tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post6563207342557985073..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : मीमांसा : जुरगेन हेबरमास : अच्युतानंद मिश्र arun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-329231148817404192016-07-28T23:30:28.007+05:302016-07-28T23:30:28.007+05:30इस विद्वतापूर्ण लेख के लिए मिश्र जी को तो साधुवाद ...इस विद्वतापूर्ण लेख के लिए मिश्र जी को तो साधुवाद है ही, सम्पादक जी, आपको भी बधाई. Govind Singh(गोविन्द सिंह)https://www.blogger.com/profile/09817516884809588897noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-21845907762189700502015-07-30T07:17:01.824+05:302015-07-30T07:17:01.824+05:30हैबर साहेब की चिंतन प्रक्रिया का प्रस्थान बिंदु प्... हैबर साहेब की चिंतन प्रक्रिया का प्रस्थान बिंदु प्रक्सिस (अरस्तू के हवाले से ) के प्रश्नों पर हिदेगर जैसो के दार्शनिक मौन पर स्थित है .फौरी सवाल जो नाजी जर्मनी को उड़ेल रहे थे उस पर चुप्पी थी .इस चुप्पी के कारणों की तलाश में उन्होंने जर्मन दार्शनिक परम्परा के साथ कॉन्टिनेंटल /एनालिटिकल दर्शन के साथ हे अमिरीकी प्रग्मटिक (रोर्टी आदि ) लोगो को खंगाला .इस तरह एक सम्यक सामाजिक क्रिटिकल थ्योरी के विकास का प्रयास किया .जिससे लोकवृत जैसी अवधरनाओ का विकास हुआ .आज जो सिविल सोसाइटी आदि का शोर है .वह इन्ही चिंतन बिन्दुओ के लोकप्रिय अभिवयक्ति के विस्फोट हैं .फूको जैसे लोगो ने एक विकल्पहीन दुनिया की और इशारा किया --''दुनिया एक साथ असहनीय और अपरिवर्तानीय है (किशन जी ने इसे ''विकल्पहीन नहीं है दुनिया में विवेचित किया है ) '' .साथ ही कहा कि -मोदेर्निज्म ही उपनिवेशवाद है और उपनिवेशवाद ही मोदेर्निज्म है '' सत्ता/ज्ञान की एकता का प्रकटन ही आधुनिकता /उपनिवेशवाद जैसे देरिदीय la brisure एकयुग्म में परिणत होता है .इस इकहरे मोदेर्निज्म की बरक्स एक संवाद की संभावना वाले लोकतान्त्रिक स्पेस की तलाश में हैबर साहेब ने तमाम सामाजिक मॉडल का फरोग किया .Faqir Jaynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-5325514806812227882015-07-30T07:16:12.132+05:302015-07-30T07:16:12.132+05:30विद्वतापूर्ण लेख है .इस परिश्रम के लिए लेखक का अभि...विद्वतापूर्ण लेख है .इस परिश्रम के लिए लेखक का अभिनंदन .खासकर तब जब हिंदी में सैधान्तिकी -साहित्य ,सामाजिकी या अंतरअनुशासकीय की कमी है ,जिसका रोना अक्सर निर्मला जैन ने रोया है .इस लेख के कारण लेखक के फूको पर लिखे लेख को भी समालोचन पर पढ़ा .विश्व चिंतन को हिंदी में आनने का श्लाध्य प्रयास है .दुःख यही है कि इस पोस्ट और इस लेख पर जैसी बहस की उम्मीद थी नहीं दिखी .समालोचन ब्लॉग के कमेन्ट बॉक्स में भी सिर्फ लेखक के प्रयास को एक रिवाज की तरह सराह दिया गया है .उनके प्रयासों की सच्ची तारीफ तो तब होती जब हैबरमास पर न सही ,उनके बहाने से उठाये गये जरुरी मुद्दों पर बात होती .बहरहाल , श्रीकांत वर्मा के प्रश्न को मै वाजिब नहीं मानता .बाज दार्शनिको ने मॉडर्निटीऔर मॉडर्निज़्म के फर्क को झूठ मुठ का बाल का खाल निकलना माना है .लेकिन हैबेरमॉस के लिए यह फर्क अहम् है .आधुनिकता एक वस्तुनिष्ट स्थिति है .हम सब आधुनिक है ,इस अर्थ में कि हम आधुनिक समय में स्थित है ,मोबाइल ,इन्टरनेट ,मोटरगाड़ी का इस्तेमाल करते है .जबकि जो आधुनिक है उसका आधुनिकतावादी होना जरुरी नहीं .