tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post2890338761166775966..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सहजि सहजि गुन रमैं : निलय उपाध्यायarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-75277736682369609382014-02-25T08:33:52.328+05:302014-02-25T08:33:52.328+05:30थोड़ा सा नहीं...बहुत सा...बहुत सा है यह...बहुत सा द...थोड़ा सा नहीं...बहुत सा...बहुत सा है यह...बहुत सा दरक गया है मेरे भीतर इन कविताओं को पढ़ने के बाद......निलय जी मेरे फ़ेवरेट हुए जाते हैं...बस एक बात का अफसोस है कि बहुत देर से पहुंची मैं यहाँ तक ....<br />सुनीता Pummyhttps://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-71213939954603983112011-03-15T10:13:49.458+05:302011-03-15T10:13:49.458+05:30Nilay ji!
aapki kavitaayein intnee prerna de jaat...Nilay ji!<br /><br />aapki kavitaayein intnee prerna de jaati hain ki mat poonchhiye! maine apne kisorvay me aapko padha tha pahli baar!<br /><br />aag paida karne ki aakhiri koshish thee shaayad!<br /><br />aur tab se aapka kaayal hun!<br />aaj aapko yahaan paakar nihaal ho gaya!<br /><br />:)<br /><br />चलो वीर<br />चलो चलते हैं,<br /><br />चलते हैं उस ठावं<br />छोड़ अपना<br />गाँव,<br /><br />अपना घर<br />अपने खेत<br />तीन साल की बेटी<br />खांसती बीवी<br />अँधा बूढ़ा बाप<br />सब छोड़!<br /><br />छोड़ के चल<br />गाँव की तलैय्या<br />सोती हुयी डहर<br />पसरा हुआ बाग़<br />सब छोड़!<br /><br />चल वीर<br />चलते हैं<br />शहर...<br /><br />तोड़ते हैं अपने<br />बदन<br />अपनी उम्मीदों के साथ,<br /><br />चलते हैं<br />भूखी आँतों का<br />राग सुनने<br />सुलगती दुपहरियों पर<br />प्यास भुनने,<br /><br />चल<br />कुछ तिजोरियों को<br />जरूरत है<br />हमारे खून की !!<br /><br />*amit anandAmit Anandhttps://www.blogger.com/profile/01288258873618333126noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-56401528432791093602011-03-01T15:44:37.988+05:302011-03-01T15:44:37.988+05:30निलयजी उन चंद समकालीन कवियों में है जिन्हें पढ़ना ...निलयजी उन चंद समकालीन कवियों में है जिन्हें पढ़ना मुझे पसंद है. मजदूर और किसानों के दुःख दर्द की ये कविताएं बहत ही उम्दा हैं.प्रदीप जिलवानेhttps://www.blogger.com/profile/08193021432011337278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-8828224399053838502011-02-10T18:13:51.193+05:302011-02-10T18:13:51.193+05:30सभी कविताएँ.... एक से बढ़कर एक।सभी कविताएँ.... एक से बढ़कर एक।सुशील कृष्ण गोरेhttps://www.blogger.com/profile/04554365008275575977noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-75291536571111463122011-02-10T09:55:16.792+05:302011-02-10T09:55:16.792+05:30अरुणजी,कवितायेँ पढते वक़्त गोर्की कि वो पंक्तियाँ ...अरुणजी,कवितायेँ पढते वक़्त गोर्की कि वो पंक्तियाँ याद आ गईं , जो उन्होंने ‘’मेरा बचपन’’के दूसरे परिच्छेद में लिखी थीं ‘’मैं अपनी नहीं ,उस दमघोंट और भयानक वातावरण की कहानी कहने जा रहा हूँ,जिसमे साधारण रुसी अपना जीवन बिताता था,और बिता रहा था ....कहीं कहीं प्रेमचंद का पात्र ‘’गोबर’’भी कौंधता रहा ...!धन्यवाद .....निलय जी कि कविताओं के लिए !वंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-60153260339526601342011-02-09T22:09:32.651+05:302011-02-09T22:09:32.651+05:30बहुत अच्छी कविताएँ... कुछ कविताएँ पहले पढ़ चुका हू...बहुत अच्छी कविताएँ... कुछ कविताएँ पहले पढ़ चुका हूँ... मजदूर तो शायद इंदिया टूडे के वार्षिकांक में आई थी... उस समय आरा सहीत हर जगह चर्चा हुई थी इस कविता का....shesnath pandeyhttps://www.blogger.com/profile/02346761750600988046noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-42073471279612312452011-02-09T11:49:20.428+05:302011-02-09T11:49:20.428+05:30निलय की कविताओं ने मुझे हमेशा रोका है। हाथ पकड़ कर...निलय की कविताओं ने मुझे हमेशा रोका है। हाथ पकड़ कर पास बिठाया है। मैं उनको पढ़ कर कुछ न कुछ जरूर पाता हूँ। कटौती और अकेलाघर हुसैन का मेरे पसंद के संग्रह हैं...मेरा कविता संग्रह हम जो नदियों का संगम हैं और निलय जी की किताब कटौती एक साथ लोकार्पित हुए थे....आपको इन कविताओं की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद....बस एक बात कि ऐसा क्यों लग रहा है कि ये कविताएँ पढ़ी हैं...बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-11450651774704951832011-02-09T10:04:17.996+05:302011-02-09T10:04:17.996+05:30निलय उपाध्याय के इस कविता को हम तक सामने लाने के ...निलय उपाध्याय के इस कविता को हम तक सामने लाने के लिए अरूण देव को धन्यवाद ।निलय की कविता की भट्टी में ही एक साथ चाय,दारू व पाइप गन मिल सकता है ।निलय ही अपने हिस्से का 'थोडा सा' धूप व रोशनी साधिकार सूर्य व धरती से मॉग सकते हैं ।rabi bhushan pathakhttps://www.blogger.com/profile/18276093089412772926noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36051426399030775762011-02-09T09:53:31.601+05:302011-02-09T09:53:31.601+05:30सभी कविताएँ बहुत मार्मिक और मिट्टी की गंध से भरी ह...सभी कविताएँ बहुत मार्मिक और मिट्टी की गंध से भरी हुई है। निलय जी को बधाई और अरुण भाई का आभार।Farid Khanhttps://www.blogger.com/profile/04571533183189792862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-91487637290226589262011-02-09T09:38:20.121+05:302011-02-09T09:38:20.121+05:30अरुण जी....बेहद ब्यां करने वाली इन कविताओं से संवा...अरुण जी....बेहद ब्यां करने वाली इन कविताओं से संवाद कराने के लिये आपका धन्यवाद...आरा के सूखे खेत, बेरोजगार हाथ और भूखे पेट..जैसे भारत भर की कहानी इण्डिया से कह रहे हों..और जिस जुंबा में ये बोल रहे है..आवाज़ लगा रहे हैं..हाहा कार मचा रहे हैं..उस भाषा को कोई जानता ही नहीं है..दिल्ली आते आते उनके संवाद किसी गाडी के सायलेंसर पर चिपके धुँए की गाद भर बन के रह जाते हैं..<br />बेहद प्रभावशाली कवितायें हैं..आंख के साथ साथ सांस भी थम गयी थी..कुछ देर के लिये. सादरShamshad Elahee "Shams"https://www.blogger.com/profile/14542269543461516533noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-89068586063255545082011-02-09T08:12:21.375+05:302011-02-09T08:12:21.375+05:30बहुत अच्छी कविताएं.. गांव के यथार्थ को रेशा-रेशा स...बहुत अच्छी कविताएं.. गांव के यथार्थ को रेशा-रेशा समझने वाली ये कविताएं बेहद मार्मिक बन पडी हैं... निलय के यहां गांव की एक-एक चीज बोलती बतियाती है और उसके बीच एक किसान का लड़का जो हर चीज को संजीदे से अपनी कविताओं में पकड़ता है...बधाई....Vimlesh Tripathihttp://bimleshtripathi.blogspot.comnoreply@blogger.com