tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post6139743778748119086..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सबद भेद : मोहन डहेरिया : अशोक कुमार पाण्डेय arun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-30526088348566276412012-11-08T19:17:33.262+05:302012-11-08T19:17:33.262+05:30आप सबका बहुत आभार मित्रों.
अरुण देव द्वारा मोहन ...आप सबका बहुत आभार मित्रों. <br /><br />अरुण देव द्वारा मोहन जी की उपेक्षा को लेकर यहाँ कुछ मित्रों ने कमेन्ट किये थे. उन पर क्या कहा जाय? अगर ओम जी को लगता है की उनके लिखने/न लिखने से ही हिंदी में सबकुछ तय होता है, तो उन्हें इस भ्रम को दूर कर लेना चाहिए? उनकी प्रतिष्ठा एक समीक्षक की है, और आलोचक के रूप में शायद ही उन्हें कोई गंभीरता से लेता हो. मैंने सांस्थानिक आलोचना की उपेक्षा का सवाल उठाया था...वह अपनी जगह कायम है.निस्पृहता अक्सर इसी उपेक्षा को थोड़ा और सहनीय बनाने के लिए ओढ़ी गयी मुद्रा होती है.<br /><br />खैर वह इस पूरे लेख का बस एक हिस्सा था फिर भी लेख की प्रस्तुति में जो अरुण देव ने कहा, मैं उससे पूरी तरह सहमत हूँ. अब समय पिछले कुछ वक़्त में हिंदी की सांस्थानिक आलोचना और सत्ता केन्द्रों द्वारा सप्रयोजन उल्लिखित तथा उपेक्षित कवियों की निर्मम पड़ताल का है. आज, जब ये संस्थान और सत्ता केंद्र अपनी विश्वसनीयतायें खो चुके हैं, तो ज़रूरी है कि कवियों और उनके उल्लेख/उपेक्षा के कारणों का गंभीर विवेचन किया जाय.<br /><br />अरुण देव सहित सभी मित्रों का आभार <br /><br />Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-61877054533778174972012-11-08T18:46:32.513+05:302012-11-08T18:46:32.513+05:30एक सार्थक आलेख ..और बड़े मन से लिखा हुआ बधाई अशोक ...एक सार्थक आलेख ..और बड़े मन से लिखा हुआ बधाई अशोक जी को <br />स्त्री पर विशेष रूप से मोहन जी के लेखन ने आकर्षित किया .. गीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-11737311089084417542012-11-08T08:42:31.159+05:302012-11-08T08:42:31.159+05:30बहुत जिम्मेदारी और मन से आपने यह कार्य किया है ..ब...बहुत जिम्मेदारी और मन से आपने यह कार्य किया है ..बधाई मित्र रामजी तिवारी https://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-69104688144254714122012-11-07T22:22:11.414+05:302012-11-07T22:22:11.414+05:30मोहनजी की कविताओं में दुःख और आसपास का जीवन उपस्थि...मोहनजी की कविताओं में दुःख और आसपास का जीवन उपस्थित रहते हैं.वह एक सजग कवि हैं जिन्हें साहित्य और समाज की हलचलों की पूरी जानकारी है.वह जमीन से जुड़े बिम्बों के माध्यम से बड़ी बात सहजता से कह जाते हैं.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-44289392935725667652012-11-07T21:50:32.220+05:302012-11-07T21:50:32.220+05:30Kawitaon ko samghne ka ak bahut gambheer prayas. A...Kawitaon ko samghne ka ak bahut gambheer prayas. Ak bahut jaroori karya in arthon me ki is tarah ki undekhi hoti rahi ha aur jimmedar log nikalne ka rasta khojte rahe han. Bahut nam hain ma bangali ji ki meri murad devendra bangali ji se ha ki bat karna chahta hoon.gorakh pur me kitne log han. Sab ne unke marne k bad bhi theek se muh nahi khola. Ye kheme bandi k paridam han. Jo kahi nahi unka yahi hal . hoga. Achha lagta ha apne beech se jab ye kam hota ha. Jab ham khudi aage aate han. Ak mahatwapoorn lekh.ak jaroori pahal. Tiwari Keshavnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-63890389684716425022012-11-07T19:19:54.744+05:302012-11-07T19:19:54.744+05:30बहुत अच्छा आलेख. मोहन जी के काव्य की हर स्पष्ट-अस्...