tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post6622074388337129803..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सबद भेद : उदय प्रकाश का कथा संसार : संतोष अर्शarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-79534457475804751572017-09-21T09:04:48.527+05:302017-09-21T09:04:48.527+05:30ब्राह्मणवाद अब एक दुष्प्रवृत्ति के रूप में उस तथाक...ब्राह्मणवाद अब एक दुष्प्रवृत्ति के रूप में उस तथाकथित जाती का अतिक्रमण कर सत्ता-सियासत से लेकर समाज,कला,साहित्य,शिक्षा,व्यवस्था,गांव-शहर के जातिवादी ढांचे के भीतर तक और नस्ल,भाषा,प्रजाति और देशों तक कुछ नए तौर-तेवरों के साथ सक्रिय है.राजनीति-और प्रशासनिक संरचना में कुछ लोगों को छोड़ बहुसंख्यक भारतीय आबादी में द्विज वर्ग की जातियों का प्रतिशत कम से कमतर हो रहा है.अपनी सवर्णता-श्रेष्ठताबोध और उसे मानने-मनवाने के लिये की जाने तमाम पुराण-प्रथा,परम्परा,पाप,अधर्म,नर्क,परलोक आदि के भय से पर समाज अब बदल रहा है.पर यह अपनी श्रेष्ठता का दम्भ ब्राह्मणेतर गैरद्विजों में उभरा है.देवेंद्र कुमार पाठक/देवेंद्र पाठक 'महरूम'https://www.blogger.com/profile/01278196846604072577noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-61623707271658073692017-09-21T00:03:57.930+05:302017-09-21T00:03:57.930+05:30यह एक समय में सच था। जब 'पीली छतरी वाली लड़की&#...यह एक समय में सच था। जब 'पीली छतरी वाली लड़की' लिखी गयी थी उससे भी थोड़ा पहले का हो सकता है पर दूसरा पहलु ये भी है कि अब ब्राह्मण शब्द इन सन्दर्भों में कुंठित अर्थ के साथ लिया जाता है और आने वाले लगभग आधे और दशक तक शायद ये धारणा बरकरार रहेगी। (अनुमानतः) बड़े शहरों में स्थितियां थोड़ी बदली है और उन्हीं को देहात की जनता किसी न किसी माध्यम(सोशल मीडिया, टेलीविजन या मोबाइल) से जब देखती परखती है तो वहां भी कुछ न कुछ बदलाव प्रकट हो रहे है मगर दूसरी तरफ कुछ लोग इस खाई को अपने हितों की पूर्ति के लिए और बढ़ाना चाहते है और अपने मनोयोग से लगे हुए है। इसमें बुद्धिजीवी वर्ग के लोग भी है तो अंध-श्रद्धालु भी अटे पड़े है। समझना ये चाहिए कि इस जातिवादी खाई को पाटने के लिए क्या सिर्फ गोबर(गारा) ही काफी होगा या गारा,मिट्टी और पत्थर आदि सब की भी जरुरत पड़ेगी। मेरे हिसाब से अगर इसे सिर्फ गारे से पाटने का प्रयास करेंगे तो कोई और उद्दण्ड आएगा और गारे से अटी इस खाई में पानी बहाकर इसे और चौड़ा कर जाएगा। थैंक्स उदय प्रकाश जी आपने हिंदी साहित्य को इतनी समृद्ध और परिपक्व कहानियां दी है। ������morchanghttps://www.blogger.com/profile/17198183698776647924noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-50059502266264567852017-01-01T19:08:53.765+05:302017-01-01T19:08:53.765+05:30 समालोचन को, छोटे भाई संतोष को, अरुण जी आपको व प्र... समालोचन को, छोटे भाई संतोष को, अरुण जी आपको व प्रिय रचनाकार उदय जी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं, बधाइयाँ ! नया साल आप सभी के लिए सृजनशीलता और अशेष खुशियां लाये। आज Uday Prakashji का जन्मदिन है, उनके सुन्दर स्वास्थ्य, सुख, समृधि, सृजनात्मक उपलब्धियों के लिए अशेष शुभकामनाएं, प्रार्थनाएं। उदय प्रकाश की रचनाओं का जो बीहड़, व्यापक फलक है, उनकी कहानियों का जो अभूतपूर्व कथापाठ है वह अपूर्व है, उदय जी की रचनाओं को समझने के लिए पाठक को अत्यंत सजग,सचेत, सतर्क रहना होता है। इनकी रचनाओं के आस्वाद, अधिगम का अभ्यास अभी आलोचना के अभ्यास में नहीं है, आलोचना को अभी कुछ और पैने औजार बनाने होंगे उदय जी की रचनाओं के लिए। <br />मुक्तिबोध ने कला के जिन अद्भुत क्षणों की अवस्थिति बताई है उसमें उदय जी की रचनाएं अपने बहुआयामी फलक के साथ फिट होती हैं, उदय प्रकाश अपनी रचनाओं में यथार्थ को जिस रूप में रचते हैं, जिस प्रमाणिकता के साथ वे रचनाओं में परकाया प्रवेश करते हैं, जिस भयावह परिदृश्य से परिचय कराते हैं, जिस विमर्श को हमारे बीच अपनी अप्रतिम किस्सागोई के साथ रखते हैं वह पाठक को अपने साथ सुदूर किसी नवीन यात्रा पर लेकर निकल जाती है, जहाँ से पाठक कई कई दिनों, महीनों, सालों बाद लौटता है और जब लौटता है तो उस कथा-प्रदेश की अनगिन बहुमूल्य संवेदनायें उसके जीवन-संघर्षों की साथी होती हैं। उदय प्रकाश अपनी रचनाधर्मिता के साथ सामाजिक जीवन को, सामयिक संघर्षों को, मौजूदा अपरिभाषित अंधेरों को लगातार अपनी सजग दृष्टि से देखते हैं, जूझते हैं। Arsh Santosh ने बहुत गहराई से अपने आलेख में उदय जी के लेखन की बारीकियों को समझा है, फिर फिर हार्दिक बधाई मेरी।Sushila Purinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-34767289033352607012017-01-01T12:35:58.387+05:302017-01-01T12:35:58.387+05:30समकालीन हिन्दी कथा-साहित्य में उदय प्रकाश का आविर्...समकालीन हिन्दी कथा-साहित्य में उदय प्रकाश का आविर्भाव एक परिवर्तनकारी घटना है। उन्होंने शिल्प तथा भाषा-शैली के स्तरों पर अपने आपको बेजोड़ तो साबित किया ही साथ ही साथ उनके साहित्य का वैचारिक और संवेदनात्मक रूप विरल और नए प्रतिमानों को स्थापित करने वाला है। वे संश्लिष्ट यथार्थ के क़िस्सागो हैं। कहानी के रूप को भी उन्होंने परिवर्तित किया है। कहानी के रूप को बदलने की ज़रूरत का अर्थ यह नहीं है कि कुछ नया और मौलिक रचने की उद्दाम वासना ही इसकी वज़ह है, यह बात साहित्य और समाज के विकास और परिवर्तनों के साथ भी जोड़ी जा सकती है कि, अब रूप को बदलना आवश्यक हो गया था अथवा रचनाकार को अनुभूति के सम्प्रेषण के लिए रूप बदलना ही पड़ा। यह रचनाकार की मौलिकता भी हो सकती है और उसके प्रयोग भी। छोटी-छोटी आख्यायिकाओं से लेकर लंबी आख्यानपरक शैली की कहानियाँ उदय प्रकाश ने यथार्थ और मिथक, फैंटेसी और तथ्य, इतिहासबोध और सामयिकता के साथ रची हैं। उनकी कहानियों के पास वैज्ञानिक भौतिकवादी दृष्टि और काव्य जैसी तरल अवबोधा है।<br />_____संतोष अर्श संतोष अर्श https://www.blogger.com/profile/16531766447002583690noreply@blogger.com