tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post4926067446036720209..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सहजि सहजि गुन रमैं : सुधांशु फ़िरदौसarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-3292833703078663722022-06-25T13:54:58.205+05:302022-06-25T13:54:58.205+05:30टूटती साँसों के दिनों में एक काव्य-अभिलाषी के पास ...टूटती साँसों के दिनों में एक काव्य-अभिलाषी के पास क्या बचता है? ग़ालिब का दीवान, सुरेन्द्र वर्मा के उपन्यास, रिल्के की कविताएँ और कालिदास के 'अपूर्ण कथागीत' का पुनर्पाठ.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-14910758091533174622017-08-15T20:32:29.816+05:302017-08-15T20:32:29.816+05:30एक प्रतिभशाली कवि का स्वागत है ।एक प्रतिभशाली कवि का स्वागत है ।arvindchorpuranhttps://www.blogger.com/profile/09475733034615144640noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-85247175541161798462016-12-21T20:57:20.025+05:302016-12-21T20:57:20.025+05:30लेना ही पड़ता है कालिदास को एक न एक दिन संन्यास
‘ऋत...लेना ही पड़ता है कालिदास को एक न एक दिन संन्यास<br />‘ऋतुसंहार’ से ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ तक आते-आते वह मांग ही लेता है मुक्ति<br />नंदीग्राम के त्याग का उज्जैन के त्याग से होता है उपसंहार<br />मल्लिका का सान्निध्य हो या प्रियंगुमंजरी का सहवास<br />विरह हो या संसर्ग एकाकी कालिदास<br />एकाकी ही रहता है...<br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04187328749800327410noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-32173427643719668972016-12-21T17:52:51.018+05:302016-12-21T17:52:51.018+05:30तीनों ही कविताएँ बेहतरीन हैं। पहली कविता तो इतनी स...तीनों ही कविताएँ बेहतरीन हैं। पहली कविता तो इतनी समकालीन कि जैसे एक एक पंक्ति इस समय पर ओस की तरह गिरती हुई, बहुत धीरे धीरे। समकालीनता को इस हद तक निभाना कई बार अभिव्यक्ति की खतरनाक हदों को छूना होता है। ‘कालिदास...’ से एक पंक्ति उधार लेकर कहूँ तो यह अपना सर्वस्व दाँव पर लगाने का साहस है। ‘शरदोपाख्यान’ तो और भी दुर्लभ कविता है। यह एक साथ लोक और शास्त्र दोनों को रच जाती है। यह भी उतनी ही समकालीन कि यह तक तय करना हो मुश्किल कि तुम्हारी याद अजाब है या नेमत... यह अपने ही भीतर रह रहे किसी दूसरे से संवाद है। मानो नंदीग्राम के कालिदास और उज्जैन के कालिदास के बीच...Manojhttps://www.blogger.com/profile/14754629355835097765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-78143200021162691572016-12-20T11:25:25.602+05:302016-12-20T11:25:25.602+05:30'वक़्त एक बगूला है.' हालांकि, सुधांशु ने अप...'वक़्त एक बगूला है.' हालांकि, सुधांशु ने अपनी कविता में इस वाक्य को किसी और अर्थ में बरता है. मगर महत्वाकांक्षा और निष्ठुरता का यह बगूला सचमुच आज हमारे कितना पास जान पड़ता है. सुधांशु के लिए 'कविता-कला' इसी निष्ठुर माहौल में एक हस्सास आदमी के लिए ज़िन्दा रहने का ज़रूरी अवलंब है. कविता-कला एक फैशन के उलट, इन्द्रिय निग्रह की एक कठोर साधना है और यह सच जितना जल्दी समझ लिया जाए उतना अच्छा है. कविता के वर्तमान को देखते हुए एक ना-उम्मीदी तो बनती है, लेकिन इसी ना-उम्मीदी के कुहरे में सुधांशु जैसों की एक और सफ भी नज़र आती है जो खालिस कविताई में भरोसा रखती है. और इस सफ में वो दीवाने खड़े हैं जो अपने हिस्से के एकांत से भी ज़ियादा एकांत चाहते हैं ताकि अपराध-विहीन ग्लानी के अवसाद से भरी अपनी आत्माओं पर कोड़े बरसा कर अपने लिए और दूसरों के लिए वे कुछ राहत का सामान जुटा सकें. सुधांशु की इन सभी कविताओं में रचनात्मक आवेश सबसे पहले और सबसे दूर तक छूता है. और यह आवेश जितना आधुनिक है उतना ही परंपरा में धंसा हुआ भी. क्योंकि सुधांशु को यह भलीभांति अहसास है कि वे जिस परंपरा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं उसकी मूल चेतना ही आधुनिक और प्रगतिकामी है. सुधांशु की कविता की टेक्नीक पर अलग से एक लेख की दरकार है. बहरहाल, इतना कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं कि मनुष्यता के सरोकारों को संकुचित ठहराने के लिए लगाईं गई अदालत में सुधांशु उसके विस्तार की पैरवी कर रहे हैं. और चूँकि यह लड़ाई अभी हारी नहीं गई है, सुधांशु की कविता की दलीलों को बहुत ध्यान से और खुले दिमाग से सुनने की ज़रूरत है.