बहुत अच्छा आलेख. मोहन जी के काव्य की हर स्पष्ट-अस्पष्ट परत खंगालता हुआ.Amit Sharmanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-72671510208439057072012-11-07T14:17:35.105+05:302012-11-07T14:17:35.105+05:30बनिस्बत इसके कि किसी पर कम लिखा गया या ज्यादा, मेर...बनिस्बत इसके कि किसी पर कम लिखा गया या ज्यादा, मेरे लिहाज़ से यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि किसी पर क्या लिखा गया और किसके द्वारा लिखा गया | इस लिहाज़ से अशोक जी का यह लेख बेहद संतुलित और कवि को नई पीढ़ी के सामने ठीक ढंग से प्रस्तुत करने वाला है | मोहन डहेरिया नामक तस्वीर का हर रंग अब हम सबके सामने है (मैं उनकी बात नहीं कर रहा जो श्री मोहन जी को पढ़ते रहे हैं, मैं केवल अपनी और अपने जैसों की ही बात कर रहा हूँ )<br />समालोचन के प्रति आभार कि भाई अशोक जी का इतना सुंदर लेख जिसमे इतने सत्यनिष्ठ तरीके से किसी कवि के कविकर्म को परखा गया हो, हम सबके सामने रखा आनन्द कुमार द्विवेदीnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-87234151789362207402012-11-07T10:44:49.848+05:302012-11-07T10:44:49.848+05:30कविता करना खुद को फिर एक बार पाने जैसा है ,मोहन ड...कविता करना खुद को फिर एक बार पाने जैसा है ,मोहन डहेरिया जी ने खुद को कितना पाया ,नहीं कह सकता लेकिन अशोककुमार पण्डे के इस आलेख में वे पूरी तरफ से आपादमस्तक प्रस्तुत हुए हैं !मोहन जी की कवितायेँ और उन पर अशोकजी का सारगर्भित आलेख मणि-कांचन संयोग का सुन्दर उधाहरण है !बहुत बहुत आभार अरुण जी का !अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-3895187208310700192012-11-07T10:40:50.478+05:302012-11-07T10:40:50.478+05:30थाली जितने आसमान में उम्मीद के चाँद कभी पूनो की तर...थाली जितने आसमान में उम्मीद के चाँद कभी पूनो की तरह नहीं आते ..वे टुकड़ा-टुकड़ा आते हैं और थाली किसी ग्रहण की तरह अपनी जमीन से लड़ती रहती है ..<br />अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-28950865503713907542012-11-07T10:30:36.911+05:302012-11-07T10:30:36.911+05:30अच्छा विवेचन। स्त्री को पुरुष किस तरह देखता है, उस...अच्छा विवेचन। स्त्री को पुरुष किस तरह देखता है, उसे कैसे खंगालता है,कवि की सचेत दृष्टि पर अशोक ने मनोयोग से लिखा है। बहुत सारी स्त्रियाँ भी एक स्त्री को,उसके होने को कई बार जान नहीं पाती और एक स्त्री कई स्त्रियों से अपरिचित ही रह जाती है। कभी-कभी लगता है कि औरत बहुत अकेली होती है,हजारों रिश्तों में टूटी-फूटी उसकी तस्वीरें एक अस्मिता की तरह खुद को चीह्नित नहीं कर पातीं। खुद में उसका प्रवेश परकाया प्रवेश जैसा रह जाता है। स्त्री की यातना का सफ़र मुक्ति के विमर्शों से खत्म नहीं होता।इन्ही विमर्शों में बैठी स्त्रियाँ एक-दूसरे की लामबंदी कर रही होती हैं। ऐसे में कवि की संवेदना से कुछ राहत मिली..<br />कविता से स्त्री तक पहुंचना बेहतर है या स्त्री से स्त्री तक पहुंचना बेहतर!