tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post3355288306454037666..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सहजि सहजि गुन रमैं : मनोज कुमार झाarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-71363667741474742022014-07-29T19:13:19.670+05:302014-07-29T19:13:19.670+05:30ये छोटी कविताएँ मन के भीतर पैठ गज़ब का विस्तार पाती...ये छोटी कविताएँ मन के भीतर पैठ गज़ब का विस्तार पाती हैं ....जैसे एक उदास शब्द दुनिया के लिए खुशियों का शब्दकोष खोजने निकला हो.परमेश्वर फुंकवालhttps://www.blogger.com/profile/18058899414187559582noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-14005776487322117252014-07-28T14:59:17.034+05:302014-07-28T14:59:17.034+05:30 मनोज की कविताओं का हमेशा इंतज़ार रहता है। वो अपनी... मनोज की कविताओं का हमेशा इंतज़ार रहता है। वो अपनी तरह का अकेला कवि है।Shirish Kumar Mouryanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-54162132923176094832014-07-28T14:58:43.984+05:302014-07-28T14:58:43.984+05:30मनोज कुमार झा जो लिखते हैं वो सिर्फ मनोज कुमार झा ...मनोज कुमार झा जो लिखते हैं वो सिर्फ मनोज कुमार झा ही लिख सकते हैं. अद्भुत कवितायेँ...Vishal Srivastavanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-38480136312663744702014-07-28T14:58:15.629+05:302014-07-28T14:58:15.629+05:30पहली बार मैंने सोचा एक वेश्या की सेज पर
थोड़ी सा ई...पहली बार मैंने सोचा एक वेश्या की सेज पर<br />थोड़ी सा ईश्वर रहता जीवन में तो जान पाता कदाचित<br />कि यह जो इतना मजहबी शोर है<br />क्या बचा है इसमें थोड़ा सा जल<br />जिससे धुल सके एक लज्जित चेहरा.<br /><br />रात छाता बन रात को भींगने से बचा रही है<br />रात घड़ा बन जल भर रही है<br /><br />और कितने कम उसको थामने के धागे<br />अपने शरीर के रंग में मिलावट करती हैं तितलियाँ<br />और गुजारिश करता है अपने रंगों को<br />बचाने को व्याकुल थिर फूल<br />कि सखि रंग के भरम में मत डूबो<br /><br />रात, अँधेरा,उदासियाँ और शहद जैसी चीजें भी कैसे अपना रूप बदल कर पाठक को अपने भीतर खींच लेती हैं यह सिर्फ मनोज कुमार झा की कविताओं को पढ़कर जाना जा सकता है.इन कविताओं में बज रहा अकेलापन भी वैसे ही आत्मगत नहीं है जैसे कि यहाँ फैला हुआ अन्धेरा . मनोज कुमार झा की कविताओं की प्रतीक्षा रहती है और सामने आने पर वे हमेशा चकित करती हैं. इन्हें कई बार पढने का मन होता है और हर बार का पढना नया पढना होता है. कवि को शुभकामनाएं और बधाईयाँ.Mahesh Vermanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-79276766404197748762014-07-28T13:53:26.314+05:302014-07-28T13:53:26.314+05:30बेहतर की तलाश में उदासी और एकांत को कविता करती कवि...बेहतर की तलाश में उदासी और एकांत को कविता करती कविताएँ। कुछ इस तरह कि एक एस्थीट अपने एथिकल की पुनर्रचना में रात को दिन बना दे। अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-19386718851493343692014-07-28T09:16:13.836+05:302014-07-28T09:16:13.836+05:30hamesha kee tarah manoj babu kee shandaar kavitaye...hamesha kee tarah manoj babu kee shandaar kavitayen Vipin Choudharyhttps://www.blogger.com/profile/05090451479975418329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-89818511761212059552014-07-28T09:04:42.754+05:302014-07-28T09:04:42.754+05:30मनोज कुमार झा मेरे सबसे प्रिय कवि हैं. जब जब जब उन...मनोज कुमार झा मेरे सबसे प्रिय कवि हैं. जब जब जब उनकी कवितायेँ पढता हूँ खुद को उनके और करीब पाता हूँ. समालोचन का आभार इस यादगार प्रस्तुति के लिए. मनोज कुमार झा की लेखनी को विनम्र प्रणाम! prabhat ranjanhttps://www.blogger.com/profile/13501169629848103170noreply@blogger.com