tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post7130976142977693205..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सबद भेद : मैत्री की मांग (मुक्तिबोध) : सुमन केशरीarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-73643318522348716252021-09-11T22:58:56.417+05:302021-09-11T22:58:56.417+05:30क्या शानदार समीक्षा है। आद्योपांत पढ़ गया। कहानी पढ़...क्या शानदार समीक्षा है। आद्योपांत पढ़ गया। कहानी पढ़ने के लिये लालायित हूँ। Dr. Paritoshhttps://www.blogger.com/profile/00288340890709297104noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-55323032859970568992018-09-11T17:00:39.824+05:302018-09-11T17:00:39.824+05:30कुमार ध्रुवम, जब तक रचना के भीतर न उतरा जाए तब तक ...कुमार ध्रुवम, जब तक रचना के भीतर न उतरा जाए तब तक पढ़ने का आनंद नहीं है। रचना पढ़े बिना समाज राजनीति आदि की बात करना एक तरह से रचना को ढंक देना है। Sumanhttps://www.blogger.com/profile/04176969197101016911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-51703562913749965032018-07-24T19:00:44.549+05:302018-07-24T19:00:44.549+05:30शिव किशोर जी, आपने सही कहा, किसी भी समय में विवाहे...शिव किशोर जी, आपने सही कहा, किसी भी समय में विवाहेतर शरीर संबंध संभव था या रहेगा। सवाल यह है कि सुशीला अर्थात नायिका को किस तरह के संबंध की तलाश है। कहानी का शीर्षक बहुत कुछ उजागर करता है। Sumanhttps://www.blogger.com/profile/04176969197101016911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36015943085710770272018-07-23T16:20:15.555+05:302018-07-23T16:20:15.555+05:30बहुत आभार सलोनी बहुत आभार सलोनी Sumanhttps://www.blogger.com/profile/04176969197101016911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-72051142356220890102018-07-23T16:19:34.833+05:302018-07-23T16:19:34.833+05:30सुधा वर्षों से यह कहानी मेरे साथ रहती आई है। इसीलि...सुधा वर्षों से यह कहानी मेरे साथ रहती आई है। इसीलिए इसकी कई पर्तें उजागर हुईं। सच बात है बिना परकाया प्रवेश के न तो पढ़ना संभव है और न लिखना। मुक्तिबोध का मन कितना साफ़ है देखने की बात यह है।Sumanhttps://www.blogger.com/profile/04176969197101016911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-26561748305439262482018-07-23T16:16:08.689+05:302018-07-23T16:16:08.689+05:30स्वाति दामोदरे,यही विडंबना है स्त्री पुरुष संबंधों...स्वाति दामोदरे,यही विडंबना है स्त्री पुरुष संबंधों की। स्त्री को जब तक एक पूर्ण व्यक्ति के तौर पर नहीं देखा जाएगा, यही होता रहेगा। स्त्री भी कालांतर में मानने लगेगी कि संबंधों का सच देह से होकर ही गुज़रता है। <br />सुमन केशरीSumanhttps://www.blogger.com/profile/04176969197101016911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-2971912368792644872018-07-22T22:27:33.909+05:302018-07-22T22:27:33.909+05:30शुक्रिया मॅम।मेरे कई सवालो के जबाव है कहानी मे।सुश...शुक्रिया मॅम।मेरे कई सवालो के जबाव है कहानी मे।सुशीला के अनुभवो से तो संसार की हर स्त्री गुजरती होगी।स्त्री के देह का मोह मित्र को होना और आशंकित पती ने उनकी मित्रता पर पूर्णविराम रख देना,यह आम बात है।दोनो पुरुष अपनी बात पर कायम भी रहेंगे और justify भी करेंगे।परंतु स्त्री के मन मे क्या था और क्या उसके मन की अवस्था है ये दोनो नही सोचेंगे और जरूरी भी नही समझेंगे। मोह से परे मैत्री का रिश्ता तो द्रौपदी को ही नसीब हुआ होगा आज तक शायद।