<br />Ashok ko badhai..अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36893051395714152052012-11-07T10:19:32.939+05:302012-11-07T10:19:32.939+05:30डहेरिया उपेक्षित कवि नहीं ध्यातव्य ओर महत्वपूर्...डहेरिया उपेक्षित कवि नहीं ध्यातव्य ओर महत्वपूर्ण कवि हैं। आशुतोष दुबे ने ठीक कहा है। बाकी कोन कवि है जिस पर छप्पर फाड़ के लिखा गया है। डहेरिया के पहले संग्रह पर मैने लिखा है, जबकि वह किसी अल्पपरिचित प्रकाशन से छपा है। दूसरे संग्रह की तो बात ही क्या। ज्ञानपीठ से है। उसकी पांडुलिपि का पारायण किया है, लिखा है। तीसरा संग्रह जीवन ओर प्रेम के रस से डूबा हुआ संग्रह है।उन्होंन बडे प्यार से भेजा है। अशोक पांडे से इसकीसूचना मिलते ही यह संग्रह पढने की ललक पैदा हुई। इस पर अभी शुक्रवार में किसी ने अच्छे ढंग से लिखा भी है। वे हमारे लेखे केंद्र में हैं। हिंदी आलोचना के तमाम शार्टकट्स से गुजरतेहुए मेरा मानना है कि हमारा मन आखिरकार जानता है कि हम किनकी उपेक्षा की कीमत पर किन्हें फोकस दे रहे हैं।<br /><br />पर मोहनकुमार डहेरिया की उपेक्षा नही की जा सकती। सुदूर किसी कोने में बच्चों पढाते हुए उन्होंने बेआवाज कविता में नायाब बिम्ब दिए हैं जो भुलाए नही जा सकते। हमें चाहिए कि हम उपेक्षा के संकीर्तन से ही हर समय बात न शुरू करें। कुछ करें भी।ओम निश्चलhttps://www.facebook.com/om.nishchalnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-85681644311345952742012-11-07T09:34:14.440+05:302012-11-07T09:34:14.440+05:30बहुत अच्छा आलेख. मोहन जी के काव्य की हर स्पष्ट-अस्...बहुत अच्छा आलेख. मोहन जी के काव्य की हर स्पष्ट-अस्पष्ट परत खंगालता हुआ.Amit sharma upmanyuhttps://www.blogger.com/profile/10690429986793307279noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-26804926063818173902012-11-07T08:43:25.000+05:302012-11-07T08:43:25.000+05:30अशोक कुमार पाण्डेय ने एक संवेदनशील रचनाकार की भाष...अशोक कुमार पाण्डेय ने एक संवेदनशील रचनाकार की भाषिक संवेदना का निर्वाह करते हुए मोहन डहेरिया की कविताओं का बहुत मनोयोग से बेहतर विवेचन किया है, उनकी कविताओं की केन्द्रीय संवेदना को अपने सहज विवेचन से विस्तार देने का प्रयत्न किया है। हमें अपने समय के महत्वपूर्ण रचनाकारों पर इसी तरह धैर्य और संयम से समझने और उनकी रचनाशीलता में छुपी खूबियों को बिना किसी आह-उच्छवास के वृहत्तर पाठक वर्ग के बीच रखना चाहिये। मुझे अशोक जी का यह विवेचन इस दृष्टि से बेहतर लगा। नंद भारद्वाजhttps://www.blogger.com/profile/10783315116275455775noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-23830044455614781912012-11-07T08:07:14.215+05:302012-11-07T08:07:14.215+05:30निस्पृह होना एक बात है, उपेक्षित होना दूसरी. प्रिय...निस्पृह होना एक बात है, उपेक्षित होना दूसरी. प्रिय और आत्मीय कवि मोहन भाई पहली श्रेणी में हैं. विष्णु खरे हों या लीलाधर मंडलोई, उन्होंने मोहन भाई की कविता को महत्वपूर्ण ढंग से रेखांकित किया है.तमाम पत्रिकाओं में उन्हें सम्मान से छापा गया है. उपेक्षा का जहाँ तक प्रश्न है, हिन्दी के मूर्धन्य तक अपने को उपेक्षित समझते हैं और इस मलाल को गाहे-बगाहे जाहिर किया करते हैं. अच्छा लेख.अरुणजी और अशोकजी,दोनों को बधाई.Ashutosh Dubeynoreply@blogger.com