tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post6074000433499412807..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : अन्यत्र : अंडमान : रामजी तिवारीarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-87253077956820242182015-05-08T18:54:35.373+05:302015-05-08T18:54:35.373+05:30इतना इतना रोचक इतनी गहराई कि लगा जैसे इतिहास भूगोल...इतना इतना रोचक इतनी गहराई कि लगा जैसे इतिहास भूगोल और एन्थ्रोपॅालेजी को गूँथकर कहानी लिखी गई है। बहुत शानदार। औपनिवेशिक वर्चस्व का क्रूर इतिहास, कालकोठरी की भयावहता साकार उठती है आंखों के समक्ष। एक बैठक में खुद को पढवाए बिना मानता ही नहीं यह संस्मरण। जारवा जनजाति के विषय में पढ़ना जितना दिलचस्प रहा.....उनके प्रति सरकार व समाज का असंवेदनशील रवैया उतना ही मन खिन्न कर गया। आपको बधाई और समालोचन का शुक्रिया।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/08227873881621065731noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-15935084149852297782015-05-07T08:55:13.279+05:302015-05-07T08:55:13.279+05:30हम अंडमान घूमने की इच्छा रखते हुए भी न जा सके ...क...हम अंडमान घूमने की इच्छा रखते हुए भी न जा सके ...किन्तु राम जी के इस यात्रावृतांत की डुबकी ने जैसे इतिहास के ही दर्शन नहीं कराये बल्कि उनके साथ साथ अंडमान हम भी जैसे घुमते हों.. भाषा इतनी सहज और रसीली है और साथ साथ अपने मन में उठे विचारों की सच्चाई से अभिव्यक्ति है ... जैसे कि फैंकना कभी कभी नकारात्मक नहीं होता और फैंक दिया ... वृत्तांत पढ़ने में आनंद आया हमारी यात्रा भी हो ली ... धन्यवाद राम जी , धन्यवाद समालोचन डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-39482455940315580502015-05-07T07:13:05.512+05:302015-05-07T07:13:05.512+05:30Faqir Jay आपकी भाषा में एक सोंधापन है देर तक दिमाग...Faqir Jay आपकी भाषा में एक सोंधापन है देर तक दिमाग में घुलता रहा--""“तो क्या अंडमान हमारे लिए भी ‘काला पानी’ ही साबित होने जा रहा है ...?” "" जैसी टिप्पणियाँ बांधे रखती है .लोरिक संवरू की लोककथा गाते (हमारे यही कथा सुनाई नही गाई जाती है )हुए ताऊ की किस्सागोई याद आ गई. आपके तफसील में गाना भी है किस्सा भी है और ढेर सारा गम भी .<br />और तीर्थस्थल के दलालों पर जो चुटीली चुटकी ली है..गुदगुदाती भी है दुखी भी करती है ..आदमी में बेचने की अद्भुत शक्ति आ गई सभ्यता के साथ ..क्या न बेच दे बेच ले ..सिर्फ चाय नहीं आदमी कुछ भी बेच सकता है ..मेरी एक मित्र है नृतत्व विभाग में वहां -लिंडा -उनके कारण मुझे जारवा लोगो से मिलने का मौका मिला .वहां एक दम्पति को बच्चे के साथ देखा .तभी से मै मानता हु कि मैंने किसी को प्यार नहीं किया ण कर सकता हूँ ..सब वृथा संभ्रम -अहंकार है .जैसे आपको हेवलॉक नील देख के पोर्ट ब्लेयर की भीड़ और और दिखी .उस जारवा दम्पति का प्रेम देख अपना कृत्रिम मन बहुत बहुत दिखा .लगा मै प्यार का ढोंग करता रहा हूँ .ईसा मसीह बेथेलह्म में नहीं ,इन्ही जारवा में जन्मे होंगे<br /><br />Faqir Jaynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-70690794938984819852015-05-07T07:11:23.406+05:302015-05-07T07:11:23.406+05:30मेरा वहां साल में जाना हो ही जाता है दफ्तर के काम ...मेरा वहां साल में जाना हो ही जाता है दफ्तर के काम से .अतः सारे गोशे छू लिए हैं .चिड़िया टापू मुझे बड़ा अच्छा लगता है .सौभाग्य से जब मै जाता हूँ अक्सर उनसे भेंट हो जाती है .जीवन में पहली बार जेली फिश वहीँ देखी .जेल भी मुझे अजीब ख्यालो से भर देता है .मुझे अक्सर लगता है ऐसे इसाई -कसाई अंग्रेज भी सन्डे सर्विस में जाते होंगे .ईसा के करुणा के गीत गाते होंगे .शासक होना इन्सान को बहुत नीच और क्रूर और गन्दा बनाता है .कहते है जेलर बड़ा कष्ट में मरा और उसे दैवी न्याय द्वारा दंड मिला लेकिन मै जब भी जेल देखने जाता हूँ .(वहां होता हु तो करीब रोज जाता हूँ .