tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post2011116707984895849..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : मैं कहता आँखिन देखी : मैनेजर पाण्डेयarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-37964416453430562672020-04-20T16:54:18.034+05:302020-04-20T16:54:18.034+05:30प्रतिष्ठित समालोचक डॉ0 मैनेजर पांडेयजी से आपकी बात...प्रतिष्ठित समालोचक डॉ0 मैनेजर पांडेयजी से आपकी बातचीत, हिन्दी आलोचना के इतिहास और इसकी यात्रा - पथ के मील के पत्थरों एवं यात्रा में आए विभिन्न मोड़ों को चिन्हित व रेखांकित करती है. इस बहाने हिन्दी आलोचना के बनते, संशोधित, परिवर्द्धित, विकसित होते मानदंडों पर चर्चा होती चली है. यह बातचीत हिन्दी साहित्य के विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी है. हिन्दी के रचनाकारों के लिए भी बड़े काम की है. यह बातचीत आलोचक - संसार की राजनीति को छूते हुए आगे बढ़ती गयी है किन्तु आलोचकों के अवदान को भली-भांति रेखांकित करती चली है. इस बेहद महत्वपूर्ण बातचीत के लिए माननीय डॉ0 मैनेजर पांडेयजी एवं आपको धन्यवाद, आभार. <br />शिव कुमार पराग, <br />वाराणसी. <br />20.042020शिव कुमार परागnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-14499362750489004332020-04-18T23:10:14.204+05:302020-04-18T23:10:14.204+05:30साक्षात्कार में प्रश्नों का बहुत महत्त्व होता है।...साक्षात्कार में प्रश्नों का बहुत महत्त्व होता है। यह एक सुंदर जुगलबंदी होती है।पांडेय जी ने हिंदी आलोचनाओं का जितना सहज,सुंदर और सार्थक विवेचन किया है, ऐसा आज के समय में केवल वही कर सकते हैं। सबसे प्रभावशाली उनकी आकर्षक मौलिकता है जिसमें कहीं लेश मात्र भी पूर्वाग्रह नहीं दिखाई पड़ता है ओर किसी तरह की अहम्मन्यता भी नहीं दिखाई देती। निश्चय ही यह साक्षात्कार समकालीन हिंदी आलोचना दृष्टि के लिए एक मानक स्थापना जैसा है। समालोचन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि। बधाई।<br />BSM Murtyhttps://www.blogger.com/profile/17591886224159585711noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-46523970038760866852020-04-18T16:56:02.319+05:302020-04-18T16:56:02.319+05:30बड़े कालखंड को समेटती हुई छोटी बातचीत। हम जैसे बाह...बड़े कालखंड को समेटती हुई छोटी बातचीत। हम जैसे बाहरी लोगों के लिए नॉलेज कैपसूल !<br />विनय कुमारnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-70146410634686419652020-04-18T16:55:28.885+05:302020-04-18T16:55:28.885+05:30एक साक्षात्कार में पूरी हिंदी आलोचना के महत्वपूर्ण...एक साक्षात्कार में पूरी हिंदी आलोचना के महत्वपूर्ण पड़ावों तथा पक्षों की यात्रा कराने के लिए हार्दिक आभार अरुण जी ,, समकालीन आलोचना पर प्रो पाण्डेय का वक्तव्य यथार्थ के बहुत निकट है ,,उनकी दृष्टि एकदम साफ़ और प्रकाशवान करने वाली है , इसीलिए वह एक बड़े आलोचक हैं ,,<br />राकेश मिश्राnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-75001787605484675602020-04-18T16:54:31.766+05:302020-04-18T16:54:31.766+05:30यह बातचीत आज भी प्रासंगिक है। पांडेय जी जब बोलने ल...यह बातचीत आज भी प्रासंगिक है। पांडेय जी जब बोलने लगते हैं तो कुछ नई और मौलिक बातें बोल ही जाते हैं। उनको सुनना भी दिलचस्प होता है। आपके सवाल तो मौजूं हैं ही।