tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post4582800625989640679..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सहजि सहजि गुन रमैं : बाबुषा कोहली arun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-63658214898970921682015-01-11T17:58:06.372+05:302015-01-11T17:58:06.372+05:30भाई अरुण देव जी, आपके उपरोक्त कथन से सहमत हूँ | यह...भाई अरुण देव जी, आपके उपरोक्त कथन से सहमत हूँ | यह सिर्फ नए कवियों के लिए ही नहीं, वरन अग्रज बड़े कवियों के लिए भी है | 'तिनका-तिनका' काव्य संकलन में अशोक वाजपेयी की कई गद्य - कविताओं को पढ़कर मुझे हैरत हुआ | पूरी तरह गद्य था | कविता छंद से भले अलग हुई हो, पर लय और प्रगीतात्मकता उसका आंतरिक स्वभाव है जो उसे साहित्य की अन्य विधाओं से अलग करता है | कवि को शब्दों के चयन में उसके अंडरटोन पर ध्यान रखना चाहिए और कई कवि इसका पूरा ध्यान भी रखते हैं जो उनकी विधा को अपेक्षाकृत ज़्यादा संप्रेषणीय बनाता है |उपर्युक्त टिप्पणी मेरी कवियित्री के उपर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं है | हमें कविताओं को लद्धड़ गद्य होने से बचाना है ताकि उसकी अस्मिता कायम रह सके |Sushil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/09252023096933113190noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-75399763628248856262015-01-11T14:14:03.623+05:302015-01-11T14:14:03.623+05:30सुशील भाई जिस तरह की कविता के हम अभ्यस्त हो गए हैं...सुशील भाई जिस तरह की कविता के हम अभ्यस्त हो गए हैं वह इतनी प्रचुर मात्रा में लिखी जा रही है कि कई बार उससे भी ऊब स्वाभाविक है. बाबुषा की यह कविता एक तो उस रीति की नहीं है दूसरे इसमें शिल्प और संवेदना का नयापन है. कविता तो यह है ही. arun dev https://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-40273893890424828152015-01-10T15:57:17.181+05:302015-01-10T15:57:17.181+05:30शायद इस तरह की ही वेदना को झेलते हुए कविता की विधा...शायद इस तरह की ही वेदना को झेलते हुए कविता की विधा होने के लिए अहर्ता को अपनी दृष्टिपथ में रखते हुए एक समकालीन कवि शहंशाह आलम के मार्फत मैंने वागर्थ ( भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता ) में एक आलेख लिखा था जो उसके अंक - 203, जून 2012 पृष्ठ - 104 पर छपा था |Sushil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/09252023096933113190noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-87848416647710169092015-01-10T15:37:57.111+05:302015-01-10T15:37:57.111+05:30नमस्कार, अरुण देव जी | प्रस्तुत रचना के बारे में इ...नमस्कार, अरुण देव जी | प्रस्तुत रचना के बारे में इस ई-पत्रिका के संपादक होने के नाते आपसे मेरी एक जिज्ञासा है कि यह हिन्दी साहित्य की कौन सी विधा है और इसे क्यों वह (यानि कविता / कहानी/संस्मरण आदि ) होना चाहिए ? जब अशोक सिंह (दुमका) ने इसे पढ़ा तो उनहोने भी अनभिज्ञता जाहिर की और कहा कि उनको भी पता नहीं, कौन सी विधा है | खैर...मगर शायद यही कारण है कि कविता के नाम से भी अब हिन्दी के पाठकों को उबकाई आने लगी है | यह कहते हुए मैं यहाँ साफ कर देना चाहता हूँ कि मैं इस रचना की अंतर्वस्तु पर जाने के पूर्व ही बाबुषा कोहली की इस रचना की इस विधा का नाम जानना चाहता हूँ | अन्यथा नही लेंगे| मोबाईल - 09006740311 - सुशील कुमार |Sushil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/09252023096933113190noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-90476041842792998462015-01-10T11:04:25.402+05:302015-01-10T11:04:25.402+05:30सुन्दर प्रस्तुतिसुन्दर प्रस्तुतिOnkarhttps://www.blogger.com/profile/15549012098621516316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-7444724900571150962015-01-07T08:37:15.517+05:302015-01-07T08:37:15.517+05:30नाभि से उठती कराह..