tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post6815200782251946300..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सबद भेद : पूर्वोत्तर और हिंदी : गोपाल प्रधानarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-4783608308544812422014-08-30T08:57:53.150+05:302014-08-30T08:57:53.150+05:30पूर्वोत्तर के साथ-साथ देश में हिंदी की वास्तविकता ...पूर्वोत्तर के साथ-साथ देश में हिंदी की वास्तविकता का भीतर तक पैठ कर सुन्दर विश्लेषणKamakhya Narayan Singhhttps://www.blogger.com/profile/05579921411011458951noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-28838429431204363312011-07-30T20:00:37.209+05:302011-07-30T20:00:37.209+05:30देश का दुर्भाग्य है कि एकता के सूत्र खुले और फैले ...देश का दुर्भाग्य है कि एकता के सूत्र खुले और फैले पड़े हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36312603863668714422011-07-30T18:13:42.181+05:302011-07-30T18:13:42.181+05:30गोपाल जी बहुत सुलझे हुए और चिंतनशील लेखक हैं,,बहुत...गोपाल जी बहुत सुलझे हुए और चिंतनशील लेखक हैं,,बहुत अच्छा आलेख जो ना सिर्फ पूर्वोत्तर में हिन्दी के प्रचार और उपयोग को रेखांकित करता है ,बल्कि इसकी तस्दीक भी करता है की देश का वह हिस्सा जो अभी तक रहस्यमय और अबूझ बना हुआ था वह वास्तव में कितनी जीवन्तता और सांस्कृतिक संवेदनो से परिपूर्ण है ,गोपाल जी को पढना सुखद होता है .परितोषhttps://www.blogger.com/profile/05931957208229640528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-61907035620616342572011-07-30T12:47:06.404+05:302011-07-30T12:47:06.404+05:30असम में तीन साल एक हिंदी समयार पत्र में काम करने क...असम में तीन साल एक हिंदी समयार पत्र में काम करने का मौका मिला। वहां हिंदी बोलने वालों को स्थानीय लोग हिंदुस्तानी बोलते हैं। कई बार हैरत होती थी, लेकिन उस दौरान आंदोलन का जोर था, इसलिए हमलोग खबरों की दुनिया से कुछ अलग सोच नहीं पाए।<br />लेकिन मुझे गुवाहाटी के साथ ही मणिपुर में कई ऐसे लोग मिले जो हिंदी के लिए बहुत काम कर रहे थे, कई पत्रिकाएं भी निकालते थे। उसमें एक आईपीएस की पत्नी भी अहम भूमिका निभा रहीं थीं।महेन्द्र श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09549481835805681387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-17657132538606761512011-07-29T21:12:44.374+05:302011-07-29T21:12:44.374+05:30हिंदुस्तान की त्रासदी है कि इस देश की कोई राष्ट्रभ...हिंदुस्तान की त्रासदी है कि इस देश की कोई राष्ट्रभाषा नहीं . हाँ , पर हिंदी अपने विविध रूपों में समन्वय का कार्य कर रही है , इससे इनकार नहीं किया जा सकता . <br />गंभीर , चिंतनशील और जन चेतना से सरोकार रखता लेख .<br />गोपाल जी को पढ़ना हमेशा सुखद रहा है . अरुण आपका आभार .अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.com