<br />पंकज चौधरीnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-36541799844333746562015-08-11T09:42:41.489+05:302015-08-11T09:42:41.489+05:30गुरूवर को मेरी अोर से भी जन्म दिन की शुभकामनाएं द...गुरूवर को मेरी अोर से भी जन्म दिन की शुभकामनाएं दीजिएगा ;.....भाई जी। मेरे पास संपर्क सूत्र नहीं है।vickysingh4675https://www.blogger.com/profile/06014618894759654666noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-47858802632564581382014-09-23T10:21:26.705+05:302014-09-23T10:21:26.705+05:30इस इंटरव्यू की बड़ी खूबी इसके सवाल हैं। जिस सादगी स...इस इंटरव्यू की बड़ी खूबी इसके सवाल हैं। जिस सादगी से आपने विषय विस्तार और काल दोनों का ख्याल रखा है, वो नायब है। और मैनेजर पांडे तो हैं सादगी के सम्राट। Saurabh Bajpaihttps://www.blogger.com/profile/00023657247431987496noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-68369333313222705522014-09-23T10:14:52.656+05:302014-09-23T10:14:52.656+05:30संक्षिप्त किन्तु बढ़िया उपयोगी साक्षात्कार। पाण्डेय...संक्षिप्त किन्तु बढ़िया उपयोगी साक्षात्कार। पाण्डेय जी को जन्मदिन की बधाई। अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-85869822391759011022012-05-04T10:11:55.274+05:302012-05-04T10:11:55.274+05:30बहुत सार्थक और गंभीर बातचीत ...पाण्डेय जी की आलोचन...बहुत सार्थक और गंभीर बातचीत ...पाण्डेय जी की आलोचना दृष्टि पुरातन की अर्थवत्ता को अगर सहेजती है तो समकालीनता के आयामों को भी उतनी ही सिद्ददत से अपने लेखन में साथ रखती है .............मेर ख्याल से किसी भी आलोचक के लिए बहुत बड़ी बात है .........पाण्डेय जी जैसे ईमानदार और सघन वैचारिकता वाले आलोचक हिन्दी में बहुत कम हैं जो वे वजह की राजनीति में साहित्य का उपयोग करते हैं और हर मौके का उपयोग अपने को और चर्चित बनाने का कर लेते हैं ............बहुत बढ़िया सवाल और शानदार जबाब ................परितोषhttps://www.blogger.com/profile/05931957208229640528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-118480194216478102011-07-05T09:11:03.541+05:302011-07-05T09:11:03.541+05:30भाई अरुण देव जी नमस्कार... समालोचना की एक पोस्ट मै...भाई अरुण देव जी नमस्कार... समालोचना की एक पोस्ट मैंने आपनी अनुमति के बिना एक अन्य ब्लॉग पर लगा दी है... देखिएगा.... http://raj-bhasha-hindi.blogspot.com/ <br /><br />अरुण चन्द्र रॉयअरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-72577158295123673152011-06-29T15:45:56.401+05:302011-06-29T15:45:56.401+05:30बहुत सुंदर, संग्रहणीय रचना है। कम होता है जब ऐसे व...बहुत सुंदर, संग्रहणीय रचना है। कम होता है जब ऐसे विषय आपके सामने से गुजरें। बहुत बहुत बधाईमहेन्द्र श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09549481835805681387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-81669057340487916652011-06-28T06:56:45.325+05:302011-06-28T06:56:45.325+05:30आलोचक तो वह होता है जो रचना के मर्म का आस्वादन करा...आलोचक तो वह होता है जो रचना के मर्म का आस्वादन कराये | आलोचकों का आलोचक तो वो हो सकता है जो कि रचना के मर्म के साथ आलोचक की आस्वादन प्रक्रिया का ज्ञान उदघाटित कर दे |अर्थात आलोचना की आलोचना करने वाला व्यक्ति तो हर हाल में दोनों विधाओं से पर...