tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post5680824954697974401..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : दि मिनिस्ट्री ऑव अटमोस्ट हैप्पीनेस : चन्दन पाण्डेय arun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-74601214210975537072017-07-02T10:51:28.427+05:302017-07-02T10:51:28.427+05:30लगता है पाठक devide हो गए हैं, पसंदगी और नापसंदगी ...लगता है पाठक devide हो गए हैं, पसंदगी और नापसंदगी को लेकर। आपकी समीक्षा वैसी ही है, जैसी होनी चाहिए थी। आपने महत्वपूर्ण बिंदुओं को छुआ भर है लेकिन अति महत्वपूर्ण बिंदुओं को आपने विस्तार दिया है जिससे उपन्यास को समझने में मदद मिलती है। दूसरा पक्ष उन बिंदुओं को गोल कर जायेगा जो आपके लिए अति महत्वपूर्ण हैं। अरुंधति का लेखन मुझे पसंद है। कश्मीर मेरी चिंता बढ़ाता है लेकिन एक्सट्रेमिस्म मुझे स्वीकार नही, चाहे वो दक्षिणपंथी करे या अरुंधति। आपने जिस खूबसूरती से ये लेखन किया है, उससे मैं भी आपका कद्रदान हो गया हूँ। जैसे arundhiti का हूँ।<br />बेस्ट wishes!!जितेन्द्र 'जीतू'https://www.blogger.com/profile/11540091458194396571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-19203556923012388742017-06-21T18:57:15.772+05:302017-06-21T18:57:15.772+05:30A nice review it is an appetite to read the histor...A nice review it is an appetite to read the history of our time in light of fiction created by Arundhti and her purpose for hedging or unveiling the Truth shailendrahttps://www.blogger.com/profile/14974536868615713636noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-2974024233262300562017-06-20T22:18:57.482+05:302017-06-20T22:18:57.482+05:30चंदन की इस समीक्षा ने किताब पढ़ने की ओर झुकाव पैदा ...चंदन की इस समीक्षा ने किताब पढ़ने की ओर झुकाव पैदा कर दिया।प्रत्यूष चन्द्र मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/05032931994710768358noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-60658605889574843202017-06-20T16:06:27.486+05:302017-06-20T16:06:27.486+05:30 चंदन! बहुत क्रिएटिव समीक्षा है। किरदारों स्थितियो... चंदन! बहुत क्रिएटिव समीक्षा है। किरदारों स्थितियों घटनाओं तथा अतीत और वर्तमान पर अरुंधती राय की पकड़ साथ ही निहितार्थों पर क़ायम रह कर कथा कहने की उनकी प्रविधि को बेहतर तरीके से देखा है तुमने। कुछ प्रसंग डरा रहे हैं मगर पढ़ना पड़ेगा यह उपन्यास।Chandrakala Tripathinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-5758525643638997682017-06-19T19:50:35.555+05:302017-06-19T19:50:35.555+05:30अरुंधति या कश्मीर को लेकर आजकल लोगों के मन में या ...अरुंधति या कश्मीर को लेकर आजकल लोगों के मन में या तो अत्यधिक झुकाव दिखता है या पूर्वाग्रह। लेकिन समीक्षक ने बेहद संतुलित समीक्षा की है। मैं खुद भी अभी यही किताब पढ़ रहा हूँ और मेरी अब तक की राय कमोवेश ऐसी ही बन रही है। वैसे अरुंधति ने जिस तरह से समाज में उपेक्षित वर्गों को एक एक कर अपनी कहानी में जगह दी है और जिन राजनीतिक घटनायों की पृष्ठभूमि तैयार की है, उससे उपन्यास के स्टीरियोटाइप्ड होने का खतरा है। पढ़ कर देखता हूँ आगे क्या होता है।अभिनव सब्यसाचीnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36058936324370666942017-06-19T18:04:23.854+05:302017-06-19T18:04:23.854+05:30शुरू में महमूद के बारे में पढ़ कर आपकी कहानी 'भ...शुरू में महमूद के बारे में पढ़ कर आपकी कहानी 'भूलना' याद आ गयी। बहुत दिलचस्प तरीके से आपने समीक्षा की है, ऐसा की किताब पढ़े बिना रहा न जाएगा!Bodhisatvahttps://www.blogger.com/profile/10124782855343642490noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-27536919834469350392017-06-19T13:26:50.534+05:302017-06-19T13:26:50.534+05:30चंदन पाण्डेय ने अरुंधती राय के सद्य: प्रकाशित उपन्...चंदन पाण्डेय ने अरुंधती राय के सद्य: प्रकाशित उपन्यास में कुछ अनुत्तरित प्रश्नों को रेखांकित करते हुए खुद लिखा है कि "आखिर यह कौन सा भाईचारा है कि लश्करे-तैयबा आदि हर उस जगह पहुँच जाते हैं, जहां आग लगानी होती है? और सबसे बड़ी बात कि कौन सी वो ताकतें हैं, जो कश्मीर में आग लगाने के ईंधन मुहैया कराती रहती हैं."