tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post452033070896601540..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सहजि सहजि गुन रमैं : गिरिराज किराड़ूarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-8803431578659591342012-07-08T09:20:49.915+05:302012-07-08T09:20:49.915+05:30गिरिराज किरादू जी की बेहद शानदार कविताएगिरिराज किरादू जी की बेहद शानदार कविताएअरुणाभ सौरभ https://www.blogger.com/profile/16925433398194408388noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-11512381705067526572012-07-06T13:41:35.298+05:302012-07-06T13:41:35.298+05:30गिरिराज किराडू जी आप कहते हैं तो उपरी मन से मान ले...गिरिराज किराडू जी आप कहते हैं तो उपरी मन से मान लेता हूं कि आप ठीक ठाक सतरह साल के बाद आठ दस महीने के लिए कवि रहे हैं परंतु जहां तक मुझे कविताओं की समझ है जो कि बहुत ही कम है उसके हिसाब से इन कविताओं को पढ कर मेरा अंतर्मन कहता है कि आप जन्मजन्मांतर से कवि ही हैं और कवि ही रहेंगे बाकी साहित्य की अन्य विद्या एवं कार्यकलाप जिसमें आप पारंगत हैं का नंबर उसके बाद आता है........समालोचन का आभारसन्मार्गhttps://www.blogger.com/profile/03191524571726912984noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-20441346695445225942012-06-24T01:10:56.138+05:302012-06-24T01:10:56.138+05:30भई यहाँ तो नदी में इतना पानी गुजर गया है कि अब कहन...भई यहाँ तो नदी में इतना पानी गुजर गया है कि अब कहने-सुनने को कुछ बचा कहाँ पर फ़िर भी ’चुल्लू भर सही पानी इधर भी है’----<br /><br />एक से अधिक बार पढ़ा इन्हें और लगभग हर बार हर कविता में किसी खास जगह ही ठहरना पड़ा.. या कहूं ऐसा लगा कि कविता खुद ही कहती है कि यहाँ ठहरो -- मैं अपने ढंग से क्रूर हूँ और कोमल / आधा कटा शव है बिना पंखों का आधी खाली हथेली में समा जाये उतना / - "चींटियाँ नहीं हैं"-!!!...और मैं भी देखने लग जाता हूँ कवि के साथ ’देर तक’........यह अहसास भयावह है कि ’घर में भी बन गई है कोई कत्लगाह / ’एकदम खुले में’/आस्मान और ज़मीन के बीच कहीं ’....... यूँ शवों को थामना बार-बार, चींटियों के कुतरे हुए शवों को थामना, उनका किसी भी ’कुशलता’ से अंतिम संस्कार करना...किसे दफ़नाता है कवि???... मैं पढता हूं तो लगता है ’सबसे छोटी उंगली जितना छोटा एक शव’ मेरा ही तो है...या कवि का खुद का???...छोटे-छोटे शवों में खुद को दफ़नाता...किस सुकून की तलाश में है कवि कि सोचता है ’लाश’ हो जाने पर ’मैं मिट्टी के भीतर रहूँगा / इस बच्चे की तरह’...जबकी वो जानता है कि यहाँ ’हमारी कब्रें और रूहें तक महफ़ूज नहीं’ ....... आज भी इन कविताओं में कवि ने ’उम्मीद’ नहीं लिखा है मगर फ़िर मुझे लगता है कि उसे उम्मीद है तो जरूर क्योंकी मैं याद कर पाता हूँ कि इसी कवि ने(अगर मेरी याद्दाश्त दुरुस्त है तो) अपनी किसी कविता में पंछियों को उड़ते देखा है और कहा है ’मेरा अंतिम संस्कार आसमान में करना’.......<br />--------------<br />गिरिराज की कविता को एक बार में ’पूरा’ समझ सकूं ये तमीज़ तो आते-आते आएगी मगर मुझ जैसे छोटी-मोटी कवितानुमा कोशिशें करने वालों के लिये गिरिराज ने अपने वक्तव्य में परेशानी पैदा कर दी है कि अब किसी कविता को ’अच्छा’ कहने से पहले दो बार सोचना होगा.... तो बहरहाल मैं यही कहूंगा कि यहाँ प्रस्तुत उनकी सारी कविताएं बुरी तो हरगिज नहीं हैं :)<br /><br />कवि को बधाई और समालोचना का आभार...