tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post4648686644579537858..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : भूमंडलोत्तर कहानी (६) : कायांतर (जयश्री रॉय) : राकेश बिहारीarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-75691995376921663572015-03-28T18:57:38.003+05:302015-03-28T18:57:38.003+05:30बेहद बेहतरीन कहानी और आलोचना के लिए आलोचक और रचनाक...बेहद बेहतरीन कहानी और आलोचना के लिए आलोचक और रचनाकार दोनों को बधाई । राकेश जी ने अपनी आलोचना के द्वारा कहानी को नये सन्दर्भ और आयाम दिए है। <br />कहानी बेहद मार्मिक और प्रान्स्न्गिक है। अनुराधा गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/07593894672368123677noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-33281370168934842442015-03-28T00:28:22.635+05:302015-03-28T00:28:22.635+05:30बहुत ही अच्छी कहानी के लिए जयश्री जी को बधाई बहुत ही अच्छी कहानी के लिए जयश्री जी को बधाई dr garima srivastavahttps://www.blogger.com/profile/04939536915367087843noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-2500813671974686882015-03-27T21:54:51.982+05:302015-03-27T21:54:51.982+05:30Just read your story "kayantar". It is a...Just read your story "kayantar". It is awesome narration of pain, hardships, emotional distress, physical/verbal/sexual abuse, neglect that women like Fulmati goes through everyday in rural Bihar or other parts of rural India and still has no other options but to lead such a life in a patriarchal society. It reminded me of so many women like Fulmati in rural Bihar. It is at times hard to read with so much of pain, hardships that women like Fulmati goes through. You have an excellent grasp over language that women in similar socio economic strata use. It is a nice reminiscent for me of place where I grew up. Over all, an excellent and successful story and very close of reality. Thanks for such a story. I guess I read a Hindi story first time after 2005. Thanks again.Suresh n Soninoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-74958622718981089982015-03-27T21:47:45.810+05:302015-03-27T21:47:45.810+05:30jai shri kakhani umda. achha subject liya. log in ...jai shri kakhani umda. achha subject liya. log in pr nahi likhte. inka dukh bhi koi samjhe. medam apka nam ho. man se likhti hai ap. namaste.Ramesh Mahatonoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-4412572428874038542015-03-27T21:34:26.271+05:302015-03-27T21:34:26.271+05:30समालोचन में हमेशा श्रेष्ठ साहित्य पढने को मिलता है...समालोचन में हमेशा श्रेष्ठ साहित्य पढने को मिलता है। राकेश बिहारीजी के आलेख सारगर्भित होते हैं। जयश्री की कहानी मन को छू गयी। अपना अच्छा काम जारी रखिये। साधुवाद!प्रीता बंसलnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-43035532360021788082015-03-27T21:17:40.205+05:302015-03-27T21:17:40.205+05:30अच्छी कहानी, बढ़िया आलेख! समालोचन, राकेश बिहारी तथ...अच्छी कहानी, बढ़िया आलेख! समालोचन, राकेश बिहारी तथा मिस रॉय को बधाई!भावना विकासnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-24628052465174836552015-03-27T16:00:00.918+05:302015-03-27T16:00:00.918+05:30 जब इस कहानी को पढ़ा था, तब मैंने जोयश्री को बधाई द... जब इस कहानी को पढ़ा था, तब मैंने जोयश्री को बधाई दी थी. स्त्री के सामजिक संघर्ष की व्रहद्तर भूमि बहुत कुछ ऐसी ही है, जहाँ प्रतिकार के रास्ते उसको उपलब्ध नज़र आने वाली जमीन पर बनते हैं और उस तरह से अत्याधुनिक्वादी नहीं हैं जैसा की उन्हें देखने की कोशिश होती रही है. शायद यही वह बिंदु भी है जिस पर यह कहानी विशिष्ट बनती है.