चट्टानों से फूटती आवेगमयी नदी स...नाभि से उठती कराह..चट्टानों से फूटती आवेगमयी नदी सी रचनाएं..बसन्त और पतझड़ एकसाथ रचने में कुशल बाबुशा सचमुच जादूशा बधाई बाबुशाविदुषी भारद्वाजnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-66147128758579867532015-01-07T08:34:42.401+05:302015-01-07T08:34:42.401+05:30बाबुषा के पास अभिव्यक्ति और कल्पनाशीलता की कमाल की...बाबुषा के पास अभिव्यक्ति और कल्पनाशीलता की कमाल की ऊर्जा है। यही वह ऊर्जा है जो कविता के लिये (खुद के लिये) एक नया शिल्प तलाश रही है। भाव बोध के स्तर पर एक तल्ख उद्गार की कविता है यह।तुषार धवलnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-86478979037640255482015-01-07T08:30:29.017+05:302015-01-07T08:30:29.017+05:30वाह बाबूषा! घनीभूत संवेदना के बादल घुमडते हैं और य...वाह बाबूषा! घनीभूत संवेदना के बादल घुमडते हैं और यथार्थ के पहाड से टकराते हैं तो ऐसी कविता की बारिश होती है। यहां प्रेम का आवेग ही नहीं है यह समझ भी है --कि हमारी नज़रें टकराने से जो बिजलियाँ चमकी थीं, गिरेंगी वो मुझ पर ही.<br />इन दिनों चल रही शीतलहर की तरह पहले शीतल - मंद का आभास देती ये कविताएं भीतर तक हिला देती हैं ।अरुण शीतांशnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-25776187990054402372015-01-05T21:18:29.007+05:302015-01-05T21:18:29.007+05:30बाबुषा जी अलग तरह की ही कवयित्री हैं। समकालीन कवित...बाबुषा जी अलग तरह की ही कवयित्री हैं। समकालीन कविता की आपाधापी से अलग-थलग किसी योगी की तरह अपनी साधना में रत। मेरे 5लिए ये कवितायेँ किसी तिलस्म या रहस्य-लोक को नहीं रचतीं बल्कि आत्मा में ही ऐठन पैदा करती हैं। बाबुषा जी को बधाई।विवेक निरालाnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-34406718055155299802015-01-05T20:11:29.760+05:302015-01-05T20:11:29.760+05:30मैं एक प्याला हूँ चाह से भरा !!
मुझ तक पहुँचने की ...मैं एक प्याला हूँ चाह से भरा !!<br />मुझ तक पहुँचने की राहें<br />सन्नाटों से रौशन हैं.!!!!<br /><br /><br />PRITIhttps://www.blogger.com/profile/13097291923210141012noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-11213798434533697042015-01-05T19:00:18.389+05:302015-01-05T19:00:18.389+05:30बाबुशा कोहली को पढ़ना
आकाशगंगाओं से गुजरना है उल्का...बाबुशा कोहली को पढ़ना<br />आकाशगंगाओं से गुजरना है उल्कापात और सांध्यकाल या उषाकाल में जगती और आकाशी शून्यों के परिभ्रमण को देखने का साहस करना है। <br />यह कवियत्री केसर आभायुक्त हार्सिंगारी लेखनी से युग की। मथानी में निर्मित स्याही से लिखती अपनी मुख्श्री से और जब यशोदा नन्द या गोपी गोपिका से पाठक कहते मुहँ खोलिए ये। उदगार कहाँ से जनित होते है उन्हें तीनो लोकों का ब्रह्माण्ड कथ्य नवरसों का आख्यान और पंच्भूतानाम मनु मानसी का जीवन इनकी ऋचाओं के मूर्तामूरत कथ्य कैनवास और जादुई कूची सम लेखनी में दर्शित होता है।<br />चिरायु हो बाबुशा जी।<br />अरुण देव जी आभार मन से<br /><br />कंडवाल मोहन मदनAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-68589874996077528922015-01-05T16:15:54.332+05:302015-01-05T16:15:54.332+05:30बाबुशा को पढतेहुआ मन के अन्दर एक लयहिलोरें लेती रह...