प्रशान्तhttps://www.blogger.com/profile/11950106821949780732noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-17510680949197548002012-06-23T21:34:36.234+05:302012-06-23T21:34:36.234+05:30हुआ तो सिर्फ लेखन हुआ मृतक बोलते रहे मेरी आवाज़ मे...हुआ तो सिर्फ लेखन हुआ मृतक बोलते रहे मेरी आवाज़ में...<br />गिरिराज की कविता मुझे हमेशा ऐसी लगती है, जैसे चुनौती देती हो कि आइये दुनिया के बारे में कुछ इस तरह भी देखें-सोचें... बिना किसी काव्ययुक्ति के गिरिराज बहुत मामूली समझी जाने वाली चीजों को बेहद संवेदनशील बना देते हैं और ऐसा करते हुए बहुधा मैंने इस पर कुछ गौर किया है कि वे बर्टोल्ट ब्रेश्ट की एलिनिएशन थियरी का कविता में इस्तेमाल करते हैं, यानी कवि अपने को एकदम अलगा लेता है या कि पाठक को अलगा देता है कि यह कविता है...और यह जीवन है, अब इसे कैसे अलगाओगे कॉमरेड...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13562041392056023275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-68950838701038237842012-06-23T14:11:27.342+05:302012-06-23T14:11:27.342+05:30समालोचन के प्रति दिल से आभारी हूँ एक नयी शख्सियत औ...समालोचन के प्रति दिल से आभारी हूँ एक नयी शख्सियत और एक नया मुहावरा एक नए तरह के लेखन से परिचय कराने के लिए !आनंदhttps://www.blogger.com/profile/06563691497895539693noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-41328828973717139512012-06-23T06:08:06.074+05:302012-06-23T06:08:06.074+05:30जाने पहचाने विषय पर बेहद गंभीर चिंता और गहन अनुभू...जाने पहचाने विषय पर बेहद गंभीर चिंता और गहन अनुभूति की अनूठी कवितायेँ. नया मुहावरा इस्तेमाल करके सच को जबरदस्त ढंग से कविता में ढला गया है.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-66573080239805895392012-06-23T01:01:19.067+05:302012-06-23T01:01:19.067+05:30@Shirish:पहाड़ में एक ठो तम्बू का इंतजाम कर लो, मैं...@Shirish:पहाड़ में एक ठो तम्बू का इंतजाम कर लो, मैं भी एक कोने में पड़ा रहूँगा :-)<br />अरुण और सब मित्रों का आभार.girirajkhttp://www.pratilipi.innoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-15860489336208998112012-06-23T00:54:37.304+05:302012-06-23T00:54:37.304+05:30@Turtle: इतिहास को मैं लेंग्वेज गेम्स की तरह नहीं ...@Turtle: इतिहास को मैं लेंग्वेज गेम्स की तरह नहीं देख पाता. अगर इस आख्याता की स्मृति में कोई दोष है ("याद तक में साफ़ नहीं") या उसका पूरा बोध किताबी है ("हर चीज़ को लिखे की नज़र से देखता रहा") तो इसमें इतिहास का क्या दोष? यह उसके बोध और उसके लिखने की समस्या है जो उसके लिए फैक्ट और फिक्शन को मिला देती है. कोई किस्सा फिक्शन होकर भी यथार्थ हो सकता है यह उसके लिए अब चालीस बरस लिखने के बाद समस्याग्रस्त हुआ है वैसे ही जैसे वो निजी स्पर्श भी जो उसे एक किताब में घट चुके की आवृति लगता है. उसकी समस्या अपनी आँख से नहीं देख पाना बन गयी है और वह अब यह नहीं देख पा रहा कि किताबों को भी आँख से ही देखा जाता है :-)<br /><br />इतिहास को ग्रैंड नेरेटिव की तरह देखने के विकल्प सबआलटर्न एप्रोच में हैं. आउशविट्ज़ के बारे में इस अनर्गल तर्क की बजाय मुझे इन्ग्लुओरियस बास्टर्ड्स में टेरेन्तिनो का तरीका एक वीयर्ड तरीके से आकर्षित करता है. वह एक अविस्मर्णीय दृश्य है जिसमें हिटलर की हत्या होती है.