tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post6851062323796409796..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : करघे से बुनी औरत : शिव किशोर तिवारी arun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-33025368405265420752018-07-15T20:56:25.528+05:302018-07-15T20:56:25.528+05:30अरुण देव जी,दु:ख हुआ कोई विद्वान बदहवास/हतबुद्धि
...अरुण देव जी,दु:ख हुआ कोई विद्वान बदहवास/हतबुद्धि <br /> विवेक से काम न लेकर और अदब को <br /> भूलकर माहौल बिगाड़ने पर तुला है ।<br />ऐसे भाष्यकार / मुफ़स्सिर कभी सुनने -गुनने में नहीं आए।<br /> ज़माँ कुंजाही का एक शेर याद आ रहा है<br /><br /> "अजीब लोग हैं नेकी से दूर रहते हैं<br /> ये कैसा शहर है जिसमें बदी से रौनक़ है"<br /> इस बला-ए-नागहानी से परे ही बसीरत की पहचान हो तो बेहतर। <br />प्रताप सिंह प्रताप सिंहhttps://www.blogger.com/profile/15427251402142059910noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-91706430461511961302018-07-14T21:12:37.284+05:302018-07-14T21:12:37.284+05:30मुहम्मद अब्दुल्लाह सलमान साहब की सिंहभूम के विश्वव...मुहम्मद अब्दुल्लाह सलमान साहब की सिंहभूम के विश्वविद्यालय की उस्तानी पुष्पा सिंह स्वयं सामने आकर अपनी टिप्पणी का स्वीकार और और ज़रूरी हो तो बचाव क्यों नहीं कर रही हैं ?Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/18139708644770350589noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-8636191255995775692018-07-12T07:59:23.497+05:302018-07-12T07:59:23.497+05:30भाई एक तो उसमें 'नीच' शब्द का प्रयोग हुआ थ...भाई एक तो उसमें 'नीच' शब्द का प्रयोग हुआ था दूसरे वह बेनामी था. आपकी आलोचना का स्वागत है. <br />'अवसरवाद' और 'सत्तापरक' ? हे खुदा कौन इन आरोपों से बचा है. arun dev https://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-10327796650755474742018-07-11T23:38:56.363+05:302018-07-11T23:38:56.363+05:30अरुण देव , मै जानता हूँ आप मेरी टिप्पणी हटा दोगे. ...अरुण देव , मै जानता हूँ आप मेरी टिप्पणी हटा दोगे. आपका यह मर्यादित भाषा के नाम पर सत्ताशील लोगो की ठकुरसुहाती में अलोकतांत्रिक व्यवहार नया नही है .लेकिन इस व्यवहार से आप लोगो के विचार नही बदल सकते .आपके मुलायम चेहरे के पीछे छिपा अवसरवादी सत्तापरस्त झांक रहाAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/05553583733254981954noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-55352950607627293772018-07-11T23:35:58.757+05:302018-07-11T23:35:58.757+05:30
विष्णु प्रभाकर का नाम तो सुना था लेकिन यह अहं...<br /> विष्णु प्रभाकर का नाम तो सुना था लेकिन यह अहंकार का पुतला विष्णु खरे कौन है मै भी नही जानता जो समझता है कि सिर्फ नामचीन लोगो को कुछ लिखने का अधिकार है. अरुण देव को अपने लोगो की भाषा मर्यादित लग रही लेकिन जो इनके लोगो को कठोर शब्द लिखे वे अमर्यादित भाषा वाले हैं .असहमति का लोकतंत्र नही सहमति का सामंती ठाठ चाहिए .यह कुंठित व्यक्ति सिर्फ आनुमान पर बड़ी बड़ी हांक गया .तथ्य यह है कि पुष्पा सिंह जी कोल्हान वि वि ,सिंहभूम में हिंदी की सहायक प्रोफेसर हैं और आदिवासी स्त्रियों पर अपने गहन शोध के लिए जानी जाती हैं .अहंकार देखिए खरे का कि यह जिसको नहीं जानता उसका वजूद नही .<br /> मै पुष्पा सिंह जी का छात्र रहा हूँ और उनके नारीवाद पर काम से प्रभावित हूँ .