tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post2683620612210001282..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सबद भेद : कविता और आलोचना के केंद्रarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-67722950233943979132012-03-27T18:26:11.524+05:302012-03-27T18:26:11.524+05:30अधिकांश लोगों को, सही माहौल दिया जाना, परिश्रमी, प...अधिकांश लोगों को, सही माहौल दिया जाना, परिश्रमी, प्रतिभाशाली, रचनात्मक, और उत्पादक लेखकों और कवियों को अपनी आलोचना के द्वारा सही मार्ग दिखलाना, दूसरों में रचनात्मकता को प्रोत्साहित करें और उन्में विश्वास दें. इसी मूलमंत्र का पालन करने का हर आलोचक दम भरता है.. बदलते शिल्प, बदलते परिवेश, बदलती भाषा और इसके साथ बदलती दृष्टि, परिणाम-स्वरुप औसत दर्जे की रचनात्मकता... इन सबके चलते आलोचक भी अब बदले-बदले से नज़र आते हैं.. अब शायद ब्रांडेड (branded) वस्तुओं का दौर है. इसलिए आलोचना और आलोचोंका भी एक ब्रांड बनने लगा है.. गणेशजी का लेख बहुत मुखर लेख है.. बहुत हिम्मत के साथ लिखा गया है.. .!Vipulhttps://www.blogger.com/profile/11560013974090733493noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-12989356831849230692012-03-23T21:40:00.584+05:302012-03-23T21:40:00.584+05:30गणेश पांडेय जी का यह लेख हमारे समकालीन साहित्य और...गणेश पांडेय जी का यह लेख हमारे समकालीन साहित्य और आलोचना दोनों की कई परतों को बेबाकी से खोलकर रख देने वाला है। एक सृजनशील रचनाकार होने के कारण उनके लेखन में रचना के प्रति जो स्नेह है, वह भी यहां व्यक्त होता है, इसलिए इसे क्रिकेट की जुबान में 'ड्रेसिंग रूम' डिबेट की तरह लेना चाहिए... एक ईमानदार आलोचना, जो अपने समय की निर्मम व्याख्या से कुछ बेहतर परिणामों की अपेक्षा रखती है। ... जहां तक औसत रचना या रचनाकारों की बात है, यह हर कालखंड में होता आया है. समय की छलनी ही न्याय करती है...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13562041392056023275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-60794174554779255582012-03-23T05:46:48.527+05:302012-03-23T05:46:48.527+05:30इतना आसान नहीं लहू रोना ......गणेश भाई साहब का हौस...इतना आसान नहीं लहू रोना ......गणेश भाई साहब का हौसला कायम रहे , मैं हुम्शहर होने के नाते इतना दावे के साथ कह सकता हूँ के इसकी कीमत भाई साब लगातार चुकाते रहे है ....नाम वाम लेने से विषय से भटकने का खतरा बढ़ जाता है वैसे जिन अग्रज साहित्य कार की अभी नीलकमल ने चर्चा की है वे दोनों ही लेख में जिन पुरस्कारों का संकेत है उससे नवाजें जा चुके है.....इस उम्मीद के साथ की बातें हवा में नहीं हो रही .....इस विनम्र और विशेष आग्रह कि नाम वाम से परहेज .....लेख पर बेहतर चर्चा के अनुकूल वातावरण निर्मित करेगा....Pankaj Mishranoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-18709213817491939782012-03-22T20:56:20.205+05:302012-03-22T20:56:20.205+05:30"कई बार जगाने के लिए तेज़ बोलना पड़ता है &quo..."कई बार जगाने के लिए तेज़ बोलना पड़ता है "... आलेख में इसका आभास तो है..किन्तु सच ज्यादातर कड़वा ही होता है !...आलोचना के नाम पर प्रशस्ति वाचन ने कविता और गद्द्य दोनों का भरपूर अहित किया है और लगातार कर रही है, ... अभी किसी विशेषांक में मैंने पढ़ा, एक आलोचक महोदय की आत्मस्वीकृति कि -- "कई बार मैंने खराब कविताओं को भी अच्छा कहा है"... आलोचना के जरिये आगे कुछ सीख पाने का धैर्य भी आज के समय में गायब होता जा रहा है ...