tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post7059860464874632918..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सहजि सहजि गुन रमैं : राकेश श्रीमालarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-17212605039511038512011-10-10T16:14:58.670+05:302011-10-10T16:14:58.670+05:30Arse Baad Rakesh Ki Kavita Samne Aai Thi..Pehele S...Arse Baad Rakesh Ki Kavita Samne Aai Thi..Pehele Se Vah Niraala Tha..Uski Sahaj Anubhuti Kabile Taarif Hai..Shubhkamnaayen Deti Hun...Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-25136191723050419382010-12-08T17:09:52.560+05:302010-12-08T17:09:52.560+05:30बचाने के लिए नहीं है हमारा प्रेम ....sach...bahut ...बचाने के लिए नहीं है हमारा प्रेम ....sach...bahut sundarपारुल "पुखराज"https://www.blogger.com/profile/05288809810207602336noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-55026850494513528942010-12-06T13:40:15.897+05:302010-12-06T13:40:15.897+05:30प्रेम वैयक्तिक अनुभूति है, यह सच है लेकिन यह भी उत...प्रेम वैयक्तिक अनुभूति है, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है प्रेम जीवन को उदार बनाता है और दृष्टि को उदात्त। निजी पीड़ाओं और वेदनाओं का अतिक्रमण ही प्रेम का अभीष्ट है, इसी से यह काल का भी अतिक्रमण कर पाता है। दूसरे शब्दों में शाश्वत अभिव्यक्ति होना प्रेम की अनिवार्य शर्त है, ऐसा नहीं है तो उसका मूल्य व्यक्तिगत किस्से से अधिक कुछ नहीं। श्रीमाल जी की कविताएं सच्ची प्रेम कविताएं हैं जो अपने निजी अनुभवों को व्यापक जगत की संवेदनाओं से एकाकार करती हैं। इनमें अनुभूति की तीव्रता तो है लेकिन अभिव्यक्ति का सयंम कहीं टूटा नहीं है। श्रेष्ठ रचनाओं के लिए बधाई।mayamrighttps://www.blogger.com/profile/11164036032627118131noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-39798153740371500272010-12-05T20:44:26.669+05:302010-12-05T20:44:26.669+05:30इन्हीं शब्दों में इस समय
मैं खोज रहा हूं तुम्हे...इन्हीं शब्दों में इस समय<br />मैं खोज रहा हूं तुम्हें<br />ना जाने तुम<br />किस पैराग्राफ के किस वाक्य में<br />किस छोटी या बडी मात्रा में<br />छिपी बैठी मुझे देख रही हो<br /><br />...बहुत सुंदर राकेश जी...manoj chhabrahttps://www.blogger.com/profile/10273888640315907337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-74912225016309206002010-12-05T07:12:56.683+05:302010-12-05T07:12:56.683+05:30इधर देखो
अनंत से धूसर थपेड़ों से बनी स्याही लेकर
...इधर देखो<br />अनंत से धूसर थपेड़ों से बनी स्याही लेकर<br />समय के विराट असीम कागज पर <br />लिख दिया है मैंने<br />प्रे म <br /><br />और ये कागज़ दर्ज है इतिहास के पन्नों पर<br />भित्ती चित्र सा ...<br /><br />इधर देखो<br />हमारा अपना ही चेहरा<br />दिख रहा है हमें समय में<br /><br />असंख्य चेहरों से अलग-थलग<br />एक दूसरे को देखता हुआ<br />सुकून से तृप्त होने वाली<br />जिज्ञासाओं को समेटे<br />कोई जल्दी नहीं कभी भी<br /><br />रुक सकते हैं तब तक .. जब तक झिमिलायेगा समय<br />अपनी चाँद -सी चिकनी परत लिए ...<br /><br />इधर देखो<br />इधर ही रहते हैं<br />हमसे परिचय करने को आतुर<br />हम जैसे कई सारे लोग.<br /><br />नदी की मटकी , खूँटी पर लटके सपने<br />गीले मौसम और पहाड़ियां लिए ..<br />गुज़र जाते हैं<br />सूरज की तपन पर<br />पगडंडियाँ बनाते लोग ...<br /><br />इन्हीं शब्दों में इस समय<br />मैं खोज रहा हूं तुम्हें<br />ना जाने तुम<br />किस पैराग्राफ के किस वाक्य में<br />किस छोटी या बडी मात्रा में<br />छिपी बैठी मुझे देख रही हो .<br /><br />एक कविता भर छुपन-छुपाई लिए ...<br /><br />पर मत आना उसकी बातों पर<br />बचाने के लिए नहीं है हमारा प्रेम<br />जैसे कि हमारा जीवन.<br /><br />चुकाने के लिए है<br />जैसे उतारता है चाँद<br />रात का क़र्ज़<br />पूर्णिमा बनकर ...<br />सभी कविताएँ सुन्दर , अप्रतिम ...अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-15864592777873271762010-12-04T20:10:10.959+05:302010-12-04T20:10:10.959+05:30इधर देखो/
“हमारा अपना ही चेहरा