<br />बाकी अच्छे पाठक होने का स्वांग मत करिए, धो डालिए इन कविताओं को :-)<br />"वहाँ यह कवि निहत्थे ही भावुकता को बेलौस उड़ेल रहें है लगभग वीर रस में" में यह कवि से तात्पर्य क्या यहाँ प्रस्तुत कवि से है?girirajkhttp://www.pratilipi.innoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-73416388227386441672012-06-22T22:00:01.266+05:302012-06-22T22:00:01.266+05:30शायद कविता की मुझमें कोई समझ नहीं है अतः ज्यादा कु...शायद कविता की मुझमें कोई समझ नहीं है अतः ज्यादा कुछ मैं कह नहीं सकता।Umeshhttps://www.blogger.com/profile/10308807738552566858noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-53740850224489128602012-06-22T20:49:12.925+05:302012-06-22T20:49:12.925+05:30गिरिराज की कविताओं और वक्तव्य में एक ऐसी vulnerabi...गिरिराज की कविताओं और वक्तव्य में एक ऐसी vulnerability है जो संवेदना, भाषा और कल्पना की opacity को एहतियात से भंग करती है, छुपा छुपी वाले लेखन के दौर में जहाँ कवि लोग भी कुछ भयभीत है (अलग अलग कारणों से )वहाँ यह कवि निहत्थे ही भावुकता को बेलौस उड़ेल रहें है लगभग वीर रस में , संदेह और शंका गिरिराज को अवश्य समग्र रखती होगी...अच्छी बात कि कवि को उन लोगों की याद आती ( सताती) है जो उन्हें लेखक नहीं वेखक समझते हों :-) ऐसे लोग जीवन में वैसे बने रहने चाहिए जैसे दो आँखें रहती हैं बारह हाथों के साथ<br /><br />कवि की ख्वाइश वही..मसीत तक...मिले बच्चे उर्दू हिंदी पढ़ते हुए :-)<br /><br />नहीं मालूम जो लिखा अन्याय का किस्सा..वह सचमुच कहीं हुआ था...यह भाग खास अच्छा लगा ...इतिहास की हमारे मूलभूत अवधारणा को अस्थिर करता हुआ...मुझे याद आया रोबर्ट फौरिसन का austwitchz के बारे लिखा उल जलूल तर्क.. गर जानलेवा था नाजी कंसन्ट्रेशन केम्प तो उसकी गवाही कौन देगा...जानलेवा था तो फिर कोई बचा कैसे..कौन हा मौके का गवाह और गर सुरक्षित रहा कोई जीवित रहा कोई तो वह जानलेवा कैसे हुआ...बेशक यह उल जलूल है लेकिन इतिहास में हमारी निष्ठा को संदेहस्पद बनाने के लिए कारगर..गिरिराज की कवितायें 'उम्मीद' को भी संदेह करती हैं, जानलेवा खतरनाक उम्मीद<br /><br />कवि होने से भी परे कई अज़ाब हैं...<br /><br />बहुत अच्छी कविताएं....संक्षिप्त तो यही कहना बनता है<br /><br />अब यह स्वांग करना ही होगा अच्छे पाठक होने का<br /><br />- अलंकारों के मारे और क्या कर पाएँगे -Monika Kumarhttps://www.blogger.com/profile/06214280852107799571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-16067675306617976442012-06-22T20:03:34.470+05:302012-06-22T20:03:34.470+05:30बहुत दिनों बाद इधर का रुख किया ......और क्या खूब ....बहुत दिनों बाद इधर का रुख किया ......