किसी भी तथाकथित 'बड़े' आलोचक से पुस्तक का लोकार्पण और बलर्ब लिखवा कर लोग तत्काल ही मुक्तिबोध या शमशेर बन जाना चाहते हैं..! लेखक संगठनों की अकर्मण्यता और साजिशाना आचरण की भी इसमें एक बड़ी भूमिका है । दिल्ली तो हमेशा से दूर ही रही है मानवीय-बोध और आमजन से । सायास लेखन ने कविता को बहुधा क्षति ही पहुँचाई है । .... मुझे लगता है कि कविता वह विधा है जो खुद को लिखवाते समय ( वह समय एक दिन, एक वर्ष कुछ भी हो सकता है )आत्मा को निचोड़ लेती है...आसान नहीं उस प्रसव-पीड़ा से आरामतलबी से गुजर जाना...और उसके बाद भी 'अंधेरे में' का रचा जाना किन्ही अप्रत्याशित क्षणों में ही संभव हुआ होगा !... आने वाले दिनों में आलोचना नई पीढ़ी से बहुत उम्मीद कर रही है ..और स्वस्थ समयों में यह हो सके..इसके लिए कविता को यदि अपने स्वर्णिम इतिहास से सीखना होगा तो वहीं अपने वर्तमान को देखते हुये भी भविष्य से निरंतर संवाद बनाना होगा !... श्री गणेश जी व श्री अरुण जी का आभार !!सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-14689549551118774082012-03-22T16:50:43.522+05:302012-03-22T16:50:43.522+05:30vicharo ko aalodit kr dene wali sochvicharo ko aalodit kr dene wali sochचन्द्र देव त्रिपाठी 'अतुल'https://www.blogger.com/profile/17256638120804354028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-72337700096511635502012-03-22T14:15:25.714+05:302012-03-22T14:15:25.714+05:30आपने हिन्दी आलोचना में व्याप्त व्याधि की निर्मम आल...आपने हिन्दी आलोचना में व्याप्त व्याधि की निर्मम आलोचना करके सराहनीय काम किया है, लेकिन बिना नाम लिये आलोचना करना भी जैसे एक प्रवृत्ति बनती जा रही है, वैसे debateonline.in पर मौजूद लेख ‘किस प्रलेस की बात कर रहे हैं आप’ नाम लेकर की गई आलोचना का उदाहरण है। उम्मीद है कि यह एक शुरुआत होगी, जब आलोचना मे मौजूद दोषों की आलोचना दिखाई पड़ने लगे। धन्यवाद आपके लेख के लिये।vikasnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-40001230929943934352012-03-22T12:43:57.266+05:302012-03-22T12:43:57.266+05:30yah sach hai ki ausat darje kee kvita likhi jaa ra...yah sach hai ki ausat darje kee kvita likhi jaa rahi hai aur kvita me nye charitron kee avajaahi ki zaroorat hai.. bahut se prshn purskaron kee rajneeti aur lipsa se lekar streevadi vimarsh ke ek se swar vicharneey hain.. bahut achha lekh .. sochne par majboor karta hai..leena malhotrahttp://www.facebook.com/leena.m.r.noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-32581225675089588202012-03-22T10:41:23.337+05:302012-03-22T10:41:23.337+05:30साहित्य, विशेषकर हिंदी साहित्य, के परिदृश्य पर अध्...साहित्य, विशेषकर हिंदी साहित्य, के परिदृश्य पर अध्येता का आक्रोश जायज है ......परन्तु सब कुछ बिगड़ा हुआ सा देखने की अहर्निश दृष्टि .......थोड़ा ज्यादा बलाघात निगेटिविटी पर ......लेकिन एक शानदार प्रस्तुति......!Rajeev Kumarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-5665903059114834362012-03-22T07:21:38.069+05:302012-03-22T07:21:38.069+05:30बहुत व्यवस्थित तरीके से प्रो. गणेश पाण्डेय जी ने र...बहुत व्यवस्थित तरीके से प्रो. गणेश पाण्डेय जी ने रचना और आलोचना पर लिखा है .. स्त्री विमर्श पर जो उन्होंने कहा है वह सही है . एक सा स्वर , एक सी टोन .. अधिकतर ये ही आ रहा है .<br />बस एक बात से विचार मत-भेद है है .. ये ज़माना औसत का है ..<br />नहीं , ये ज़माना भयवाह रूप से स्पर्धा का ज़माना है , प्रोफेशनलिज्म का ज़माना है और बाज़ार का ज़माना हैं .. यहाँ औसत आपको शीर्ष पर बैठा भी दिखाई दे सकता है . कुल मिलकर ये कुंठाओं का ज़माना है , इसलिए रचना और आलोचना उससे गहरे तक प्रभावित हैं ..<br />सर को इस लेख के लिए बधाई ! अरुण आभार ..अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-31332837005904124692012-03-21T22:23:34.464+05:302012-03-21T22:23:34.464+05:30इस लेख में आज की रचना आलोचना और पाखंड का कच्चा चिट...इस लेख में आज की रचना आलोचना और पाखंड का कच्चा चिट्ठा पेश किया है प्रो. गणेश पाण्डेय ने. ऐसा आलोचकीय आक्रोश आवश्यक है, इसके बिना समकालीन रचनाशीलता और आलोचना की दादागिरी को उजागर ही नहीं किया जा सकता है. जिन लोगों का धंधा चल निकला है और तरह तरह से हाथ साफ कर रहे हैं उन्हें ये बातें गाली लगेंगी. वे इसे गैरजरूरी साबित करेंगे, हंस कर उपेक्षित करेंगे. लेकिन क्या कोई है जो केंद्र की तरफ से इन सवालों का जवाब देने के लिए तैयार होगा. या महापुरुषत्व की मोटी चमड़ी में पहले की तरह ही अपने को छुपाकर काम निकालते रहेंगे आलोचक और कविगण. आज की साहित्य और अकादमिक जगत की राजनीति सत्ता की राजनीति से कम पतित नहीं है. लेकिन, मज़े की बात यह कि कभी अपने गिरेबान में झांकने की चुनौती और अपनी ही नज़रों से गिर जाने की बातें कौन स्वीकारता है. इस बहस को और बढाया जाना चाहिए और कुछ मुकम्मल प्रतिमान तो तय ही होने चाहियें. इन सवालों को उठाने के लिए पांडेयजी से आलोचकीय साहस की तारीफ की जानी चाहिए.हिंदीपट्टीhttps://www.blogger.com/profile/00347895668139412017noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-9238539946974814652012-03-21T21:36:16.895+05:302012-03-21T21:36:16.895+05:30वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य का जो नक्शा पांडे जी ने...वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य का जो नक्शा पांडे जी ने खींचा है वह यथार्थ की फोटोकपी जैसा लगता है ! तर्क की सुसंगति मे आगे बढ़ता हुआ लेख ठोस जमीनी निष्कर्षों पर जा खड़ा होता है !प्रस्तुति के लिए अरुनदेव जी का आभार !अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-77498328241906618662012-03-21T21:06:12.634+05:302012-03-21T21:06:12.634+05:30Jo Ganesh jee ne likkha hai uskey liye akoot sahas...Jo Ganesh jee ne likkha hai uskey liye akoot sahas aur kartavyanishtha chahiye. Bahut acchee lagi thi Bipin jee uss din jo aapney Ganesh jee waali aalochna waali kitaab padh kar sunaya tha. Shabd aur tathyon ka endum sateek aur dhaar-daar prayog evam prahaar jo pardon aur parton ke aar-paar dekhta hai...phir kuttch nahi bachta...aur hamaam mein sab nangey padey dinkhtey hain...atm-mugdhta se ot-prot aur avval darzey ke chaaplooskhor. Ye sab anchhahey baal hee hain. Prerna to Ganesh jee jaisey logon se leni chahiye...jo sach ka ballam uthatey hain aur kushti ke liye taiyaar baithey hain...ab koi saamney aaney ki himmat na karey to sahi mein antatah 'walkout' hee milega aur ve vijai ghoshit kiye jaaengeSubir Rananoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-42941003567830898512012-03-21T20:49:43.620+05:302012-03-21T20:49:43.620+05:30सटीक व सच्चाई बयान करता विचारोत्तेजक लेख। आलोचना क...सटीक व सच्चाई बयान करता विचारोत्तेजक लेख। आलोचना को बहुत अधिक दायित्वपूर्ण बनना होगा। और सारे वादों ( वाद, वायदे और बजावन ) एक ओर रखने होंगे, निर्मम भी होना पड़ेगा।Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-22708996493124102872012-03-21T20:20:35.875+05:302012-03-21T20:20:35.875+05:30बहुत ही विचारोत्तेजक और सटीक आकलन है। हमने भी अगर ...बहुत ही विचारोत्तेजक और सटीक आकलन है। हमने भी अगर भोपाल और दिल्ली के कुछ जूतों के तस्में बांधे होते और उन्हें गर्व से अपने सर पर रखते तो हमारी झोली में स्थापना, चर्चा, कुछ पुरस्कार और कई प्रकाशन होते...नवनीत पाण्डेhttps://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com