िचित होगा |भक्ति-काल,अनतर्राष्ट्रीय रचनाकारों,तथा आधुनिक हिंदी साहित्य के साथ ही साथ साहित्येतिहास पर जिस प्रकार से पाण्डेय जी ने अपना लेखन हिंदी को दिया है वह परिचय का मोहताज नहीं हैं | ऐसे में समकालीन रचनाकारों पर उनकी दृष्टी की अपेक्षा सराहनीय है | वे यदि इस पर नहीं लिखते तो वाकई ये उनसे समझने वाला विषय है |हो सकता है कि वे अपना समय किसी अन्य महत्वपूर्ण विषय को दे रहें हों !Arunakar Pandeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-32980256054660471502011-06-27T07:38:19.991+05:302011-06-27T07:38:19.991+05:30उन जैसे सजग आलोचक से ऐसी सामयिक और सार्थक बातचीत उ...उन जैसे सजग आलोचक से ऐसी सामयिक और सार्थक बातचीत उपलब्ध करवाने के लिए हृदय से आभार।वे आचार्य शुक्ल से लेकर नामवरजी तक सभी के प्रति गहरा आदरभाव तो रखते हैं, लेकिन जहां उनसे असहमतियां हैं या उनकी पद्धति में जहां चूक दिखाई देती है, उसे उजाग...र करने में कोई लिहाज नहीं बरतते। स्वयं मैनेजर पाण्डेय ने समकालीन हिन्दी लेखन और साहित्य के समाजशास्त्र की जैसी गहन व्याख्याएं की हैं, वह निश्चय ही हिन्दी आलोचना की एक महत्वपूर्णउपलब्धि है।नामवर सिंह, मैनेजर पाण्डेय को आलोचकों का आलोचक कहते हैं. उनके यहाँ समकालीन रचनाशीलता की गहरी परख भी है. उनकी आलोचना सभ्यता परक है, वह साहित्य, समाज और विचार के वतर्मान से टकराते हुए भविष्य की बेहतरी का सपना देखती है. वह आलोचना-परम्परा के ऐसे वरिष्ठ हैं जहां शब्द और कर्म का द्वैत नहीं रह जाता. शब्दों की रौशनी में कर्म की जनपक्षधरता आलोकित होती है.Maya Shankar Jhanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-299662851351951182011-06-26T21:55:42.715+05:302011-06-26T21:55:42.715+05:30हिन्दी साहित्य की आलोचना दृष्टि और उत्तरोत्तर विका...हिन्दी साहित्य की आलोचना दृष्टि और उत्तरोत्तर विकास यात्रा के सभी पहलुओं को रेखांकित करती बहुत ही सारगर्भित और महत्त्वपूर्ण बातचीत..समालोचन और आपका आभार अरुण जी साझा करने के लिएनवनीत पाण्डेhttps://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-10719061096139845272011-06-26T19:32:09.939+05:302011-06-26T19:32:09.939+05:30niceniceAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-31887797943892079492011-06-26T18:57:13.386+05:302011-06-26T18:57:13.386+05:30समकालीनता का कुछ लोग यह अर्थ लगाते हैं कि जो कुछ भ...समकालीनता का कुछ लोग यह अर्थ लगाते हैं कि जो कुछ भी आलोचना लिखी जा रही हो उसमें उनका नाम है की नहीं.अगर उनका नाम उसमें होता है तब तो आलोचक समकालीन रचनाशीलता से परिचित है, नहीं तो मान लिया जा रहा है कि वह तो इधर का कुछ पढ़ ही नहीं रहा है.<br />मैनेजर पाण्डेय ने अभी मन्नू भंडारी पर लिखा है.रणेंद्र के उपन्यास ग्लोबल गाँव के देवता पर उनका एक लेख है. .. कुमार विकल पर उन्होंने लिखा है,नागार्जुन,त्रिलोचन,रघुवीर सहाय, रेणु और प्रेमचंद पर लिखा है.