<br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/05553583733254981954noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-44307073069690335892018-07-11T23:33:17.968+05:302018-07-11T23:33:17.968+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/05553583733254981954noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36862254763152962312018-07-11T04:57:31.438+05:302018-07-11T04:57:31.438+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Anuradha Singhhttps://www.blogger.com/profile/03936044011230849217noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-7937834611585310562018-07-10T23:08:29.051+05:302018-07-10T23:08:29.051+05:30अपने लगभग साठ वर्षों के साहित्यिक जीवन में मैंने क...अपने लगभग साठ वर्षों के साहित्यिक जीवन में मैंने कभी किसी ''पुष्पा सिंह '' नामक बुद्धिजीवी लेखिका को न देखा,न सुना,न जाना.ताहम मैंने एहतियातन इस क्षेत्र में विज्ञ और निष्णात कतिपय सक्रिय तत्वों से जानकारी हासिल करने की कोशिश की और उन सबका मानना था कि ऐसी कोई भी देवी किसी भी रूप में हिंदी सर्वभूतों में तिष्ठिता नहीं है.<br />यदि वह अब भी अपने भक्तों को प्रसाद देने प्रकट नहीं होती है तो इसके निहितार्थ किसी जासूसी उपन्यास की तरह भयावह हैं.यह तो सुविदित है कि Twitter,Whatsapp और Faecesbook ने सारे विश्व में एक अपराध-जाल बिछा दिया है जो हमारे निजी और सामाजिक जीवन को लगभग पूरी तरह नियंत्रित कर रहा है किन्तु अब हमारे शरीफ़ लेखक-बुद्धिजीवी भी इन्टरनेट पर खुफ़िया नक़ाबपोश माफ़िआओं में बदल कर एक डरावना जैकिल और हाइड खेल खेल रहे हैं जो हिंदी साहित्य के भीतर तक नासूर की तरह पहुँच रहा है.देखिए कि किस तरह सिंहनी की खाल ओढ़े यह पुष्पा देवी स्वयं प्रायोजित होकर गीदड़ी छद्मनाम से घिनौनी बेईमानी कर रही हैं.किसी रहस्यमय कारण से यह कवयित्री को ख़राब कहने का साहस न करते हुए मानों किसी पुराने इन्तिक़ाम में सदाशय कासिद का ही सर क़लम कर रही हैं.क्या ऐसी कायर,धूर्त और थोक चरित्रहंता शिखंडी पुष्पा सिंह को पहचानना इतना कठिन है जितना इन देवीजी और इनके गिरोह ने समझ रहा है ?<br />यदि हिंदी में कुछ लोग समझ सकें और समझना चाहें तो देखें कि स्वयं को वामपंथी कहने-कहलवाने लोग किस नारकीय नाबदान में पहुँच चुके हैं.<br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/18139708644770350589noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-3840856030029630512018-07-10T19:55:02.859+05:302018-07-10T19:55:02.859+05:30बेनामी की एक अमर्यादित टिप्पणी हटा दी गयी है, कृपय...बेनामी की एक अमर्यादित टिप्पणी हटा दी गयी है, कृपया भाषायी शिष्टाचार का ध्यान रखें ।arun dev https://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-80504412016683923992018-07-10T19:51:10.508+05:302018-07-10T19:51:10.508+05:30कविताओं पर मनबढ़ू पाठक की बेहद सारगर्भित टिप्पणी. ...कविताओं पर मनबढ़ू पाठक की बेहद सारगर्भित टिप्पणी. दोनों कविताएं पंक्ति-दर-पंक्ति इस लेख के बाद अधिक ग्राह्य हो जाती है. दूसरी कविता "सद्दाम हुसैन हमारी आखिरी उम्मीद था" रोष और विद्रोह के छंट जाने के बाद पाठक प्रेम की इस कविता का अनुभव सघनता से करते हैं.<br /><br />स्त्री के जगत के कई आख्यान हैं, दुख और प्रेम की सिंफनी भी. शिव जी ने तह तक इसकी टोह ली और पाठक को समृद्ध किया. <br /><br />Tewari Shiv Kishore जी और कवयित्रीको बहुत धन्यवाद.नीलोत्पलnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-58817641242007875412018-07-10T12:22:29.630+05:302018-07-10T12:22:29.630+05:30Arun Dev जी, पुष्पा सिंह की टिप्पणी के विषय में एक...Arun Dev जी, पुष्पा सिंह की टिप्पणी के विषय में एक खुलासा करना था। अनुराधा सिंह दरअसल मेरे गोत्र की हैं। इसके अतिरिक्त उन्होने मुझे डेढ़ सौ रुपये देने का वादा भी किया था।पुष्पा जी की वजह से पैसे तो अब क्या मिलेंगे। फिर भी अपने गोत्र वाले के लिए कुछ कर पाया यही ख़ुशी है।<br />शिव किशोर तिवारीnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-70939217663451313612018-07-10T09:14:44.360+05:302018-07-10T09:14:44.360+05:30आप सभी सम्माननीय पाठकों को मेरा हृदय से आभार।