tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post4116199395443107765..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : रीझि कर एक कहा प्रसंग : वीरेन डंगवालarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-84686843270081133062018-08-05T12:21:30.694+05:302018-08-05T12:21:30.694+05:30यह कविता याद रहेगी। कवि के बरेली वाले घर में पढ़ी।...यह कविता याद रहेगी। कवि के बरेली वाले घर में पढ़ी। सुकांत की पंक्ति मैं भी व्यवहार कर चुका था, शायद 1968 में एक साप्ताहिक कालम के शीर्षक के रूप में जो मैं नीलकांत के लिए लिखता था। जो भी हो उस दिन मैंने सुकांत के बारे में कोई भारी बेवकूफ़ी वाली बात की। डंगवाल ने सुधारा। वापस आकर जांचा तो उनकी बात सही थी। बतौर धन्यवाद मैंने उन्हें सुकांत की चार कविताएँ और ट्रांसट्रमर की एक कविता भेजी। तब तक ट्रांसट्रमर को नोबेल नहीं मिला था।<br />डंगवाल की अधिकतर कविताएं मेरी पढ़ी हुई हैं। यह कविता सबसे प्रिय है।आपने सुंदर चुनाव किया। आप सब के साथ मेरी भी अंजलि।Tewari Shiv Kishorenoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-64481926631310615742016-09-05T11:58:36.422+05:302016-09-05T11:58:36.422+05:30आपने इस कविता को आँखों के सामने लाकर बहुत बड़ा काम...आपने इस कविता को आँखों के सामने लाकर बहुत बड़ा काम किया. ऐसी रचनाएँ हमें बूढ़ी हो चली संवेदनाओं के बीच नई शुरुआत करने की ताकत देती हैं, जैसे इस कविता ने एक दिन वीरेन को वही ताकत दी होगी. इसमें क्या कोई शक है कि हमारे पास आज के दिन 'समालोचन' के अलावा क्या कोई साहित्यिक पत्रिका है ? इस कविता में स्थानिकता का जो नया अर्थ-सन्दर्भ वीरेन ने दिया है, यह नई परिभाषा गढ़ता है. मैंने इन सन्दर्भों को छुआ और महसूस किया है. टिहरी के एक गढ़वाली भाषी परिवार में जन्म, युवावस्था नैनीताल और इलाहाबाद के कुमाऊनी और अवधी-भाषी माहौल में, नौकरीपेशा हिस्सा पश्चिमी हिंदी के एक छोर बरेली और कन्नोजी के दूसरे छोर कानपुर में और फिर इसी भटकाव के बीच कटरी के कछारों में. यही तो कहा है उसने इस कविता से जुड़े अपने आत्मकथ्य में : "उत्तर भारतीय समाज में जो स्थानिक और एथनिक जीवन है, मैं उसकी कविता लिखना चाह रहा था. एक तरह से उसका बयान है इस कविता में. यह कविता लोक कविता जैसा कुछ नहीं है. इसमें लोक कविता वाली रुमानियत नहीं है. स्वप्न, यथार्थ और मिथक का नए सिरे से एक अनायास मिलाव है यहाँ, एक दिलचस्प मोजैक. इसके भीतर एक नमी से भरी मानवीय उपस्थिति है. मुझे यह कविता बहुत पसन्द है. इसे लिख कर मुझे बहुत तसल्ली हुई. इसमें कहीं प्रेमचंद भी आ गए हैं, तरह तरह से आए हैं. इस कविता में उनका आना मुझे अच्छा लगा है. . ." यह कविता एक तरह से वीरेन की सम्पूर्ण रचना-यात्रा की, उसकी स्थानीय भाषा-रूपकों के साथ की गयी यात्रा का कितना खूबसूरत कोलाज है. batrohihttps://www.blogger.com/profile/07370930712240772275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-81187835452712898222016-09-04T19:08:53.313+05:302016-09-04T19:08:53.313+05:30मूल्यवान याद है।वीरेन डंगवाल के साथ उनके घर में पढ... मूल्यवान याद है।वीरेन डंगवाल के साथ उनके घर में पढ़ी थी। मुक्तिबोध की "एक अंतर्कथा" की चर्चा हुई थी [अग्नि के काष्ठ ढूँढ़ती माँ] सुकांत भट्ट के बारे में मैंने कुछ बेवकूफी की बात कही और डंगवाल ने सुधारा। फिर भट्टाचार्य को पूर्वाग्रह छोड़कर पढ़ा। धन्यवाद के रूप में एक कविता देवनागरी में लिखी बंगला में डंगवाल को भेजी।Tewari Shiv Kishorenoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-33180958070956859522015-04-13T02:45:49.017+05:302015-04-13T02:45:49.017+05:30
