्त्र की नई दुनिया के गायब कोने रचते हैं। इधर बीच मुझे अमरकान्त की बेहतरीन कहानी 'हत्यारे' लगातार याद आती रही, उसके पात्र और ज्यादा। यह आलेख पढ़ उनकी याद और गहरा गई। खैर, प्रभात भाई की जमीन सीतामढ़ी से एक प्रातिनिधिक जमीन में बदल जाती है, बिना अपनी जगह खोये। शायद गणित की भाषा में कहना ठीक न हो, फिर भी हम सबके लोकेल का लघुत्तम समापवर्तक। <br /><br />और आखीर में आलोचकीय लटका। जियो ! जियो !<br /><br />शुक्रिया प्रभात/गिरि/अरुण भाई !मृत्युंजयhttps://www.blogger.com/profile/09135755676182103803noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-16132611330285955512013-01-08T17:43:09.278+05:302013-01-08T17:43:09.278+05:30इस श्रृंखला का स्वागत है ..शुरुआत प्रभात जी से हुय...इस श्रृंखला का स्वागत है ..शुरुआत प्रभात जी से हुयी , और सार्थक तरीके से हुयी , यह और भी स्वागत योग्य है ..हमें आगे भी इस श्रृंखला का इन्तजार रहेगा ...रामजी तिवारी https://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-71662360859130966012013-01-08T00:17:02.447+05:302013-01-08T00:17:02.447+05:30प्राभात रंजन की कहानियों को पढ़ने-समझने का नया नज़...प्राभात रंजन की कहानियों को पढ़ने-समझने का नया नज़रिया दिया है गिरिराज किराडू ने। इस लेख को पढ़ने के बाद न सिर्फ़ प्रभात रंजन से बल्कि गिरिराज किराडू (नई आलोचनात्मक दृष्टि)से और भी उम्मीद बढ़ गई है...Tripurarihttps://www.blogger.com/profile/02391297054199873793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-32413648157606275062013-01-07T16:48:02.502+05:302013-01-07T16:48:02.502+05:30संक्षिप्त किंतु प्रभात को समझने के लिए ज़रूरी आले...संक्षिप्त किंतु प्रभात को समझने के लिए ज़रूरी आलेख.Pankaj Parasharhttps://www.blogger.com/profile/06831190515181164649noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36141340297583139112013-01-07T15:29:55.939+05:302013-01-07T15:29:55.939+05:30bahut achhi tippani!bahut achhi tippani!ravindra vyashttps://www.blogger.com/profile/14064584813872136888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-46383803015584287872013-01-07T15:28:48.964+05:302013-01-07T15:28:48.964+05:30बहुत ही गहरायी से किया गया विवेचन गिरिराज जी द्वार...बहुत ही गहरायी से किया गया विवेचन गिरिराज जी द्वारा ... प्रभात रंजन जी के कथा मर्म को समझना आसान हुआ | आनंदhttps://www.blogger.com/profile/06563691497895539693noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-70834207322555563942013-01-07T13:16:44.390+05:302013-01-07T13:16:44.390+05:30बेहद खूबसूरती में किया गया समालोचन .. नैरेटर को उस...बेहद खूबसूरती में किया गया समालोचन .. नैरेटर को उसके उपस्थित/अनुपस्थित में देखते हुए कहानी के परिदृश्य पर डाली गयी समीक्षापरक दृष्टि श्री गिरिराज की समीक्षा के लिए प्रशंसा के शब्द मांगती है .. शुक्रिया <br /><br />भैया एक्सप्रेस वाली संवेदना को नए फलक देते जरुरी कथाकार लगते हैं मुझे श्री प्रभात रंजन जिनकी सीतामढ़ी और दिल्ली के बीच तीन जोड़ी ट्रेनें चलती हैं .. अगले डब्बे से पिछले डब्बे तक जितना मौजूद क़स्बा रहता है उतना ही मौजूद दिल्ली रहना चाहती है .. मुझे निजी आनंद वहां भी मिलता है जहाँ उनके सीतामढ़ी के किरदार मेरे बेगूसराय के किरदारों से हु ब हु मिलते हुए दीखते हैं .. इस रूप में हमारा कथाकार हर कस्बे की मन आत्मा को किरदार और परिदृश्य दोनों में भरपूर देख रहा है .. शुक्रिया .. <br /><br />बाकी ..समालोचन ..और श्री अरुण देव तो .. बस .. साधुवाद !shayak alokhttps://www.blogger.com/profile/02820288373213842441noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-11016591851081134482013-01-07T11:58:44.865+05:302013-01-07T11:58:44.865+05:30bahut sunder aalekh ....parbhat ranjan ji ki kaha...bahut sunder aalekh ....parbhat ranjan ji ki kahaniyon ko samjhne .ke liye ek jaroori drishti deta ...samalochan aur lekhak Ko badhai ....Jagjithttps://www.blogger.com/profile/17112954515085366307noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-72832486566995729482013-01-07T10:36:19.730+05:302013-01-07T10:36:19.730+05:30प्रभात रंजन की पहिळ कहानी जानकीपुल शायद में राष्ट...प्रभात रंजन की पहिळ कहानी जानकीपुल शायद में राष्ट्रीय सहारा में पुरस्कृत हुई थी तब पहली बार पढी थी। इसके बाद कोई कहानी शायद ही छूटी हो। गिरिराज जी ने अनूठी शैली में प्रभात रंजन के बारे में लिखा और यथार्थ लिखा।<br />डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swamihttps://www.blogger.com/profile/15313541475874234966noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-77935711038071864212013-01-07T10:28:54.803+05:302013-01-07T10:28:54.803+05:30पीछे से शुरू करती हूँ