आप सभी सम्माननीय पाठकों को मेरा हृदय से आभार।Anuradha Singhhttps://www.blogger.com/profile/03936044011230849217noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-76878114402802000822018-07-10T09:13:04.870+05:302018-07-10T09:13:04.870+05:30सर हम सभी लोग कविता को कविता की तरह पढ़ना सीखने के ...सर हम सभी लोग कविता को कविता की तरह पढ़ना सीखने के लिए बार -बार आपकी ओर देखेंगे। संग्रह आपने पढ़ा है यह मेरे लिए और विनम्र होने का विषय है।Anuradha Singhhttps://www.blogger.com/profile/03936044011230849217noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-92022882074628922582018-07-10T08:02:03.390+05:302018-07-10T08:02:03.390+05:30इस समीक्षा की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह प्रायोजित ह...इस समीक्षा की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह प्रायोजित है इसलिए बेईमान है।गदगद भाव भरी हुई तिवारी जी की टिप्पणी काव्य संग्रह का विज्ञापन ज्यादा लगती है।यह स्पष्ट तौर पर विज्ञापन की भाषा है ,आलोचना की नही ।मैं सिर्फ मनबढ़उ पाठक हूँ जैसी टिप्पणी भी गैर जिम्मेवार है।व्यक्ति को अपने लिखे की जिम्मेवारी लेनी चाहिए वरना वह सार्त्र वाली bad faith के गिरफ्त में होता है।आलोचक झूठी तारीफ की झोंक में यह तक देखने से रह जाता है कि सद्दाम हुसैन विश्व को युद्ध मे नही झोंक रहा था बल्कि अमरीका तेल के लिए अपने नव उपनिवेशवादी लोभ में इन देशों पर आक्रमण कर रहा था।कविताएँ ठीक ठाक है मगर जिस अतिशयोक्ति का सहारा तिवारी जी ने लिया है वह बौद्धिक बेईमानी का नमूना है। छोटी जाति के युवक से प्रेम पर प्रतिबंध को बड़े मामूली मुहावरे में कविता रखती है।पियरे बोरदू आदि का सन्दर्भ लें तो यह प्रतिबन्ध छोटे जाति के युवक पर है मूलतः।बड़ी जाति की युवती की दृष्टि से देखे तो उसे एक घटिया या नीच व्यक्ति से प्रेम करने से रोका जा रहा। इसलिए जाति की बराबरी की प्रस्तावना के बिना छोटी जाति के युवक से प्रेम की यह प्रतिश्रुति न्याय पर आधारित न हो व्यक्तिगत अहम को आधार बनाती है।आश्चर्य नही कि अहंकार पर निर्भर होने के कारण यह आत्मघात या बकौल तिवारी जी विश्वघात की बात करता है।पुष्पा सिंहhttps://m.facebook.com/home.phpnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-58557678957454717772018-07-10T07:57:07.297+05:302018-07-10T07:57:07.297+05:30https://www.amazon.in/ISHWAR-NAHIN-CHAHIYE-Anuradh...https://www.amazon.in/ISHWAR-NAHIN-CHAHIYE-Anuradha-Singh/dp/8193655532arun dev https://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-50837069914718651182018-07-09T20:57:35.668+05:302018-07-09T20:57:35.668+05:30Ye kitaan kahaan se li ja sakti hai? Ye kitaan kahaan se li ja sakti hai? How do we knowhttps://www.blogger.com/profile/10997565750098001380noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-39236152482985084722018-07-09T20:50:12.051+05:302018-07-09T20:50:12.051+05:30अनुराधा सिंह की कविताओं का यह मुंहबोला सजग-पाठ उतन...अनुराधा सिंह की कविताओं का यह मुंहबोला सजग-पाठ उतना ही खरा है, जितनी कि स्त्री के नूतन पाठ से / मर्दवादी-रूढ़ियों को ललकारती ये कसैली कविताएं । <br />इस नये ढब के समालोचन की प्रस्तुति भी अद्वितीय है।<br />समीक्षा-वृत्ति से बचाकर ही इनका यह मौलिक विरेचन संभव हुआ। यही तिवारी जी की अपनी खूबी भी है।<br />उन्हें भी साधुवाद ।। कि उन्होंने इन कविताओं के आकलन के फेर में न पड़कर, सीधे उनके भाव-जगत में प्रवेश किया और उन्हें टोह लिया ।। मर्म को छूने वाले अब उन जैसे ही विवेक - सम्मत मर्मज्ञ कविताओं को चाहिएंं ।।