tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post2825387408533494276..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : किताब : तरुण भटनागर arun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-20826238416126267952014-09-25T12:33:53.520+05:302014-09-25T12:33:53.520+05:30 अपर्णा आपकी इस बात से की साहित्य विसंगति और व्यं... अपर्णा आपकी इस बात से की साहित्य विसंगति और व्यंग्य है सहमत हूँ. और यह भी की क्या इसे किसी एक फ्रेम से देखा जाना चाहिए ? साहित्य में और मनुष्य के जीवन में भी एक तरह की असामन्यता और असम्भावना होती है, जो चीजों को आगे ले जाती है, पता नहीं यह विद्रूप के किसी पारिभाषिक दायरे में आता है या नहीं, पर यह लेखन और जीवन दोनों को संपन्न तो करता ही है.आपने इसके कुछ नए आयामों की ओर इशारा किया है. तरुण भटनागरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-31350612215368192872014-09-25T10:14:41.589+05:302014-09-25T10:14:41.589+05:30absurdity विद्रूप भी है और विसंगति भी है . विसंगति...absurdity विद्रूप भी है और विसंगति भी है . विसंगति में हमारा समकाल आ जाता है . केवल विद्रूप absurd को डिफाइन नहीं करता . इस absurd के भी पहले हम सर्वांते के डॉन किगोते या क्विकजोट को देखें तो पायेंगे कि पात्र वहां हँसते हुए रोते हैं और रोते हुए हँसते हैं -दर्शक या पाठक इनमें कब एकाकार होते हैं पता नहीं चलता -तो यह विसंगतियों के बीच पैठी विद्रूपता का विरेचन है .<br />संभवतः The Bald Soprano Eugène Ionesco का पहला absurd प्ले है .<br />मैकबेथ के एक्ट 5 पर जाइए -वहां मैकबेथ क्या कह रहा है- "The world is a tale told by an idiot, full of sound and fury, signifying nothing." यही असंगतता हमें आयोनेस्क में मिलती है. देखा जाए तो सारा साहित्य ही विसंगति और व्यंग्य है . इस विसंगति को किसी एक फ्रेम से हम क्यों देखें ? अस्तित्व के झरोखे से ही क्यों ? <br />नकार और विघटन का अंतर जानना चाहूंगी . निहीलिज्म और डिसइंटीग्रेशन का फर्क ? <br />'पाठ' का तरुण जी ने बढ़िया पाठ किया है . थोडा और खुलकर आलोचना तक बात जाती तो बेहतर होता .<br />यदि हम किसी भी लेखन की तरफ जाएँ तो यह महानता क्या होती है ? महानता शायद कुछ नहीं होती . लेखक के सृजन में उसके काल की ग्रोथ होती है . महानता और शाश्वतता के बीच सदियों से आलोचक, लेखक और पाठक क्यों फंसा है ? अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.com