tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post6770361131158489230..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : हस्तक्षेप : विकल्प की पत्रकारिता : संजय जोठेarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-23122253457077261142015-10-20T11:00:04.796+05:302015-10-20T11:00:04.796+05:30रविश कुमार बिहार चुनावों को कवर करते हुए पोजिटिव क...रविश कुमार बिहार चुनावों को कवर करते हुए पोजिटिव केस स्टडीज लेकर आ रहे हैं... बहुत ही सुन्दर बात ...Sanjay Jothehttps://www.blogger.com/profile/12892129847308907408noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-12591702088020238592015-10-09T17:36:45.046+05:302015-10-09T17:36:45.046+05:30धर्म और संस्कृति को एक साथ रखने वाला, नया धर्म और ...धर्म और संस्कृति को एक साथ रखने वाला, नया धर्म और पुराने धर्म को देखने वाला या धर्म को जैन, बौद्ध आदि-आदि तक सीमित करके देखने वाला मनुष्य धर्म के यथार्थ से अपनी अनभिज्ञता को स्वयंसिद्ध करता है | धर्मगुरु, धर्म के ठेकेदार, साहित्यकार, पत्रकार या अन्य कोई, अगर ये सब धर्म के यथार्थ से अतीत होते हुए धर्म में हस्तक्षेप करते हैं, तब ये धर्म के साथ-साथ पूरे लोक को हानि पहुँचाने वाले होते हैं और इसमें आप भी शामिल दिखाई देते हैं | हमारे इस प्रकार से लिखने पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है ?<br />"धर्म" इस मनुष्यलोक में मात्र एक धर्म ही तो है जो ज्ञानमार्ग है | क्या हमारे इस लोक में ज्ञान और बुद्धि को एक मानकर चलना ही हमारे लोक की असंख्य विषमताओं का मूल है ? धर्म के साथ 'ज्ञान' शब्द का अभाव रखने वाला कोई भी मनुष्य क्या पूरे लोक के हित की विषय-वस्तु का स्वयं भी दर्शन कर सकता है ? <br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/17038069142311722442noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-33671084127973206922015-10-08T21:01:27.238+05:302015-10-08T21:01:27.238+05:30लेख कई सवाल खड़े करता है. कुछ चुनौतियां भी, खासकर ...लेख कई सवाल खड़े करता है. कुछ चुनौतियां भी, खासकर उन लोगों के लिए जो वर्तमान व्यवस्था से खिन्न हैं और इसमें बदलाव चाहते हैं. लेकिन लेख घूम—फिरकर एक ही जगह आ जाता है, कि भारत को दुनिया से कुछ सीखने की जरूरत नहीं है. जो कुछ है, सब यहीं है. बुरी बात नहीं है. यदि ऐसा हो तो कितना अच्छा हो. पर क्या ऐसा है? भारतीय मनीषा की उदारता की चाहे जितनी चर्चा होती हो, सच यह भी है कि यहां व्यक्ति ही नहीं, विचार की भी निर्मम हत्या होती आई है. एक समय में आजीवक संप्रदाय के अनुयायी गौतम बुद्ध के अनुयायियों से अधिक थे. आज उस संप्रदाय का उस समय का स्वतंत्र ग्रंथ हमें प्राप्त नहीं होता. क्यों? क्या इतना बड़ा संप्रदाय बिना विचारों के ग्रंथीकरण के संभव हो सकता था? <br /><br />वामपंथियों को कुछ न कर पाने का दोष दिया गया है. आरोप पूरी तरह गलत भी नहीं है. लेकिन वामपंथ की आलोचना करते समय यह बात बिसरा दी जाती है कि इस देश में वामपंथ की राजनीति करने वाले अधिकांश लोग, जातिवादी मानसिकता से बाहर नहीं थे. इस तरह वे वामपंथ के मूल अवधारणा 'वर्गहीन समाज' का अपने जीवन से ही निषेध करते थे. उनके चलते इस देश में, यहां की आवश्यकता को ध्यान