वीरेन जी की बहुत अच्छी कविताओं को आपने यहां शाया ...<br />वीरेन जी की बहुत अच्छी कविताओं को आपने यहां शाया किया है. जिसके लिए आपका आभार और बधाई. मैंने अभी हाल ही में वीरेन जी की कविताओं का समग्र मूल्यांकन करने का प्रयास किया है, बनास जन के दसवें अंक में प्रकाशित हुआ है. <br />Pankaj Parasharhttps://www.blogger.com/profile/06831190515181164649noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-77542973087105534642015-04-11T23:57:34.204+05:302015-04-11T23:57:34.204+05:30बहुत शानदार कविता !रुक्मिणी की पीड़ा का मर्मस्पर्शी...बहुत शानदार कविता !रुक्मिणी की पीड़ा का मर्मस्पर्शी चित्रण !अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-82297646907875442002014-08-05T14:56:45.097+05:302014-08-05T14:56:45.097+05:30छू गयी ह्रदय ये...नहीं ये तो ह्रदयस्थ हो गयी . शुक...छू गयी ह्रदय ये...नहीं ये तो ह्रदयस्थ हो गयी . शुक्रिया अरुण जी preetyhttps://www.blogger.com/profile/14724300977691151953noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-14826768908268294302012-08-07T11:00:04.601+05:302012-08-07T11:00:04.601+05:30aaj achanak hi apani kavita dekhi aur ittni achee ...aaj achanak hi apani kavita dekhi aur ittni achee tippaniyan.behad taslli hui varna jan to ise lagbagh kharij kar chuke the.dhanyavaad aur dhanyawvvaad itro.shukriya arunवीरेन डंगवालhttps://www.blogger.com/profile/12029699371049325391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-49553633186052410752012-08-05T17:00:17.318+05:302012-08-05T17:00:17.318+05:30वाह !
ये जानकारी केवल मर्मज्ञों के लिए है ..... सा...वाह !<br />ये जानकारी केवल मर्मज्ञों के लिए है ..... साधारण जन तो इसे जानते ही हैं <br />..<br />सपने देखने की बूढी की आदत नहीं गयी !<br /><br />मेरे लिए एक सर्वथा नया अनुभव रहा इस कविता को पढ़ना <br />वीरेन जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं ..और समालोचन के प्रति आभार एक अच्छी कविता को पढ़वाने के लिए !आनंदhttps://www.blogger.com/profile/06563691497895539693noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-14296451013496381552012-08-05T11:14:19.873+05:302012-08-05T11:14:19.873+05:30कविता में स्वप्न, यथार्थ और मिथक का जिस तरह से मे...कविता में स्वप्न, यथार्थ और मिथक का जिस तरह से मेल हुआ है, वह अद्भुद है। <br /><br />इसमें समय के संधान के साथ भविष्य का स्वप्न भी है। <br /><br />जीवन की सारी शुष्कता के बावजूद घंटी और घुंघरुओं के लिये जो प्रेम है, जीवन का वह रस बनाए रखता है जिससे जीवन प्रवाहित होता है। बच्चे का बतख की गरदन को इकलौते घुंघरु से सजाना तमाम निराशा के बावजूद जीवन के प्रति गहरी आस्था का संकेत है। <br /><br />गहराई से आए सहज प्रतीकों के बारे में कहने के लिये जैसे सारे शब्द भी कम हैं। <br /><br />आत्मा का संगीत सुनने के लिये आत्माएं बची ही कितनी हैं। <br />मगर कवि आशान्वित है और इसीलिये संगीत सुन पा रहा है। <br /><br />वह सफेद बालू के विस्तार में भी नरम, हरा, कच्चा संसार देख पा रहा है। वह महसूस कर पा रहा है रुकुमिनी का दर्द और गरीब विधवा के बेटों की गुमनाम, असमय मृत्यु को। और सारे दर्द के बावजूद जीवटता से जीवन के संघर्ष में जुटी, ताकत से भरी, कभी न हारने वाली उस औरत को। <br /><br />समाज के जटिल भेद और रसूखदारों की कुद्ष्टि से जूझते हुए भी अपने सपनों को जीवित बचा पाने की जद्दोजहद के बाद भी प्रकाश में डूब जाने को बेताब है। <br /><br />सब कुछ खत्म होने पर भी कविता ही है जो सब कुछ बचाए रखती है।