tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post2433768915565550677..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : सहजि सहजि गुन रमैं : मलखान सिंहarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-91373614762601707512019-08-09T18:18:45.048+05:302019-08-09T18:18:45.048+05:30सुनो ब्राह्मण को पहली बार सामने लाने का श्रेय खाकस...सुनो ब्राह्मण को पहली बार सामने लाने का श्रेय खाकसार का है Dr. Mool Chandra Gautamhttps://www.blogger.com/profile/03364734045123788389noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-37975074460120998832017-05-01T15:15:32.383+05:302017-05-01T15:15:32.383+05:30शुक्रिया!शुक्रिया!मुसाफिर बैठाhttps://www.blogger.com/profile/10154125259959776460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-21376811387872914962016-05-02T22:24:37.759+05:302016-05-02T22:24:37.759+05:30 सजगता की लौ से अनन्तरिम सपाटता का अविचल मार्ग प... सजगता की लौ से अनन्तरिम सपाटता का अविचल मार्ग प्रशस्त कर नव्उद्बोधन की दहक लिये,उत्तम रचना।<br /> भूमिका की गरज सुदूरवर्ती लगी।<br /> असीम आभार।<br />Saloni sharmahttps://www.blogger.com/profile/01298425880007698617noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-56427419780446430322016-05-02T10:47:03.680+05:302016-05-02T10:47:03.680+05:30बहुत दिनों बाद दमदार कवितायें पढ़ने को मिलीं। मलखान...बहुत दिनों बाद दमदार कवितायें पढ़ने को मिलीं। मलखान सिंह जी को बधाई। समालोचन का आभार। मुसाफिर बैठाजी की टिप्पणी से सोलह आने सहमत होते हुए बस यही कहना चाहता हूँ कि मलखान सिंह जी की कविता को सिर्फ दलित कविता तक सीमित नहीं रखा जाए। यह सम्पूर्ण समाज के शोषक और शासक चरित्र को उजागर करती कविता है। <br /><br />- राहुल राजेश, कोलकाता । Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-64481676676012228522016-05-01T19:29:40.271+05:302016-05-01T19:29:40.271+05:30मलखान सिंह को अबतक पढ़ा मात्र है, उन्हें देखने, सुन...मलखान सिंह को अबतक पढ़ा मात्र है, उन्हें देखने, सुनने अथवा उनसे बतियाने का लाभ अभी नहीं मिला है।<br /><br />हिंदी दलित कविताओं की ईमानदार चर्चा हिंदी साहित्यिक हलके में नहीं होती जबकि हिंदी आदिवासी कविताओं को तूल दिया जाता है। आदिवासी कवयित्री निर्मला पुतुल (जबरिया हिंदी कवयित्री मान ली गयी संथाली कवयित्री) <br />एवं अनुज लुगुन को साहित्य समाज हिंदी मुख्यधारा के कवि के रूप में स्थान देता है। इन दोनों कवियों ने वर्गीय ढांचे की कविताई की है जिसमें आदिवासी संस्कृति के प्रतिगामी चलनों के प्रति भी स्वीकार और अनुराग भाव है। वहां ऐसे घर में ब्याहने की लड़की की साध है जिसमें आंगन हो और आसपास मुर्गा बांग देता हो और वह घर कंक्रीट के जंगल से दूर हो। संस्कृति राग यह भी कि नंगे पाँव चलने की मजबूरी सांस्कृतिक आमद और काबिलियत समझी जाए! और, ये चीज़ें प्रभु एवं समर्थ लोगों को भाती हैं। आज ही मजदूर दिवस के अवसर पर झारखंड में सरकारी एवं गैर सरकारी कार्यक्रमों में आदिवासी युवतियों से पारम्परिक नृत्य एवं अन्य क्रियाकलाप सांस्कृतिक विरासत के नाम पर करवाए गये हैं। आदिवासी साहित्य में द्विजों से द्वंद्व नहीं है जबकि दलित साहित्य में प्रतिगामी संस्कृति, अधिकारहीनता की विरासत एवं आमद सराही नहीं जाती एवं द्विजों से द्वंद्व का ही मुख्य अंकन है क्योंकि दलितपन तभी है जबकि द्विजपन जिन्दा है। मलखान सिंह पर लिखते बजरंग जी ने भी इस तरह की बात की है। अनुज लुगुन को भारत भूषण अग्रवाल जैसा प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुका है जो 35 वर्ष तक के हिंदी कवियों को दिया जाता है। वे पहले आदिवासी कवि हैं जिन्हें यह सम्मान मिला है। जबकि अबतक किसी दलित कवि को यह सम्मान 'नसीब' नहीं हुआ हुआ है। यह तब है कि आदिवासी काव्य के मुकाबले दलितों द्वारा प्रभूत काव्य लेखन हो चुका है।<br />अरुण देव मलखान सिंह को दलित कवि में ही सिमटा दिए जाने की अपनी जब चिंता यहाँ व्यक्त कर रहे हैं तो उन्हें हिंदी काव्य संसार में चलते बनाने बिगाड़ने के खेल का भी भान जरूर है, हालांकि इस खेल को खोलने से वे बचना चाहते हैं जो स्वाभाविक ही है!<br />बहरहाल, मलखान सिंह की कतिपय रचनाओं को ब्लॉगकार अरुण देव एवं आलोचक बजरंग बिहारी तिवारी की टिप्पणियों के साथ पढ़ना सुखकर है। इन दोनों की टिप्पणियों को सार्थक सन्देश के रूप में भी लिया जाना चाहिए!मुसाफिर बैठाhttps://www.blogger.com/profile/10154125259959776460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-87668608300125496562016-05-01T16:18:09.438+05:302016-05-01T16:18:09.438+05:30आग उगलती कविताएँ आग उगलती कविताएँ Onkarhttps://www.blogger.com/profile/15549012098621516316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-4969796107097626632016-05-01T14:28:06.570+05:302016-05-01T14:28:06.570+05:30Arun Dev ji, आपने भूमिका (जिसे अब 'इंट्रो'...Arun Dev ji, आपने भूमिका (जिसे अब 'इंट्रो' कहने का चलन है) बहुत सुन्दर और सार्थक लिखी है, क्योंकि आप जानते हैं कि लेखन में ''शाइस्तगी और साहस साथ-साथ जरूरी है.''Pankaj Chaturvedinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-88544796196938180712016-05-01T12:25:58.426+05:302016-05-01T12:25:58.426+05:30सच उजागर करती और भोगी हुई समस्याओं से तर कवितायेँ ...सच उजागर करती और भोगी हुई समस्याओं से तर कवितायेँ हैं मलखान जी की !आशीष नैथाऩीhttps://www.blogger.com/profile/12161090166861387236noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-77846430060212408982016-05-01T12:11:23.217+05:302016-05-01T12:11:23.217+05:30इस पोस्ट के लिए आभार। इस पोस्ट के लिए आभार। अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-28991935601118144482016-05-01T09:50:15.002+05:302016-05-01T09:50:15.002+05:30मर्म को छू लेने वाली सुंदर कविताएँ हैं मलखान सिंह ...मर्म को छू लेने वाली सुंदर कविताएँ हैं मलखान सिंह की।मनीष गोरेnoreply@blogger.com