और क्या खूब ......... गिरिराज किराडू जी की कवितायों का अपना अलग मिजाज़ है........और वे अपने पास बुलाने में थोडा समय जरूर लेती हैं ...... सब्र रख कर एक बार उन तक जाने पर वहां से निकलना इतना आसान नहीं .........pradeep sainihttps://www.blogger.com/profile/01713398453259407318noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-81466318209448922552012-06-22T18:39:45.834+05:302012-06-22T18:39:45.834+05:30बुरे समय में कविता अपनी पूरी शिद्दत के साथ किस क़द...बुरे समय में कविता अपनी पूरी शिद्दत के साथ किस क़दर सम्भव हो सकती है, गिरिराज की ये कविताएं आज की कविता में उसका अकेला उदाहरण बनती दिखाई दे रही हैं।<br />***<br />और प्यारे गिरि तुम कहां चले बरसाती छोड़कर...बरसाती तो हमें ख़ाली करनी होगी...यूं ही चलता रहा तो कल फिर सड़क पर दिखाई देंगे....20 बरस पहले की तरह....जहां हमें होना चाहिए....सलाम दोस्त..सलाम।शिरीष कुमार मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05256525732884716039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-21032126675332993452012-06-22T16:39:07.341+05:302012-06-22T16:39:07.341+05:30आहप्रभात! शाम को फोन करूंगा, मेरे कातिल मेरे दिलदा...आहप्रभात! शाम को फोन करूंगा, मेरे कातिल मेरे दिलदार!girirajkhttp://www.pratilipi.innoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-1219469676527444462012-06-22T16:35:03.862+05:302012-06-22T16:35:03.862+05:30मायामृगजी और अनिरूद्ध भाई का लिखा खुद कविता की तरह...मायामृगजी और अनिरूद्ध भाई का लिखा खुद कविता की तरह है। उन्होंने जिस तरह महसूस किया है, क्या कहूँ उसके सामने? <br /><br />पु़ष्यमित्र की बात समझ में आ गयी लेकिन अनुपम ने बहुत जटिल प्रशंसा की है (की है ना?? या मैं ऐंवे ही समझ रहा हूँ)पर कविवर बोले तो! <br /><br />सब मित्रों को कविताओं ने किसी स्तर पर संवेदित किया, यह इन शोकमय कविताओं के लिये कुछ संतोष की बात है। विशालः कविता असंभव के बीच जगह बनाने के लिये लौट आयेगी, इतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़तीः-)girirajkhttp://www.pratilipi.innoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-43276652038536299262012-06-22T16:09:54.914+05:302012-06-22T16:09:54.914+05:30M aek shav ki maan ke sammukh nazren jhukaaye khad...M aek shav ki maan ke sammukh nazren jhukaaye khada pakshi. <br /><br />nirjan udaasi hai yah.prabhathttps://www.blogger.com/profile/13605130019635211778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-76258275492393484342012-06-22T15:38:48.286+05:302012-06-22T15:38:48.286+05:30shav ho chuki samvednaon ko jhakjhorti hain ye kav...shav ho chuki samvednaon ko jhakjhorti hain ye kavitayen.. aur shv me chhipi cheentiya girne lagti hain.. stabdh hoon ..leena malhotranoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-81075214899731216562012-06-22T14:06:58.251+05:302012-06-22T14:06:58.251+05:30घनी मुश्किल है कि आजकल आस-पास अच्छी और बुरी कविता ...