<br /><br />समालोचना ने सदा की तरह बहुत ही सार्थक सामग्री प्रस्तुत की है। <br />हार्दिक आभार व अनंत शुभकामनाएं।डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swamihttps://www.blogger.com/profile/15313541475874234966noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-43556926856211054792011-09-06T19:28:27.065+05:302011-09-06T19:28:27.065+05:30वीरेन डंगवाल ki kavitawo me tajgi hai. khusbu hai....वीरेन डंगवाल ki kavitawo me tajgi hai. khusbu hai. sab rang shmil haikhusinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-33229527761820080842011-09-06T09:51:42.303+05:302011-09-06T09:51:42.303+05:30तुम जानते नहीं, पर जब-जब तुम उसे छूते हो
चाहे किस...तुम जानते नहीं, पर जब-जब तुम उसे छूते हो <br />चाहे किसी भाव से <br />तब उस में से ले जाते हो तुम<br />उसकी आत्मा का कोई अंश <br />जिसके खालीपन में पटकती है वह अपना शीश. <br />मार्मिक और हृदयस्पर्शी रचना .......अंजू शर्माhttps://www.blogger.com/profile/13237713802967242414noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-7118297151307949312011-09-06T07:26:48.332+05:302011-09-06T07:26:48.332+05:30oh ! bahut marmik..ek jeevant kavita . jaise sach ...oh ! bahut marmik..ek jeevant kavita . jaise sach saamne aakar khada ho gya<br /> कभी उसे दीखता है <br />लाठी से गंगा के छिछले पेटे को ठेलता <br />नाव पर शाम को घर लौटता <br />चौदह बरस पहले मरा अपना आदमी नरेसा <br />जिसकी बांहें जैसे लोहे की थी, <br />कभी पतेल लांघ कर भागता चला आता बेटा दीखता है <br />भूख-भूख चिल्लाता <br />उसकी जगह-जगह कटी किशोर <br />खाल से रक्त बह रहा है <br /><br />कभी दीखती है दरवाजे पर लगी एक बरात <br />और आलता लगी रूकुमिनी की एडियां.leenahttp://www.facebook.com/leena.m.r.noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-89572865144065552192011-09-05T23:33:05.264+05:302011-09-05T23:33:05.264+05:30मेरे देस की कविता ...स्थानिकता प्रत्यक्ष हो गयी|मेरे देस की कविता ...स्थानिकता प्रत्यक्ष हो गयी|Sonroopa Vishalhttps://www.blogger.com/profile/13054319903540240654noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-79319205623140671732011-09-05T11:39:05.137+05:302011-09-05T11:39:05.137+05:30रुक्मणि के माध्यम से न जाने कितनी नारियों कि स्थित...रुक्मणि के माध्यम से न जाने कितनी नारियों कि स्थिति को कह दिया ... नारी के मन कि प्रर्दा को सहजता से और गहनता से कहा है ..बहुत अच्छी प्रस्तुति....Maheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-90981777913348708332011-09-04T13:20:01.616+05:302011-09-04T13:20:01.616+05:30वीरेन डंगवाल ने अपनी सहज बयानी में अनायास "कट...वीरेन डंगवाल ने अपनी सहज बयानी में अनायास "कटरी की रुकुमिनी और उसकी माता की खंडित गद्यकथा" के बहाने उस सड़ते हुए जल के रूपक में जिस ठंडी तल्खी के सुर में उस देहाती यथार्थ को बेपर्दा किया है, वह हमारे निर्मम समय की एक हिला देने वाली सच्चाई है। देहात में गरीब और उत्पीड़ित वर्ग की स्त्री की इस विकल्पहीन दशा को बयान करने के लिए जिस भाषिक संवेदना के साहस और उसके निर्वाह की जरूरत है, वह वीरेन जैसे देहाती संस्कार वाले संवेदनशील कवि के ही बूते की बात है। वीरेन को सलाम।नंद भारद्वाजhttps://www.blogger.com/profile/10783315116275455775noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-77865808404810428462011-09-04T12:53:54.988+05:302011-09-04T12:53:54.988+05:30यहाँ, एक दिलचस्प मोजैक.
