tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post6124223890642104888..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : विष्णु खरे : कई हजार चौरासियों की माँ arun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-72537383978845001312016-08-02T00:27:41.149+05:302016-08-02T00:27:41.149+05:30और एक बात मै जोड़ना चाहूँगा. सन्देश भंडारे इस फ़िल्म...और एक बात मै जोड़ना चाहूँगा. सन्देश भंडारे इस फ़िल्म के निर्माण हेतु महाश्वेता देवी से अनुमति मांगने स्वयं उनसे मिलने गए थे. महाश्वेता देवी ने बड़े प्यार और आदर के साथ सन्देश का स्वागत किया. उनके अब तक के काम की पूरी जानकारी ली. उनके आस्था के विषय, उनकी फोटोग्राफी, फिल्म निर्माण हेतु उपलब्ध संसाधन इत्यादि के बारे में पूछताछ की; और मानदेय के रूप में सिर्फ एक रूपया लिया. ऐसी शख्सियत का अब फिर से इस दुनिया में होना दुर्लभ है. prafull shiledarhttps://www.blogger.com/profile/01448570803645044423noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-66121791974347453442016-08-01T10:27:40.012+05:302016-08-01T10:27:40.012+05:30प्रफुल्ल शिलेदार द्वारा दी गई जानकारी अत्यंत महत्व...प्रफुल्ल शिलेदार द्वारा दी गई जानकारी अत्यंत महत्वपूर्ण है.2014 में बनी यह फ़िल्म रहस्यमय ढंग से अचर्चित रह गई.इसका रिकॉर्ड मेरी जानकारी में किसी फिल्म आर्काइव में नहीं मिलता.इससे यह शंका भी होती है कि महाश्वेता देवी की कहानियों पर आधारित शायद एकाधिक फ़िल्में,जिनकी फ़िक्र या स्मृति स्वयं उन्हें नहीं थी, अभी और खोजी जाने को हैं.विश्व-सिनेमा में यह समस्या बनी हुई है और सिने-आलोचक का दुस्स्वप्न है.हिंदी में ही सैकड़ों पुरानी-नई,मामूली-असाधारण फ़िल्में अपने दुर्लभ संगीत के साथ डिब्बाबंद पड़ी हुई हैं जिनका कोई धणी-धोरी रह नहीं गया है.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/18139708644770350589noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-46555734029304875192016-08-01T06:40:21.805+05:302016-08-01T06:40:21.805+05:30 महाश्वेता जी का लेखन आदिवासियों के लिये था .उन्हो... महाश्वेता जी का लेखन आदिवासियों के लिये था .उन्होने अपने लेखन में कुलीनता का निषेध किया है .विष्णु जी महाश्वेता जी के लेखन के मर्म को पकड़ा है .उनका लेखन किसी नोबुल पुरस्कार विजेता के लेखन से कमतर नही है .उनके कद के लेखक कम ही होगे Swapnil Srivastavanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-77376383028724176862016-08-01T06:32:29.781+05:302016-08-01T06:32:29.781+05:30 एक मामले में देवी लालू प्रसाद यादव की तरह है .इनक... एक मामले में देवी लालू प्रसाद यादव की तरह है .इनका पूरा परिवार राजनीति में है .देवी का पूरा परिवार साहित्य कला में .आज प्रेमचन्द का जन्मदिन है तो बड़े घर की बेटी याद हो आया .गरीब गुरबे का उद्धारक होने के लिए भी बड़े घर की बेटी होना जरुरी .Faqir Jaynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-65629830475264731292016-07-31T18:51:40.002+05:302016-07-31T18:51:40.002+05:30दिलचस्प आलेख है . मराठी में भी महाश्वेता देवी की ए...दिलचस्प आलेख है . मराठी में भी महाश्वेता देवी की एक कहानी पर महादु यह फ़िल्म बनी है. सुविख्यात फोटोग्राफर सन्देश भंडारे ने इसे बनाया है . http://marathimovieworld.com/news/new-marathi-film-mhadu-to-release-on-june-6.php <br /><br />https://www.youtube.com/watch?v=RxxDehopbuYprafull shiledarhttps://www.blogger.com/profile/01448570803645044423noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-11631639637784352722016-07-31T11:08:44.655+05:302016-07-31T11:08:44.655+05:30खरे जी ने बहुत कम शब्दों में ही अनेक विचारणीय बाते... खरे जी ने बहुत कम शब्दों में ही अनेक विचारणीय बातें रखी हैं। सबसे बड़ी बात तो यह कि ' संघर्ष ' फ़िल्म के ताल्लुक से उन्होंने जो यह मुद्दा उठाया है कि माहेश्वेता देवी बंगाल में रह कर भी बनारस के सांस्कृतिक परिवेश पर इतनी गहरी पकड़ कैसे रखती थीं - बहुत दिलचस्प मुद्दा है।माहेश्वेता देवी के इस पक्ष पर बातेँ लगभग नहीं के बराबर हुई हैं । खरे जी को साधुवाद कि वे ठेठ सिनेमा पर लिखते हुए भी अपना एक सांस्कृतिक स्पेस अंततः खोज ही लेते हैं ।Vijay Kumarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-67026437956181716922016-07-31T09:51:20.492+05:302016-07-31T09:51:20.492+05:30समालोचन पर अरुण सर का अनुवाद पढ़ा। पिछले दो दिनों म...समालोचन पर अरुण सर का अनुवाद पढ़ा। पिछले दो दिनों में इंडियन एक्सप्रेस में जी एन डेवी और गायत्री स्पीवाक के आत्मीय लेख पढ़े। आज खरे सर को पढ़ रही हूँ। वह स्निग्ध काली दुर्गा जैसी ही थीं। श्रद्धा सुमन।<br />अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.com