<br />क्या परम्परा का समकालीन संदर्भ में मूल्यांकन.. समकालीन होना नहीं है.arun dev https://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-42310958249120898212011-06-26T18:01:53.207+05:302011-06-26T18:01:53.207+05:30Saakshaatkaar hindi aalochanaa ke vistrit itivritt...Saakshaatkaar hindi aalochanaa ke vistrit itivritta par ki gayee drishtivaan tippaniyon ke kaaran bahut upyukta aur upyogi hai. Dr Manager pandey ka aalochanaa-karm mooltah saiddhaantik aur shaastreeya hai, sambhavtayaa is liye aur isi art...h mein Namvarji ne unhein 'aalochakon ka aalochak' kahaa hai. Ise 'poet's poet' ki tarz par dekhanaa kadaachit upyukta nahin hogaa. Yahaan vyakta sthaapanaaon se asahmati mushkil hogi. poore saakshaatkaar mein maatra ek ansh se aalchakon aur sajag paathakon ko thodi aapatti aur asahmati ha sakti hai-- us ansh se jahaan vah samkaaleen aalochakon ke naam ginaane lagate hain. Yahaan unkaa moolyaankan kuch adhik hi aatmaparak(subjective) lagataa hai. Vaise bhi, sameekshaa-karm aur gambheer alochanaa-karm ke farq ki taraf ishaaraa toh unhonne kiyaa hai. Yah doosari baat hai ki naamollekh mein yah farq dhundhlaa gayaa dikhataa hai. Kul milaakar itane achchhe saakshaatkaar ke liye Arun Dev aur Dr Manager Pandey ko badhaai. Maine qareeb teen ghante pahale saakshaatkaar ke chitramay moolpaath par tippani ki thi jo na jaane kaise ghaayab ho gayee, isliye phir se yah tippani.Mohan Shrotriyanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-38966676778407853422011-06-26T15:34:23.204+05:302011-06-26T15:34:23.204+05:30मैं यह भी कहूँगा,.. इस चिंता, संकट और अवसरवाद के ब...मैं यह भी कहूँगा,.. इस चिंता, संकट और अवसरवाद के बावजूद ऐसी आलोचनाएं भी दिखती हैं जो आलोचना के भविष्य को लेकर आश्वस्त करती हैं और उम्मीद भी जगाती हैं.bhut acchi bat&chit hai. gamvir aur sarthak bate. arun aapka sukriya . aapki rachnasilta se ham sab wakif hai.khusinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-24703265896753707162011-06-26T11:41:52.479+05:302011-06-26T11:41:52.479+05:30हिन्दी आलोचना के क्रमिक विकास और आधुनिक काल के प्...हिन्दी आलोचना के क्रमिक विकास और आधुनिक काल के प्रमुख हिन्दी आलोचकों के अवदान और उनकी सीमाओं पर डॉ मैनेजर पाण्डेय के साथ की गई यह बातचीत कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। इस संवाद की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसके माध्यम से आचार्च रामचंद्र शुक्ल से लेकर आज तक ही हिन्दी आलोचना के परिदृश्य को मैनेजर ने बहुत बारीकी से समग्रता में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है, साथ ही उसकी सीमाओं पर भी बेहद सटीक टिप्पणियां की हैं। वे आचार्य शुक्ल से लेकर नामवरजी तक सभी के प्रति गहरा आदरभाव तो रखते हैं, लेकिन जहां उनसे असहमतियां हैं या उनकी पद्धति में जहां चूक दिखाई देती है, उसे उजागर करने में कोई लिहाज नहीं बरतते। स्वयं मैनेजर जी समकालीन हिन्दी लेखन और साहित्य के समाजशास्त्र की जैसी गहन व्याख्याएं की हैं, वह निश्चय ही हिन्दी आलोचना का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। उन जैसे सजग आलोचक से ऐसी सामिचिक और सार्थक बातचीत के लिए अरुण को जितनी दी जाए, कम है।