tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post2900443719100808394..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सहजि सहजि गुन रमैं : प्रभातarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-45523294013473238002015-04-10T12:48:43.926+05:302015-04-10T12:48:43.926+05:30फिर से पढ़ रही हूँ इन्हें ..
मैं जमीन पर लेटा हुआ ...फिर से पढ़ रही हूँ इन्हें ..<br /><br />मैं जमीन पर लेटा हुआ हूँ<br />पर बबूल का पेड़ नहीं है यहाँ<br />मुझे उसकी याद आ रही है<br />उसकी लूमों और पीले फूलों की<br /><br />बबूल के काँटे<br />पाँवों में गड़े काँटे निकालने के काम आते थे<br />पर अब मेरे पास वे पाँव ही नहीं है जिनमें काँटे गड़े<br /><br />मुझे अपने पाँवों की याद आ रही है.<br /><br />अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-18554741499769537362015-01-22T07:52:44.249+05:302015-01-22T07:52:44.249+05:30प्रभात जी बधाईया, बहुत सुन्दर कविता..... ! आपकी कव...प्रभात जी बधाईया, बहुत सुन्दर कविता..... ! आपकी कविताओ मै जीवंत अनुभव दिखते है, कविताओ को पड्ने के साथ -साथ अपने बचपन के अनुभवो से जुड जाता है, जो एक प्रतिभाशाली कवि की पहचान है.Narendra Jatnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-46047558244909757682015-01-22T07:51:08.566+05:302015-01-22T07:51:08.566+05:30हे हिन्दी कविता की सालाना श्रेष्ठता के पेशेवर निर्...हे हिन्दी कविता की सालाना श्रेष्ठता के पेशेवर निर्णायकों ! क्या तुम ऐसी कविताएं पढ़ पाते हो, जिन्हें पढ़कर तुम्हें एक बार ही सही, लगे कि खुशामद और सिफ़ारिश और कुनबे के संवर्धन से परे कहीं वह कविता भी होती है जो इतनी उम्दा होती है कि अपना पुरस्कार स्वयं हो जाती है.Ashutosh Dubeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-78589732878451723972015-01-21T22:07:25.730+05:302015-01-21T22:07:25.730+05:30अद्भुत कविताएँ ..विशेषकर प्रेम कविताएँ आपको दूसरी ...अद्भुत कविताएँ ..विशेषकर प्रेम कविताएँ आपको दूसरी दुनिया में ले जाती हैं ...जहाँ धरती के तन पर पीली सरसों बिखरी हुई है ...जहाँ तक स्मृती जाती है वहां तक ..इन कविताओं की पहुँच आम जनों तक है..यदि कविताएँ ऐसी होंगी तभी जीवित रहेंगी. बधाई प्रभात जी को ..शुक्रिया अरुण जी को इन्हें पढवाने के लिए..परमेश्वर फुंकवालhttps://www.blogger.com/profile/18058899414187559582noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36584194200601547922015-01-21T20:22:58.715+05:302015-01-21T20:22:58.715+05:30मिगुएल हर्नांदेज़ की याद प्रासंगिक लगती है . उनकी ह...मिगुएल हर्नांदेज़ की याद प्रासंगिक लगती है . उनकी ही तरह प्रभात की हर एक कविता एक पूरी कविता होती है . कविता जो विचारों का संग्रहालय या बिम्बों की नुमाइश न हो . आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-48741832778227174902015-01-21T19:27:56.509+05:302015-01-21T19:27:56.509+05:30बहुत सुन्दर संकलन बहुत सुन्दर संकलन कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-3017207027692701802015-01-21T15:56:56.296+05:302015-01-21T15:56:56.296+05:30मुझे अचानक, अनायास ही, अपने बहुत प्रिय स्पेनिश कवि... मुझे अचानक, अनायास ही, अपने बहुत प्रिय स्पेनिश कवि मिगुएल हर्नांदेज़ की याद आई. हिंदी में बहुत कम लोग ही उन्हें जानते हैं. वे गडरिया ही थे. सचमुच के गड़रिया. लगा कोई कवि उस गड़रिया कवि की संपूर्ण अबोधताओं, निश्छल सहजताओं को हमारे समय में इस संवेदना के साथ लिख रहा है. वह भी एक ऐसी भाषा में, जिसमें अधिकतर कविताएं अन्य-अन्य शक्तियों और विकारों से आक्रांत हो चुकी हैं. पहली ही बार ये कविताएं पढ़ीं और मुरीद हुआ. बस अब इतर महत्वाकांक्षाएं इस 'स्वभाव' को अपहृत न कर लें. ये कविताएं कविता का हो सकना बचा रही हैं.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-13162009517226908762015-01-21T14:52:09.249+05:302015-01-21T14:52:09.249+05:30विषयों की नवीनता और उन्हें उठाने का प्रभातजी का अ...