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/18100196526518598227noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-55296148935704865922018-07-22T15:14:42.900+05:302018-07-22T15:14:42.900+05:30मैंने उपरोक्त सभी कमेंट्स आज इस लिंक को शेयर कपते ...मैंने उपरोक्त सभी कमेंट्स आज इस लिंक को शेयर कपते हुए फेसबुक पर कॉपी पेस्ट कर दिए हैं...Sumanhttps://www.blogger.com/profile/04176969197101016911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-32576043979934526962018-07-22T12:19:51.716+05:302018-07-22T12:19:51.716+05:30आज पढ़ रही हूँ आपलोगों के कंमेट्स को। इस देरी के ल...आज पढ़ रही हूँ आपलोगों के कंमेट्स को। इस देरी के लिए तहेदिल से माफ़ी मांगती हूँ।सचमुच इस लेख को लिखना सार्थक हुआ। दरअसल औरत को देह से जुदा, एक एजेंसीयुक्त मानव मानने वाली दृष्टि जिस दिन सभी में, और खासतौर पर खुद औरत में पैदा हो जाएगी, उस दिन नजरिया बदलेगा। मैं आप लोगों के मतों के लिए दिल से आभारी हूँ...<br />सुमन केशरीSumanhttps://www.blogger.com/profile/04176969197101016911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-3119682571737506452017-09-16T21:00:36.471+05:302017-09-16T21:00:36.471+05:30इस कहानी के लगभग सत्तर साल बाद भी स्त्री-पुरूष के ...इस कहानी के लगभग सत्तर साल बाद भी स्त्री-पुरूष के संबंधों को देखने-समझने में कोई अंतर नहीं आया है।संभव तभी होगा जब पुरुष अपनी सभी कुंठाओं और देहाकर्षण से मुक्त होकर<br /> स्त्री को व्यक्ति समझे। अगुआई पुरुषों को करनी होगी तभी मैत्री सम्बन्ध कायम हो पायेंगे। मुक्तिबोध की बहुत बेहतरीन कहानी और मैम आपके आलेख की जितनी भी प्रशंसा करुं कम है। शुक्रिया मैम जो आपने इस कहानी की मूल संवेदना को उजागर किया। आपने केवल कहानीकार का ही परकाया प्रवेश नहीं किया बल्कि स्त्री के मन को समझने-समझाने का बेहतरीन कोशिश किया है, बहुत आभार आपका...सुधाnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-1037632895336111792017-09-12T08:53:55.675+05:302017-09-12T08:53:55.675+05:30दर असल मुक्तिबोध की स्त्री बौधिक स्त्री है केवल &q... दर असल मुक्तिबोध की स्त्री बौधिक स्त्री है केवल "मैत्री की मांग " मे ही हमें इस मैत्रीपूर्ण भावो से भरी स्त्री नहीं मिलती बल्कि उनकी लगभग हर कहानी की स्त्री पात्र इसी तरह के मैत्री भाव में है यहाँ तक की प्रेमिका भी। बात यह है कि मुक्तिबोध के लिए स्त्री कोई लिंगिय भेद या वैचारिकी की कमतरी का मसला नहीं थी उन्होने बड़े सहज रुप मे स्त्री को पुरुषों के समकक्ष रखने की समानता अपनी रचनाओं में सम्भव की इसलिए मुक्तिबोध की रचनाओं की स्त्री खुली है स्पष्ट है।उसके साथ आप तर्क कर सकते है उसके जिन्दगी के नजरिये से सहमत या असहमत हो सकते है लेकिन भावुक नहीं हो सकते। दर्द का रिश्ता उसके साथ मनुष्यता का रिश्ता है।Shivani Guptanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-12961447536362175742017-09-11T20:07:39.776+05:302017-09-11T20:07:39.776+05:30 आलेख अच्छा लगा। मुझे लगता है कि मुक्तिबोध की नायि... आलेख अच्छा लगा। मुझे लगता है कि मुक्तिबोध की नायिका एक नये रोल की मांग करती है। 1942 के छोटे कस्बे में एक प्रायः अनपढ़ निम्नमध्यवर्गीय स्त्री की भूमिकाएं नियत और अचल थीं। इस मुगालते में न रहा जाय कि विवाह के बाहर यौन संबंध इस तबके की औरत के लिए अकल्पनीय था। जिस तरह इलाहाबादी बाबू को यह बात पता है उसी तरह नायिका को भी। यह कहानी इस बारे में नहीं है जैसा सुमन केशरी ने स्पष्ट किया है। <br />जिस नई भूमिका पर नायिका दावा पेश करती है वह उस समाज में स्त्री पुरुष दोनों को ही उपलब्ध नहीं था। कहानी की थीम समझाने के लिए सुमन जी को धन्यवाद। आपको भी ऐसा आलेख प्रकाशित करने के लिए।