<br />इनके अलावा उपन्यास इस्लाम धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल करते हुए कश्मीरी हिन्दुओं का नरसंहार करनेवाली ताकतों,जमायते इस्लामी के बढ़ते प्रभाव के तहत मुस्लिम बच्चों को सरकारी स्कूलों के बजाए केवल मजहबी तालीम हासिल करने के लिए बाध्य कर देने की साजिश के तहत इस्लामी चरमपंथयों द्वारा स्कूलों में आगजनी,अलगाववाद को अपना उद्योग बना चुके हुर्रियत के कथित नेताओं के आर्थिक हित आदि ज्वलंत मुद्दे को जानबूझकर नज़रंदाज़ किया गया है.<br />कहना न होगा कि अरुंधती राय शुरु से ही कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करती रही हैं.उनका यही विचार वह मूल सूत्र हैं जिसे कला के धरातल पर उपन्यास के माध्यम 'कश्मीर की आज़ादी'का पक्ष और भारत सरकार की नीतियों का प्रतिपक्ष रचा गया है.<br />जार्ज लुकाच की शब्दावली में यह एक 'स्कीमेटिक लेखन' है.<br />याद रहे कि जिस दिन 'कश्मीर की आज़ादी' के लिए चलाया जा रही हिंसक परियोजना दुर्भाग्यवश पूरी हो जाएगी उस दिन से पंजाब के नए सिरे से ऐसे ही अभियान का आगाज़ होगा. <br />भारतीय बुद्धिजीवियों के को यह उपन्यास पसंद आएगा, क्योंकि यूरोपीय बुद्धि का आकर्षण एक ऐसा अस्त्र है जो उन्हें तो अच्छा लगता ही है जो इससे अपने विरोधियों को धूल चटाते हैं,यह उन्हें भी बहुत अच्छा लगता है जो खुद इसका शिकार बनते हैं.प्रो.रवि रंजनhttps://www.blogger.com/profile/05759095381764437121noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-1468286128186738862017-06-19T12:30:16.757+05:302017-06-19T12:30:16.757+05:30such an insightful reviewsuch an insightful reviewneerahttps://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-52251987274864881172017-06-19T12:17:52.031+05:302017-06-19T12:17:52.031+05:30चन्दन पाण्डेय की इस नायाब समीक्षा ने कथाकार अरुं...चन्दन पाण्डेय की इस नायाब समीक्षा ने कथाकार अरुंधती राय के नये उपन्यास 'द मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनैस' के बारे में पढ़ने की इच्छा को तो तीव्र बनाया ही है, उन्होंने इस कृति को महत्वपूर्ण पहलुओं को बहुत खूबसूरती से उभारकर सामने कर दिया है, न केवल उसकी खूबियों को बल्कि उसकी सीमाओं को भी बेहतर ढंग से रेखांकित किया है। इस त्वरित और नायाब समीक्षा के लिए चंदन और समालोचन को बधाई। नंद भारद्वाजhttps://www.blogger.com/profile/10783315116275455775noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-37996620742375666222017-06-19T11:46:41.526+05:302017-06-19T11:46:41.526+05:30लगता है उपन्यास ही पढ़ लियालगता है उपन्यास ही पढ़ लियाकौशल लालhttps://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-3693176970658039712017-06-19T11:46:32.365+05:302017-06-19T11:46:32.365+05:30लगता है उपन्यास ही पढ़ लियालगता है उपन्यास ही पढ़ लियाकौशल लालhttps://www.blogger.com/profile/04966246244750355871noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-70016427275817321432017-06-19T11:04:54.649+05:302017-06-19T11:04:54.649+05:30इस सधी हुई समीक्षा को पढ़ कर उपन्यास पढ़ने का मन ह...इस सधी हुई समीक्षा को पढ़ कर उपन्यास पढ़ने का मन हो गया है। चन्दन की समीक्षा बड़ी संतुलित और अच्छी लगी।तुषार धवलnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-52047539012551583912017-06-19T11:02:49.910+05:302017-06-19T11:02:49.910+05:30अरुंधति का नया उपन्यास नहीं पढ़ा लेकिन बहुत सारे र...अरुंधति का नया उपन्यास नहीं पढ़ा लेकिन बहुत सारे रिव्यूज ज़ाहिर है राहों निगाहों में आते रहे और क़रीब आठ दस पढ़े होंगे तो कुछ कुछ तस्वीर सी बनती रही कि यह दस बारह बिंदु है जिनके संदर्भ में बात चीत हो रही है। <br /><br />चंदन पांडे के लेख में बड़ा ठहराव है। मासूम ज़िम्मेवारी से लिखा हुआ कि पढ़ने वाले को कहानी के contours भी समझ आएँ और निहितार्थ भी और विश्लेषण भी। यह लेख आलोचना के pre decided यंत्रों से उपन्यास तक पहुँच बनाता नहीं दिखायी पड़ता बल्कि उपन्यास को 'सुनकर' उसे समझने का प्रयास करता है। ऐसा उनके विवरणों से प्रतीत हुआ। <br /><br />यह समीक्षा ख़ुद किसी कहानीकार ने लिखा है यह भी सहज पता चलता है क्यूँकि वे गूँथी हुई कहानी को लेख के आख़िरी पैराग्राफ़ में फिर से कहानी के सिरे जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। <br /><br />मुझे यह लेख बहुत अच्छा लगा।मोनिकाnoreply@blogger.com