में रखकर वामपंथी लेखन हुआ ही नहीं. दूसरे हमारे लिए 'माक्र्सवाद' बाहरी विचार हो सकता है, लेकिन माक्र्सवादी चिंतन जिस वर्गहीन समाज की संकल्पना पर खड़ा है, वह बाहर का नहीं है. यह इतना ही पुराना है जितनी यहां की जनसंस्कृति. इसलिए कमी विकल्पों की नहीं है, अपनी आंख पर चढ़ी उस पर्त को हटाने की है जो एक दायरे से बाहर देखने की अनभ्यस्त हो चुकी है, कि बिना धर्म के दुनिया चल ही नहीं सकती. जबकि दुनिया का कोई भी धर्म दो—ढाई हजार वर्ष से पुराना नहीं है. तो क्या उससे पहले समाज नहीं था? <br />कबीर और रैदास नए समाज के गठन में प्रासंगिक हो सकते हैं. रैदास की 'बेगमपुरा' और कबीर की 'अमरपुरी' की परिकल्पना में नए समाज के गठन के संकेत हैं. इनमें परिवर्तन का विकल्प बनने की भरपूर संभावना है. विडंबना है कि कबीर और रैदास की दोनों की चर्चा धार्मिक और जातिवादी दुराग्रह के विरोध के संदर्भ में तो होती है. 'बेगमपुरा' और 'अमरपुरी' के संदर्भ में नहीं. यह ठीक है कि भारतीय समाज की समस्याएं बहुत पुरानी हैं. खासकर धर्म और सांस्कृतिक जड़ता के मसले. लेकिन उनके निदान के लिए अब न बौद्धधर्म सहायक हो सकता है, न ही गोरखनाथ. 'बेगमपुरा' और 'अमरपुरी' की ओर जाने वाला रास्ता नए ज्ञान और प्रौद्योगिकी के सहारे ही निकलेगा. स्थिति चुनौतीपूर्ण भले हो, हताशाजनक कतई नहीं है. ओमप्रकाश कश्यपhttps://www.blogger.com/profile/15528163513667115228noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-80579433799082289282015-09-23T08:00:00.242+05:302015-09-23T08:00:00.242+05:30रवीश की पत्रकारिता 'विकल्प की पत्रकारिता '...रवीश की पत्रकारिता 'विकल्प की पत्रकारिता ' का ही एक प्रशंसनीय उदाहरण है ।जो समाज के भदेस का ही परदाफ़ाश नहीं करता वरन उसे चुनौती भी देता है ।<br />Unlike · Reply · 2 · 12 hrsVandana Sharma ·noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-91912543895951134292015-09-22T09:31:15.396+05:302015-09-22T09:31:15.396+05:30 लेख बहुत अच्छा है और सिर्फ पत्रकारिता पर ही नहीं ... लेख बहुत अच्छा है और सिर्फ पत्रकारिता पर ही नहीं बन रहे कट्टर समाज को भी आगाह करता है भाई अरुणदेव बहुत सुक्रिया इतना शानदार लेख साझा किया..Lokmitra Gautamnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-49822886468004463962015-09-21T16:23:15.355+05:302015-09-21T16:23:15.355+05:30 वाजिब मुद्दों का सार्थक व सटीक विश्लेषण। नकारात्म... वाजिब मुद्दों का सार्थक व सटीक विश्लेषण। नकारात्मक तत्वों को प्रश्रय देना यूँ भी उचित नहीं।Sushil Kumar Bhardwajnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-34538216232748836572015-09-21T10:57:10.060+05:302015-09-21T10:57:10.060+05:30चिंता वाजिब है । सब कुछ लूट खसोट से जुड़ा हुआ है । ...चिंता वाजिब है । सब कुछ लूट खसोट से जुड़ा हुआ है । जैसे एक निरीह मृग को घेर कर मारा जाता है । आज छोटी छोटी लूटों से बड़ी लूटों की ओर रास्तों का निर्माण कर रहा है ये नये समाज का नया चेहरा है । हर ईमानदार सच्चा इंसान आज सबसे बड़ा चोर सिद्ध किया जा रहा है । उसको निरीह मृग की तरह ही घेर कर शिकारी समाज से बाहर का रास्ता इसी तरह दिखा रहे हैं ।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.com