Tewari Shiv Kishorenoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-80602219499747190612017-09-11T20:02:50.993+05:302017-09-11T20:02:50.993+05:30पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा।पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा।Saloni sharmahttps://www.blogger.com/profile/01298425880007698617noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-31881798913160125932017-09-11T19:31:49.896+05:302017-09-11T19:31:49.896+05:30कहानी बहुत सधी हुई है। सुशीला में थोड़ा-सा भी यदि म...कहानी बहुत सधी हुई है। सुशीला में थोड़ा-सा भी यदि मैत्री के साथ साथ प्रेम भी होता तो यह विवाहेतर संबंध की कहानी हो जाती है लेकिन मुक्तिबोध ने सुशीला के चरित्र को बड़े संतुलन से साधा है। मैडम, आपने इस मर्म को समझा और इसपर लिखा इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं। सादर, आनंद पांडेयहिंदीपट्टीhttps://www.blogger.com/profile/00347895668139412017noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-81949070609040748352017-09-11T19:25:16.756+05:302017-09-11T19:25:16.756+05:30आपने बिलकुल सही कहा ! कहानी की व्याख्या कहानी के प...आपने बिलकुल सही कहा ! कहानी की व्याख्या कहानी के प्रभाव को दुगना कर दिया है यह कहना अनुचित ना होगा! **अंजू**https://www.blogger.com/profile/10013969052154140027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-77210690282926969462017-09-11T19:22:53.269+05:302017-09-11T19:22:53.269+05:30बहुत बधाई मैम!! आपने स्त्री के मन की गहरे परतों मे...बहुत बधाई मैम!! आपने स्त्री के मन की गहरे परतों में दबी भावनाओं का बख़ूबी विश्लेषण मुक्तिबोध की इस कहानी के माध्यम से किया है! मैं ही नहीं बल्कि अधिकांश स्त्रियाँ इस बात से सहमत होगी कि इस उत्तरोत्तर युग में भी यह मैत्री लगभग असंभव है! एक स्त्री में ही आत्मा के स्तर पर जुड़ने का भाव होता है और शोध का विषय है कि स्त्री पति के दैहिक प्रेम में वह प्लेटॉनिक लव नहीं महसूस कर पाती इसलिये तो नहीं देह से परे वह पुरूष मैत्री में प्रेम ढूँढती है? नदी के द्वीप में अज्ञेय ने भुवन को भी इस दुविधा में दिखाया है और वह पुरूष होते हुये भी रेखा के अपने रिश्ते को सुदंर से सुदंरतर की ओर ले जाना चाहता है ! वह प्रेम है या मैत्री ... देह को दोनों से परे रखने की चाह का स्वाभाविक अवलोकन स्त्री की भावनाओं में ही होता है !! ये मेरा भी बड़ा प्रिय विषय है! मैं आपके आलेख का बेसब्री से प्रतीक्षा करती हूँ! **अंजू**https://www.blogger.com/profile/10013969052154140027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-70402263095976742802017-09-11T19:11:25.232+05:302017-09-11T19:11:25.232+05:30समालोचन पर आज मुक्तिबोध की कहानी 'मैत्री की मा...समालोचन पर आज मुक्तिबोध की कहानी 'मैत्री की मांग' पर आपका आलेख पढ़ा।<br />कई दिनों बाद ऐसा आलेख मिला जिसको पढ़ने के बाद कुछ लिखने की इच्छा बलवती हो जाती है। सामान्य तौर पर कथावस्तु को लेकर देश,दुनिया समाज से जोड़ते हुए आलेख लिख दिया जाता है पर वह उतना प्रभावी नहीं होता। इस आलेख में जिस तरह घुसकर इसके एक एक पंक्ति का, पाठ का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्लेषण किया गया है वह मुक्तिबोध की परकाया प्रवेश से किसी माने कम नहीं है। ऐसी लेखनी के लिए बार बार साधुवाद...।<br /><br />Kumar Dhruvamnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-56915506105346317432017-09-11T17:35:04.656+05:302017-09-11T17:35:04.656+05:30 Suman g ka aalekh padhkar acha lga.khani pdna pd... Suman g ka aalekh padhkar acha lga.khani pdna pdegaAnupam Rathorenoreply@blogger.com