राकेश का इस कहानी को लेकर अवलोकन भी इसी के गिर्द है, उसकी आंतरिक परतों को टटोलते हुए. न्यायसंगत भी जो रूपकों और कथानक को उसके परिवेश के साथ देखता है न की किसी विमर्शवादी बंधे बंधाये फार्मूले में. राकेश और जोयश्री दोनों को बधाई. तरुण भटनागरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-74796139414026569972015-03-26T08:55:51.433+05:302015-03-26T08:55:51.433+05:30आपकी कहानी 'कायांतर' पर राकेश बिहारी की सम...आपकी कहानी 'कायांतर' पर राकेश बिहारी की समीक्षा निश्चय ही कहानी के बहुआयामी पक्षों को बहुत खूबसूरती से उजागर करती है। उनकी विवेचना जहां कहानी के बहाने इतर समाजशास्त्रीय पहलुओं पर भी विस्तार से प्रकाश डालती है, वहीं हमारे समय और सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया में स्त्री की अपनी सोच और आत्मचेतना में आ रहे परिवर्तन को भी बखूबी रेखांकित करती है और कथानायिका के संघर्ष में व्यक्त हो रहे बदलाव को राकेश ने बहुत अच्छे ढंग से व्याख्यायित किया है। राकेश बिहारी और आपको तहेदिल से बधाई।Nand Bhardwajnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-19487497396595364852015-03-26T08:54:26.334+05:302015-03-26T08:54:26.334+05:30 Behatarin samiksha!samiksha mein bhavpaksha aur b... Behatarin samiksha!samiksha mein bhavpaksha aur budhipaksha ka santulan lakshniy hai...kahani ke vibhinn konon par samyak vimarsh abhinandniy!!!samaj virodhi takton(tatvon) ke khilaph apne antas ke gubar ko nikalne ki jayashree ki ada adbhut hai...isse pahle bhi bimar purushsatta..ya rugn rudhiyon ko jayshree ne khub latada hai...ab kibar phulmati to jhota pakdke latiyati hai..kisi ko bakshti nahi..samaj grasit kupravrittiyo mein amulchul parivartan ki abhilasha hi lekhika se aisa kayantaran karva sakti hai..bejod kahani ki bejod samiksha ke liye samalochan ka abhinandan!!!Asha Gahlothnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-69584455442832318432015-03-26T08:52:04.647+05:302015-03-26T08:52:04.647+05:30सशक्त कहानी. मैं इसे इस रूप में पढ़ता हूँ कि जातीय...सशक्त कहानी. मैं इसे इस रूप में पढ़ता हूँ कि जातीय और वर्गीय दृष्टि से दलित प्रस्थिति (status) प्राप्त व्यक्ति को क्या आदमी होने का दरजा भी मिल पाता है. यहाँ लैंगिक प्रस्थिति भी एक अलग आयाम के रूप में आ जुड़ता है और नतीजा फूलमती की जीवन दशा है. कुछ घटनायें नाटकीय रूप में घटती जरूर हैं पर उनके सहारे लेखिका अपने कथ्य को और प्रभावशाली ढंग से रखने में सफल हुई हैं. कथा की पृष्ठभूमि भले ही बिहार का एक गाँव है पर यह देश के बड़े भू-भाग की कथा है.आश्चर्य है कि लेखिका शहरी होकर भी कहीं ज्यादा गाँव से जुड़ी लगती हैं और संभवतःबंगलाभाषी हो कर भी मुझसे कहीं ज्यादा बिहारी. एक सार्थक रचना की बधाई उन्हें.Ashok Kumarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36709921840198289842015-03-25T18:31:43.460+05:302015-03-25T18:31:43.460+05:30जयश्री जी की यह कहानी मिट्टी की सुगंध लेकर आई , कर...जयश्री जी की यह कहानी मिट्टी की सुगंध लेकर आई , करची, कसौंझी,बिढ़नी जैसे देशज शब्द आस पास तैरने लगे अपने साथ ढेर सारी यादें समेटे। यह एक कथाकार की संवेदनशील और प्रभावी भाषा का जादू है कि कथा में चित्रित सारा दृश्य आँखों के आगे बिलकुल साकार हो गया। एक बेहद समर्थ और लीक से अलग कहानी के लिए जयश्री जी को बहुत बधाई। राकेश जी की संतुलित समीक्षा ने कहानी को न सिर्फ समृद्ध किया है बल्कि उसके बहाने कई ज्वलंत मुद्दों पर सोचने के लिए भी पाठकों को बाध्य किया है। मुझे लगता है स्त्री शब्द ही दलित है, हाशिए पर पड़ी एक उपेक्षित वस्तु, इस कहानी ने तीन औरतों के माध्यम से इस धारणा को और पुख्ता ही किया है । केन्द्रीय पात्र फूलमती जाति और वर्ग विषमता की वजह से ललिता से कहीं ज्यादा शोषण और उत्पीड़न का शिकार होती है लेकिन मैं ललिता या उसके मित्र की दशा पर सोच रही