घनी मुश्किल है कि आजकल आस-पास अच्छी और बुरी कविता के बारे में बताने के लिए इतने मित्र, इतने शत्रु, इतनी किताबें, इतनी प्रशस्तियाँ और इतने उपहास हैं कि इस बारे में सोचे बिना किसी मंद नशे में डूबकर कविता लिख पाना असंभव सा हो गया है ...<br /><br />(शुरुवाती पंक्तियों से प्रेरित)विशाल श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/04631992081517062854noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-58360854771565430512012-06-22T13:16:06.225+05:302012-06-22T13:16:06.225+05:30कल सबसे बड़ा दिन था.
आज का दिन कविता का हो...कल सबसे बड़ा दिन था.<br />आज का दिन कविता का होगा ....पूरा दिन<br />अभी ...किसी स्वजन की अंतिम यात्रा में जा रहा हूँ ....शब्दों ने मार्ग रोक लिया.<br />जिसे जाना था वह गयी ...<br />ये जीवित शब्द हैं ...अमर्त्य ...<br />इनका रसायन ....इनकी सीलन ...इनकी घुटी सी ...पुकार ....<br />इनके कवि को मेरा जर्जर ...कम्पित . .आदाब ...<br />मुझे लगता है कविताएँ पढ़ मुबारक बाद नहीं देनी चाहिए ...केवल अपने सन्नाटे की सूनी सुरंग जा छिपना चाहिए .....जो कविताये ऐसा करती है ....(जैसे कि ये कविताएँ )...मैं केवल उन्हें याद रह जाने कि अनुमति देता मरना पसंद करूंगा.<br />यही एक कवि दूसरे कवि की शान में(गुस्ताखी )....कर सकता है . अरसे बाद याद आया कुछ कविताएँ पढ़ ...कि ...कितना अरसा बीता मैं मरा नहीं नहीं ...या मरा तो मरने के काबिल नहीं रहा.<br />नीले तपते आकाश में एक चील उड़ रही है ..Aniruddh Umatnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-43890625578792774602012-06-22T12:44:33.853+05:302012-06-22T12:44:33.853+05:30गिरिराज किराडू का सलीका अन्य कवियों से समाना...गिरिराज किराडू का सलीका अन्य कवियों से समानांतर दूरी बना कर चलता है , ब-जिद . लेकिन यह दूरी शिल्प और सोच के बाबत है , विषय के परिप्रेक्चेय में नहीं . दरअसल गिरिराज की अभिव्यक्ति और विषय को हैन्डिल करने का अंदाज़ उन्हें विशिष्ट बनता है . 1 चिड़िया की miritu पर लिखा गया (मर्सिया ) फातिहा हमारे जीवन के कितने सारे पहलुओं को अपनी "उपस्थित अनुपस्थिति " से Karudik व्यंजना में गिरफ्तार कर लेता है कि हम निरुपायता का नया पाठ प्राप्त करते हैं . यह यथार्थ को उसकी बहु व्यंजकता के साथ पेश कर देना कि बहुत कुछ हम अपने जीवन के ऐसे ही बहुत सारे साक्च्यों और दृश्यों को पुनः बहुत सम्वेदनशील हो कर देखने पर मजबूर हो जाते हैं , यह गिरिराज की कविता में पाठकीय लोकतंत्र की प्रतिष्ठा है . गिरिराज की यह कविताएँ शायद इसी अर्थ में महत्तवपूर्ण हैं<br /><br /><br />hindi font mein net ki bhasha mein likhna nahi aata hai, isliye theek kr k aap sb pdh hi lenge. xama mangte huye, meri yh rai aap sb k supurd. <br />arun dev ji aur giriraj ko badhai.kumar anupamhttps://www.blogger.com/profile/13524327053753913754noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-66519980172259820472012-06-22T12:29:40.977+05:302012-06-22T12:29:40.977+05:30अच्छी बुरी कविता को जानना और जानकर कोई व्यक्तव्...अच्छी बुरी कविता को जानना और जानकर कोई व्यक्तव्य देना वाकई बड़ा मुश्किल काम है। कभी जो अच्छा लगता है वही कभी बुरा बहुत बुरा लगता है। किन स्थितियों में जीता है कवि...। संवेदनाओं को बचाना चिडि़या के बच्चे को बचाने से मुश्किल काम है। चींटियां कहां नहीं हैं, जाने कब कुतर जाती हैं..