बाबुशा को पढतेहुआ मन के अन्दर एक लयहिलोरें लेती रही धन्यवाद अरुण जी समालोचन के लये और आपने चयन के लिए .गीता गैरोला Geeta Gairolahttps://www.blogger.com/profile/00845719838652649203noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-78881612460944253252015-01-05T15:53:22.878+05:302015-01-05T15:53:22.878+05:30 baboosha ko padhna hmesha se apne bheetar basi au... baboosha ko padhna hmesha se apne bheetar basi aurat ke man aur ekant ko padhna hai....<br />.prem,dard aur anantim ya ki antheem bhavnaon-samvednaon ko Naye shabd ,roop aur aakaar dena bhi....Kavitanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-20428413490296211392015-01-05T15:52:20.009+05:302015-01-05T15:52:20.009+05:30There's absolutely a hypnotic charm about your...There's absolutely a hypnotic charm about your poetries ,.. they flow so effortlessly out of you to spell bound everyone with their magic charm ! Shabdon ki jaadugarni ... Bahut hi mayawi stay blessed with that charm !Rashmi Mishranoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-29193357688392044612015-01-05T14:42:02.734+05:302015-01-05T14:42:02.734+05:30एक तिलिस्म बुनती हैं बाबूषा...इससे बाहर आना मुश्कि...एक तिलिस्म बुनती हैं बाबूषा...इससे बाहर आना मुश्किल काम है..परमेश्वर फुंकवालhttps://www.blogger.com/profile/18058899414187559582noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-67616557428135673062015-01-05T14:19:36.407+05:302015-01-05T14:19:36.407+05:30एक तरफ़ प्रेम के दूत और दूसरी तरफ़ मुँह किये वही खिल...एक तरफ़ प्रेम के दूत और दूसरी तरफ़ मुँह किये वही खिलाड़ी शैतान के रूप में. प्रेम के दोनों रूपों का साक्षत्कार करना मुक्त होना है. प्रेम शिकार और शिकारी खुद ही है. पूरी कविता में स्किट्ज़ोफ़्रेनिया एक सशक्त बिम्ब बन कर उभरा है. प्रेम की तलाश में निकली नायिका सब कुछ पा चुकी है और अंततः मुक्त हो चुकी है जैसे कोई खेल खेलते खेलते बुद्ध, सुकरात और कृष्ण तक पहुँच चुकी है. रेहाना स्त्री की मौजूदा स्थिति बताती है.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-31597432486887984932015-01-05T12:50:45.170+05:302015-01-05T12:50:45.170+05:30आश्चर्य चकित करती कविताएँ । ।आश्चर्य चकित करती कविताएँ । ।Dayanand Aryahttps://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36862204277240512302015-01-05T10:03:49.096+05:302015-01-05T10:03:49.096+05:30बाबुशा का कैनवास व्यापक है . आप दुनिया के मानचित्र...बाबुशा का कैनवास व्यापक है . आप दुनिया के मानचित्र से कहीं से भी रंग उठाती हैं और और शब्दों की कूची से प्रेम, विडंबना रचती हैं . नए का रचाव और इन कविताओं की सघनता बाबू को अलहदा खड़ा करती है . उन्हें पढना सुखद रहा है . कविताओं के लिए समालोचन का शुक्रिया .अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-22476398710125709372015-01-05T09:40:57.465+05:302015-01-05T09:40:57.465+05:30 कि मुझसे मिलना हो तो मेरे चमत्कारों के पार मिलना ... कि मुझसे मिलना हो तो मेरे चमत्कारों के पार मिलना मुझ तक पहुँचने की राहें सन्नाटों से रौशन हैं...... अचंभित करती हुई सभी कवितायें बेहतरीन / शुभकामनायें बाबुषा कोहली जी / सहज सुंदर कवितायें साझा करने लिए शुक्रिया अरूण भाई आयुष झा आस्तीकnoreply@blogger.com