थी जो पढ़ी लिखी, समर्थ और उच्च कुलीन होने के बाद भी अंत तक ख़ुद को मुक्त नहीं कर पाती , " जब भगवान ने पंख नहीं दिये तो मन को चिड़िया क्यों बनाया, क्यों छाती भर आकाश दिया." , बेचैन कर जाती है यह पंक्तियाँ। फूलमती की मुक्ति का मिथक भी अंत में ललिता को देखकर आए उसके आँसू तोड़ देते हैं। यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि मन का पहनने ओढ़ने ,खाने और चंद साँसे जीवन से उधार लेने के लिए उसे देवी बनना पड़ता है ... हाँ इस देवी का यह रौद्र रूप जरूर उस क्रूर समाज के मुंह पर तमाचा है जो मानवी बनकर तो जीने नहीं देता, देवी बनाकर लातें भी खा लेता है ... एक सशक्त कहानी और प्रभावी समीक्षा के लिए समालोचन का बहुत आभारMerakihttps://www.blogger.com/profile/00304505624061842867noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-75837749979312763212015-03-25T18:25:38.407+05:302015-03-25T18:25:38.407+05:30 lekin choonki sheersak me caste class and gender ... lekin choonki sheersak me caste class and gender hai to dhyan diya jaye ki es dristi se khaskar narivadi paripreksheya se kahani ki padtaal karte es aalekh me wah pariprekshya kaayde se banta nahi hai.kyuki kahani me wo dristi nahi hai.seemit pratirodh aur saswat bhaginiwad ki baat karti yah kahani caste class aur gender k antahsambandh wa jatiltaon ko uske poore vitaan me nhi pakad pati khaskar stree dristi se.kumud pawde sharmila rege ya fir brahamanvadi pitrasatta ki avdhaarna dene wali uma ji ke kaam me yah baat dhang se rekhankit ki gyi hai ki is vyawatha me brahman stree dalit stree se apne ko sresth samajhti hai.yah baat saas k madhyam se ek had tk aayi bhi hai par limitation yah ki jaise pichli peedhi ki auraten aisa samajhti thi jbki yah aaj bhi kayam hai.iske alawa apni samajik sanrachna me brahman stree ya uchh varn ki stree apne ko dalit purush se sresth samajik sthiti me pati hai.isi tareeke se sexuality k niyam qayde wa dukhon k swaroop alag hain.ye tamam bhinnatayen wa jatiltayen milkr stree ko samuhik morcha banane se rokti hain.varg k pariprekshya me marxwadi nariwad in jatiltaon par baat karta hai.elison jagger ki kitab feminist politics in human nature es maamle me balance kitab hai.achhe aalekh k liye badhai.joyshree ki kahani bhi achhi hai apne seemit vitaan wa sarleekrt antarvirodhi pratirodh k chitran k baavjood.yha mera aasaya universal sisterhood k samanyikrt swaroop se jyada hai is kahani meArunesh Shuklanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-28052528804039350722015-03-25T18:24:29.541+05:302015-03-25T18:24:29.541+05:30कहानी की सबसे अच्छी बात है स्त्री की दिक्कतों का भ... कहानी की सबसे अच्छी बात है स्त्री की दिक्कतों का भारतीयकरण किया गया है।जो हमारे समाज के अनुरूप है।ये एक अलग सुरुआत है ।नहीं तो अब तक का अधिकतर स्त्री विमर्श विदेशो से आयातित ही है।सिमोन-द-वाउआर के स्त्री विमर्श से प्रभावित लोगों से कहना चाहता हूँ कि यह हमारे समाज के अनुकूल नहीं है। इस कहानी से पूर्व मैं केवल मनीषा कुलश्रेष्ठ जी के 'पंचकन्या' उपन्यास और शची मिश्रा जी के 'पांचाली' उपन्यास में स्त्री विमर्श का भारतीयकरण देखा हूँ।अब स्त्री की समश्या को कहानी में भी भारतीयकरण कर के हमारे समाज के अनुकूल बनाकर लाया जा रहा है।इस मायने में यह कहानी उत्कृष्ट श्रेणी में रखी जा सकती है।Kumar Sushantnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-33794223089488974072015-03-25T15:59:03.396+05:302015-03-25T15:59:03.396+05:30बहुत बढ़िया लिखा है भाई। आप कथा के सक्षम और गंभीर ...बहुत बढ़िया लिखा है भाई। आप कथा के सक्षम और गंभीर आलोचक हैं। जयश्री कथा के क्षेत्र में एक चर्चित नाम हैं....। दोनों को बधाई.... समालोचन को आभारविमलेश त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/02192761013635862552noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36306113211693797702015-03-25T15:44:25.278+05:302015-03-25T15:44:25.278+05:30
