tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post3409558498201332168..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : देस - वीराना : फुंसोलिग (भूटान) : निर्मला शर्माarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-22260737124034693732015-06-07T21:21:07.493+05:302015-06-07T21:21:07.493+05:30आपके यात्रा वृतांत से तुलना करुं तो आज जयगाँव काफ़ी...आपके यात्रा वृतांत से तुलना करुं तो आज जयगाँव काफ़ी बदल गया है। फ़्यूशलिंग जाते हुए रास्ते में मुझे बाईक सवार कुछ युवा मिले। उन्होने जयगाँव वेलफ़ेयर ऑर्गेनायजेशन की टी शर्ट पहन रखी थी और उस पर "से नो टू ड्रग" लिखा था। इससे पता चला कि सीमांत क्षेत्र में ड्रग एक महामारी के रुप में फ़ैल रहा है। जयगांव की कोलाहल भरी चहल पहल के बाद भूटान में प्रवेश करते ही शांति छा जाती है। इससे भारत की लोकशाही एवं भूटान की राजशाही के बीच का अंतर पता चलता है। बहुत ही बढ़िया संस्मरण लिखा आपने। आभार।ब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36585617512426609682013-12-04T14:54:20.765+05:302013-12-04T14:54:20.765+05:30अदभुत संस्मरण ..अपने बचपन के दिनो को याद करना .सपन...अदभुत संस्मरण ..अपने बचपन के दिनो को याद करना .सपनों को याद करने जैसा होताहै..जब हम बडे होते है धीरे धीरे सपने से दूर होते जाते है.कठिन समय में ही हम बचपन में लौटते है .लेकिन अपने आप को सम्वेदनशील बनाये रखने के लिये यह आवाजाही जरूरी है.शहर के शोरगुल से दूर बचपन के गांव और उनकी यादें कितनी राहत देती है.यह संसमरण पढते हुये मुझे यही अनुभूति हुई...बहुत बहुत स्नेह ...Swapnil Srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10836943729725245252noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-37724114139380810682013-02-26T21:11:26.801+05:302013-02-26T21:11:26.801+05:30एक बार पढ़ना शुरू किया तो अपने आप को रोक नहीं पाया,...एक बार पढ़ना शुरू किया तो अपने आप को रोक नहीं पाया, पढ़ता ही चला गया। स्मृतियों को इतनी खूबसूरत भाषा में बयान किया गया है कि आँखों के आगे चित्र सा बनता चला गया। कई बातें तो मुझे भी अपने बचपन में ले गईं जैसे पाठशाला में बस्ते के साथ टाट-बोरी लेकर जाना। निर्मला शर्मा के पास अपनी बात को कहने का एक तरीका है और है- एक सधी हुई पाठक के मन को खींच लेने वाली भाषा ! निर्मला जी की लेखनी को सलाम। उन्हें बधाई !सुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/06327767362864234960noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-29084017338883293582013-02-25T16:33:38.033+05:302013-02-25T16:33:38.033+05:30यादों की लम्बी फेहरिस्त होती है जो यूँ ही जेहन से ...यादों की लम्बी फेहरिस्त होती है जो यूँ ही जेहन से कई मौको पर निकलने के लिए व्याकुल रहती हैं ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-85235367263246851442013-02-24T18:45:40.750+05:302013-02-24T18:45:40.750+05:30amazingly detailed and interesting!!
surely one of...amazingly detailed and interesting!!<br />surely one of the best i have read in a while, great work from a wonderful writer.<br />keep writing ! Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/00017009236660407396noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-87875080387340870302013-02-24T13:52:31.324+05:302013-02-24T13:52:31.324+05:30This is a very remarkable piece of writing that ha...This is a very remarkable piece of writing that has ever come across to me. while going through this excellent work I found myself standing a midst the town of Bhutan. NIRMALA JI'S art of telling is really remarkable. it sounds as if she is pouring sweet honey in the ears. I too belong to Rajasthan and what I found is true and remarkable truth. I wish to extend my sincere thanks to Nirmala ji for such great work. Please keep on writing such great things<br /> Ramakant Sharma, Senior Lecturer DIET Sikar Rajasthan Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-76890771490558837032013-02-24T12:18:19.962+05:302013-02-24T12:18:19.962+05:30आपकी यह बेहतरीन रचना सोमवार 25/02/2013 को http://...आपकी यह बेहतरीन रचना सोमवार 25/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.inपर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!<br />deepti sharmahttps://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-46678929836517616492013-02-24T10:16:15.081+05:302013-02-24T10:16:15.081+05:30बहुत खुबसूरत इसे क्या जनादेश पर लिया जा सकता है ww...बहुत खुबसूरत इसे क्या जनादेश पर लिया जा सकता है www.janadesh.insavita vermahttp://www.janadesh.innoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-53446170794665199902013-02-23T10:23:45.116+05:302013-02-23T10:23:45.116+05:30निर्मला को पढ़ते हुए मैं कई जगह ठहर जाती हूँ ..भूल-...निर्मला को पढ़ते हुए मैं कई जगह ठहर जाती हूँ ..भूल-बिसरी यादों में शहर और संस्कृति जिस तरह पाठक तक आते हैं वे पाठ को सघन बनाते चलते हैं. बहुत देर तक हिमालय यहाँ रुकता है ..बहुत देर तक चाय के बगान अपनी सुगंध के साथ बने रहते हैं ..बहुत देर तक एक द्वार आपको जकड़े रहता है ...<br /><br />इस अंश को पढ़कर में पावरोटी में उलझ गई .....बच्चों की स्मृतियों में चीज़ें कैसे आकार लेती हैं ..इसका मनोवैज्ञानिक चित्रण मुझे यहाँ रोक रहा है ..<br /><br />आप भी पढ़ें -<br />"अलग-अलग संप्रदायों के लोगों के होने के कारण कुछ न कुछ चलता ही रहता था. बौद्ध धर्म के अनुयायी बुद्ध पूर्णिमा मनाते थे. पूरी रात गुंबा (बौद्ध मंदिर )में घंटे बजते थे और सुबह सभी भूटानी (भूटान के मूलनिवासी, जिन्हें गांलोप कहा जाता है) अपनी पारंपरिक पोशाक पहने (यहाँ के पुरुष बक्खु और महिलाएँ कीरा पहनती है) सिर पर बौद्ध ग्रंथ लिए पूरे शहर में जुलूस निकालते।पहले मुझे लगता था कि ये अपने सिर पर पावरोटी लेकर जाते हैं और जुलूस समाप्त होने पर खा लेंगे; लेकिन बड़े होने पर पता चला कि ये बौद्ध ग्रंथ हैं. मेरे लिए यह पावरोटियां बिक्खुओं तक जाने वाली भूख थीं ..जिसमें एक धर्म किसी गस्से की तरह मेरे गले में फंस जाता और कई गुम्बा के गुम्बा मेरी साँसों में हाँफा करते."<br />निर्मला आपको बधाई और समालोचन का आभार .... अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.com