उसके बाद बस शव को दफनाना शेष रहता है और दुर्भाग्य यह कि ऐसी जमीन नहीं मिलती जहां उसे दफन किया जाए। शव को छूना....नन्हे बच्चे के शव को छूना...जिस निष्ठुरता की मांग करता है, वह कहां से लाएं...;बेशक चिडि़या के बच्चे का नाम रोहिताश्व नहीं होता पर वह रोहिताश्व तो होता ही है...। गिरिराज किराडू संवेदनाओं को झकझोर देते हैं और मिटटी को कुरेद कर उसमें वह सब अस्थाई रुप से सुरक्षित रख देते हैं जिसे बचाने का जतन हर कवि को करना होता है। इन कविताओं में कोई उत्तेजना नहीं, कोई प्रत्यक्ष व्यवहार नहीं, क्रिया भी नहीं....बस स्वत: कुछ घटित होते शब्द हैं जिनमें कविता बार बार आ जाती है, खुद को साबित करती हुई...।mayamrighttps://www.blogger.com/profile/11164036032627118131noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-59822515155522878152012-06-22T11:46:28.276+05:302012-06-22T11:46:28.276+05:30कोई कवि या लेखक तभी बड़ा होता है जब उसकी निगाहों म...कोई कवि या लेखक तभी बड़ा होता है जब उसकी निगाहों में हजारों साल के मानव इतिहास को देखने परखने की क्षमता होती है वरना लोग तो एक दुःख या सुख को चुनते है और एक बने बनाये खांचे में उढेल देते हैं. गिरिराज जी की कवितायेँ पूरी दुनियां को नए नजर से देखती है और हमसे भी ऐसी ही अपेक्षा रखती है.. मर्सिया तो कमाल है.. बात भी है बहाव भी है...पुष्यमित्रhttps://www.blogger.com/profile/10874438406150395009noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-80119654485667050982012-06-22T11:20:57.076+05:302012-06-22T11:20:57.076+05:30गिरिराज जी की कविताएँ सन्नाटा बुनती कविताएँ हैं. म...गिरिराज जी की कविताएँ सन्नाटा बुनती कविताएँ हैं. मर्सिया का हर शब्द आपको मिट्टी की तरह कुरेदता है.<br />मैं मिट्टी के भीतर रहूँगा<br />इस बच्चे की तरह..<br /><br />इसके बाद लम्बा सन्नाटा पसर जाता है..<br />यहाँ से निकलकर पाठक पर्यटन के भीतर प्रविष्ट होता है और पधारो म्हारे देस की व्यंजना में जकड़ जाता है.<br /><br />खुशहाली का मैला सही<br />सपना इधर भी है ...रमैयावस्ता वैया..बहुत गहरे तक उतरती है बात.<br />कवि को बधाई! समालोचन आभार..विशिष्ट प्रस्तुति के लिए.अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-71580286075391695212012-06-22T09:59:53.690+05:302012-06-22T09:59:53.690+05:30एक बार अपनी किताब में अपनी विधि मर सका तो फर्क नही...एक बार अपनी किताब में अपनी विधि मर सका तो फर्क नहीं पड़ेगा आप<br />कैसे मारेंगे उपेक्षा से गोली से अपमान से ...<br /><br />बेहतरीन कविताये और साथ-साथ प्रस्तुति भीरामजी तिवारी https://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-29729853894316826052012-06-22T09:25:15.720+05:302012-06-22T09:25:15.720+05:30Shandar kavitaye hai giriraj kee kaivtayen bheed s...Shandar kavitaye hai giriraj kee kaivtayen bheed se alag dikhaee detee detee rahi hain hamesha seVipin Choudharyhttps://www.blogger.com/profile/05090451479975418329noreply@blogger.com