आधुनिकतावादी होना सिर्फ आधुनिक होना नहीं है ,यह आधुनिकता को अच्छा समझना है ,उसका समर्थक होना है .एक विचारधारा के रूप में उसका हामी होना है .इस तरह वहां एजेंसी उपस्थित है .वहां सब्जेक्टिव निर्णय सक्रिय है .इस लिहाज से आधुनिकता के विकल्प की बात करना ही आधुनिकतावादी नहीं होने से जुडा है .लेकिन विकल्प भी ज्ञानोदय की तरह द्वंद्वात्मक है .किसी चीज़ का विकल्प उस चीज़ जैसा ही होना चाहिए वरना उसे विकल्प नहीं कहा जा सकता .जैसे पेट्रोल का विकल्प डीजल है .पेट्रोल का विकल्प प्रकार्य में पेट्रोल जैसा है .पेट्रोल का विकल्प मिट्टी नहीं है .लेकिन विकल्प को उस चीज़ से भिन्न भी होना है वरना उसे विकल्प नहीं कहा जा सकता .जैसे कि कहा जाता है कि भाजपा कांग्रेस जैसी है इसiलिए वह कांग्रेस की विकल्प नहीं है .कांग्रेस जैसा होना कांग्रेस का विकल्प नहीं होना है .इस तरह विकल्प उसी जसा और उससे भिन्न है .यह कुछ कुछ देरिदा द्वारा सुझाये हुए differance की संकल्पना जैसा है. इसलिए आधुनिकता के विकल्प की बात होती है तो प्रायः देशज आधुनिकता ,पुरबी आधुनिकता जैसे शब्द सुनने को मिलते है .वर्मा ओक्टोवियो पाज से बहुत मुतासिर थे .इसलिए वे प्रायः वैकल्पिक आधुनिकता की बात करते थे .लेकिन जैसा कि लेख में बताया गया है इस बाबत उनके सरोकार ज्यादा संजीदा नहीं थे .यह प्रश्न यो ही पूछ लिया गया था बस मार्क्सवाद को कठघरे में खड़े करने के लिए .लेकिन मार्क्सवाद की हैबरमास की क्रिटिक गहरी है .वे इसे दो जगह नाकाफी पाते थे -एक अपने व्यापकता के बावजूद यह चीजों की महीन रेशो का विश्लेषण नहीं कर पाती .दो -हैबर साहेब मैक्रो स्तर पर थियोराइज करने के साथ माइक्रो स्तर पर भी संवाद के मेकनिज्म को अपनी चिंता के भीतर रखते है .इसलिए क्रिटिकल थ्योरी के पैरोकारो की तरह विश्लेषण की सत्यता की जाँच सिर्फ वस्तुनिष्ट हालात से न कर ,संवाद में सहभागी लोगो के द्वारा सत्यापित किये जाने के प्रस्तावना रखते हैं .इस तरह वह एक बहुलतावादी खोज की प्रकिया को जन्म देते हैं जहाँ इस तरह का सत्य का सहभागी द्वारा सत्यापन इस ज्ञान की खोज का ही हिस्सा है .Faqir Jaynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-38827114663737305422015-07-27T18:32:07.550+05:302015-07-27T18:32:07.550+05:30शुक्रिया समालोचन..शुक्रिया समालोचन..अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-4731544992616159402015-07-27T15:21:28.706+05:302015-07-27T15:21:28.706+05:30एक बेहतरीन आलेख जिसे मोदी युग के दुर्भाग्यपूर्ण दौ...एक बेहतरीन आलेख जिसे मोदी युग के दुर्भाग्यपूर्ण दौर में हर भारतीय बुद्धिजीवी को पढ़ना चाहिए.batrohihttps://www.blogger.com/profile/07370930712240772275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-21896661071314521702015-07-27T11:14:31.629+05:302015-07-27T11:14:31.629+05:30Sarahniya Sarahniya Hitendra Patelhttps://www.blogger.com/profile/04511447769510142605noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-21838342766272967862015-07-27T10:01:44.970+05:302015-07-27T10:01:44.970+05:30Public sphere has notable inpect on democracy. It&...Public sphere has notable inpect on democracy. It's been a useful theory so far and became an obvious reference in every public related discourse.DrVikram Choudharynoreply@blogger.com