<br /><br />प्रताप सिंहप्रताप सिंहhttps://www.blogger.com/profile/15427251402142059910noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-50551612108921900412018-07-09T17:12:07.186+05:302018-07-09T17:12:07.186+05:30आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10...आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-07-2018) को <a href="javascript:void(0);" rel="nofollow"> "अब तो जम करके बरसो" (चर्चा अंक-3028) </a> पर भी होगी।<br />--<br />चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।<br />जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।<br />--<br />हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।<br />सादर...!<br />डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-61058955980897166542018-07-09T15:19:48.847+05:302018-07-09T15:19:48.847+05:30आदरणीय तिवारी जी ने अपनी सशक्त लेखनी से हम लोगों क...आदरणीय तिवारी जी ने अपनी सशक्त लेखनी से हम लोगों को दोनों कविताओं के मर्म तक पहुँचा दिया है।यह आलेख भले ही दो कविताओं से संबंधित हो, लेकिन इसका एक वाक्य तो ऐसा है जो युगों युगों से चले आ रहे स्त्री-पुरुष प्रेम की एक दु:खद विडंबना की ओर ध्यान खींचता है:-<br />“मानव सभ्यता के आदि से प्रेम स्त्री के लिये घाटे का सौदा रहा है-‘अनइक्वल एक्सचेंज’ जिसमें शोषण का तत्त्व अपरिहार्य रूप से अंतर्निहित रहा है।”<br />इतने सहज रूप से इतनी सत्य बात को कोई ऋषि तुल्य व्यक्ति ही कह सकता है।<br />Ravindra Upadhyayanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-53121624367607114742018-07-09T10:39:58.049+05:302018-07-09T10:39:58.049+05:30केशव किशोर तिवारी की टिप्पणी अत्यंत सामयिक,स्पर्शी...केशव किशोर तिवारी की टिप्पणी अत्यंत सामयिक,स्पर्शी और सच्ची है.अनुराधा सिंह को पढ़ने के बाद मैं कह सकता हूँ कि वह अपने इस पहले संग्रह से ही आज की समूची - महिला-पुरुष - हिंदी कविता में अपनी जगह बना चुकी हैं.उनकी रचनाएँ इतनी उम्दा हैं कि यकबारगी विश्वास नहीं होता कि वाक़ई ऐसी कविताएँ लिखी जा रही हैं और आप उन्हें पढ़ रहे हैं.उनकी ख़ूबियों पर एक लम्बी समीक्षा अनिवार्य हो चुकी है.हिंदी में उन जैसी स्त्री-पुरुष प्रतिभाओं की नूतन उपस्थिति से कम-से-कम मुझे अत्यधिक हर्ष और फ़ख्र होता है,कविता में निरंतर नई ज़िन्दगी,उम्मीद और प्रेरणा आती रहती हैं.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/18139708644770350589noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-76317633466845975142018-07-09T10:05:02.679+05:302018-07-09T10:05:02.679+05:30कविता अच्छी है, इसकी व्याख्या भी उचित है. जिस तरह...कविता अच्छी है, इसकी व्याख्या भी उचित है. जिस तरह से यह पूरा अंक तैयार हुआ है वह भी मनभावन है. सबसे शानदार है रज़ा साहब की पेंटिग और उसका कैप्शन, यह बहुत कुछ कहता है. <br /><br />समालोचन हिंदी की उत्कृष्ट वेब पत्रिका है. आपको बधाई.रामाश्रय रायnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-41786578406944389332018-07-09T10:00:56.153+05:302018-07-09T10:00:56.153+05:30नई कविता से सामान्यतः चिढ़ने, खीजने, ऊबने वाले लोगो...नई कविता से सामान्यतः चिढ़ने, खीजने, ऊबने वाले लोगों के लिये इस तरह की आलोचना उसे समझने, उसके पास आने, उसमें उतर जाने की कुंजी है। शानदार कविता और उतनी ही शानदार आलोचना। ������������प्रिय अभिषेकnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-22726398962468331702018-07-09T09:45:31.574+05:302018-07-09T09:45:31.574+05:30 मनबढ़उ पाठक की अच्छी टीप । लोग कवि कहलाने से नहीं ... मनबढ़उ पाठक की अच्छी टीप । लोग कवि कहलाने से नहीं डरते लेकिन तिवारीजी आलोचक कहलाने से डरते हैं । हिंदी में जो आलोचक कहलाते हैं, उनको देखते हुये तिवारीजी का डर स्वाभाविक है । साधुवाद ।Krishna Kalpitnoreply@blogger.com