--सौरभ शेखर.सौरभ शेखर https://www.blogger.com/profile/16049590418709278760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36079848326310979812016-12-18T11:47:55.905+05:302016-12-18T11:47:55.905+05:30शरदोपाख्यान और कालिदास का अपूर्ण कथागीत बेहतरीन कव...शरदोपाख्यान और कालिदास का अपूर्ण कथागीत बेहतरीन कविताएँ हैं । vikas sharma raazhttps://www.blogger.com/profile/13366777677695170058noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-44624559268130193522016-12-17T14:43:18.568+05:302016-12-17T14:43:18.568+05:30behatarain rachnayenbehatarain rachnayenshashi purwarhttps://www.blogger.com/profile/04871068133387030845noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-40093260030543483042016-12-17T09:21:43.082+05:302016-12-17T09:21:43.082+05:30बेहतरीन ।बेहतरीन ।हिंदी नवजागरण https://www.blogger.com/profile/11959701345251385027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-30898693572594256132016-12-16T20:55:44.055+05:302016-12-16T20:55:44.055+05:30"कालिदास का अपूर्ण कथागीत"वाकई अच्छी कवि..."कालिदास का अपूर्ण कथागीत"वाकई अच्छी कविता है।पढ़वाने के लिए शुक्रिया।Alka Prakashhttps://www.blogger.com/profile/06780408905956504267noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-79686860766920896162016-12-16T20:09:50.291+05:302016-12-16T20:09:50.291+05:30सुधांशु फिरदौस कविता में नए समय का सौन्दर्यबोध है...सुधांशु फिरदौस कविता में नए समय का सौन्दर्यबोध है khalid a khanhttps://www.blogger.com/profile/06479330177407372773noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-64145056434470612016-12-16T18:04:04.007+05:302016-12-16T18:04:04.007+05:30इधर की कविता में कविता की कमी का जो अहसास बढ़ा है ,...इधर की कविता में कविता की कमी का जो अहसास बढ़ा है , उसे कम करने में ये कविताएं मददगार होंगी।आश्वस्ति यह भी है कि सुधांशु का कविकर्म निरन्तर नई दिशाओं की खोज करता आगे बढ़ रहा है। <br />इन कविताओं में कविता और राजनीति के बीच की बहुप्रचारित खाई को पाटने की ईमानदार जद्दोज़हद दिखाई देती है। अंतिम कविता को पढ़ते हुए यह सवाल जरूर उठता है कि क्या आज भी कलाकार का आत्मसंघर्ष कमोबेश वही है जिसका सामना मोहन राकेश के कालिदास ने किया था!क्या आज कलाकार का अकेलापन आभासी दुनिया में जी रहे एक आम आदमी के अकेलेपन से गुणात्मक रूप से भिन्न रह गया है ?आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-22253746045744931022016-12-16T16:23:10.480+05:302016-12-16T16:23:10.480+05:30तत्सम और उर्दू का सुन्दर प्रयोग है। इससे कविता कई ...तत्सम और उर्दू का सुन्दर प्रयोग है। इससे कविता कई पाठ और थोड़े धैर्य की मांग करती है। ऐसे समय में जब अधिकाँश कवितायेँ भदेस से भर कर एक रंगी हो गयी हैं। इनमें एक अलग टेस्ट है। जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। इन कविताओं के विषय भी अद्भुत हैं। शरद पर आधारित कविताओं में जब धूप फैली तो 16 दिसम्बर की इस ठण्ड में भी हल्की गर्मी आ गयी। कालिदास पर आधारित कवितायेँ भी बेहद पसंद आईं। शुरुआत की राजनीतिक पुट की कविताओ ने इतिहास को स्वयं में दर्ज करते हुए विरोध को मुखर किया है। इस डरे हुए समय में यह साहस काबिले तारीफ है।सुधांशु हमेशा मेरे प्रिय कवि रहे हैं । एक बार फिर उन्हें बहुत बहुत बधाई अरमान आनंद बी एच यू विश्व हिन्दी साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/10278183274909361459noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-66819481440478247702016-12-16T16:02:30.306+05:302016-12-16T16:02:30.306+05:30आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-...आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-12-2016) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/" rel="nofollow"> "जीने का नजरिया" (चर्चा अंक-2559) </a> पर भी होगी।<br />--<br />सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।<br />--<br />चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।<br />जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।<br />हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।<br />सादर...!