विषयों की नवीनता और उन्हें उठाने का प्रभातजी का अंदाज़ दुर्लभ है। बिम्बों के अनूठेपन और टटकेपन का क्या कहना। साधु-साधु हे साधक। व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना रहा है कि आधुनिक हिन्दी कविता का बहुलांश प्रौढों के लिए लिखा जा रहा है। वैचारिकता के अतिरिक्त भार से बोझिल। इसीलिए एक ख़ास तरह की नीरसता भी दिखती है इसमें। प्रभात इस एकरसता को तोड़ते हैं। शायद प्रभात की सफलता का एक कारण यह है कि वे बच्चों के लिए लिखते हैं। मुझे याद आ रहा है कि बिल्कुल छोटे बच्चों की पत्रिका फिरकी (एनसीईआरटी) का जब संपादन कर रहा था तो दो चार रचनाकार ही थे जिनसे हमें काम की चीज़ मिलती थी, उनमें से एक प्रभात थे। इस पर हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए कि समकालीन कविता में मासूमियत, खिलंदडापन, हास्य और नॉनसेंस (सेंसलेस नहीं) बिन स्तर गिराए कैसे लाया जा सकता है। समालोचन और प्रभात जैसे रचनाकारों की ओर उम्मीद भरी नज़रों के साथ-प्रमोदप्रमोद कुमार तिवारीnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-22193855135035109312015-01-21T14:42:56.151+05:302015-01-21T14:42:56.151+05:30 इस वक्त के चुनिंदा कवियेां में एक। इस वक्त के चुनिंदा कवियेां में एक।Om Nishchalnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-62452152707664741602015-01-21T14:41:55.121+05:302015-01-21T14:41:55.121+05:30सारी कवितायें अच्छी हैं | लेकिन 'यहाँ घर थे...सारी कवितायें अच्छी हैं | लेकिन 'यहाँ घर थे' और 'कि' बेहद पसंद आयीं | इस मेले में इनका कविता संग्रह लेना है |Ramji Tiwarinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-37384426032853480232015-01-21T14:40:23.516+05:302015-01-21T14:40:23.516+05:30बहुत सुन्दर और आत्मीय लगने वाली कविताएँ । प्रभात ज...बहुत सुन्दर और आत्मीय लगने वाली कविताएँ । प्रभात जी के लिए आंतरिक शुभेच्छा ।Neel Kamalnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-33343801952780962892015-01-21T14:37:31.733+05:302015-01-21T14:37:31.733+05:30साँझ जा रही थी
रात होने से पहले मुझे धर पहुँचना था...साँझ जा रही थी<br />रात होने से पहले मुझे धर पहुँचना था<br />मेरा जीवन छोटा हो गया था.<br /><br />उन दिनों मैं उसके बारे में बहुत सोचता था<br />वह मेरे बारे में सोचने को हँसकर टाल देती थी<br /><br />कम हो गया उसके बारे में सोचना<br />जैसे नदियाँ क्षीण होने लगती हैं<br /><br />कितनी लाइनें दोहराई जाएँ? प्रभात भाई अनमोल कवि हैं. उनकी कवितायें अपनी सम्पूर्णता में शानदार हैं. ये कविता पढने की इच्छा को भरपूर तृप्त करती कवितायें हैं. मन होता है कि दौड़कर उनतक पहुंचा जाये और देर तक, और बार बार उनकी संकोच से भरी किन्तु स्थिर आवाज़ में उनकी कवितायें सुनी जाएँ. समालोचन का आभार. कवि के प्रति हार्दिक कृतज्ञता.महेश वर्माnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-53879625523340333502015-01-21T11:40:20.858+05:302015-01-21T11:40:20.858+05:30prbhat ki kavitayen mano jeevan me thoda jeevan au...prbhat ki kavitayen mano jeevan me thoda jeevan aur bhar deti hain.. Kya kahun? sivay iske ki in kavitaon ne zindgi ke tamaam zaroori kaamo ke beech ek raahat ki saans bakhshi.. shukriyaलीना मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07272007913721801817noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-53982864095867719352015-01-21T09:13:18.805+05:302015-01-21T09:13:18.805+05:30अह ..कितने तो खंडहर चट चट करते रहे मन के भीतर. अनथ...अह ..कितने तो खंडहर चट चट करते रहे मन के भीतर. अनथक 'कि' से लड़ते हुए मैं कितने बचपनों से मिलती रही, कितने तो स्वप्न समय मुझे खंडित करते हुए कि मैं वहीं रहती थी और अब कोई कहानी भी नहीं ..इस हैमलॅाक ,इस अफ़ीम से बाहर आना मुश्किल ..ये सुबह भी क्या चटा गई मुझे!अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.com