मेरा गेस्ट हाउस जेल के पास ही है ) अजब अवसाद से भर जाता हूँ और अज्ञेय का कथन बड़ा गलत लगता है कि दुःख इन्सान को मांजता है .वीर सावरकर ने भी बहुत कष्ट झेला होगा जेल में .लेकिन वे मंज नहीं सके बल्कि इंसानियत के एक हिस्से -दलितों और मुसलमानों के लिए बेहद घृणा से भर गये .अंग्रेजो जैसे हो गये .क्रूर और पत्थर.ये जेल नहीं है ,दया करुणा प्रेम और ईसा मसीह की कब्रगाहें है -६९६ कोठरियों में बंद ७८६ इब्नेमरियामो की आहे हैं . शुक्रिया रामजी भाई .आपने यादे ताजा कर दी .भावनाओ विचारो का समुन्द्र उमड़ अता है उस समंदर को याद करके .शायद इस जेल के पहले अंडमान का पानी राधा बीच सा हरा रहा हो और हमारे पूर्वजो शेर खानों संयालो की पीठ की नीली निशाने पानी पर उग आई हो .दुःख का रंग नीले पानी में बिखरा हो<br />Faqir Jaynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-61266039505155511872015-05-07T07:09:53.217+05:302015-05-07T07:09:53.217+05:30एक बैठक में पढ़ गया .बड़ा रोचक ढंग से लिखा है मगर यह...एक बैठक में पढ़ गया .बड़ा रोचक ढंग से लिखा है मगर यह रोचकता इसकी गहराई को कम नहीं करती .यात्राओ को भूगोल से बाहर मनोविज्ञान और इतिहास तक विस्तार मिला है और सूक्ष्म सुंदर विस्तार मिला है .जारवाओ के बारे में आपका बयाँ पढ़कर एंड्रू सोलोमन का बधिर लोगो के बारे में लिखा सन्दर्भ याद हो आया जहाँ बधिर को एक आइडेंटिटी के रूप मानकर इसे एक दोष के रूप में न देखने की बात है तो दूसरी तरफ मेडिकल इलाज की बात .vertical identity horizontal identity का यह द्वन्द आदिम समुदायों के बारे में भी , एक तरफ टेरी इगल्टन और बाबा साहेब आंबेडकर (मार्क्स को भी जोड़ सकते हैं ) लोग है जो इन्हें मुख्य धारा में जोड़ने की बात करते है दूसरी तरह आदिम जीवन के ''मासूम' वजूद से उपजा रोमन है जो सभ्यता के खिलाफ है और इनके जीवन को यथावत बनाये रखना चाहता है .कौन सही है कौन गलत बताना मुश्किल जैसे अंडमान के सिंघाड़ा (समोसा ) को बाहर से देख उसकी शाकाहारपन नही बताया जा सकता है .बहरहाल एक बेहतरीन यात्रा आलेख है जो यात्रा वृतांत से इतना अलग है कि मुझे यह एक नई विधा सा लगा ...<br />Faqir Jaynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-1823477047497737942015-05-07T07:08:34.901+05:302015-05-07T07:08:34.901+05:30आपकी कविताओं के बाद आपका यह गद्य आपकी तरह ही बेजोड़...आपकी कविताओं के बाद आपका यह गद्य आपकी तरह ही बेजोड़...आपके साथ सामानांतर यात्रा का सुख और तथ्यों की गंभीरता के साथ यह प्रांजल गद्य अद्भुत है<br />Kumar Mangalamnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-41880584776649220232015-05-07T07:07:20.461+05:302015-05-07T07:07:20.461+05:30 एक सांस में पढ़ गया। तथ्य और संवेदना का बेहतर संतु... एक सांस में पढ़ गया। तथ्य और संवेदना का बेहतर संतुलन ! आपके साथ यात्रा पूरी हुई। खूबसूरत रचना के लिए बधाई !<br />Dinesh Karnataknoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-85823779591587785602015-05-07T07:06:31.813+05:302015-05-07T07:06:31.813+05:30 एक महत्वपूर्ण एतिहासिक दस्तावेज है ये यात्रा वृता... एक महत्वपूर्ण एतिहासिक दस्तावेज है ये यात्रा वृतांत । पूरब का आदमी यदि काशी से जुडा हो तो दुनिया मेँ कहीँ ठगी का शिकार नहीँ हो सकता । काला पानी मेरे जेहन मेँ भी कुछ एसे घूमता था । लग रहा है कोयी वृत्तचित्र देख कर लौटी हूँ ।<br />Sony Pandeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-32757466233015174832015-05-06T19:12:08.643+05:302015-05-06T19:12:08.643+05:30मैं भी फरवरी 2014 में 9 दिनों के सपरिवार अंडमान भ्...मैं भी फरवरी 2014 में 9 दिनों के सपरिवार अंडमान भ्रमण पर था। सेलुलर जेल, हैवलाक, माउन्ट हेरियेट, mud volcano (बाराटांग), जाली बॉय में कोरल और जारवा जनजाति को नजदीक से देखा था। यह स्थान अद्भुत है। फिलहाल mud volcano पर एक विज्ञान लेख पूरा करने में लगा हूँ। <br />राम जी तिवारी ने बहुत तबियत से अंडमान यात्रा संस्मरण लिखा है। मेरे लिए इसे पढ़ना अंडमान के रिविजिट जैसा रहा। बधाई।