tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post7325002784237618599..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : मेघ - दूत : दुनिया का सबसे रूपवान डूबा हुआ आदमी : गैबरिएल गार्सिया मार्केज़ arun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-33352486770369337472020-12-07T21:57:49.016+05:302020-12-07T21:57:49.016+05:30पहले आपके अनुवाद पर। आपने किस अंग्रेज़ी अनुवाद से ह...पहले आपके अनुवाद पर। आपने किस अंग्रेज़ी अनुवाद से हिन्दी अनुवाद किया है यह मालूम नहीं है। परन्तु कहानी का मर्म आपके अनुवाद में स्पष्ट हुआ है। इससे अधिक कोई आशा भी नहीं करता। <br />अब भी सुधार की गुंजाइश हो तो नाम 'सर वाॅल्टर राले या राली ' लिखें । अमेरिकन उच्चारण की जगह विदेशी उच्चारण लिखें क्योंकि राली के संदर्भ में अमेरिकन उच्चारण विचित्र लगता है।<br /><br />अब थोड़ा कहानी के बारे में । यह प्रसिद्ध और अद्भुत कहानी मिथक और यथार्थ के अन्तःसम्बन्ध को व्यक्त करती है। जिस आदमी को गांव वाले एस्टबैन नाम देते हैं वह मिथक का रूपक है। उसका नाम भी एक मिथकीय चरित्र से आया है।कहानी का एस्टबैन हर प्रकार से किसी देव या अतिमानव जैसा है - असाधारण, कल्पना में भी न समाने वाला, अद्वितीय, परम आदर्श। स्त्रियों की प्रतिक्रिया देखिये। पहले वे इस मिथक पुरुष से इतनी प्रभावित होती हैं कि तुलना में उनके अपने पुरुष उन्हें नगण्य प्रतीत होते हैं । फिर वे व्यावहारिक होकर सोचती हैं कि इतनी विशाल काया को उनके घरों में कितना कष्ट होता। घर में प्रवेश करने के लिए कितनी तबालत उठानी पड़ती, अंदर आकर सिर शहतीर से लगता, बैठने की सुविधा न होती, कुल मिलाकर वह कितना बेचारा होता ! यह विचार उन्हें मृतक के प्रति एक अनाम अपनेपन से भर देता है। यथार्थ और मिथक का मिलन स्त्रियों के वर्णन में क्रमिक ढंग से स्पष्ट हुआ है। पुरुषों की प्रतिक्रिया थोड़ी अलग है। वे इस अपरिचित शव से जल्दी से जल्दी मुक्त होना चाहते हैं । मृतक के असाधारण डील-डौल से उन्हें इतना फर्क नहीं पड़ता शायद। परंतु स्त्रियाँ जब मृतक के चेहरे से रूमाल हटाती हैं तब वे भी प्रभावित होते हैं और बिना स्त्रियों के बताये वे भी उसे एस्टबैन <br />पुकारते हैं। उन्हें लगता है कि वह व्यक्ति अपनी असाधारणता को लेकर लज्जित है। पुरुषों और स्त्रियों की अलग-अलग प्रतिक्रिया पर किसी ने चर्चा की है या नहीं मुझे नहीं मालूम । मुझे लगता है कि यह कहानी का महत्वपूर्ण पक्ष है। स्त्री और पुरुष की सांस्कृतिक दृष्टि परम्परागत रूप से भिन्न है। स्त्री मिथक को निरहंकार और सहज होकर स्वीकार करती है यद्यपि उसकी दृष्टि साथ-साथ वास्तव पर भी है। पुरुष मिथक के प्रति अहंकारी और प्रतिद्वंद्वी दृष्टि रखता है। <br /><br />कहानी के अंत में मिथक यथार्थ को प्रभावित करता है। गांव के लोग एस्टबैन के उपयुक्त एक अधिक सुन्दर गांव की परिकल्पना करते हैं ।<br /><br />आशा है पढ़ने वालों को इस संक्षिप्त नोट से कुछ मदद मिलेगी ।शिव किशोर तिवारीnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-32373981262392389042016-12-10T05:54:05.846+05:302016-12-10T05:54:05.846+05:30कमाल की रचना है, हम सब जानते हुए भी बस पढ़े जाते है...कमाल की रचना है, हम सब जानते हुए भी बस पढ़े जाते हैं। सुशांत जी का अनुवाद भी सुष्ठ है। धन्यवाद समालोचन इस क्लासिक कृति को पढ़ाने के लिए।