tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post4179387929741575877..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : विष्णु खरे : हिन्दी सिनेमा का पहला ‘रेआलपोलिटीक’-वर्ष arun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-9039774628491022912019-01-31T19:23:22.980+05:302019-01-31T19:23:22.980+05:30सिनेमा की तरह अब राजनीति भी कारोबार है. ठीक उसी तर...सिनेमा की तरह अब राजनीति भी कारोबार है. ठीक उसी तरह राजनीति की तरह सिनेमा पार्ट-टाइम सोशल सर्विस. ज़ाहिर सी बात है, अब राजनीति और सिनेमा दोनों को एक-दूसरे के संरक्षण और लोकप्रियता की उधारी की दरकार पड़ती रहती है. यह एक भिन्न तरह का अ-पोलिटिकल एलायंस है. यह आलेख इस बात को स्पष्टता से रेखांकित करने का बढ़िया प्रयास है.प्रभात मिलिंदnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-81633584273680877012016-02-01T15:40:17.091+05:302016-02-01T15:40:17.091+05:30सटीक बात ये की कई बार लोग सफलता को जनता की भावना क...सटीक बात ये की कई बार लोग सफलता को जनता की भावना की कुंजी समझ उसी से बंधनो के कच्चे धागे खोलने की नाकाम कोशिश कर देतें है और खुद तमाशबीन हो चलतें है उसी समाज के सामने ये जीता और ज्वलंत उदाहरण है। ..आज सफलता के साथ भारी पेट/टे की जरुरत जो शायद हर और से अभावग्रस्तः है। ..मुझ जैसों को सिवा मोदी समर्थक या उसी विचारधरा से समर्थक मान कर बहस को पलटने का प्रयास शोशल मिडिया पर अपने चरम पर। .पर मुंझ जैसे सामाजीक भावना से जुड़े या मानवता के पक्षगार को (मुझ जैसे मतलब मेरे जैसे कई कई ) जो एक इसी शोशल मिडिया पर अपने लेखों द्वारा प्रभाव की चरम सीमा पर ले जाए चुके वो शायद इसी परिस्थिति से नरारद है और हम जैसों को एक सार्थक और जीवन के महत्वपूर्ण जीवन की संजीवनी से वंचित करते जारहें है। ...माना की ये सब एक परिस्थित वश मात्र है पर ये भी सत्य है की जिस चिड़ियाँ को जैसा दाना चाहिए वो अपनी जगह ढूंढ लेता/ती है ...मैं इसी वाल पर कई कई रंगबिरंगी अठखेलियाओं से खुद को वंचित पाता हूँ। ..खेर मुझे पता है भावनाओं के समुद्र है यहां (शोशल मिडिया पर ) पर लोग कमोबेश मुंझ जैसे हमेशां/अकसर प्यासे रहतें है !!!!!Nirmal Panerinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-61957763027020786682016-02-01T12:45:54.511+05:302016-02-01T12:45:54.511+05:30समझ नही आ रहा जो लोग समाज को नई दिशा ओर सन्देश देन...समझ नही आ रहा जो लोग समाज को नई दिशा ओर सन्देश देने का काम अपनी फिल्मो के ज़रिये कर रहे थे उनमे आपस मे ही मतभेद क्यो हो गए कोई समर्थन करता है कोई विरोध ,कही इसमे भी राजनीति तो हावी नही हो गयी और लोग स्वार्थीAmman Dilnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-69255852583783675012016-02-01T12:44:06.574+05:302016-02-01T12:44:06.574+05:30अभिनेता सिर्फ अभिनेता होता है .नेता के भीतर ...अभिनेता सिर्फ अभिनेता होता है .नेता के भीतर नेता अभिनेता दोनो होते है .इसी पूर्णता के लिये अभिनेता सियासत में खिंचे आते है .यानी लड्डु दोनो हाथों में होने चाहिये .एक जन्म मे कई जन्मों का सुख इसी को कहते है. यहां एक जन्म भी मुक्म्बल नही हो पाता .Swapnil Srivastavanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-56612355705416809562016-02-01T06:57:13.999+05:302016-02-01T06:57:13.999+05:30Realpolitik के बहाने विष्णु जी ने केवल कान खिंचाई ...Realpolitik के बहाने विष्णु जी ने केवल कान खिंचाई ही नहीं की है,सिनेमा के संसार में आई उस दरार को भी रेखांकित किया है जिसे इन दिनों हम कई स्तरों पर महसूस कर रहे हैं। समालोचन की दमदार प्रस्तुति के लिए बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएं।<br />अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-57281590586352641472016-01-31T18:03:00.067+05:302016-01-31T18:03:00.067+05:30रेआलपोलिटीक का मतलब अवसरवादी राजनीति से है शायद. इ...रेआलपोलिटीक का मतलब अवसरवादी राजनीति से है शायद. इस दृष्टि से देखते हुए भारत का सिनेमा समय समय पर अलग अलग राजनीतिक विचारों को दिखाता है. विष्णु खरे की बात सही है कि फ़िल्म पैसा कमाने के लिए बनती हैं. दर्शक जो देखते हैं सिनेमा वही प्रस्तुत करता है. समानांतर सिनेमा में यह बात नहीं थी . वहां कम पैसों में अर्थवान फिल्में बनीं. आज की फिल्में किसी तरह की राजनीति नहीं करती हैं. वह तो रक्कासा की तरह हैं जिसे हर महफिल में नाचना है. विष्णु खरे को जहाँ भी वह मिलते हैं पढ़ता हूँ. बहुत फोर्सफुल उनका लेखन है. उनका एक एक शब्द पढना चाहिए. हिंदी सिनेमा पर यह बात वह पहली बार कह रहे हैं. इसके साथ ही समालोचन ने जो फोटो नेहरु और इंदिरा वाले लगाये हैं उससे यह आलेख और भी सज गया है. बधाई और आभार. सुंदर झाnoreply@blogger.com