नंद भारद्वाजhttps://www.blogger.com/profile/10783315116275455775noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-175515989232329002011-06-26T08:09:06.828+05:302011-06-26T08:09:06.828+05:30mujh jaise saahitya ke vidyaarthi kee samajh ko ab...mujh jaise saahitya ke vidyaarthi kee samajh ko abhivriddh karti baatcheet..., dhanyavad Arun jeePushpendra Falgunhttps://www.blogger.com/profile/15610027763847587495noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-52131380110728966192011-06-26T07:49:19.443+05:302011-06-26T07:49:19.443+05:30bahut kuchh seekhne ko mil raha hai samalochan pad...bahut kuchh seekhne ko mil raha hai samalochan padhte hue. yah usi nirantarta ki ek kadi hai. dhanyavad arunji.लीना मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07272007913721801817noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-56593320878323475662011-06-26T07:27:01.749+05:302011-06-26T07:27:01.749+05:30हिंदी आलोचना की परम्परा और उसमें निहित संभावनाओं प...हिंदी आलोचना की परम्परा और उसमें निहित संभावनाओं पर प्रकाश डालती ये बातचीत आगे की संभावनाओं के लिए कड़ी का काम करेगी . सहेजने योग्य और रोचक बातचीत है . समकालीन आलोचना के परिदृश्य को लेकर पाण्डेय जी ने जो चिंता जताई है वह केवल प्रश्न पर लाकर नहीं छोड़ती. वे स्पष्ट कहते हैं -"अक्सर समकालीन कविओं, कहानीकारों और उपन्यासकारों की समीक्षा ही आलोचना के रूप में सामने आ रही हैं. मैं केवल पुस्तक समीक्षा को आलोचना नहीं मानता. रचना के केन्द्र में स्थित समाज और विचार से अगर आलोचना की टकराहट नहीं है तो वह आलोचना नहीं है." इस तरह वे केवल चिंता नहीं प्रकट कर रहे अपितु समाधान भी दे रहे दे रहे हैं , साथ ही वे आशान्वित भी हैं और गोपाल प्रधान जी सियाराम शर्मा, नन्द भारद्वाज तथा ज्योतिष जोशी जी जैसे आलोचकों की सराहना कर रहे हैं .अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-80996305095230114062011-06-26T06:58:48.161+05:302011-06-26T06:58:48.161+05:30मुझे इसे पढ़ते हुए यह कमी अवश्य महसूस हुई कि समका...मुझे इसे पढ़ते हुए यह कमी अवश्य महसूस हुई कि समकालीन रचनाशीलता के प्रति डा. मैनेजर पाण्डेय के आलोचकीय प्रयासों पर भी कोई सवाल होना चाहिए था। वह आजकल किसे पढ़ रहे हैं, समकालीन लेखन पर बतौर आलोचक क्या सोच रहे हैं, क्या कर रहे हैं या उनकी आगामी क्या योजना है... ऐसी जिज्ञासाएं शांत नहीं हो सकीं। यहां व्यक्त उनके ज्यादातर विचार पहले से ज्ञात हैं। बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि इस वार्त्ता की एक और कड़ी सामने आयेगी और डा.पाण्डेय के प्रयासों के बारे में ताजा जानकारी मिल सकेगी। प्रयास के लिए बधाई...Shyam Bihari Shyamalhttps://www.blogger.com/profile/02856728907082939600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-70159462045223087762011-06-26T06:27:11.209+05:302011-06-26T06:27:11.209+05:30बहुत अच्छी बातचीत !धन्यवाद अरुणजीबहुत अच्छी बातचीत !धन्यवाद अरुणजीवंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-80296127624738240162011-06-26T06:12:03.003+05:302011-06-26T06:12:03.003+05:30यह संग्रह कर लिया है।यह संग्रह कर लिया है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com