Anuradha Singhhttps://www.blogger.com/profile/03936044011230849217noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-50920602665771711972016-12-09T08:54:18.481+05:302016-12-09T08:54:18.481+05:30 बार-बार यह सवाल उठता है कि क्लासिक रचना किसे कहते... बार-बार यह सवाल उठता है कि क्लासिक रचना किसे कहते हैं? गेबरिएल गार्सिया मार्केज को पढ़ते हुए इसका जवाब मिल जाता है. एक लेखक क्या करता है? हमारे लिए समानांतर संसार ही तो रचता है... ऐसा संसार जो निरंतर हमारा अधिक आत्मीय और हमारे हर वर्तमान के लिए स्मृतियाँ जोड़ता चला जाता है. इस कहानी को जितनी बार पढ़ो, अपना नया और आत्मीय पाठ हमारे लिए छोड़ जाती है.Laxman Singh Bisht Batrohinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-80382855327700505882016-12-08T21:56:24.629+05:302016-12-08T21:56:24.629+05:30समालोचन और सुशान्त जी को बहुत बधाई। बढ़िया अनुवाद। ...समालोचन और सुशान्त जी को बहुत बधाई। बढ़िया अनुवाद। शिवानंद जी के कहे में मेरी भी हाँ।अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-82482042168365147682016-12-08T17:14:47.204+05:302016-12-08T17:14:47.204+05:30कहानी के प्रवाहपूर्ण अनुवाद के लिए सुशान्त जी तारी...कहानी के प्रवाहपूर्ण अनुवाद के लिए सुशान्त जी तारीफ के काबिल हैं। इसे पढ़वाने के लिए आपको बहुत धन्यवाद।डॉ. सुमीताnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-85487845008417285602016-12-08T12:13:03.585+05:302016-12-08T12:13:03.585+05:30रोमांचकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद रोमांचकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-81571245315554499552016-12-08T09:09:16.559+05:302016-12-08T09:09:16.559+05:30कहानी जिसे जादुई यथार्थ कहा गया है, वास्तव में वह ...कहानी जिसे जादुई यथार्थ कहा गया है, वास्तव में वह है. अनुवाद सुशांत जी ने हिदीं की अपनी प्रकृति के अनरूप ही किया है. वैसे अनुवाद कला है और बेहतर होने की हमेशा संभावना तो रहती ही है. अरुण देव की टिप्पणी भी माकूल है. कम शब्दों में अक्सर वह बड़ी बात कहते हैं. प्रस्तुति की जितनी तारीफ की जाये कम ही है. समालोचन हिंदी ही नहीं मुझे तो लगता है सभी भारतीय भाषाओँ में सबसे बेहतरीन वेब पत्रिका है. इसकी बधाई स्वीकार करें. शिवानन्द पाण्डेयnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-68896259658989666442016-12-07T23:04:23.643+05:302016-12-07T23:04:23.643+05:30सुशांत सुप्रिय का अनुवाद सचमुच बढिया है . म...सुशांत सुप्रिय का अनुवाद सचमुच बढिया है . मार्खेज़ की शैली के प्रवाह और उनकी साहित्यिकता की रक्षा करने में सफल. बधाई .आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-63095420717430532432016-12-07T20:08:08.613+05:302016-12-07T20:08:08.613+05:30एक अद्भुत कथा, जो अपने समय और हमारे समय को जोडती ह...एक अद्भुत कथा, जो अपने समय और हमारे समय को जोडती हुई मानव सभ्यता का विराट वितान रचती है. इसे हिंदी में बेहद कलात्मकता के साथ प्रस्तुत करने के लिए अरुण देव और सुशांत सुप्रिय को धन्यवाद.batrohihttps://www.blogger.com/profile/07370930712240772275noreply@blogger.com