<br />मनीष मोहन गोरेमनीष मोहन गोरेnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-90362929173301831512015-05-06T13:59:23.746+05:302015-05-06T13:59:23.746+05:30उत्कृष्ट संस्मरण ... इतिहास से लेकर भूगोल और मानवव...उत्कृष्ट संस्मरण ... इतिहास से लेकर भूगोल और मानवविज्ञान तक समेट दिया आपने। बढि़या रचना हेतु बधाई। Padmnabh Mishrahttps://www.blogger.com/profile/01972602291883206141noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-5958148173174384002015-05-06T11:38:22.262+05:302015-05-06T11:38:22.262+05:30पढ़ा. सफ़र में और भी कई सफर चल रहे हैं. डार्विन चा...पढ़ा. सफ़र में और भी कई सफर चल रहे हैं. डार्विन चाचा से बिना मिले ही मिलना हो जाता है जब जारावासों के पास आप पहुंचते हैं. मनुष्य अपने सुभीते से अपने अजायबघर बनाता है जिसमें वह अपने विद्रूप बर्बर सैलानी को किस तरह घुमक्कड़ बनाकर घूमता है, एक सहृदय रचनाकार ही इसे रेखांकित कर सकता है. <br />कितने तो दर्शन, कितने विज्ञान, कितनी विचारधाराएं, कितने तो इतिहास इस मानव को बचाने में लगे रहे पर एक बहुत छोटे बिंदु पर अवस्थित हमारी प्रजाति; जो हॉकिंग के शंकुआकार रेखाचित्र और अज्ञेय के समय के नाद- डमरु में गतिशील है..पर फिर भी बर्बरताओं के मानचित्र पर हम मानववाद का स्वप्न देखते आत्मछलनाओं के बीच स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे को पोषित करने का प्रयास, अभ्यास कर रहे. एक यथार्थ से पराजित होकर अपने लिए नए मिथक गढ़ती संस्कृतियों के नवाचार में कोई उपलब्धि हमारा इंतज़ार कर रही हो शायद.Aparna Manojnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-83882153013816861362015-05-06T10:48:55.230+05:302015-05-06T10:48:55.230+05:30वाकई रामजी भाई का एक और बेहतरीन संस्मरण पढने को मि...वाकई रामजी भाई का एक और बेहतरीन संस्मरण पढने को मिला. यात्रा के बहाने इतिहास के उन पन्नों से परिचित भी हुआ जो प्रायः हमसे अनदेखा रह जाता है. सभ्यताएँ किस तरह से आगे बढती हैं, आधिपत्य जमाती हैं और उसे अपनी जागीर समझने लगती है हम इस संस्मरण से भी इसे बखूबी समझ सकते हैं. संस्मरण पढ़ते हुए ऐसा लगा जैसे हम भी रामजी के साथ बलिया की किसी खझडिया ऑटो में अंडमान की सफर कर रहे हों. उस एल टी सी का भी शुक्रिया जिसकी बदौलत रामजी भाई के इस आख्यान से हम दो-चार हो सके. बेहतरीन गद्य अपने पूरे निखार के साथ इस संमरण को एक अलग ही रंगत दे रहा है. शुक्रिया समालोचन. आभार रामजी भाई. santosh chaturvedihttps://www.blogger.com/profile/05850303341274524229noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-28983539906770973812015-05-06T09:31:55.067+05:302015-05-06T09:31:55.067+05:30रामजी इस सफर को पढ़ते हुए मुझे निर्मल वर्मा की इति...रामजी इस सफर को पढ़ते हुए मुझे निर्मल वर्मा की इतिहास, समृति और आकांक्षा के व्याख्यानों के कई अंश याद आ रहे हैं..जीवन के बेतुकेपन को कोई गहरे से पकड़ता है तो वह या तो लेखक है या कलाकार . एक व्याख्यान का अंश खास आपके लिए, " जर्मन चिंतक और आलोचक वॉल्टर बेंन्जामिन ने पॉल क्ले के एक चित्र में इतिहास के देवदूत को देखा था जिसकी पीठ भविष्य की तरफ़ है और चेहरा अतीत की ओर मुड़ा है. ढहते हुए खंडहरों का ढूह उसके पैरों पर जमा होता जाता है. देवदूत अपने पैर जमाकर कुछ देर ठहरना चाहता है, ताकि मृतकों को जगा सके और अपने को उनके साथ जोड़ सके जो टूट टूटकर खंडित हो चुके हैं लेकिन स्वर्ग से एक आंधी चल रही है जो उसे भविष्य की ओर धकेलती है, जहां उसकी पीठ है जबकि उसके सामने खंडहरों का ढेर आकाश छूने लगा है...ऐसे ही जीवन सत्य को रचनाकार पकड़ता, देखता..अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.com