दिख रहा है हमें समय...इधर देखो/<br />“हमारा अपना ही चेहरा<br />दिख रहा है हमें समय में”/<br />कहीं उकता ना जाएं हम<br />इसलिए यात्राएं भी चुपके से रख दी हैं..........ajay rohillanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-33036446604627136132010-12-04T18:04:03.446+05:302010-12-04T18:04:03.446+05:30एक जादूगर जो जादू दिखता है वो कहते हैं कि “हाथ की ...एक जादूगर जो जादू दिखता है वो कहते हैं कि “हाथ की सफाई” ये जादूगर “राकेश श्रीमाल जी” जब शब्दों का जाल बिछा देते हैं तो ये पंक्षी प्यासा (भरत तिवारी) जानते हुए भी की बचेगा नहीं जाल के जाल से ... मस्त हो जाता है , और बस ............... असीम खुश <br />बहुत बहुत शुक्रिया की आपने इधर देखा सर !<br /><br />मन को हिलाते हुए “ऋतुओं से चुराकर थोड़े-थोड़े टुकड़े” और “बड़ी संख्या में रविवार भी” क्या प्रेम है बता गए <br /><br />“हमारा अपना ही चेहरा<br />दिख रहा है हमें समय में”<br />“एक दूसरे को बता रहे हैं<br />हमारे ही चेहरों का पता<br />कभी भी<br />अपरिचित न बनने के लिए.”....................... सर सब कह दिया <br /><br />यहाँ तो सच में इधर देखने का शुक्रिया तह-ए-दिल से<br />“हमसे परिचय करने को आतुर<br />हम जैसे कई सारे लोग.”<br /><br /><br /><br />तुम एकाएक ही चली गईं<br />बिना यह बताए<br />वापस कब आओगी<br /><br />इन्हीं शब्दों में इस समय<br />मैं खोज रहा हूं तुम्हें<br />ना जाने तुम<br />किस पैराग्राफ के किस वाक्य में<br />किस छोटी या बडी मात्रा में<br />छिपी बैठी मुझे देख रही हो .<br />............. ये मेरी डायरी के पन्ने से आयी है सर , उस डायरी से जिसकी धूल से भी मुहब्बत है <br /><br /><br />कत्तई नहीं आना है कभी भी नहीं <br />बचाने के लिए नहीं है हमारा प्रेम<br />जैसे कि हमारा जीवन.”.... <br /><br />यही जीवन है, तो है..., बस <br />सादर <br />भरत तिवारी<br />नई दिल्ली<br />४/१२/२०१०Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-3531881790629920652010-12-04T16:04:39.578+05:302010-12-04T16:04:39.578+05:30abhinandan Rakeshji...dil ko chhu liya in panktoyo...abhinandan Rakeshji...dil ko chhu liya in panktoyon ne.....<br /><br />इधर देखो<br />हमारे चेहरे<br />एक दूसरे को बता रहे हैं<br />हमारे ही चेहरों का पता<br />कभी भी<br />अपरिचित न बनने के लिए.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13067257265755699872noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-41548266053079078002010-12-04T12:02:29.209+05:302010-12-04T12:02:29.209+05:30इन्हीं शब्दों में इस समय
मैं खोज रहा हूं तुम्हे...इन्हीं शब्दों में इस समय<br />मैं खोज रहा हूं तुम्हें<br />ना जाने तुम<br />किस पैराग्राफ के किस वाक्य में<br />किस छोटी या बडी मात्रा में<br />छिपी बैठी मुझे देख रही हो .<br /><br />बहुत ही अच्छी कवितायेँ अरुण जी. आपका आभार इन्हें हम तक पहुंचाने के लिए.मनोज पटेलhttps://www.blogger.com/profile/18240856473748797655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-67939503539808832462010-12-04T12:01:39.394+05:302010-12-04T12:01:39.394+05:30सम्मानीय राकेश जी, "ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो प...सम्मानीय राकेश जी, "ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए" इन चंद शब्दों में जो मूल नवनीतसम शब्द 'प्रेम' है, उसको विविध आयामों में, जीवन की व्युत्पत्ति और अवसान तक के सम्पूर्ण हिसाब-किताब के साथ जीवन की सम्पूर्ण व्याकरण में आप तलाश ही लेते हैं.जो जितना डूबा उसने उतना हे ये मधुर नवनीत चखा. ज्यों-ज्यों बूड़े श्याम रंग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होए. वैसे ही जीवन के अवसादों और नीरसता में जो जितना इन कविताओं में डूबा उसने उतना ही व्यक्त प्रेम का आनंद प्राप्त किया. प्रत्येक कविता प्रेम रस से सरोबार और सम्पूर्ण है. भाषा का प्रवाह अपने साथ सहज रूप में प्रवाहित कर रहा है. साधुवाद ! श्री राकेश जी, आपको और आपकी रचनाओं को नमन ! श्री अरुण जी का कोटिशः आभार ! प्रणाम !Narendra Vyashttps://www.blogger.com/profile/12832188315154250367noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-26792912898832230832010-12-04T10:45:46.506+05:302010-12-04T10:45:46.506+05:30AAJ JANASATTA ME MERA BHI LEKH HAAL HI KI KERAL YA...AAJ JANASATTA ME MERA BHI LEKH HAAL HI KI KERAL YAATRA PAR CHAPA HE.idharsedekhohttps://www.blogger.com/profile/10362704228219333306noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-13809462817275242382010-12-04T10:45:02.946+05:302010-12-04T10:45:02.946+05:30BAHUT HI SUNDAR KAVITAEN HE RAKESH G KO BADHAAIBAHUT HI SUNDAR KAVITAEN HE RAKESH G KO BADHAAIidharsedekhohttps://www.blogger.com/profile/10362704228219333306noreply@blogger.com