यह आपकी जुर्रत ही है शिरीष...पीछे से शुरू करती हूँ <br /><br />यह आपकी जुर्रत ही है शिरीष और शायद मुझ पर जरूरत से अधिक विश्वास :-) गिरिराज खुद ही समर्थ अनुवादक हैं..उन्हें शायद यह डिटेल इसलिए नहीं दिखी क्यूंकि वे सोच रहे होंगे कि अनुवाद और प्रकाशन का काम एक साथ कैसे संभव होगा, यह न दिखना, क्या पता, केवल 'टाईम मैनिजमेंट' का मसला हो...लेकिन फिर भी मुझे अगर यह करना हो तो, अच्छा ही लगेगा...मैं अरुण जी की इंट्रोडक्शन से भी सहमत हूँ कि गिरिराज की समूची उपस्थिति महत्वपूर्ण है <br /><br />ख्वाब देखने की बात से मुझे तुरंत अमृतसर के हाल गेट में स्थित बुक स्टोर 'बुक लवर्स रिट्रीट' की याद आई और यह पुस्तक वहाँ दिखी...यह पहला ऐसा स्टोर था,बहुत बड़ा वाला, जिसे मैंने एम् ए में पहली बार देखा,जो किताबों की दूकान न लग कर बुक स्टोर लगा था और जहाँ से मैंने आर के नारायण के नोवेल और हार्डी( का टेस )खरीदा था <br /><br />मुझे यह लेख अच्छा लगा क्यूंकि प्रभात जी की कहानियों कि जो विशेष बात है, यह उनकी तरफ ध्यान दिलाता है..चूंकि उनकी कहानियां 'अभी की' कहानियां हैं, उनके पात्र भी कोई परम्परागत नहीं जो देश काल के भाग्य को तय कर रहें हो, यथार्थ को 'एक्टिव' रोल में निर्मित कर रहें हो बल्कि वे तो कुछ और नैशनल इंटरनैशनल शक्तियों से डिटरमिन हो रहें हैं, इसी तरह जो नैरेटर है वह भी कोई ओम्निशेंट नहीं...वह भी अभिव्यक्तियों के लिए टीवी अखबार को प्रतिभागी बनाता है, वे उसी तरह एक्शन में सम्मिलित है जैसे दुसरे जान प्राण वाले पात्र .यह जरूरी निशानदेही है...आवाजों की बहुलता और पोलिफ्नी में यह तकनीक जो प्रभात जी ने इवोल्व की है...मुझे भी बहुत अच्छी लगती है हालाकि मैंने उनकी सभी कहानियां नहीं पढ़ी हैं...शायद नोवेल में नरेशन का ढंग ही उपन्यासकार का असली चैलिंज है <br /><br />'एक खास तरह का हिन्दुस्तानी ठंडापन' शायद हमारा नैशनल करेक्टर है जिसे पहले प्रभात जी के पात्रों ने ज़ाहिर किया है और फिर गिरिराज ने उसकी शिनाख्त की...इन्ही अवसरों के लिए शायद यह संक्षिप्त अंग्रेजी एक-वाक्य बना है Sad but true <br /><br />मोनिका कुमार <br /><br /><br /><br />Monika Kumarhttps://www.blogger.com/profile/06214280852107799571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-16574112072328731602013-01-07T09:53:03.531+05:302013-01-07T09:53:03.531+05:30प्रभात को पढ़ने -समझने की दृष्टि देता जरूरी आलेख .....प्रभात को पढ़ने -समझने की दृष्टि देता जरूरी आलेख ..प्रभात रंजन "अपराध लेखक"हैं ..इस ख़ास अर्थ में उनकी कहानियां दुबारा पढ़े जाने की मांग करती हैं ..<br />फिलहाल अपनी शेल्फ पर प्रभात की कहानियों के साथ ..<br />समालोचन शुक्रिया,अगले स्तम्भ की प्रतीक्षा में <br />अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-67436435963935215322013-01-07T09:45:10.012+05:302013-01-07T09:45:10.012+05:30आत्मीयता से भरपूर ।आत्मीयता से भरपूर ।rabi bhushan pathakhttps://www.blogger.com/profile/18276093089412772926noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-56702145808021987722013-01-07T09:10:48.780+05:302013-01-07T09:10:48.780+05:30 वरिष्ठ साथी प्रभात को ज्यादा गहरे में जानने में आ... वरिष्ठ साथी प्रभात को ज्यादा गहरे में जानने में आनंद आया।लेखक,और सम्पादक का शुक्रिया Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/00514434800240496727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-32066703876455886002013-01-07T08:33:31.417+05:302013-01-07T08:33:31.417+05:30एक नए अंदाज़ में लिखा गया आलेख जो प्रभात रंजन की कह...एक नए अंदाज़ में लिखा गया आलेख जो प्रभात रंजन की कहानियों को पढ़ने-समझने की दृष्टि देता है. पांचवां अनुच्छेद आलोचकीय रचनात्मकता का सुपर्ब नमूना है. बेजोड़.मोहन श्रोत्रियhttps://www.blogger.com/profile/00203345198198263567noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-9183998466095357002013-01-07T08:15:13.564+05:302013-01-07T08:15:13.564+05:30संक्षिप्त किंतु प्रभात को समझने के लिए बहुत ज़रूर...संक्षिप्त किंतु प्रभात को समझने के लिए बहुत ज़रूरी बल्कि सबसे ज़रूरी आलेख... और प्यारे गिरि तुम्हारे ख्वाब में मैं ट्रांसलेटेड बाय मोनिका कुमार जोड़ने की ज़ुर्रत कर रहा हूं... देखें मोनिका क्या कहती हैं...फिलहाल तो ये ज़ुर्रत ही है मेरी। शिरीष कुमार मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05256525732884716039noreply@blogger.com