<br />डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'<br />डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-89261687182890725152016-12-16T15:55:59.126+05:302016-12-16T15:55:59.126+05:30'ऋतुसंहार' के श्लोक को प्रकाशक मोतीलाल बना...'ऋतुसंहार' के श्लोक को प्रकाशक मोतीलाल बनारसीदास से मुद्रित प्रति से मिलाकर दुरुस्त कर दिया गया है.arun dev https://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-35638547303557029182016-12-16T14:57:16.875+05:302016-12-16T14:57:16.875+05:30'शरदोपाख्यान' निश्चित रूप से श्रेष्ठ कविता... 'शरदोपाख्यान' निश्चित रूप से श्रेष्ठ कविता है। कुछ संपादन चाहिए, जैसे शुभग, सफ्फाक जैसे शब्दों का। श्लोक ॠतुसंहार की किसी मिस्प्रिंट भरी कापी से लिया है। अन्य दो कविताओं के बारे में कोई राय नहीं बना पाया हूँ। साझा करने के लिए धन्यवाद।Tewari Shiv Kishorenoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-79615852898727407572016-12-16T13:47:06.333+05:302016-12-16T13:47:06.333+05:30शरदोपाख्यान का पहला हिस्सा और कथागीत के कुछ हिस्से...शरदोपाख्यान का पहला हिस्सा और कथागीत के कुछ हिस्से बहुत भाएanurag vatshttps://www.blogger.com/profile/06840124673778359435noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-30624026206941305362016-12-16T12:29:51.328+05:302016-12-16T12:29:51.328+05:30सहजता से सायास परहेज, तत्सम शब्दों के अतिरिक्त आग्...सहजता से सायास परहेज, तत्सम शब्दों के अतिरिक्त आग्रह तथा भाषायी वितान और शब्दाडंबर-जनित दुरूहता के कारण पाठ में मशक्कत की मांग करती ये कवितायें अंततः अपने को पढ़ा ले जाती हैं और भूले- बिसरे शब्दों-पदों-संदर्भों-दृश्यों तथा हमारे जीवन और सोच से छिटक गई प्रकृति से हमें एक बार फिर मिला देती हैं। यही इसका सबल पक्ष है। प्रकृति से दूर होती जा रही कविता यदि इस दुरूहता और मशक्कत के साथ भी प्रकृति तक लौटे, प्रकृति को अपने आँगन में समेटे-फैलाये तो स्वागत है इन और ऐसी कविताओं का।<br /><br />- राहुल राजेश, कोलकाता। Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-66834637610330874042016-12-16T10:21:16.057+05:302016-12-16T10:21:16.057+05:30सुकून देती कविताएँ।
लगा जैसे एक अतीत में मेरा समय ...सुकून देती कविताएँ।<br />लगा जैसे एक अतीत में मेरा समय लौट गया। जैसे असीम शांति में कई प्रवाह मेरे आसपास थे। कई ऋतु चक्र और जिजीविषा।अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-27990980483184872642016-12-16T09:25:21.300+05:302016-12-16T09:25:21.300+05:30 बहुत बहुत बधाई कवि को।और Arun Dev जी को बहुत बहुत... बहुत बहुत बधाई कवि को।और Arun Dev जी को बहुत बहुत धन्यवाद, इन कविताओं की सुन्दर प्रस्तुति के लिए।उम्मीद है पाठक न केवल पढ़ेंगे इन कविताओं को, बल्कि इन पर सार्थक चर्चा भी करेंगे।सुशील सुमनnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-51523003421021350492016-12-16T09:24:36.139+05:302016-12-16T09:24:36.139+05:30सुधांशु की कविताएं अपने वक़्त में खोये हुए वक़्तों, ...सुधांशु की कविताएं अपने वक़्त में खोये हुए वक़्तों, (जो वर्तमान में भविष्य की परिकल्पना से कम नहीं होता) की तलाश की कविताएं हैं।<br /><br />उर्दू के अज़ीम शायर नासिर काज़मी का एक शेर है<br /><br />मैं तो बीते दिनों की खोज में हूँ <br />तू कहाँ तक चलेगा मेरे साथ..<br /><br />ये चुनौती भी है और मुराजअत भी एक पाठक के लिए और एक अपने लिए। पाठक जब तक इस चुनौती को स्वीकार नहीं करता, तब तक वो सुधांशु की कविता के साथ चल नहीं सकता। अख़बार और सियासत के गलियारों बल्कि कविता में दर आये सियासत के गलियारों से निकलना होगा पाठक को और कला में वापस आना होगा।<br /><br />अन्यथा मोबाइल के परदे पर सरसरी तौर पर उकताई हुई कला के सानिध्य से उपजी हुयी मानसिकता इस विशिष्ट कला के रसास्वादन से वंचित ही रहेगी।।Mk Saninoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-7943210641650318292016-12-16T08:03:58.232+05:302016-12-16T08:03:58.232+05:30वाह. समालोचन शब्दों को एक चाक्षुष अनुभव में बदल दे...वाह. समालोचन शब्दों को एक चाक्षुष अनुभव में बदल देता है. यह तो अपने आप में क्रिएशन है भाई. सुधांशु जी को धैर्य से पढना चाहिए और किसी अनुभव पर जल्दी में पहुंचने से बचना चाहिए. वास्तव में ये कविताएँ सहजि सहजि गुन रमना है. आभार.डॉ. सूर्य मणि निगमnoreply@blogger.com