इसके भीतर एक नमी से भरी म...यहाँ, एक दिलचस्प मोजैक. <br />इसके भीतर एक नमी से भरी मानवीय उपस्थिति हैगीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-65908653051548054442011-09-04T11:53:14.487+05:302011-09-04T11:53:14.487+05:30RUKMINI NAM BHALE FOOLAN KI TARAH MASHAHOOR N HO H...RUKMINI NAM BHALE FOOLAN KI TARAH MASHAHOOR N HO HAKEEKAT HAI KATREE KIMool Chandra Gautamnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-50537023072728016752011-09-04T10:48:03.440+05:302011-09-04T10:48:03.440+05:30रूकुमिनी समझ चुकी है बिना जाने
अपने समाज के कई जट...रूकुमिनी समझ चुकी है बिना जाने <br />अपने समाज के कई जटिल और वीभत्स रहस्य <br />अपने निकट भविष्य में ही चीथड़ा होने वाले <br />जीवन और शरीर के माध्यम से <br />गो कि उसे शब्द 'समाज' का मानी भी पता नहीं. <br /><br />रुक्मणि के माध्यम से न जाने कितनी नारियों कि स्थिति को कह दिया ... नारी के मन कि प्रर्दा को सहजता से और गहनता से कहा है ..अच्छी प्रस्तुतिसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-89814753886705737812011-09-04T10:46:22.210+05:302011-09-04T10:46:22.210+05:30कटरी की वास्तविकता आज भी ऐसी ही है..
जंगलराज आज भी...कटरी की वास्तविकता आज भी ऐसी ही है..<br />जंगलराज आज भी यहाँ का शाश्वत सत्य है..<br />बहुत ही सुन्दर उकेरा कटरी का चित्रAshish Pandey "Raj"https://www.blogger.com/profile/12211524707558022934noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-84019802143318254182011-09-04T10:18:49.356+05:302011-09-04T10:18:49.356+05:30इसीलिए भोर का थका हुआ तारा
दिगंतव्यापी प्रकाश मे...इसीलिए भोर का थका हुआ तारा <br />दिगंतव्यापी प्रकाश में डूब जाने को बेताब. <br />isase jyaada to kuchh hai hi nahin jise kaha jaaye .. samvedana kii zameen rulaati vismit karati haiPrajyan Pandenoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-34727743154548835312011-09-04T09:39:56.490+05:302011-09-04T09:39:56.490+05:30अनुवाद, कविता रूप में कहानी की अभिव्यक्ति, पढ़कर प...अनुवाद, कविता रूप में कहानी की अभिव्यक्ति, पढ़कर प्रवाहमय लगा।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-90679670445550308082011-09-04T08:25:06.372+05:302011-09-04T08:25:06.372+05:30स्थानिक का ये मोज़ेक अजब सी स्थिति में ला खड़ा करता...स्थानिक का ये मोज़ेक अजब सी स्थिति में ला खड़ा करता है ..<br />एक पूरा स्थान मानवीय संवेदनाओं के साथ खुदबुदाता सामने आता है , आपको उद्वेलित करता है .. इसके भीतर की नमी आपके खादर का स्पर्श करती है , हहराती है ...स्तब्ध हैं इसे पढ़कर .अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-48400853529280654552011-09-04T08:06:47.355+05:302011-09-04T08:06:47.355+05:30kavita ne stabdh kar diya hai .. rukmani ki peeda ...kavita ne stabdh kar diya hai .. rukmani ki peeda katari mein failti .. <br />मैंने रूकुमिनी की आवाज सुनी है <br />जो अपनी मां को पुकारती बच्चों जैसी कभी <br />कभी उस युवा तोते जैसी <br />जो पिंजरे के भीतर भी <br />जोश के साथ सुबह का स्वागत करता है <br />.......<br />Arun , is post ke liye shukriya.अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-38840346656682183992011-09-04T08:06:39.783+05:302011-09-04T08:06:39.783+05:30'' पता तो चले - कहाँ की कविता है. उसमें पर...'' पता तो चले - कहाँ की कविता है. उसमें परिकल्पित सार्वभौमिकता नहीं होनी चाहिए जो आजकल दिखाई दे रही है, ऐसा मेरा मानना है. उसमें एक स्थानिकता होनी चाहिए.''परिकल्पित सार्वभौमिकता''एवं ''स्थानिकता''के बीच का यही द्वन्द सामान्य पाठक को भ्रमित और आक्रान्त भी करता है!सच है ये कि' अब साहित्य एवं कलाओं में ''अर्थ पूर्ण '' और लोकप्रिय ''के बीच एक जबरदस्त विभाजन है!'<br />यह जानकारी केवल मर्मज्ञों के लिए.<br />साधारण जन तो इसे जानते ही हैं. ''कह कर वीरेन जी ने इस विभाजन और सत्य को स्पष्ट कर दिया है !'चमत्कारों'की चकाचौंध के बीच इस तरह की कवितायेँ गहरा सुकून देती हैं ...धन्यवाद अरुणजी <br /><br />:::वंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.com