साधरण औरतें रोती हैं देवियाँ नह... <br /><br />साधरण औरतें रोती हैं देवियाँ नहीं ..........पंक्ति सारी पीड़ा सारी दास्ताँ बयान कर देती है .......औरत से देवी तक के सफ़र को तय करना आसान नहीं होता .........जाने कितनी मौत मरती है एक औरत तब इस मुकाम पर पहुँचती है..........एक चीत्कार को समेटे ........मगर सुनने के लिए कहीं किसी स्त्री का जिंदा होना भी जरूरी होता हैवर्ना दमघोंटू जीवन अन्दर ही अन्दर कैसे एक स्त्री का दाहसंस्कार कर देता है उसका प्रतीक है -----कायांतर यानि स्त्री में स्त्री का प्रवेश और फिर उसमे खुद की खोज ............अनेक अर्थ समेटे कहानी पितृसत्ता, पितृसोच के दुष्परिणाम को दर्शाती है तो दूसरी तरफ अंधविश्वास की भेंट चढ़े समाज का चित्रण करती है वहीँ अमानवीय दशाओं में गुजरती जिंदगियों का हाहाकारी चित्रण करती है ...........और एक वक्त आता है जब तोडनाजरूरी होता है ऐसी रूढ़ियों को शायद जीने के. लिए. जरूरी है. जैसे. लोहा ही लोहे. को.काटता.है.वैसे ही एक वक्त आता है जब इंसान इतना मजबूर हो जाता है कि न चाहते हुए भी उसको ऐसा कदम उठाना पड़ जाता है .........जाने कितने स्याह पक्षों को समेटे है कहानी जिन्हें हम देख कर जान कर भी अनदेखी कर जातेहैं vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-31440518761556898112015-03-25T15:04:54.707+05:302015-03-25T15:04:54.707+05:30‘’दरअसल जेंडर और जाति के तन्तु एक दूसरे में इस तरह...‘’दरअसल जेंडर और जाति के तन्तु एक दूसरे में इस तरह गुथे हुये हैं कि फूलमती और बिगेसर की त्रासद विडंबनाओं को एक दूसरे से अलग करके नहीं देखा जा सकता. देवी के रूप में कायांतरित होने के बाद राम सिंहासन को पीटते हुये फूलमती का सिंदूर, वेणी और लाल साड़ी मांगना किसी सावित्री द्वारा सत्यवान के प्राण लौटाने की गुहार नहीं, बल्कि आत्मचेतना से लैस एक स्त्री की ऐसी आवाज़ है जिसमें उसकी स्वायत्तता और सामंती व्यवस्था की भेंट चढ़ गए बिगेसर की जिंदगी दोनों के दावे मौजूद हैं.” ‘कायातंरण’ कहानी पर राकेश बिहारी जी का यह सुचिंतित निष्कर्ष इस कहानी के कथ्य को न्यायोचित ठहराता है। वास्तव में पुरुषसत्ता का शिकार होते-होते उसी के तर्कों और औंजारों का इस्तेमाल करने वाली फूलमती अपनी तमाम सीमाओं के बावजूद एक आधुनिक चरित्र है। दरअसल ‘कायातंरण’ कहानी यह प्रस्ताव करती है कि इस पितृसत्ताक व्यवस्था में स्त्री के ‘कायातंरण’को इस दृष्टि से भी देखा जाना चाहिए कि कहीं वो किसी शोषण या फिर किसी शोषण के प्रतिरोध का नतीजा तो नही है। जाहिर है कि इस कहानी पर अपने लेख में राकेश बिहारी जी ने यह कार्य प्रभावशाली ढंग से किया है। <br />आशुतोष<br />आशुतोषhttps://www.blogger.com/profile/18198728119373852561noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-56752251322356424492015-03-25T12:37:41.373+05:302015-03-25T12:37:41.373+05:30बढ़िया समीक्षा ........अभी पढनी रहती है कायांतर बढ़िया समीक्षा ........अभी पढनी रहती है कायांतर vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-61254117706147723932015-03-25T08:28:14.870+05:302015-03-25T08:28:14.870+05:30कहानी पढ़ी और आलोचना भी. स्त्रियों के संघर्ष साझे स...कहानी पढ़ी और आलोचना भी. स्त्रियों के संघर्ष साझे संघर्ष कहाँ हो पाते हैं ? अपने संघर्षों में वे बहुत बेदर्दी से एलिनिएट की जाती हैं . कहानी मार्मिक है . लोक चुम्बक की तरह पाठक को पकडे रहता है. सुस्त और पस्त जीवन में कुछ कहानी ने कहा कि उठ चलो ..बधाई जॉय श्री को. राकेश जी आपको घेरने के लिए मैं हथियार और औज़ार लेकर बैठती हूँ कि कहीं आलोचक चूके तो बात बने ..आप भी चौहान हैं .अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.com